Wednesday, December 23, 2015

श्वेत प्रदर (सफ़ेद पानी)-

श्वेत प्रदर होने पर स्त्री की योनि से सफेद रंग का चिकना स्त्राव पतले या गाढ़े रूप में निकलने लगता है| इस प्रदर में तीक्ष्ण बदबू उत्पन्न होती है| ऐसे में दिमाग कमजोर होकर सिर चकराने लगता है| स्त्री को बड़ी बैचेनी एवं थकान महसूस होती है|कारणखून की कमी, चिन्ता, शोक, भय, सम्मान की कमी, अधिक सम्भोग, भावनात्मक कष्ट, अजीर्ण, कब्ज, मूत्राशय की सूजन आदि कारणों से स्त्रियों को श्वेत प्रदर हो जाता है|

पहचान:-
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  • योनि मार्ग से सफेद रंग का पतला-पतला स्त्राव निकलता है| कभी-कभी गाढ़ा लेसदार स्त्राव चिपचिपे श्लेष्मा के साथ निकलने लगता है| इस रोग में भूख नहीं लगती| पेट में भारीपन, सिर दर्द, शरीर में दर्द, उत्साह का खत्म हो जाना, जलन, योनि में खुजली तथा दुर्गंध आने लगती है| स्त्री दिन-प्रतिदिन कमजोर होती चली जाती है| शरीर में हड़फूटन पड़ती है तथा कमर में बड़ी तेजी से दर्द होता है|

नुस्खे:-
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  • 10 ग्राम मुलहठी तथा 20 ग्राम चीनी - दोनों को पीसकर चूर्ण बना लें| आधा चम्मच चूर्ण सुबह और आधा चम्मच शाम को दूध के साथ सेवन करें|
  • सूखे हुए चमेली के पत्ते 4 ग्राम और सफेद फिटकिरी 15 ग्राम - दोनों को खूब महीन पीस लें| इसमें से 2 ग्राम चूर्ण शक्कर में मिलाकर रात के समय फांककर ऊपर से दूध पी लें| इससे श्वेत प्रदर ठीक हो जाता है| जब तक प्रदर न रुके, यह दवा नियमित रूप से लेते रहना चाहिए|
  • पके हुए केले में 1 ग्राम फिटकिरी का चूर्ण भरकर दोपहर के समय उसे खूब चबा-चबाकर खाएं| इससे सफेद  प्रकार  रुक जाएगा-
  • पेट पर ठंडे पानी का कपड़ा 10 मिनट तक रखें| श्वेत प्रदर में यह लाभकारी रहता है|
  • अशोक की छाल 50 ग्राम लेकर उसे लगभग 2 किलो पानी में पकाएं| जब पानी आधा किलो की मात्रा में रह जाए तो उसे उतारकर छान लें| ठंडा करके इसमें दूध मिलाकर घूंट-घूंट पिएं| श्वेत प्रदर रोकने की यह अचूक दवा है|
  • गुलाब के पांच फूल मिश्री के साथ मिलाकर खिलाएं| ऊपर से गाय का आधा किलो दूध दें-
  • अरहर के आठ-दस पत्ते सिल पर पानी द्वारा पीस लें| इसमें थोड़ा-सा सरसों का तेल पकाकर मिलाएं| फिर थोड़ी चीनी डालकर सेवन करें-
  • एक चम्मच तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ चाटना चाहिए-
  • अनार के सूखे छिलके एक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से सेवन करें-
  • दो चम्मच मूली के पत्तों का रस नित्य पीने से श्वेत प्रदर का रोग ठीक हो जाता है-
  • 10 ग्राम आंवले का गूदा 2 ग्राम जीरा - दोनों को खरल करके लें-सिंघाड़े के आटे की रोटी पर देशी घी लगाकर कुछ दिनों तक खाएं-

अल्‍सर का उपचार -

अल्‍सर, जिसे अक्सर आमाशय का अल्‍सर, पेप्टिक अल्‍सर या गैस्ट्रिक अल्‍सर कहते हैं, आपके आमाशय या छोटी आँत के ऊपरी हिस्से में फोड़े या घाव जैसे होते हैं। अल्‍सर उस समय बनते हैं जब भोजन को पचाने वाला अम्ल आमाशय या आँत की दीवार को क्षति पहुँचाता है। 


पहले यह माना जाता था कि अल्‍सर तनाव, पोषण या जीवनशैली के कारण होता है किन्तु वैज्ञानिकों को अब यह ज्ञात हुआ है कि ज्यादातर अल्सर एक प्रकार के जीवाणु हेलिकोबैक्टर पायलोरी या एच. पायलोरी द्वारा होता है। 




यदि अल्सर का उपचार न किया जाये तो ये और भी विकराल रूप धारण कर लेते हैं।



अल्सर का शाब्दिक अर्थ है - घाव

यह शरीर के भीतर कहीं भी हो सकता है; जैसे - मुंह, आमाशय, आंतों आदि में| परन्तु अल्सर शब्द का प्रयोग प्राय: आंतों में घाव या फोड़े के लिए किया जाता है| यह एक घातक रोग है, लेकिन उचित आहार से अल्सर एक-दो सप्ताह में ठीक हो सकता है|

अधिक मात्रा में चाय, कॉफी, शराब, खट्टे व गरम पदार्थ, तीखे तथा जलन पैदा करने वाली चीजें, मसाले वाली वस्तुएं आदि खाने से प्राय: अल्सर हो जाता है| इसके अलावा अम्युक्त भोजन, अधिक चिन्ता, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, कार्यभार का दबाव, शीघ्र काम निपटाने का तनाव, बेचैनी आदि से भी अल्सर बन जाता है| पेप्टिक अल्सर में आमाशय तथा पक्वाशय में घाव हो जाते हैं| धीरे-धीरे ऊतकों को भी हानि पहुंचनी शुरू हो जाती है| इसके द्वारा पाचक रसों की क्रिया ठीक प्रकार से नहीं हो पाती| फिर वहां फोड़ा बन जाता है |

पेट में हर समय जलन होती रहती है| खट्टी-खट्टी डकारें आती हैं| सिर चकराता है और खाया-पिया वमन के द्वारा निकल जाता है| पित्त जल्दी-जल्दी बढ़ता है| भोजन में अरुचि हो जाती है| कब्ज रहता है| जब रोग बढ़ जाता है तो मल के साथ खून आना शुरू हो जाता है| पेट की जलन छाती तक बढ़ जाती है| शरीर कमजोर हो जाता है और मन बुझा-बुझा सा रहता है| रोगी चिड़चिड़ा हो जाता है| वह बात-बात पर क्रोध प्रकट करने लगता है|

नुस्खे :-
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  • यदि पेट में जांच कराने के बाद घाव का पता चले तो संतरे का रस सुबह-शाम आधा-आधा कप इस्तेमाल करें| इससे घाव भर जाता है|
  • पिसे हुए आंवले का दो चम्मच चूर्ण रात को एक कप पानी में भिगो दें| सुबह उसमें आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ, चौथाई चम्मच जीरा तथा दो चम्मच पिसी हुई मिश्री मिलाकर सेवन करें|
  • अल्सर के रोगियों को दो केले कुचलकर उनमें तुलसी के पत्तों का रस एक चम्मच की मात्रा में मिलाकर खाना चाहिए|
  • यदि अल्सर के कारण पेट में दर्द की शिकायत हो तो एक चम्मच जीरा, एक चुटकी सेंधा नमक तथा दो रत्ती घी में भुनी हुई हींग - सबको चूर्ण के रूप में सुबह-शाम भोजन के बाद खाएं| ऊपर से मट्ठा पिएं|
  • छोटी हरड़ दो, मुनक्का बीज रहित दो तथा अजवायन एक चम्मच-तीनों की चटनी बनाकर दो खुराक करें| इसे सुबह-शाम लें|
  • कच्चे केले की सब्जी बनाकर उसमें एक चुटकी हींग मिलाकर खाएं| यह अल्सर में बहुत फायदा करती है|
  • एक चम्मच आंवले के मुरब्बे का रस तथा एक कप अनार का रस - दोनों को मिलाकर सुबह के समय भोजन से पहले लें|
  • छोटी हरड़ एक, अजवायन एक चम्मच, धनिया दो चम्मच, जीरा एक चम्मच तथा हींग दो रत्ती - सबका चूर्ण बनाकर दो खुराक करें| भोजन के बाद एक-एक खुराक मट्ठे के साथ लें|
क्या खाएं क्या नहीं :-
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  • इस रोग में भोजन के बाद आमाशय के ऊपरी हिस्से में दर्द होने लगता है| इसलिए रोगी को थोड़ी-सी हींग पानी में घोलकर लेना चाहिए| रोगी को खाली दूध, दही, खोए तथा मैदा की चीजें नहीं खानी चाहिए| यदि दोपहर को केवल उबली हुई सब्जियों जैसे - लौकी, तरोई, परवल, पालक, टिण्डे आदि का सेवन करें तो रोग जल्दी चला जाता है| अल्सर में मूली, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खट्टी चीजें जैसे - इमली और खटाई नहीं खानी चाहिए| सुबह नाश्ते में हल्की चाय एवं बिस्कुट लेना चाहिए| रात को हल्का भोजन करना बहुत लाभदायक होता है| तम्बाकू, कैफीन, अंडा, मांस, मछली, की तकलीफ को बढ़ा देता है, इसलिए इनका भी प्रयोग न करें|
  • अल्‍सर के रोगी को भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए| थोड़ा-थोड़ा भोजन पांच-छ: बार में करें, क्योंकि भोजन का पचना पहली शर्त होती है| भरपेट भोजन से अल्सर पर दवाब पड़ सकता है और खाया-पिया उल्टी के रूप में निकल सकता है| चाय बहुत हल्की पिएं| यदि चाय की जगह पपीते, मौसमी, अंगूर या सेब का रस लें तो लाभकारी होगा| भोजन के बाद टहलने का कार्य अवश्य करें| पानी उबला हुआ सेवन करें| भोजन के बाद अपनी टुण्डी पर सरसों का तेल लगा लें| रात को सोने से पूर्व पेट पर सरसों का तेल मलें| पैर के तलवों पर भी तेल की मालिश करें|
अब आप इन बातों का रखें ख्‍याल:-
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  • रात के खाने और सोने के बीच कम-से-कम दो घंटे का अंतर होना चाहिए।
  • यदि आपको बार-बार या लगातार आमाशय या पेट में दर्द हो तो अपने चिकत्सक की सलाह अवश्य लें क्योंकि अक्सर यही अल्सर के प्रथम लक्षण होते हैं। अन्य लक्षणों में मितली आना, उल्टी आना, गैस बनना, पेट फूलना, भूख न लगना और वजन में गिरावट शामिल हैं।
  • यदि आपके मल अथवा उल्टी में रक्त आये या आपके लक्षण और खराब हो जायें या दवाओं को कोई असर न हो रहा हो तो अपने चिकित्सक के पास पुनः जायें। वे निम्न में से किसी एक जाँच कराने की राय दे सकते हैं- जीआई सीरीज़ - बेरियम नामक एक सफेद तरल पीने के बाद अल्सरों को देखने के लिये आपका एक्स-रे किया जायेगा। एण्डोस्कोपी - उपशामक के उपयोग के उपरान्त चिकित्सक आपके गले और ग्रसनी से होते हुये आमाशय में एक नली डालेंगें जिसके सिरे पर कैमरा होता है। कैमरे के द्वारा चिकित्सक आपके आहारनाल के अन्दर देख सकते हैं और ऊतक प्रकार का पता लगा सकते हैं। एच. पायलोरी के लिये बने प्रतिजैविक देखने के लिये रक्त की जाँच। एच. पायलोरी की उपस्थिति के लिये मल की जाँच। तरल यूरिया पीने के बाद साँस की जाँच।
  • यदि आपकी जाँचों में अल्सर के उपस्थिति की पुष्टि हो तो अपने चिकित्सक द्वारा दी गई राय का सख्ती से पालन करें। ज्यादातर उपचारों से अल्सर के कारणों को जड़ से समाप्त करने का प्रयास किया जाता है या फिर उसे शल्य चिकित्सा द्वारा हटाया जाता है। ऐस्परिन और नॉनस्टेरॉइडल एन्टी-इन्फ्लेमेटरी दवायें (एनएसएआइडी) भी अल्सर की कारक हो सकती हैं। यदि आपके अल्सर हो तो आपको एनएसएआइडी लेने से बचना चाहिये। यदि आपको एनएसएआइडी लेने की आवश्यकता हो तो अपने चिकित्सक की राय के अनुसार आप अम्ल लघुकारक के साथ एनएसएआइडी ले सकते हैं। लम्बे समय से बिना उपचार के पनप रहे गम्भीर या प्राणघातक अल्सर के लिये शल्यचिकित्सा अतिआवश्यक हो जाती है।
  • अत्यधिक रेशेदार ताजे फल और सब्जियों का सेवन करें जिससे कि अल्सर होने की सम्भावना कम की जा सके या उपस्थित अल्सर को ठीक किया जा सके।
  • फ्लैवेनॉइड युक्त भोजन का अधिक मात्रा में सेवन करें। सेब, सेलरी, क्रैनबेरी, लहसुन और प्याज, फलों और सब्जियों के रसों के साथ-साथ कुछ प्रकार की चायें फ्लैवेनॉइड के अच्छे स्रोत होते हैं।
  • यदि मसालेदार भोजन करने के बाद आपके अल्सर में दर्द बढ़ जाये तो इनका सेवन समाप्त कर दें। हलाँकि चिकित्सकों का अब यह मानना है कि मसालेदार भोजन से अल्सर नहीं होता है लेकिन कुछ अल्सर वाले लोग यह अवश्य कहते हैं कि मसालेदार भोजन के उपरान्त उनके लक्षण गम्भीर हो जाते हैं।
  • कॉफी और कार्बोनेटेड पेय पदार्थों की संख्या सीमित करें या पूर्णतयः समाप्त कर दें। इन सभी पेय पदार्थों का आमाशय की अम्लीयता में तथा अल्सर के लक्षणों को गम्भीर बनाने में सहभागिता होती है। 9. अपने अल्सर पूर्णतयः ठीक होने तक शराब के सेवन न करें। उपचार के उपरान्त शराब की थोड़ी मात्रा का सेवन वाजिब हो सकता है किन्तु इसके बारे में अपने चिकित्सक की राय अवश्य लें। 10. बदहज़मी और सीने में जलन जैसे अल्सर के लक्षणों पर काबू पाने के लिये दवा की दुकानों पर मिलने वाले एन्टाऐसिड का प्रयोग करें।

