*द मा को आयुर्वेद में श्वास रोग कहते हैं। शरीर में कफ और वायु दोषों के असंतुलित हो जाने के कारण यह रोग होता है। बढ़ा हुआ कफ फेफड़े में एकत्र होने पर उसकी कार्यक्षमता में बाधा पहुंचती है और सांस के द्वारा लिये गये और छोड़े गये वायु के आवागमन में अवरोध उत्पन्न होता है। बढ़ा हुआ वायु इस कफ को सुख देता है जिससे वह श्वास नली में जम जाता है और सांस की तकलीफ शुरू होती है। तभी रोगी को दमे का भयंकर आक्रमण होता है। इसके अलावा कुछ और भी ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें पूर्वरूप कहा जाता है, जैसे छाती में हल्की पीड़ा, पेट में भारीपन, या वायु जम जाना, मुंह का स्वाद बदल जाना और सिर दर्द आदि।
*कर्ह बार लक्षणों के बिना अकस्मात् ही दमा शुरू हो जाता है। कारण दमा के मुख्यतः तीन कारण हैं: व्याधि, आहार एवं विहार।
*व्याधि: -व्याधि में शरीर में कफ और वायु दोष असंतुलित हो जाते हैं, जिसके कारण दमा होता है।
*आहार: -असंतुलित भोजन करने से भी रोग होता है। तेल या मसालेदार पदार्थों का अतिसेवन, भारी पदार्थ का अपचन, जो कब्ज पैदा करे, रूखा अन्न, बासी, खट्टी चीजें अधिक खाना और असमय खाना, जैसे रात में दही या दूध, केला या फल, सलाद, आइसक्रीम का सेवन एवं शीतल आहार, जैसे फ्रिज का ठंडा पानी, शीत पेय एवं तंबाकू के सेवन आदि से श्वास रोग हो सकता है।
*विहार: -यह आपके रहन-सहन पर निर्भर करता है। हमेशा शीत स्थान में रहना, जैसे वातानुकूलित कार्यालय में काम करना, वातानुकूलित कार्यालय में काम करना, वातानुकूलित कमरे में रहना और बर्फीले स्थान पर सफर करना आदि भी यह बीमारी पैदा करते हैं। धूल या धुंआ इस रोग के विशेष कारण हैं। इस्पात के कारखानों में, भट्टियों के पास, सीमेंट के कारखानों में, रसायन कारखानों में कार्यरत है। इसके अलावा तीव्र वायु में रहना, अधिक व्यायाम करना, वेगावरोध, जैसे मल-मूत्र के वेगों को रोकना, पोषणयुक्त आहार न करना, ये सभी दमा रोग को आमंत्रित करते हैं।
*यह रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है।श्वास पथ की मांसपेशियों में आक्षेप होने से सांस लेने निकालने में कठिनाई होती है।खांसी का वेग होने और श्वासनली में कफ़ जमा हो जाने पर तकलीफ़ ज्यादा बढ जाती है।रोगी बुरी तरह हांफ़ने लगता है। एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ या वातावरण के संपर्क में आने से,बीडी,सिगरेट धूम्रपान करने से,ज्यादा सर्द या ज्यादा गर्म मौसम,सुगन्धित पदार्थों,आर्द्र हवा,ज्यादा कसरत करने और मानसिक तनाव से दमा का रोग उग्र हो जाता है।
*यहां ऐसे घरेलू नुस्खों का उळ्लेख किया जा रहा है जो इस रोग ठीक करने,दौरे को नियंत्रित करने,और श्वास की कठिनाई में राहत देने वाल सिद्ध हुए हैं....
