Wednesday, February 25, 2015

प्यार और स्त्री की आकांक्षाये .....!

एक विशेष आलेख है आपको समझने का...

"प्रेम कल और आज की स्त्री का "











प्रेम एक ऐसी अबूझ पहेली है, जिसके रहस्य को जानने की कोशिश में जाने कितने प्रेमी दार्शनिक, कवि और कलाकार बन गए। एक बार प्रेम में डूबने के बाद व्यक्ति दोबारा उससे बाहर नहीं निकल पाता। स्त्रियों का प्रेम पुरुषों के लिए हमेशा से एक रहस्य रहा है। कोई स्त्री प्यार में क्या चाहती है, यह जान पाना किसी भी पुरुष के लिए बहुत मुश्किल और कई बार तो असंभव भी हो जाता है।


प्यार एक ऐसा खूबसूरत एहसास है, जो हर इंसान के दिल के किसी न किसी कोने में बसा होता है। इस एहसास के जागते ही कायनात में जैसे चारों ओर हजारों फूल खिल उठते हैं जिंदगी को जीने का नया बहाना मिल जाता है। स्त्री के जीवन में प्यार बहुत मायने रखता है। प्यार उसकी सांसों में फूलों की खुशबू की तरह रचा-बसा होता है, जिसे वह ताउम्र भूल नहीं पाती।  शायद जब इस संसार की रचना हुई होगी और धरती पर पहली बार आदम और हौवा ने धरती पर कदम रखा होगा, तभी से औरत ने आदमी के साथ मिलकर जिंदगी़ मुश्किलों से लडते हुए साथ मिलकर रहने की शुरुआत की होगी और वहीं से उसके जीवन में पहली बार प्यार का पहला अंकुर फूटा होगा।


शायद रहस्य को ढूंढने के उधेडबुन से परेशान होकर ही किसी विद्वान पुरुष ने संस्कृत के इस श्लोक की रचना की होगी...

" स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं दैवो न जानाति कुतो मनुष्य:।"

पुरुषों के बीच एक यह प्रचलित पुराना जुमला है ..!

"प्रेम के मामले में औरत के "ना" का मतलब "हां "होता है....ये पुरुषों द्वारा स्त्री के व्यक्तित्व को न समझ पाने की व्यथा को ही दर्शाता है। "

 सवाल ये  है कि आखिर स्त्रियां के मन की थाह लेना पुरुषों के लिए इतना मुश्किल क्यों है.....?

दरअसल स्त्री का मनोविज्ञान कुछ ऐसा होता है कि वह अपनी भावनाओं का इजहार करने के प्रति अत्यधिक सचेत होती है। इसकी सबसे बडी वजह यह है कि भारतीय समाज बचपन से ही लडकियों की परवरिश इस तरह की जाती है कि वे अपने व्यवहार की छोटी-छोटी बातों को लेकर बहुत सतर्क रहती हैं। उन्हें बचपन से कम बोलना सिखाया जाता है। इस वजह से ज्यादातर लडकियां अंतर्मुखी और शर्मीली होती हैं और प्यार के मामले में भी वे स्वयं अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के बजाय वे इस बात की उम्मीद रखती हैं कि उनका ब्वॉय फ्रेंड या प्रेमी स्वयं उसकी भावनाएं समझने की कोशिश करे।"

इस आधुनिक युग में पढी-लिखी लडकियां भी प्रेम के मामले में अपने प्रेमी से ही इस बात की उम्मीद करती हैं कि पहले उनका प्रेमी उनके सामने अपने प्यार का इजहार करे।