मुंहासों को दूर करने का उपचार

युवावस्था में जब शरीर में खून की गरमी पैदा हो जाती है तो वायु और कफ उस गरमी को शरीर से बाहर नहीं निकलने देते| उस दशा में त्वचा में गांठें या फुंसियां निकल आती हैं जो मुंहासे कहलाते हैं| ये उन लोगो को ज्यादा निकलते हैं जो गरम मसाले, मिर्च, तेल, खटाई एवं अम्लीय पदार्थ अधिक खाते हैं-


  • मुंहासे युवावस्था में युवक और युवतियों दोनों को समान रूप से निकलते हैं|
  • ये वसा ग्रंथियों में विकार के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं| युवतियों में डिम्ब के अन्त:स्त्राव के विकार, भोजन की खराबी, अधिक व्यायाम, वसा वाले पदार्थों का अधिक सेवन, युवकों द्वारा हस्तमैथुन करना आदि कारणों से चेहरे पर छोटी-छोटी फुंसियां अर्थात् मुंहासे निकल आते हैं|
  • युवक-युवतियों के चेहरे पर फुंसियां निकलने के कुछ दिनों बाद वे कठोर पड़ जाती हैं तथा उनमें कील और पीव पड़ जाती है| छोटे-छोटे मुंहासे कुछ दिनों के बाद अपने आप सुख जाते हैं| लेकिन बड़े मुंहासों में कील बन जाती है जो पक जाने पर दबाकर निकाली जा सकती है| मुंहासों के कारण चेहरा भद्दा -सा दिखाई देता है| वैसे मुंहासों से कोई शारीरिक हानि नहीं होती, लेकिन ये चेहरे के सौन्दर्य को फीका कर देते हैं| इसी कारण युवक/ युवतियां इनका शान्त करने का इलाज करते हैं|

इनका प्रयोग करे :-
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  • मुलतानी मिटटी को भिगोकर उसमें थोड़ी-सी पिसी हुई हल्दी और जौ का आटा मिला लें..अब इस फेक पैक को स्नान से पहले मुंह पर लगाएं.
  • तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर मुंह तथा हाथ-पैरों पर लगाएं.
  • थोड़ी-सी अजवायन को दही या मट्ठे में मिलाकर चेहरे पर लेप करें..थोड़ी देर बाद उसे गुनगुने पानी से धो डालें.
  • आम, जामुन और बेर की गुठलियों को मींगियां पीसकर बेसन में मिलाकर चेहरे और शरीर पर मलें.
  • बड़ या बरगद के पत्तों को पानी में पीसकर दही में मिला लें और फिर इस पेस्ट को चेहरे तथा हाथ-पैरों पर लगाएं.
  • नीम की निबौलियों को गूदा मुंह पर लगाएं.
  • दही में चोकर मिलाकर चेहरे पर लगाएं.
  • पान की जड़ को पानी में पीसकर लगाने से मुंहासे दोबारा नहीं निकलते.
  • दही में मूली का रस मिलाकर मुंहासों पर लगाने से वे सुख जाते हैं .
  • खीरे का रस चेहरे पर मलें इससे मुंहासे और झाइयां दूर होती हैं .
  • प्याज का रस शहद में मिलाकर मुंहासों पर लगाएं .
  • नीबू के रस में मलाई या मक्खन मिलाकर मुंहासों पर लगाना चाहिए .
  • बेसन में पिसी हुई हल्दी, गाजर और टमाटर का रस मिलाकर चेहरे पर लगाना चाहिए .
  • नीम के पेड़ छाल को पानी में घिस लें  फिर मुंहासों पर लगाएं .
  • जायफल को दूध के साथ पीसकर या एक चम्मच जायफल तथा चौथाई काली मिर्च को दूध में मिलाकर लेप तैयार कर लें फिर अब पुरुष इस लेप को मुंहासों पर लगाएं। फिर यह बिल्कुल जादुई सा असर दिखाता है। इस लेप से मुंहासे सख्त नहीं हो पाते और दब जाते है और कील-मुंहासे बिना कोई निशान छोड़ गायब हो जाते हैं .
  • दालचीनी और शहद का लेप पुरुषों में मुंहासों पर जादू का काम करता है। दो सप्‍ताह तक इसका नियमित इस्‍तेमाल मुंहासे दूर कर देता है। इसे लगाने के लिए तीन बड़े चम्मच शहद तथा एक बड़ा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर लेप तैयार कर लें। सोने से पहले इस लेप को मुंहासों पर लगाएं और अगली सुबह गुनगुने पानी से धो लें .
  • पुरुषों की त्‍वचा महिलाओं के मुकाबले थोड़ी सख्‍त होती है, इसलिए उनके लिए उपाय भी महिलाओं से अलग होते है। पुरुषों के लिए मुंहासे ठीक करने के लिए नींबू का रस बहुत ही फायदेमंद होता है। नींबू चेहरे से एक्सट्रा ऑयल को खींच लेता है। नींबू के रस को चार गुना ग्लिसरीन में मिलाकर चेहरे पर रगड़ने से कील-मुंहासे ठीक हो जाते है -
  • काली मिर्च मुंहासों को दूर करने में कारगर होता है। इससे कील मुंहासे और झुर्रियां साफ होकर चेहरा चमकने लगता है। इसके लिए बीस-पच्चीस दाने काली मिर्च गुलाब जल में पीसकर रात को चेहरे पर लगायें सुबह गर्म पानी से धो लें -
  • पुरुषों में होने वाले मुंहासों के लिए न‍ारियल का तेल उपयोगी होता है। नारियल तेल में पाये जाने वाले कुछ खास तत्‍व मुंहासों को दूर करने में मदद करते हैं। नारियल तेल को सीधे चेहरे पर लगाने से मुंहासे आसानी से दूर हो सकते हैं .
  • कलौंजी के लेप का प्रयोग कुछ दिन लगातार करने से पुरुषों के चेहरे से मुंहासे दूर हो जाते हैं। इसके लिए सिरके में कलौंजी को पीसकर लेप बनाएं और इसे रोजाना सोने से पहले अपने मुंहासों और पूरे चेहरे पर मलें। सुबह पानी से साफ कर लें। इस प्रयोग को कुछ दिनों तक लगातार करने से चेहरे पर बहुत प्रभाव पड़ता हैं .
  • मुंहासों के लिए पुरुषों को रात के समय सोने से पहले कच्चे दूध को चेहरे पर मलना चाहिए और सुबह के समय उठकर चेहरे को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। इससे मुंहासे जल्दी ही ठीक हो जाते हैं .
  • मुंहासों की समस्‍या से बचने के लिए पुरुष दही और काली चिकनी मिट्टी का बना फेस पैक लगाएं। इसके लिए वह दही में काली चिकनी मिट्टी को मिला लें और इस उबटन को अपने चेहरे पर लगाएं। उबटन के सुखने पर इसे धो लें। इस प्रकार की क्रिया कुछ दिनों तक करने से मुंहासे जल्दी ठीक हो जाते हैं .
  • लहसुन की 2-3 कली प्रतिदिन लगातार 2-3 महीने सुबह खाली पेट खाने से रक्‍त शुद्ध होता है, जिससे मुंहासे नहीं होते। साथ ही कच्चे लहसुन की कली को पीसकर उसे दिन में 3-4 बार मुंहासों पर लगाने से मुंहासे थम जाते हैं। चेहरे की त्वचा के काले निशान भी मिटते हैं .