*एक पका केला छिला लेकर चाकू से लम्बाई में चीरा लगाकर उसमें एक छोटा चम्मच दो ग्राम कपड़छान की हुई काली मिर्च भर दें । फिर उसे बगैर छीलेही, केले के वृक्ष के पत्ते में अच्छी तरह लपेट कर डोरे से बांध कर 2-3 घंटे रख दें । बाद में केले के पत्ते सहित उसे आग में इस प्रकार भूने की उपर का पत्ता जले । ठंडा होने पर केले का छिलका निकालकर केला खा लें ।प्रतिदिन सुबह में केले में काली मिर्च का चूर्ण भरें। और शाम को पकावें । 15-20 दिन में खूब लाभ होगा । केला के पत्तों को सुखाकर किसी बड़े बर्तन में जला लेवें। फिर कपड़छान कर लें और इस केले के पत्ते की भरम को एक कांच की साफ शीशी या डिब्बे में रख लें । बस, दवा तैयार है ।
सेवन विधि - एक साल पुराना गुड़ 3 ग्राम चिकनी सुपारी का आधा से थोड़ा कम वनज को 2-3 चम्मच पानी में भिगों दें । उसमें 1-4 चौथाई दवा केले के पत्ते की राख डाल दें और पांच-दस मिनट बाद ले लें । दिनभर में सिर्फ एक बार ही दवा लेनी है, कभी भी ले लेवें ।
बच्चे का असाध्य दमा - अमलतास का गूदा 15 ग्राम दो कप पानी में डालकर उबालें चौथाई भाग बचने पर छान लें और सोते समय रोगी को गरम-गरम पिला दें । फेफड़ों में जमा हुआ बलगम शौच मार्ग से निकल जाता है । लगातार तीन दिन लेने से जमा हुआ कफ निकल कर फेफड़े साफ हो जाते है । महीने भर लेने से फेफड़े कर तपेदिक ठीक हो सकती है ।
*तुलसी के १५-२० पत्ते पानी से साफ़ करलें फ़िर उन पर काली मिर्च का पावडर बुरककर खाने से दमा मे राहत मिलती है।
*एक केला छिलके सहित भोभर या हल्की आंच पर भुनलें। छिलका उतारने के बाद १० नग काली मिर्च का पावडर उस पर बुरककर खाने से श्वास की कठिनाई तुरंत दूर होती है।
*दमा के दौरे को नियंत्रित करने के लिये हल्दी एक चम्मच दो चम्मच शहद में मिलाकर चाटलें।
*तुलसी के पत्ते पानी के साथ पीसलें ,इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।
*पहाडी नमक सरसों के तेल मे मिलाकर छाती पर मालिश करने से फ़ोरन शांति मिलती है।
*१० ग्राम मैथी के बीज एक गिलास पानी मे उबालें तीसरा हिस्सा रह जाने पर ठंडा करलें और पी जाएं। यह उपाय दमे के अलावा शरीर के अन्य अनेकों रोगों में फ़यदेमंद है।
*एक चम्मच हल्दी एक गिलास दूध में मिलाकर पीने से दमा रोग काबू मे रहता है।एलर्जी नियंत्रित होती है।
*सूखे अंजीर ४ नग रात भर पानी मे गलाएं,सुबह खाली पेट खाएं।इससे श्वास नली में जमा बलगम ढीला होकर बाहर निकलता है।
*सहजन की पत्तियां उबालें।छान लें| उसमें चुटकी भर नमक,एक चौथाई निंबू का रस,और काली मिर्च का पावडर मिलाकर पीयें।दमा का बढिया इलाज माना गया है।
*शहद दमा की अच्छी औषधि है।शहद भरा बर्तन रोगी के नाक के नीचे रखें और शहद की गन्ध श्वासके साथ लेने से दमा में राहत मिलती है।
*दमा में नींबू का उपयोग हितकर है।एक नींबू का रस एक गिलास जल के साथ भोजन के साथ पीना चाहिये।
*लहसुन की ५ कली ५० मिलि दूध में उबालें।यह मिक्श्चर सुबह-शाम लेना बेहद लाभकारी है।
*आंवला दमा रोग में अमृत समान गुणकारी है।एक चम्मच आंवला रस मे दो चम्मच शहद मिलाकर लेने से फ़ेफ़डे ताकतवर बनते हैं।