मुहांसे से बचने के उपाय :-
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मुंहासों से बचने के कुछ प्रमुख उपाय निम्नवत् हैं - तेल, खटाई, इमली, अधिक मात्रा में घी, चाय, बर्फ, कॉफी, गरम मसाले, शराब, बीड़ी-सिगरेट आदि का सेवन बन्द कर देना चाहिए .
प्रतिदिन शरीर में तिली या सरसों के तेल की मालिश करके ही स्नान करना चाहिए... अश्लील साहित्य न पढ़ें . 
क्रोध, ईर्ष्या, जलन, द्वेष, मोह, लोभ आदि विकारों से अपने को बचाना चाहिए .
नियमित रूप से पौष्टिक, रुचिकर, सात्विक तथा पाचन भोजन ग्रहण करना चाहिए .
रात को सोने से पहले अधिक दूध का सेवन न करें . उसकी जगह मौसमी फलों का प्रयोग करें .

उम्र के अंतर का संबंधों पर प्रभाव....!

*आमतौर पर किसी भी रिलेशन में खासतौर पर दांपत्य जीवन में पुरूष महिला से उम्र में बढ़ा होता है और शादी के लिए आदर्श जोड़े में भी पुरूष महिलाओं से आमतौर पर एकाध साल बड़ी उम्र के ही होते हैं। 


*लेकिन आज के दौर में छोटी उम्र का पुरूष और बड़ी उम्र की महिला के बीच भी आसानी से संबंध बन जाते हैं। पति-पत्नी की उम्र के अंतर का संबंधों पर प्रभाव निश्चय ही पड़ता है। दरअसल, अकसर यह कहा जाता है कि महिला अपनी उम्र से पहले ही मैच्योर हो जाती है जबकि पुरूष अपनी उम्र के बाद ही मैच्योर होता है। आइए जानें उम्र के अंतर का संबंधों पर प्रभाव।

*आमतौर पर यदि बड़ी उम्र की महिला और छोटी उम्र के पुरूष की उम्र में सिर्फ कुछ सालों का अंतर है तो बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन जब यही फर्क 10-12 साल तक का हो जाता है तो काफी फर्क पड़ता है।

*हालांकि यह सर्वमान्य है कि प्यार की कोई सीमा नहीं होती,न ही कोई बंधन। अगर दो लोग आपस में समझदारी से एक-दूसरे के साथ जीवन-निर्वाह करने को तैयार है तो किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए लेकिन दोनों लोगों का खुश होना भी जरूरी है।

*बड़ी उम्र की महिला और छोटी उम्र के पुरूष या फिर बड़ी उम्र का पुरूष और छोटी उम्र की महिला फिर चाहे उम्र कोई भी हो लेकिन दोनों को मैच्योरिटी लेवल मिलना चाहिए जिससे दोनों आपस में सामंजस्य स्थापित कर पाएं।

*दरअसल,पति-पत्नी की उम्र के अंतर का संबंधो पर प्रभाव पड़ना लाजमी है। यदि बड़ी उम्र की महिला है तो निश्चित रूप से वह छोटी उम्र के पुरूष से अधिक अनुभवी होगी जिससे अधिक उम्र की महिला में सेक्‍स समस्‍याएं हो सकती हैं या फिर अधिक उम्र की महिलाओं की चाहत, सोच-विचार और इच्छाएं आपस में मिलने में मुश्किल हो सकते हैं।

*लड़कियां सामान्यतः लड़कों से जल्दी् परिपक्व हो जाती हैं, ऐसे में कोई भी निर्णय लेने में महिलाएं पुरूषों से अधिक सशक्त होती हैं। इतना ही नहीं महिलाओं में सेक्‍स समस्‍याएं भी पुरूषों के मुकाबले जल्‍दी उम्र में पनपनी लगती है, ऐसे में उम्र का रिश्‍तों पर प्रभाव पड़ना लाजमी है।

*दरअसल रिश्तों में बेस्ट हाफ, उम्र इत्यादि महत्वपूर्ण नहीं है। न ही महिलाओं और पुरूषों में सेक्‍स समस्‍याओं का ज्यादा महत्व है, महत्‍व तो इस बात का है कि वे एक दूसरे को कितनी अच्छी तरह से समझते हैं फिर चाहें उम्र कुछ भी हो।
वैसे भी वर्तमान में इस बात का महत्व कम हो गया है कि पति पत्नी में किसकी उम्र ज्यादा है। लेकिन मेडिकल साइंस ने ये माना है कि यदि पत्नी की उम्र पति से कम है तो वे कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।

*आमतौर पर पत्नी या पति में कोई भी बड़ी उम्र का हो लेकिन दोनों की शारीरिक जरूरतें उम्र के हिसाब से अलग-अलग होती हैं, इसीलिए दोनों की उम्र के बीच बहुत ज्यादा अंतराल होना सही नहीं है।



** Impact on the relationship of age difference ....! 



*आमतौर पर किसी भी रिलेशन में खासतौर पर दांपत्य जीवन में पुरूष महिला से उम्र में बढ़ा होता है और शादी के लिए आदर्श जोड़े में भी पुरूष महिलाओं से आमतौर पर एकाध साल बड़ी उम्र के ही होते हैं। 



* But in today's age between men and older women too easily become concerned. Husband-wife age difference certainly has an impact on the relationship. Indeed, often it is said that the woman is mature before age after age, while men are maturing. Here the effect of age gap relationships. 



*आमतौर पर यदि बड़ी उम्र की महिला और छोटी उम्र के पुरूष की उम्र में सिर्फ कुछ सालों का अंतर है तो बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन जब यही फर्क 10-12 साल तक का हो जाता है तो काफी फर्क पड़ता है। 



* While it is recognized that there is no limit to love, nor any bond.अगर दो लोग आपस में समझदारी से एक-दूसरे के साथ जीवन-निर्वाह करने को तैयार है तो किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए लेकिन दोनों लोगों का खुश होना भी जरूरी है। 



*बड़ी उम्र की महिला और छोटी उम्र के पुरूष या फिर बड़ी उम्र का पुरूष और छोटी उम्र की महिला फिर चाहे उम्र कोई भी हो लेकिन दोनों को मैच्योरिटी लेवल मिलना चाहिए जिससे दोनों आपस में सामंजस्य स्थापित कर पाएं। 



* Indeed, spouses are bound to impact on the relations of the age difference.यदि बड़ी उम्र की महिला है तो निश्चित रूप से वह छोटी उम्र के पुरूष से अधिक अनुभवी होगी जिससे अधिक उम्र की महिला में सेक्‍स समस्‍याएं हो सकती हैं या फिर अधिक उम्र की महिलाओं की चाहत, सोच-विचार और इच्छाएं आपस में मिलने में मुश्किल हो can be. 



* Girls are generally mature than boys Jldir, in making any decision that women are stronger than men. Not only sex problems in women than in men seems to be Panpani early age, the age that is bound to impact on relationships. 



* The Best Half of relationships, age etc. is not important.न ही महिलाओं और पुरूषों में सेक्‍स समस्‍याओं का ज्यादा महत्व है, महत्‍व तो इस बात का है कि वे एक दूसरे को कितनी अच्छी तरह से समझते हैं फिर चाहें उम्र कुछ भी हो। 

As it currently has reduced the importance of the husband and wife whose age is more.लेकिन मेडिकल साइंस ने ये माना है कि यदि पत्नी की उम्र पति से कम है तो वे कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं। 


*आमतौर पर पत्नी या पति में कोई भी बड़ी उम्र का हो लेकिन दोनों की शारीरिक जरूरतें उम्र के हिसाब से अलग-अलग होती हैं, इसीलिए दोनों की उम्र के बीच बहुत ज्यादा अंतराल होना सही नहीं है।

पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग के मुख्य कारण

महिलाओं में पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग होने के 6 कारण को ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने का पता आसानी से चल जाता है। अगर आपको दिन में कई बार पैड बदलने की जरूरत महसूस हो रही है तो जरूर कुछ गड़बड़ है। आइए जानें पीरियड्स के दौरान ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने के क्या कारण हो सकते हैं-

यह तो सब जानते हैं कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में हार्मोन में परिवर्तन होते हैं और यह सामान्य भी है। लेकिन कुछ महिलाओं के शरीर में ऐसे यह काफी तेजी से होता है जो कि ज्यादा ब्लीडिंग का कारण हो सकता है। ऐसे में बिना देर किए अपने डॉक्टर से संपंर्क करें-
  • जिन महिलाओं के गर्भाशय में ट्यूमर होता है वे पीरियड के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग की समस्या से ग्रस्त होती है। यह समस्या अक्सर 30 से 40 की उम्र के बाद होती है। ऑपरेशन और इलाज के जरिए इस ट्यूमर को गर्भाशय से निकाल दिया जाता है जैसे - मॉयमेक्‍टॉमी, एंडोमेटरियल एबलेशन, यूट्रिन आर्टरी एमबेलीजेशन और यूट्रिन बैलून थेरेपी आदि।
  • एंडोमेट्रियल पॉलीप्‍स, कैंसर का प्रकार नहीं है। य‍ह सिर्फ गर्भाशय की सतह पर उभरता या पनपता है। इसके बनने का कारण भी अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है लेकिन इसका इलाज कई विधियों से चिकित्‍सा जगत में संभव है। इसके बनने से बॉडी में एस्‍ट्रोजन या अन्‍य प्रकार के ओवेरियन ट्यूमर बन जाते हैं जो कि हैवी ब्लीडिंग का कारण हो सकते हैं।
  • प्रजनन अंगों में कई तरह के संक्रमण होने के कारण महिलाओं को उन दिनों में ज्यादा #ब्लीडिंग की समस्या हो सकती है जैसे गर्भाशय के पेल्विक में सूजन और संक्रमण के कारण ह समस्या ज्यादा होती है।
  • सरवाइकल कैंसर में गर्भाशय, असामान्‍य और नियंत्रण से बाहर हो जाता है। इसके होने से शरीर के कई हिस्‍से नष्‍ट हो जाते है। 90 प्रतिशत से ज्‍यादा सरवाइकल कैंसर, ह्यूमन पेपिलोमा वायरस के कारण होता है। इसके उपचार के दौरान मरीज की सर्जरी करके उसे कीमोथेरेपी और रेडियशन दिया जाता है, इस बीमारी का इलाज संभव है।
  • एंड्रोमेट्रियल कैंसर मुख्‍य रूप से 50 वर्ष से अधिक आयु वाली महिलाओं को होता है। इसके उपचार में सबसे पहले गर्भाशय को ऑपरेशन करके निकाल दिया जाता है। इस बीमारी की शिकायत होने पर तुरंत चिकित्‍सक ही सलाह लें और जल्‍द से जल्‍द उपचार करवाएं। इस प्रकार के कैंसर में कीमोथेरेपी और रेडियशन भी किया जाता है।

ध्यान रखें :- आपके पीरियड्स अचानक 90 दिन से अधिक समय के लिये बंद हो जाते हैं और आप गर्भवती नहीं हैं।सात दिनों से अधिक समय तक ब्लीडिंग होती रहती है और बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है।पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग होना।पीरियड्स का अंतराल 21 दिन से कम या 35 दिन से अधिक होना।पीरियड्स के दौरान अत्यधिक दर्द होना।

पढ़े समझे और जीवन में करे

” युक्ताहार विहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मणा
युक्त स्व्प्ना व्बोधस्य योगो भवति दु:खहा !!”

  • प्रकृति ने फ़ल फ़ूल , अन्न , मसाले , शाक सब्जी , दूध दही घी , मठा , जड़ी बूटी सभी कुछ तो स्वस्थ रहने के लिए दिया है . अनके सेवन से शरीर पौष्टिक बनता है वरन इन में ओषिधिगुण भी हैं , जैसे हल्दी , सरसों के तेल व सैंधा नमक के सेवन से दांतों के रोग होने की संभावना घट जाती है , उसी तरह इमली के प्रयोग से विशेष कर गर्मियों में लू , आदि का प्रकोप नहीं रहता.
  • जिसका आहार अर्थात खानपान नियमित है और जो प्रतिदिन विहार नियमपूर्वक करता है यानि जागना ,उठना ,बैठना ,टहलना और निद्रा नियम्पूर्वक हैं तब वह व्यक्ति स्वस्थ अर्थात निरोग रहेगा
  • कारपोरेट कर्मियों एवं कई सरकारी अधिकारियों पर काम का बोझ इतना ज्यादा है कि काम की पारी (समय) अथवा माहोल नके रुचि के अनुकूल नहीं हैं रात रात भर जागकर काम करना पड़ता है . अन्यथा हालत में खाने का कोई समय नहीं हैं इन सब से स्वास्थ्य संबंधी विकार और गड़बड़ैया उत्पन्न हो रही हैं .
  • हम आज के सम जब कि मिलावट का काफ़ी जोर है फ़ास्ट फ़ूड एसे बिक रहे है हैं जिनकी गुणवत्त संदेह की दायरे में हैं, ढाबों पर आटे की मनमाफ़िक सिकी रोटी नहीं मिलती.
कुछ बातें तो एसी हैं जिनका जानना पूरे परिवार के लिए जरूरी है-

  • जैसे गर्म पेय लेने के बाद आधे घंटे तक ठंडा न लें . अदल बदल कर गरम और ठंडा तरा ऊपर न लें तरबूज खरबूज एवं आइस्क्रीम के तुरन्त बाद पानी न पिएं .खरबूजे का संग शरबत से है इसलिए मेहमानों को कभी भी इसके साथ चाय सर्व न करें .
  • बहुत से व्यक्तियों को सुपारी से खासी एलर्जी होती है इसलिए उनको पूछ लेना चाहिए .
  • शादी ब्याह्के अवसर पर आइस्क्रीम , गरम पेय और पथ्य कुपथ्य का लोग ध्यान नहीं रखते फ़लत: पेट के कई प्रकार के रोग उनके गले पड़ जाते हैं . जैसे तंबाकू या गुटका खाने से गले या मुंह का केन्सर हो सकता है लेकिन लोग अनसुना करते रहते हैं कई बार तो अति- भोज overeatng कर लेते हैं और सदा के लिए पेट के विकार लेते हैं .
  • सेकरीन ठंडे पेय आदि में तो मीठी लगती है लेकिन गरम पेय जैसे खीर में इसे डाला जाए तो यह नुकसान-देह है
  • उड़द की दाल ज्यादा खा लेने पर यदि आपने उसके उपर से देशी घी दे दिया तो यह भी बहुत नुकसान- देह है.
  • कटहल की सब्जी खा लेने के बाद पान चबाना भी कई या प्राय: नुकसान-देह होता है
  • शहद और घी को मिलाना ही पड़ जाए तो याद रखें कि यह सदैव विषम मात्रा में होना चाहिए . सम मात्रा में यह जहर बन जाता है
  • तांबे के पात्र में खट्टी चीज ज्यादा देर न रखें यदि सब्जी बनाई है तो सब्जी के बन जाने पर उसे दूसरे पात्र में बदल दें , चूकि ये अपनी तासीर कुछ देर में ही बदलना शुरू कर देते हैं.
  • वर्षा के मौसम में जल मिलाकर सत्तू खाना, ओस गिर रही हो उस जगह सोना नदी के पानी में नहाना और धूप का सेवन त्याज्य बताए गए हैं .
  • गरमियों में यदि आलू बना ही रहे हैं तो उसमें सौंफ़ डाल लें जिससे उसकी गर तासीर थोड़ी ठंडी पड़ जाए.
जाड़े के दिनों में सब्जियों में सौंठ का प्रयोग करें .

  • हर घर में गेहूं के साथ निश्चित मात्रा में चना , मटर या जौ का आटा अवश्य मिलाएं ताकि यह कोई हानि न करे. साथ ही ध्यान रहे शरीर में यदि प्रोटीन की मात्रा ज्यादा लें गे और उसके सम अनुपात में केल्शियम नहीं लेंगे तो ये असंतुलन हड्डियों को कमज़ोर करेगा .
  • जाड़ों में बाजरा खुर्ती की फ़ली का सेवन फ़ायदेमंद बताया गया है .गरमियों में आप आम का पना , आम की चटनी बना सकते हैं जो कि सब के लिए गुणकारी होती है शायद ही कोई करे
  • कभी कभार रेस्टोरेन्ट में अनायस सब्जी आदि में कीड़ा छिपकली गिर जाते है तो जब भी खाना खाएं पूरी तन्मयता से आंख खोलकर मन से खाएं .इसमें कोई जल्दबाजी न करें
  • अतिभोज बदहजमी,मोटापा , शिठिलता को जन्म देता है . जिनके जोड़ों में दर्द रहता है उन्हें बादी और ठंडी चीजों से परहेज करना चाहिए.
ज्यादामात्रा में चूर्ण लेने से भी अजीर्ण होता है . कुछ टिप्स इस प्रकार हैं:-
1- बाहर से आएं तो साबुन से हाथ स्वच्छ करें
2- कभी भी बासी , एवं ज्यादा देर से रखा भोजन न करें
3- जिन खाने की चीजों पर फ़फ़ूंद लगी हो उनको न खाएं
4- किचन में कोकरोच से मुक्ति पाने के लिए बोरिक पाउडर छिड़कें
5- नीलाथोथा व तूतिया का छिड़काव भी कर सकते हैं
6- इधर उधर लगे जाले भी हटाएं
7- किचन की नाली में खाद्य पदार्थों के अवशिष्ट न डालें , यदि वे उस स्थान पर सड़े तो अस्वच्छ कारी वातावरण होगा
8 -बरतन अच्छी तरह से साफ़ किए हुए हों
9- बाज़ार से रोटी व सब्जी अगर खरीद भी लाए हैं तो घर आकर तेज आंच पर उन्हें दोबारा जरूर पका लें .
10-तांबे /स्टील /एल्यूमियम की कड़ाही में तैयार सब्जी पक जाने पर उसे दूसरे बरतन में तुरन्त बदल लें .
11-दिन में आमतौर पर सोना ठीक नहीं माना गया है .
12-नशे की लत से दूर रहें
13-जाड़ों में तेल मालिश जरूर करें , साप्ताहिक आदि रूप से .
14-भोजन पेट में पच जाए तभी खाना खाएं नहीं तो यह पाचन न हुआ तो पेट में सड़कर वायु विकार पैदा करेगा .
15-अजीर्ण की अवस्था में ( सौंफ़ +जीरा+काला नमक आधा चुटकी लें ).शरीर में वात, पित्त और कफ़ सम होने चाहिए . तीनों एक सथ अनियंत्रित होंगे तो सन्निपात जैसी स्थिती हो सकती है , अगर एक दो कम ज्यादा या बिगड़े तो अन्य रोग होंगे .
16-आयु अधिक होने पर तेल का प्रयोग फ़ेफ़ड़े में जमकर ( संदूषित पदार्थ ) रुकावट पैदा करेंगे फ़लत: सिस्टोलिक रक्तचाप कम होगाइस तरह हर्ट फ़ेल्योर (दिल के रुकने , दौरा पड़ने ) की संभावना बढ जाएगी .चयापचय ( मेटाबोलिज्म )अस्त व्यस्त होकर जरूरी मात्रा मेंप्रोटीन ( अमीनो असिड्स)नहीं बने तो चिड़चिड़ापन और कमजोरी बढ जाती हैं इस्में कुलेखरा या जवारे का रस फ़ायदा पहुंचाता है .
17-प्रात:काल ब्राह्म मुहुर्त में जगकर शुद्ध वायु का सेवन करें .
18-शरीर से बलिष्ठ होने के साथ आप मन से मजबूत हों .यह तभी संभव है जब सोच विचार , prudence , temperence fortitude and justice से नेक होंगे इस तरह सत्य और सत्मार्ग पर प्रवृत्त होने पर मन हल्का रहेगा और मन क्सी बोझ के तले नहीं होगा , फ़लत: प्रफ़ुल्लित रहेगा .

वातावरण में मौजूद तमाम बैक्टीरिया और वायरस को हम साँस के जरिये रोजाना अन्दर लेते रहते हैं, लेकिन ये बैक्टीरिया हमें निकसान नहीं पहुंचाते. क्यों? क्योंकि हमारा प्रतिरोधक तंत्र इनसे हरदम लड़ता रहता है। और इन्हें पस्त करता रहता है। लेकिन कईं बार जब हम इन बहरी कीटाणुओं की ताकत बढ़ जाती है तो ये शरीर के प्रतिरोधक तंत्र को बेध देते हैं। जिससे गला ख़राब होना, जुकाम और ज्यादा तेज हमला हो गया है तो कभी-कभी फ्लू, बुखार आदि। जुकाम व सर्दी इस बात का संकेत है कि आपका प्रतिरोधक तंत्र कीटाणुओं को रोक पाने में कामयाब हो गया है।
कुछ दिन में आप ठीक हो जाते है। इसका अर्थ है की तंत्र ने फिर से जोर लगाया और घर कर रहे कीटाणुओं को हरा दीया। अगर प्रतिरोधक तंत्र ने दोबारा जोर न लगाया होता तो मरीज को जुकाम व सर्दी से कभी रहत न मिलती। इसी तरह कुछ लोगों को खास वस्तु या वातावरण से एलर्जी होती है और अन्य को उसी वास्तु से नहीं होती। इसका कारन है की जिसको एलर्जी है, उसका प्रतिरोधक तंत्र उस वास्तु पर रिऎक्शन कर रहा है, जबकि अन्य व्यक्तियों का तंत्र उस वास्तु के लिए सामान्य व्यव्हार करता है। इसी तरह डायबिटीज में भी प्रतिरोधक तंत्र पैनक्रियज में मौजूद सेल्स को गलत तरीके से मारने लगता है।

ज्यादातर लोगों में बिमारियों की मुख्या वजह वायरल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है। इनकी वजह से खांसी-जुकाम से लेकर खसरा, मलेरिया और एड्स जैसे रोग हो सकते हैं। ऐसी इन्फेक्शन से शारीर की रक्षा करने का काम ही करता है इम्यून सिस्टम।