*दमा रोगी को हर रोज सुबह के वक्त ३-४ छुहारा अच्छी तरह बारीक चबाकर खाना चाहिये।अच्छे परिणाम आते हैं।इससे फ़ेफ़डों को शक्ति मिलती है और सर्दी जुकाम का प्रकोप कम हो जाता है।
*सौंठ श्वास रोग में उपकारी है। इसका काढा बनाकर पीना चाहिये।
*गुड १० ग्राम कूट लें। इसे १० ग्राम सरसों के तेल मे मसलकर-मिलाकर सुबह के वक्त खाएं। ४५ दिन के प्रयोग से काफ़ी फ़ायदा नजर आएगा।
*पीपल के सूखे फ़ल श्वास चिकित्सा में गुणकारी हैं। बारीक चूर्ण बनाले। सुबह -शाम एक चम्मच लेते रहें लाभ होगा।
*घरेलू उपचार स मुलहटी और सुहागा फूल को अच्छी तरह पीस लें और दोनों को बराबर मात्रा में मिला कर एक ग्राम दवा दिन में दो-तीन बार शहद के साथ चाटें, या गर्म पानी के साथ लें। ऐसा करना साधारण दमे में लाभकारी होता है।
* सोंठ, छोटी पीपर, सफेद पुनर्नवा, वायविडंग, चित्रक की जड़ की छाल, सत गिलोय, अश्वगंध, बड़ी हरड़ का छिलका, असली विधारा, बहेड़ की छाल, आंवला की छाल और काली मिर्च, सब को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीस कर चूर्ण बना लें। बाद में इन्हें गुड़ की एक तार की चाशनी में मिला कर पांच-पांच ग्राम की गोलियां बना कर सुखा लें। प्रातः काल एक गोली गाय या बकरी के दूध के साथ लें। इससे श्वास दमे में विशेष लाभ होता है।
*एक तोला, सोंठ का चूर्ण पचास ग्राम पानी में उबाल कर पकाएं। जब पानी आधा रह जाए, तो उसे छान कर पीने से दमें में लाभ होता है।
*सफेद जीरा तीन माशे, छोटी दुद्धी चार माशे, इन दोनों को ढाई ग्राम पानी में पीस कर छान लें। थोडा सा सेंधा नमक भी मिला कर सुबह पीएं।
*अडूसे का शरबत (बाजार से मिल जाता है) दो चम्मच भर पानी के साथ लेने पर सांस की नली साफ होती है और सांस लेने में तकलीफ नहीं होती।
*तुलसी के पत्तों का रस दो से चार चम्मच दिन में तीन-चार बार पीने से दमे में आराम होता है। तुलसी, काली मिर्च, हरी चाय की पत्ती का काढ़ा भी फायदेमंद होता है।
*धाय के फूल, पोस्ता के डोडे, बबूल की छाल, कटेरी अडूसा, छोटी पीपर, सोंठ, इन सबको बराबर मात्रा में ले कर पांच सौ ग्राम पानी में पकाएं। जब पानी आधा रह जाए, तो छान कर पांच माशे शहद के साथ लें। यह दमे में लाभ देता है।
*अजवायन, सुहागा, लोंग, काला नमक, सेंधा नमक, सांभर नमक, इन सबको बराबर मात्रा में ले कर मिट्टी की हांडी में डाल कर अच्छी तरह बंद कर दें और फिर गैसों की आग पर चार घंटे तक जलाएं। बाद में ठंडा कर हांडी से भस्म निकाल कर अच्छी तरह पीस कर चूर्ण बना लें। चुटकी भर भस्म शहद में मिला कर चाटें और हल्का गर्म पानी पीएं।
*अंजीर को कलई किये हुए बत्र्तन में चैबीस घंटे तक पानी में भिगोएं। सुबह अंजीर को उसी पानी में उबाल लें। प्रातः काल प्राणायाम करने के बाद जब श्वास सामान्य हो जाए, तब उबले हुए अंजीर को चबा कर खा लें और वही पानी पी लें। इससे दमा रोग में विशेष लाभ होता है।
*दमे का आक्रमण होने पर लहसुन के तेल से रोगी के सोने पर मालिश करें और एक-दो चम्मच हल्दी, एक चम्मच अजवायन पानी में डाल कर उबाल कर पिलाएं। दमे के आक्रमण से जल्द आराम मिलेगा।
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