इम्युनिटी बढाने के तरीके:-
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  • रोग प्रतिरोधक क्षमता के बारे में सबसे ख़ास बात यह है कि इसका निर्माण शरीर खुद कर लेता है। ऐसा नहीं है की आपने बहार से कोई चीज खायी और उसने जाकर सीधे आपकी प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा कर दिया।इसीलिए ऐसी सभी चीजें जो सेहतमंद खाने में आती है, उन्हें इस्तेमाल में लेना चाहिए। इनकी मदद से शरीर इस काबिल बना रहता है कि वह खुद अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके।
  • अगर खानपान सही है तो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के लिए किसी दवा या अतिरिक्त कोशिश की आवश्यकता नहीं है। आयुर्वेद के मुताबिक कोई भी खाना जो आपके ओज में वृद्धी करता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में मददगार है। जो खाना अम्ल बढ़ता है, वह नुकसानदायक है। ओज से खाने के पूरी तरह से पच जाने के बाद सेहत और रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है. पचने में मुश्किल खाना खाने के बाद शरीर में अम्ल का निर्माण होता है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है.
  • खानपान में सबसे अधिक ध्यान इस बात का रखे कि भूलकर भी वातावरण की प्रकृति के खिलाफ न जाएँ। उदहारण के तौर पर सर्दी में अधिक आइसक्रीम नुक्सान पहुंचा सकती है।
  • बाज़ार में मिलने वाले फ़ूड सप्लीमेंट उन्ही के लिए है जिनकी जुबान उनके काबू में नहीं है और जुबान के बस होकर वे कुछ भी खा लेते हैं। खाने में सलाद न लेना, वक्त पर खाना न खाना, उचित भोजन की अपेक्षा जंक फ़ूड व भारी खाना करना पसंद करना। वे अपनी शारीर की आवश्कता को समझ नहीं पाते। ऐसे ही लोगों के लिए फ़ूड सप्लीमेंट बनाये गए हैं।
  • अगर कोई शख्स खाने में विभिन्नता जैसे की सलाद, दालें, हरी सब्जियां आदि इस्तेमाल करता है तो उसे दवाओं की भी आवश्यकता कम पड़ेगी और सप्लीमेंट्स की भी। समुचित दुनिया में ऐसा कोई सप्लीमेंट नहीं है जो ऐसा दावा कर सके कि वह हर जरुरत पूरी करता है। मल्टी विटामिन्स के लिए हमें अपने खाने में विभिन्नता लानी आवश्यक है। तभी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता सयमित होगी। इसके लिए प्राकृतिक खानपान ही सबसे बेहतर और कारगर तरीका है।
  • प्रोसेस्ड और पैक खाने की वस्तुओं से जितना हो सके, बचना चाहिए। ऐसी वस्तुएं जिनमें प्रिजर्वेटिव्स मिले हों, उनसे भी बचना चाहिए।
  • इम्यूनिटी बढ़ने के लिए विटामिन सी और बिता कैरोटिस बढ़िया है जो कि मौसमी और निम्बू संतरे आदि से प्राप्त होता है।
  • जिंक के लिए सीफ़ूड और ड्राई फ्रूट्स का इस्तेमाल करें।
  • विटामिन के लिए फल और हरी सब्जियां है।
  • दही व आचार एक साथ न खाए।
  • आचार जैसी तली पुरानी चीजों का परहेज करें ये शरीर में पानी रोकती है।
  • सिरका संतुलित ही इस्तेमाल करें। जहाँ सिरका पेट ठीक रखने में सहयोगी है वही त्वचा के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है।
  • ठण्ड में शरीर को एक्सपोज़ न करें, इससे शरीर से आवश्यकता की गर्मी भी निकल जाती है। जिससे प्रतिरोधक क्षमता कम होती है.
  • स्ट्रेस लेने से भी जल्दी वायरल इन्फेक्शन होता है।
  • बंद कमरों में रहने से, अधिक लोगों के बीच सांस लेने से भी इन्फेक्शन फैलता है। यदि वातावरण स्वच्छ हो तो खुली जगह पर लम्बे सांस लेने से भी प्रतिरोधक क्षमता बढती है।
क्या है फायदेमंद:-
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  • ग्रीन टी - इसमें एंटी ओक्सिडेंट होते हैं जो कईं तरह के कैंसर से बचाव करते हैं। यह छोटी आंत में पैदा होने वाले गंदे बैक्टीरिया को पनपने से रोकती है।
  • हरी मिर्च उपापचय बेहतर बनाती है इसमें बीटा कैरोटिन होता है।
  • दालचीनी से ब्लड क्लौटिंग रूकती है। ब्लड शुगर में सहायक है।
  • शकरकंद, अंजीर व मशरूम आदि खाने में इस्तेमाल से भी अनेकों फायदे हैं।

इन्द्रायण के आयुर्वेदिक प्रयोग ......!




  • इन्द्रायण एक लता होती है जो पूरे भारत के बलुई क्षेत्रों में पायी जाती है यह खेतों में उगाई जाती है। इन्द्रायण 3 प्रकार की होती है। पहली छोटी इन्द्रायण, दूसरी बड़ी इन्द्रायण और तीसरी लाल इन्द्रायण होती है। तीनों प्रकार की इन्द्रायण में लगभग 50 से लेकर 100 फल आते हैं।
  • यह दस्त लाने वाली), कफ-पित्तनाशक है तथा यह #कामला (पीलिया), प्लीहा (तिल्ली), पेट के रोग, श्वांस (दमा), खांसी, सफेद दाग, गैस, गांठ, व्रण (जख्म), प्रमेह (वीर्य विकार), गण्डमाला (गले में गिल्टी का हो जाना) तथा विष को नष्ट करता है। ये गुण छोटी और बड़ी दोनों इन्द्रायण में होते हैं।
  • इन्द्रायण का सेवन बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए। क्योंकि इसके ज्यादा और अकेले सेवन करने से पेट में मरोड़ पैदा होता है और शरीर में जहर के जैसे लक्षण पैदा होते हैं।

विभिन्न रोगों में उपचार :-
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  • इन्द्रायण के बीजों का तेल नारियल के तेल के साथ बराबर मात्रा में लेकर बालों पर लगाने से #बाल काले हो जाते हैं।
  • इन्द्रायण की जड़ के 3 से 5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से बाल काले हो जाते हैं। परन्तु इसके परहेज में केवल दूध ही पीना चाहिए।
  • सिर के बाल पूरी तरह से साफ कराके इन्द्रायण के बीजों का तेल निकालकर लगाने से सिर में काले बाल उगते हैं।
  • इद्रायण के बीजों का तेल लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
  • इन्द्रायण के पके हुए फल को या उसके छिलके को तेल में उबालकर और छानकर पीने से #बहरापन दूर होता है।
  • इसके पके हुए फल की धूनी दान्तों में देने से #दांत के कीड़े मर जाते हैं।
  • इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण को नस्य (नाक में डालने से) दिन में 3 बार लेने से #अपस्मार (मिर्गी) रोग दूर हो जाता है।
  • इन्द्रायण के फल में छेद करके उसमें कालीमिर्च भरकर छेद को बंद करके धूप में सूखने के लिए रख दें या गर्म राख में कुछ देर तक पड़ा रहने दें, फिर काली मिर्च के दानों को रोजाना शहद तथा पीपल के साथ एक सप्ताह तक सेवन करने से कास (खांसी) के रोग में लाभ होता है।
  • स्त्रियों के स्तन में सूजन आ जाने पर इन्द्रायण की जड़ को घिसकर लेप करने से लाभ होता है।
  • इन्द्रायण का मुरब्बा खाने से पेट के रोग दूर होते हैं।
  • इन्द्रायण के फल में काला नमक और अजवायन भरकर धूप में सुखा लें, इस अजवायन की गर्म पानी के साथ फंकी लेने से दस्त के समय होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
  • विसूचिका (हैजा) के रोगी को इन्द्रायण के ताजे फल के 5 ग्राम गूदे को गर्म पानी के साथ या इसके 2 से 5 ग्राम सूखे गूदे को अजवायन के साथ देना चाहिए।
  • इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीसकर और छानकर 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से पेशाब करते समय का दर्द और #जलन दूर हो जाती है।
  • 10 से 20 ग्राम लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला को 160 मिलीलीटर पानी में उबालकर इसका चौथाई हिस्सा बाकी रह जाने पर काढ़ा बनाकर उसे शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से #मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन) का रोग समाप्त हो जाता है।
  • मासिक-धर्म के रुक जाने पर 3 ग्राम इन्द्रवारूणी के बीज और 5 दाने कालीमिर्च को एक साथ पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर रोगी को पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
  • इन्दायण की जड़ को योनि में रखने से योनि का दर्द और पुष्पावरोध (मासिक-धर्म का रुकना) दूर होता है।
  • इन्द्रायण के फल के गूदे को गर्म करके पेट में बांधने से आंतों के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।
  • इन्द्रायण की फल मज्जा को पानी में उबालकर और छानकर गाढ़ा करके छोटी-2 चने के आकार की गोलियां गोलियां बना लेते हैं। इसकी 1-2 गोली ठण्डे दूध से लेने से सुबह साफ दस्त शुरू हो जाते हैं।
  • इन्द्रायण के फल का गूदा तथा बीजों से खाली करके इसके छिलके की प्याली में बकरी का दूध भरकर पूरी रात भर के लिए रख दें। सुबह होने पर इस दूध में थोड़ी-सी चीनी मिलाकर रोगी को कुछ दिनों तक पिलाने से जलोदर मिट जाता है। इन्द्रायण की जड़ का काढ़ा और फल का गूदा खिलाना भी लाभदायक है, परन्तु ये तेज औषधि है।
  • इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम ग्राम को सोंठ और गुड़ के साथ सुबह और शाम देने से लाभ होता है। ध्यान रहें की अधिक मात्रा में सेवन करने से विशाक्त (जहर) बन जाता है और हानि पहुंचाता है।
  • इन्द्रायण को लेने से लीवर (यकृत) की वृद्धि के कारण पेट का बड़ा हो जाने की बीमारी में लाभ होगा।
  • इन्द्रायण की जड़ की छाल के चूर्ण में सांभर नमक मिलाकर खाने से #जलोदर समाप्त हो जाता है।
  • 100 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 500 मिलीलीटर एरण्ड के तेल में डालकर पकाने के लिए रख दें। पकने पर जब तेल थोड़ा बाकी रह जाये तो इस 15 मिलीलीटर तेल को गाय के दूध के साथ सुबह-शाम पीने से उपदंश समाप्त हो जाता है।
  • इन्द्रायण की जड़ों के टुकड़े को 5 गुना पानी में उबाल लें। जब उबलने पर तीन हिस्से पानी बाकी रह जाए तो इसे छानकर उसमें बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से #उपदंश और वात पीड़ा मिटती है।
  • इन्द्रायण की जड़ को पीसकर गाय के घी में मिलाकर भग (योनि) पर मलने से प्रसव आसानी से हो जाता है।
  • इन्द्रायण के फल के रस में रूई का फाया भिगोकर योनि में रखने से बच्चा आसानी से हो जाता है।
  • इन्द्रायण की जड़ को बारीक पीसकर देशी घी में मिलाकर स्त्री की #योनि में रखने से बच्चे का जन्म आसानी से होता है।
  • इन्द्रायण की जड़ों को सिरके में पीसकर गर्म करके शोथयुक्त (सूजन वाली जगह) स्थान पर लगाने से सूजन मिट जाती है।
  • शरीर में सूजन होने पर इन्द्रायण की जड़ को सिरके में पीसकर लेप की तरह से शरीर पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।
  • इन्द्रायण को बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। 200 मिलीलीटर पानी में 50 ग्राम धनिये को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसके बाद इन्द्रायण के चूर्ण को इस काढ़े में मिलाकर शरीर पर लेप की तरह लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।
  • इन्द्रायण की जड़ और पीपल के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से #संधिगत वायु दूर होती है।
  • 500 मिलीलीटर इन्द्रायण के गूदे के रस में 10 ग्राम हल्दी, काला नमक, बड़े हुत्लीना की छाल डालकर बारीक पीस लें, जब पानी सूख जाए तो चौथाई-चौथाई ग्राम की गोलियां बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ देने से सूजन तथा दर्द थोड़े ही दिनों में अच्छा हो जाता है।
  • इन्द्रायण की जड़ों को बेल पत्रों के साथ पीसकर 10-20 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम पिलाने से स्त्री गर्भधारण करती है।
  • इन्द्रायण के फल का 6 ग्राम गूदा खाने से बिच्छू का (विष) जहर उतरता है।
  • 3 ग्राम बड़ी इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण पान के पत्ते में रखकर खाने से सर्पदंश में लाभ मिलता है।
  • बच्चों के डिब्बा रोग (पसली चलना) में इसकी जड़ के 1 ग्राम चूर्ण में 250 मिलीग्राम सेंधानमक मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
  • लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल के तेल के साथ गर्म करके कान के अन्दर के #जख्म पर लगाने से जख्म साफ होकर भर जाता है।
  • इन्द्रायण के फल के रस या जड़ की छाल को तिल के तेल में उबालकर तेल को मस्तक (माथे) पर लेप करने से मस्तक पीड़ा या बार-बार होने वाली मस्तक पीड़ा मिटती है।
  • इन्द्रायण के फलों का रस या जड़ की छाल के काढ़े के तेल को पकाकर, छानकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम उपयोग करने से आधाशीशी (आधे सिर का दर्द), सिर दर्द, #पीनस (पुराना जुकाम), कान दर्द और अर्धांगशूल दूर हो जाते हैं।

ब्लडप्रेशर असामान्य हो तो बचे

  1. आमतौर पर सेक्स के दौरान हृदयगति और रक्तचाप बढ़ जाता है, ऐसे में यदि आपका ब्ल्डप्रेशर पहले से ही बढ़ा होगा तो आपके लिए ये खतरा बन सकता हैं।
  2. उच्च रक्तचाप की दवाईयां लेने वाले मरीजों की भी सेक्स क्षमता कम होने लगती है और ऐसे में उच्च रक्तचाप के दौरान वे सेक्स करते हैं तो उन्हें निराशा हाथ लगने का डर भी रहता है।
  3. उच्च रक्तचाप के दौरान आपकी हर काम में ऊर्जा ज्यादा लगती है। जिसका सीधा असर आपके हृदय पर पड़ता है और हृदय का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।
  4. उच्च‍ रक्तचाप के दौरान सेक्स करने से एंजाइना,हार्ट अटैक व पैरालिसिस जैसी गंभीर बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है।
  5. उच्च रक्तचाप से न सिर्फ आप मानसिक तनाव से ग्रस्त होते हैं बल्कि आप सेक्स में अरूचि और घबराहट जैसी समस्याओं से भी घिर जाते हैं जिस कारण क्रोध में आपके आपसी रिश्ते खराब होने का डर रहता है।
  6. उच्च रक्तचाप से पीडि़त लोगों को पति-पत्नी के अतिरिक्त अन्य से सेक्स रिलेशन नहीं बनाने चाहिए। ऐसा करने पर उत्तेजना और तनाव से रक्त चाप बहुत बढ़ सकता है और आप कई भयंकर बीमारियों की चपेट में आ सकते हों।
  7. कई लोगों को उच्च रक्तचाप होने से कई यौन समस्याएं भी हो सकती हैं, ऐसे में आपको सेक्स करने से बचना चाहिए और रक्तचाप को सामान्य करना चाहिए।
  8. यह तो आप जानते ही हैं कि सेक्स के दौरान बहुत कैलोरी बर्न होती है जिससे शरीर में कैलोरी की जरूरत बढ़ जाती है। कैलोरी की जरूरत को पूरा करने के दौरान आपकी अधिक एनर्जी लगती है ओर आपकी हृदयगति 150 से 180 तक भी आराम से पहुंच जाती है। हालांकि सेक्स के बाद आपकी हृदयगति वापिस सामान्य हो जाती है।
  9. ये तो सभी जानते हैं कि रक्तचाप कभी भी सामान्य नहीं रहता। तनाव के समय में आपका रक्तचाप ऊपर-नीचे होता रहता हैं। जब आप आराम की स्थिति में होते हैं तो आपका रक्तचाप सामान्य रहता है। ऐसे में आपको समय-समय पर अपना ब्लडप्रेशर चेक कराते रहना चाहिए।
  10. सेक्स करना हेल्थ के लिए तो अच्छा ही है इसके अलावा सेक्स पति-पत्नी के रिश्तों को गहरा करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सेक्स के समय स्ट्रेसफुल रहने से आपको फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है। सिर्फ तनाव ही नहीं बल्कि ब्ल्डप्रेशर असामान्‍य हो तो ना करें सेक्स अन्यथा आपको कई समस्याएं हो सकती हैं।
  11. हाई बीपी में सेक्स करने के बजाय हाई बीपी में नमक का उपयोग कर उसे कम करना चाहिए। ताकि आपका ब्ल्डप्रेशर सामान्य हो सकें। आइए जानें क्यों ना करें असामान्य ब्लडप्रेशर के दौरान सेक्स।
  12. हार्ट फेल्योर होना, एंजाइना की समस्या, हार्टअटैक इत्यादि की आशंका भी इसी कारण से बढ़ जाती है, ऐसे में आप संभोग करेंगे तो आपको जान का जोखिम भी बढ़ सकता है। 

क्षीर काकोली (lilium polyphyllum)

क्षीर काकोली भी च्यवनप्राश में डाले जाने वाला मुख्य घटक है। यह भी मेदा महामेदा की तरह अष्टवर्ग का एक हिस्सा है। यह हिमालय पर बहुत ऊंचाई पर पाया जाता है। यह बहुत दुर्लभ पौधा है। पर्वतों पर रहने वाले लोग इसे सालम गंठा कहते हैं। इस पर सुन्दर सफ़ेद रंग के फूल आते हैं। इसे अंग्रेजी में white lily भी कहते हैं। इसका कंद बाहर से सफेद लहसुन की तरह लगता है और अन्दर से प्याज की तरह परतें होती हैं। इसका कंद सुखाकर इसका पावडर कर लिया जाता है।
इसे कायाकल्प रसायन भी कहा गया है। हजारों सालों से हिमालय पर रहने वाले संत महात्मा इसका प्रयोग करते रहे हैं और आज भी करते हैं। इसका थोड़ा सा ही पावडर दूध के साथ लेने से कफ, बलगम खत्म हो जाता है। लीवर ठीक हो जाता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। यह कमजोर और रोगियों को स्वस्थ करता है। शीतकाल में इसके प्रयोग से ठण्ड कम लगती है। इसको लेने से ताकत आती है। खाना कम भी मिले, तब भी ताकत बनी रहती है। पहाड़ों पर ऊपर चढ़ते समय सांस नहीं फूलता, यह बुढ़ापे को रोकने में मदद करती है।च्यवन ऋषि ने इस पौधे का प्रयोग भी किया था और तरुणाई वापिस पाई थी। यह वास्तव में जीवनी शक्ति प्रदान करने वाली एक दुर्लभ जड़ी बूटियों में से एक है।


अष्टवर्ग
जब अपने जीवन के 75 वर्ष कठोर तप और ब्रम्हचर्य का पालन कर ऋषि च्यवन जो भृगु ऋषि की के वंशज थे, ने पितृ ऋण को चुकाने के लिए उत्तम संतान पाने की सोची तो पाया की उनकी काया तो वृद्ध, जर्जर और कृशकाय हो चुकी है। तब अश्विनी कुमारों ने उनकी मदद के लिए दिव्य जड़ी बूटी युक्त च्यवनप्राश बनाया, जिसका सेवन कर ऋषि च्यवन ने फिर दिव्य काया प्राप्त की।
इस में करीब 43 तत्व होते है जिसमे से एक प्रमुख है --अष्टवर्ग की बूटियाँ, वर्त्तमान में च्यवनप्राश के बढ़िया से बढ़िया नमूनों में, अष्ट वर्गीय पौधों की केवल चार जातियों --वृद्धि , मेधा , काकोली और जीवक का ही उपयोग किया जाता है ;शेष चार का नहीं।इसके नाम है --ऋद्धि , वृद्धि , जीवक , ऋषभक , काकोली , क्षीरकाकोली , मेदा , महामेदा।ये सभी बहुत सुन्दर है और हिमालय के ऊँचे पहाड़ों में ही मिलती है।पतंजलि योग पीठ के दिव्य स्पेशल च्यवनप्राश में इनको भी डाला गया है। ये जीवनीय -- अर्थात जीवन या प्राण शक्ति को बढाने वाली , बृहंणीय--अर्थात मेद वृद्धि या मांस धातु को बढाने वाली ,और वयः स्थापन ---अर्थात वृद्धा वस्था की प्रक्रिया को रोक या बहुत धीमी करने वाले है।
क्योंकि पुराने ज़माने में आयुर्वेद की शिक्षा में विद्यार्थी जंगलों में ही रह कर गुरु के साथ असली जड़ी बूटियाँ देखते थे , इसलिए प्राचीन ग्रंथों में इनकी पहचान नहीं लिखी है।इसके अलावा इसके कई और नाम रखे गए और कई वैद्य इन्हें गुप्त रखते थे इन सब कारणों से इनका पता लगाना मुश्किल था। शालिग्राम निघंटु भूषण में लिखा है की अष्टवर्ग के पौधे राजाओं के लिए भी दुर्लभ है इसलिए उनकी जगह प्रतिनिधि पौधों का प्रयोग कर लेना चाहिए। इससे बहुत भ्रम पैदा हुए।पर आचार्य बाल कृष्ण जी ने हिमाचल ,उत्तरांचल में पहाड़ों जैसे चूरधार, शालिचोती, कामरूनाग, औली, रैनथल, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड में इनकी खोज की। क्षीर काकोली का एक भी पौधा 3-4 वर्षों तक नहीं मिल पाया क्योंकि इसका अलग अलग पुस्तकों में अलग अलग वर्णन है।इसमें आचार्य बालकृष्ण जी की मदद डॉ जी।एस। गोराया ,वन रक्षक ,और श्री मेला राम शर्मा और कई अन्य लोगों ने की। इनमे से कई लुप्त होने की कगार पर है। इसलिए सरकार को इन्हें टिशु कल्चर से बचाने और बढाने का प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि ये एच आई वी और एड्स जैसी लाइलाज बीमारियों में भी काम आ सकते है।

सदाबहार से मधुमेह रोग से राहत मिलती है

सदाबहार ( सदाफूली ) की तीन -चार कोमल पत्तियाँ चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग से राहत मिलती है| सदाबहार ( सदाफूली ) के पौधे के चार पत्तों को साफ़ धोकर सुबह खाली पेट चबाएं और ऊपर से दो घूंट पानी पी लें| इससे मधुमेह ,मिटता है| यह प्रयोग कम से कम तीन महीने तक करना चाहिए -


आधे कप गरम पानी में सदाबहार ( सदाफूली ) के तीन ताज़े गुलाबी फूल 05 मिनिट तक भिगोकर रखें | उसके बाद फूल निकाल दें और यह पानी सुबह ख़ाली पेट पियें | यह प्रयोग 08 से 10 दिन तक करें | अपनी शुगर की जाँच कराएँ यदि कम आती है तो एक सप्ताह बाद यह प्रयोग पुनः दोहराएँ -




मधुमेह को नियंत्रण करने के कुछ आसन से घरेलू उपाय:-
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  • तुलसी के पत्तों में ऐन्टीआक्सिडन्ट और ज़रूरी तेल होते हैं जो इनसुलिन के लिये सहायक होते है । इसलिए शुगर लेवल को कम करने के लिए दो से तीन तुलसी के पत्ते को प्रतिदिन खाली पेट लें, या एक टेबलस्पून तुलसी के पत्ते का जूस लें।
  • 10 मिग्रा आंवले के जूस को 2 ग्राम हल्दी के पावडर में मिला लीजिए। इस घोल को दिन में दो बार लीजिए। इससे खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है।
  • काले जामुन डायबिटीज के मरीजों के लिए अचूक औषधि मानी जाती है। मधुमेह के रोगियों को काले नमक के साथ जामुन खाना चाहिए। इससे खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है।
  • लगभग एक महीने के लिए अपने रोज़ के आहार में एक ग्राम दालचीनी का इस्तेमाल करें।

गंजापन दूर करने के लिए उपचार

हमारे भोजन में कतिपय ऐसे मिनरल्स पाये जाते हैं जिनका गंजापन विरोधी प्रभाव होता है। सबसे महत्वपूर्ण तत्व जो गंजापन दूर कर सकते हैं वे हैं- जिंक, कापर ,लोह तत्व और सिलिका. जिंक में गंजापन नष्ट करने वाले तत्व पाये जाते हैं। केले, अंजीर,बेंगन ,आलू और स्ट्राबेरी में जिंक की संतोषप्रद मात्रा निहित होती है। कॉपर या ताँबा हमारे इम्युन-सिस्टम को को मजबूत करते हुए बालों की सुरक्षा करता है। रक्त में हीमोग्लोबिन की वृद्धि के लिये कॉपर सहायता करता है। दालें,सोयाबीन और वाल नट आदि में कॉपर तत्व पाया जाता है। लोह तत्व बालों की सुरक्षा और पोषण के लिये आवश्यक है। मटर,गाजर, चिकोरी, ककडी,और पालक में पर्याप्त आयरन होता है। अपने भोजन में इन्हें शामिल करना उचित है। सिलिका तत्व चावल और आम में मौजूद रहता है।अनुवांसिकता के आधार पे होने वाला गंजापन भी एक पर्याप्त कारण है। 


गंजेपन का उपचार
  1. उड़द की दाल को उबाल कर पीस लें। रात को सोते समय इस पिट्ठी का लेप सिर पर कुछ दिनों तक करते रहने से गंजापन समाप्त हो जाता है।
  2. मेथी को पूरी रात भिगो दें और सुबह उसे गाढ़ी दही में मिला कर अपने बालों और जड़ो में लगाएं। बीस मिनट बाद बालों को धो लें इससे रूसी और सिर की त्वचा में जो भी समस्या होगी वह दूर हो जाएगी। मेथी में निकोटिनिक एसिड और प्रोटीन पाया जाता है जो बालों की जड़ो को प्रोषण पहुंचाता है और बालों की ग्रोथ को भी बढ़ाता है। इसके प्रयोग से सूखे और डैमेज बाल भी ठीक हो जाते हैं। 
  3. हरे धनिए का लेप जिस स्थान पर बाल उड़ गए हैं, वहां करने से बाल उगने लगते हैं।
  4. थोड़ी सी मुलैठी को दूध में पीसकर, फिर उसमें चुटकी भर केसर डाल कर उसका पेस्ट बनाकर सोते समय सिर में लगाने से गंजेपन की समस्या दूर होती है।
  5. केले का गूदा निकालकर उसे नीँबू के रस में मिलाकर सिर पर लगाने से बालों के उडने की समस्या में लाभ होता है। 
  6. अनार की पती पीसकर पर लगाने से गंजेपन का निवारण होता है। 
  7. प्याज काटकर दो भाग करें। आधे प्याज को सिर पर 5 मिनिट रोज रगडें, बाल आने लगेंगे।

खजूर नर्वस सिस्टम को भी नियंत्रित करता है-

आसानी से उपलब्ध खजूर आपके शरीर के नर्वस-सिस्टम को नियंत्रित करता है -इसमें पोटेशियम प्रचुर-मात्रा में होता है और सोडियम की मात्रा काफी कम होती है -
  1. शोध में यह भी बात सामने आई है कि पोटाशियम स्ट्रोक के खतरे को कम करता है। शरीर में एलडीएल कोलेस्ट्राल स्तर कम करने में भी खजूर मददगार है। हालांकि डायबिटीज के रोगियों को खजूर से दूर रहना चाहिए।
  2. खजूर कोलेस्ट्राल फ्री होता है। इसमें वसा बहुत ही कम मात्रा में होता है। खजूर में विटामिन्स और मिनरल्स की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। खजूर प्रोटीन, फाइबर, विटामिन बी-वन, बी-टू, बी-थ्री और बी-फाइव का बेहतर स्रोत है। इसमें विटामिन ए-1 और सी भी मौजूद होता है। इसमें मौजूद फाइबर और विभिन्न तरह का एमिनो एसिड पाचन क्रिया दुरूस्त रखता है। 
  3. भागदौड़ भरी जिंदगी अक्सर हमें थका देती है। ऐसे में खजूर बढ़िया एनर्जी बूस्टर है। इसमें मौजूद प्राकृतिक शुगर जैसे ग्लूकोज सुक्रोज और फ्रूकटोज तुरंत एनर्जी देने का काम करते हैं। खजूर के और भी बेहतर फायदे के लिए इसे दूध में मिलाकर ले सकते हैं। यह स्वादिष्ट स्नैक्स है। जो लोग स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा जागरूक होते हैं, उनके लिए खजूर बढि़या विकल्प हैं। इसमें कैलरी की मात्रा बहुत कम होती है। 
  4. इसमें उच्च मात्रा में आयरन होता है, जो एनिमिया से लड़ने में मदद करता है। एनिमिया के मरीजों को प्रचुर मात्रा में खजूर खाना चाहिए। 
  5. बच्चों से लेकर बड़े तक दांत की समस्या से परेशान रहते हैं। #खजूर में मौजूद फ्लोराइड दांतों की रक्षा करता है। कब्ज से परेशान लोग इसका सेवन कर कब्ज से छुटकारा पा सकते हैं। ज्यादा फायदे के लिए खजूर को रात में पानी में भिगो दें और सुबह गुनगुने पानी के साथ खा लें। 
  6. मोटापे से परेशान लोग खजूर का सेवन सीमित मात्रा में करें। खजूर वजन बढ़ाने में मदद करता है। जो लोग बहुत ज्यादा पतले हैं उनके लिए खजूर फायदेमंद है। 
  7. खजूर शरीर में जहरीला प्रभाव कम करने में भी मदद करता है। साथ ही एबडामिनल #कैंसर से भी बचाता है और इसे ठीक करने में भी कारगर है। 
  8. नजर कमजोर है तो खजूर का इस्तेमाल कीजिए। यह आई साइट मजबूत करता है। #नाइट ब्लाइंडनेस (रतौंधी) जैसी परेशानी से भी निजात दिलाने में खजूर मददगार है।

आर्थराइटिस और सभी तरह के ज्वाइंट पेन का इलाज है आप घुटने मत बदलिए


दोनों तरह के आर्थराइटिस (Osteoarthritis और Rheumatoid arthritis) मे आप एक दावा का प्रयोग करे जिसका नाम है चूना ...! जी हाँ वो ही चुना जो आप पान मे खाते हो। ये आसानी से आपको पान की सभी दुकानों में मिल जाता है आप इसे गेहूं के दाने के बराबर चूना रोज सुबह खाली पेट एक कप दही मे मिलाके खाना चाहिए अगर बराबर दही न मिल सके तो दाल मे मिलाके ले ले अगर वो भी नही तो पानी मे मिलाके पीना लगातार तिन महीने तक, तो आर्थराइटिस ठीक हो जाती है। ध्यान रहे पानी पिने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा। अगर आपके हाथ या पैर के हड्डी मे खट खट आवाज आती हो तो वो भी चुने से ठीक हो जायेगा।

दोनों तरह के आर्थराइटिस के लिए और एक अच्छी दावा है मेथी का दाना। एक छोटा चम्मच मेथी का दाना एक काच की गिलास मे गरम पानी ले के उसमे डालना, फिर उसको रात भर भिगो के रखना। सबेरे उठके पानी सिप- सिप करके पीना और मेथी का दाना चबाके खाना। तीन महीने तक लेने से आर्थराइटिस ठीक हो जाती है। यहाँ भी ध्यान रहे पानी पिने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा।

ऐसे आर्थराइटिस के मरीज जो पूरी तरह बिस्तर पकड़ जुके है, चालीस साल से तकलीफ है या तीस साल से तकलीफ है, कोई कहेगा बीस साल से तकलीफ है, और ऐसी हालत हो सकती है के वे दो कदम भी न चल सके, हाथ भी नही हिला सकते है, लेटे रहते है बेड पे, करवट भी नही बदल सकते ऐसी अवस्था हो गयी है ....?

ऐसे रोगियों के लिए एक बहुत अच्छी औषधि है जो इसीके लिए काम आती है। एक पेड़ होता है उसे हिंदी में हरसिंगार कहते है, संस्कृत पे पारिजात कहते है, बंगला में शिउली कहते है , उस पेड़ पर छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और फुल की डंडी नारंगी रंग की होती है, और उसमे खुसबू बहुत आती है, रात को फूल खिलते है और सुबह जमीन में गिर जाते है ।

आप इस पेड़ के छह सात पत्ते तोड़ के पत्थर में पीस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके रोज सुबह खाली पेट पिलाना है जिसको भी बीस तीस या चालीस साल पुराना आर्थराइटिस हो या जोड़ो का दर्द हो। यह उन सबके लिए अमृत की तरह काम करेगा। इसको तीन महिना लगातार देना है अगर पूरी तरह ठीक नही हुआ ...तो फिर 10-15 दिन का गैप देके फिर से तीन महीने देना है।

अधिकतम केस मे जादा से जादा एक से ढेड महीने मे रोगी ठीक हो जाते है। आपको इसको हर रोज नया बना के पीना है। ये औषधि एक्सुसिव है और बहुत स्ट्रोंग औषधि है इसलिए अकेली ही देना चाहिये, इसके साथ कोई भी दूसरी दावा न दे नही तो तकलीफ होगी। इसमें भी ध्यान रहे पानी पिने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए ....नही तो ठीक होने मे समय लगेगा। अगर पारिजात के पत्ते मिलने में परेशानी हो तो आप इसे नर्सरी से लाये और घर पे लगा ले आप का भला हो तो ये दूसरों के भी काम आएगा क्युकि ये परिजात के पेड को स्वर्ग की एक अनुपम धरोहर थी जो अब लुप्त हो रही है .

घुटने मत बदलिए :-

RA Factor जिनका प्रोब्लेमाटिक है और डॉक्टर कहता है के इसके ठीक होने का कोई चांस नही है। कई बार कार्टिलेज पूरी तरह से ख़तम हो जाती है और डॉक्टर कहते है के अब कोई चांस नही है Knee Joints आपको replace करने हि पड़ेंगे, Hip joints आपको replace करने ही पड़ेंगे। तो जिनके घुटने निकाल के नया लगाने की नौबत आ गयी हो, Hip joints निकालके नया लगाना पड़ रहा हो उन सबके लिए यह औषधि है जिसका नाम है हरसिंगार का काड़ा।

राजीव भाई का कहना है के आप कभी भी Knee Joints को और Hip joints को replace मत कराइए। चाहे कितना भी अच्छा डॉक्टर आये और कितना भी बड़ा गारंटी दे पर कभी भी मत करिये। भगवान की जो बनाई हुई है आपको कोई भी दोबारा बनाके नही दे सकता। आपके पास जो है उसी रिपेयर करके काम चलाइए।

हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री अटलजी ने यह प्रयास किया था, Knee Joints का replace हुआ अमेरिका के एक बहुत बड़े डॉक्टर ने किया पर आज उनकी तकलीफ पहले से जादा है। पहले तो थोडा बहुत चल लेते थे अब चलना बिलकुल बंध हो गया है कुर्सी पे ले जाना पड़ता है। आप सोचिये जब प्रधानमंत्री के साथ यह हो सकता है आप तो आम आदमी है।

कुत्ता काटने पर चिकित्सा - भाई राजीव दीक्षित

अगर घरेलु कुत्ता काटे तो कोई दिक्कत नही है पर पागल कुत्ता कटे तोसमस्या है। सड़क वाला कुत्ता काटले तो आप जानते है नही उसकोइंजेक्शन दिए हुए है या नही, उसने काट लिया तो आप डॉक्टर के पासजायेंगे फिर वो 14 इंजेक्शन लगाएगा वो भी पेट में लगाता है, उससे बहुतदर्द होता है और खर्च भी हो जाता है कम से कम 50000 तक कई बार,गरीब आदमी के पास वो भी नही है।
कुत्ता कभी भी काटे, पागल से पागल कुत्ता काटे, घबराइए मत, चिंतामत करिए बिलकुल ठीक होगा वो आदमी बस उसको एक दावा दे दीजिये। दावा का नाम है Hydrophobinum 200 और इसको 10-10 मिनट परजिव में तिन ड्रोप डालना है । कितना भी पागल कुत्ता काटे आप ये दावादे दीजिये और भूल जाइये के कोई इंजेक्शन देना है। इस दावा को सूरजकी धुप और रेफ्रीजिरेटर से बचाना है।
रेबिस सिर्फ पागल कुत्ता काटने से ही होता है पर साधारण कुत्ता काटनेसे रेबिस नही होता। आवारा कुत्तों अगर काट दिया है तो राजीव भाई के अनुसार आप अपना मन का बहम दूर करने के लिए ये दावा दे सकते हैलेकिन उससे कुछ नही होता वो हमारा मन का बहम है जिससे हमपरिसान रहते है, और कुछ डर डॉक्टरों ने बिठा रखा है के इंजेक्शन तोलेना ही पड़ेगा। अपने शरीर में थोड़े बहुत resistance सबके पास हैअगर कुत्ते के काटने से उनके लार ग्रंथी के कुछ वायरस चले भी गये है तो उनको ख़तम करने के लिए हमारे रक्त में काफी कुछ है और वो ख़तम कर हि लेता है । लेकिन क्योंकि मन में भय बिठा दिया है शंका हो जाती है हमको confirm नही होता जबतक 20000-50000 खर्च नही कर लेते येउस समय लिए राजीव भाई ने ये दावा लेने की बात कही है। और इसका एक एक ड्रोप 10-10 मिनट में जीभ पे तीन बार डाल के छोड़ दीजिये । 30मिनट में ये दावा सब काम कर देगा ।
कई बार कुत्ता घर के बच्चों से साथ खेल रहा होता है और गलती से उसका कोई दाँत लग गया तो आप उस जखम में थोडा हल्दी लगा दीजिये पर साबुन से उस जखम को बिलकुल मत धोये नही तो वो पक जायेगा;हल्दी Antibiotic, Antipyretic, Antititetanatic, Antiinflammatory है।

बैंगन क्यों खाए और क्यों न खाए

बैंगन की सब्जी बनाते समय यदि तीन बातों का ध्यान रखिये तो सब्जी आपको फायदा ही करेगी- 

  1. बैंगन की ढेंप (ताज) भी सब्जी में डाला जाये।
  2. सब्जी में तेल भरपूर मात्रा में हो। 
  3. सब्जी में हींग जरूर डाली जाए। साथ ही बैंगन की सब्जी केवल ठंड में खाई जाए अर्थात बैगन खाने का उपयुक्त समय दीपावली से होली तक है। 
कौन बैगन खाए और कौन नहीं -
  1. बुखार से पीड़ित व्यक्ति को बैंगन नहीं खाना चाहिए।
  2. अनिद्रा के रोगी को भी बैंगन नहीं खाना चाहिए।
  3. किसी भी दिमागी बिमारी के रोगी को भी बैंगन नहीं खाना चाहिए। (मानसिक तनाव, उन्माद आदि रोग में )
  4. बवासीर के रोगी को तो कतई बैगन नहीं खाना चाहिए।
  5. त्वचा रोग ,एलर्जी आदि में भी बैगन नहीं खाना चाहिए।
  6. एसिडिटी हो तो बैगन की तरफ देखिये भी नहीं।
  7. गर्भवती महिलायें भी बैगन से परहेज करें।
  8. बैगन की तो कई किस्में पाई जाती हैं लेकिन काले और गोल बैगन जो बीज रहित हों ,सबसे ज्यादा गुणकारी होते हैं। बीज वाले बैगन कभी नहीं खाने चाहिए। ये पित्त बढ़ाते हैं। छोटे छोटे कोमल बैगन पित्त और कफ को दूर करते हैं।
  9. बैगन में विटामिन ए ,बी ,सी ,आयरन, कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन भरपूर पाये जाते हैं।
  10. यदि लीवर और तिल्ली बढ़ गयी हो तो कोमल बैगन आग में भून कर पुराना गुड मिला कर खाएं, सुबह खाली पेट। एक माह लगातार खाए ,लाभ दिखाई देगा।
  11. शरीर में हवा का गोला घूमता हुआ सा महसूस होता हो तो बैगन का सूप हींग और लहसुन मिला कर बनाएं और रोजाना पीयें।
  12. बैगन मूत्रल है। इसकी सब्जी रोजाना खाने से ज्यादा मूत्र होगा और किडनी और मूत्राशय में बनने वाली पथरी गल कर बाहर निकल जाएगी।
  13. अगर आपको खुल कर भूख नहीं लगती है तो बैंगन और टमाटर का सूप बनाकर लगातार २१ दिन जरूर पीयें ,भूख खुल कर लगने लगेगी।
  14. आपको नींद नहीं आती है टोबैगन आग में भूनिये ,छिलका उतारिये। बचे हुए गूदे में शहद मिलाकर शाम के समय खा लीजिये। लगातार २१ दिन खाएं। नींद अच्छी और गहरी आयेगी। रक्तचाप सामान्य रहेगा।
  15. खांसी बहुत ज्यादा परेशान कर रही है तो बैगन को पानी में उबाल कर सूप बनाये फिर इस सूप में हल्दी और मिश्री मिला कर पी जाएँ ,जल्दी आराम मिलेगा।
  16. बैगन की सब्जी हार्ट को भी मजबूती प्रदान करती है।
  17. कब्जियत दूर करने के लिए बैगन और पालक का सूप पीजिये ,सेंधा नमक मिला कर।
  18. आपकी हथेलियाँ और पैर के तलुए पसीने से भीगे रहते हों तो उनपर बैगन का रस मल लीजिये।
  19. बैगन के बीज पेट के कीड़ों को खत्म करते हैं। बीजो को शहद मिलकर खा लीजिये।
  20. बवासीर के मस्सो पर बैगन का ढेप पीस कर लगा दीजिये ,अद्भुत आराम मिलेगा।

तिल्ली में वृद्धि होने पर करे ये उपाय

  1. इस रोग की उत्पत्ति मलेरिया के कारण होती है। मलेरिया रोग में शरीर के रक्त कणों की अत्यधिक हानि होने से तिल्ली पर अधिक ज़ोर पड़ता है। ऐसी स्थिति में जब रक्त कण तिल्ली में एकत्र होते हैं तो तिल्ली बढ़ जाती है।
  2. तिल्ली में वृद्धि होने से पेट के विक़ार, खून में कमी तथा धातु क्षय की शिकायत शुरू हो जाती है।
  3. तिल्ली वृद्धि में स्पर्श से उक्त भाग ठोस और उभरा हुआ दिखाई देता है। इसमें पीड़ा नहीं होती, परंतु यथा समय उपचार न करने पर आमाशय प्रभावित हो जाता है। ऐसे में पेट फूलने लगता है। इसके साथ ही हल्का ज्वर, खांसी, अरुचि, पेट में कब्ज़, वायु प्रकोप, अग्निमांद्य, रक्ताल्पता और धातुक्षय आदि विकार उत्पन्न होने लगते हैं। अधिक लापरवाही से इस रोग के साथ-साथ जलोदर भी हो जाता है।
  4. यह रोग भी मनुष्य को बेचैनी एवं कष्ट प्रदान करता है। शुरू में इस रोग का उपचार करना आसान होता है, परंतु बाद में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

नुस्खे
  1. 1/2 ग्राम नौसादर को गरम पानी के साथ सुबह के वक्त लेने से रोगी को शीघ्र लाभ होता है। 
  2. गिलोय के दो चम्मच रस में 3 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण और एक-दो चम्मच शहद मिलाकर चाटने से तिल्ली का विकार दूर होता है। 
  3. त्रिफला, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, सहिजन की छाल, दारुहल्दी, कुटकी, गिलोय एवं पुनर्नवा के समभाग का काढ़ा बनाकर पी जाएं। 
  4. दो अंजीर को जामुन के सिरके में डुबोकर नित्य प्रात:काल खाएं। तिल्ली का रोग ठीक हो जाएगा। 
  5. प्लीहा वृद्धि (बढ़ी हुई तिल्ली) :- अपराजिता की जड़ बहुत दस्तावर है। इसकी जड़ को दूसरी दस्तावर और मूत्रजनक औषधियों के साथ देने से बढ़ी हुई तिल्ली और जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) आदि रोग मिटते हैं तथा मूत्राशय की जलन भी मिटती है।
  6. बड़ी हरड़, सेंधा नमक और पीपल का चूर्ण पुराने गुड़ के साथ खाने से तिल्ली में आराम होता है। 
  7. सेंधा नमक (1/2 ग्राम) और अजवायन का चूर्ण (2 ग्राम) मिलाकर गरम पानी के साथ लेने से तिल्ली की वृद्धि में लाभ होता है।