  "मेरे एक मित्र है उनकी पत्नी जो मेरी भाभी सामान है मुझे कभी -कभी हसंते हुए बताती है कि आपके मित्र और मेरी जान-पहचान पांच साल पहले हुई थी हम दोनों अच्छे दोस्त थे और हमारी गहरी दोस्ती बहुत पहले प्यार में तब्दील हो चुकी थी, लेकिन मैं उस घडी का इंतजार कर रही थी कि ये कब वह अपने प्यार का इजहार करें क्योंकि मेरे लिए अपने दिल की बात कह पाना बहुत मुश्किल हो रहा था। कभी-कभी मुझे इस बात पर खीझ भी होती थी कि आपके मित्र मुझे इतने करीब से जानते  है, फिर भी वह मेरी भावनाओं को क्यों नहीं समझ पा रहे है ....?  फिर एक दिन पहले उन्होंने ही मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, तब जाकर हमारी शादी हुई। आज हमारी शादी को भी तीन वर्ष हो चुके हैं और हम आज भी इस बात को याद करके बहुत हंसते हैं कि अगर इन्होने मुझे प्रोपोज नहीं किया होता तो शायद मेरा प्यार मेरे दिल के किसी कोने में ही दबा रह जाता।"

स्त्रियों को हमेशा से ऐसे पुरुष आकर्षित करते हैं, जो स्वयं शारीरिक और मानसिक रूप से इतने मजबूत और सक्षम हों कि वे उन्हें सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक तीनों स्तरों पर सुरक्षा दे सकें, उनकी जरूरतों का खयाल रखें। साथ ही वे दोस्ताना व्यवहार करने वाले खुशमिजाज इंसान हों, जिनके साथ वे बेतकल्लुफ हो कर अपने दिल की बातें शेयर कर सके।

अकसर हम जिन्हें छोटी-छोटी बातें समझकर नजरअंदाज कर देते हैं वे हमारी जिंदगी़ की खुशियों को बरकरार रखने के लिए बहुत जरूरी होती हैं।

पारंपरिक भारतीय समाज में हमेशा पत्नी से ही ये उम्मीद की जाती है कि वह अपने पति की हर छोटी-छोटी जरूरतों का खयाल रखे, जैसे-पति ने खाना खाया या नहीं, उनके कपडे प्रेस हुए या नहीं, उनके मोबाइल का बिल जमा हुआ या नहीं। ऐसे में घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारियां साथ-साथ निभाते हुए पत्नी थक जाती है। ऐसी स्थिति में अगर कभी पति सिर्फ इतना ही कह दे  कि "तुम थक गई होगी, रहने दो यह काम मैं खुद कर लूंगा" तो आपके  द्वारा कही गई इस छोटी-सी बात से ही पत्नी की सारी थकान दूर हो जाती है और यह एहसास किसी किसी भी औरत के लिए बहुत मायने रखता है कि वो जिससे प्यार करती हूं, उसे भी मेरी फिकर  रहती है।

प्रेम या दांपत्य संबंधों के मामले में युवा पीढी की सोच में एक नया बदलाव नजर आ रहा है। आज की शिक्षित और आत्मनिर्भर युवा स्त्री को अपनी व्यक्तिगत आजादी इतनी पसंद है कि वह उसे किसी भी कीमत पर, यहां तक कि प्यार पाने के लिए भी खोना नहीं चाहती।

पिछली पीढी की स्त्री की तरह वह प्यार में अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार नहीं है। अब उसका स्वतंत्र व्यक्तित्व है, उसकी अपनी पसंद-नापसंद, रुचियां और इच्छाएं हैं। उसे अपनी पसंद का साथी चुनने की पूरी आजादी है। ऐसी स्थिति में उसके पास विकल्पों की कमी नहीं है। उसके पास अपने आप को बदलने की कोई वैसी मजबूरी भी नहीं है, जैसी कि उसकी पिछली पीढी की स्त्रियों की हुआ करती थी कि एक बार किसी पुरुष के साथ शादी या प्रेम के बंधन में बंध जाने के बाद उसके पास अपने साथी अनुरूप खुद को ढालने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं होता था। पर आज वक्त के साथ स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। ऐसा नहीं है आधुनिक युवती अपनी शर्तो पर प्रेम करती है और अपने प्यार की खातिर खुद को बदलने के लिए जरा भी तैयार नहीं है। आज भी प्रेम के प्रति उसका समर्पण कम नहीं हुआ है। फर्क सिर्फ इतना है कि आज उसकी जीवन स्थितियां उसके अपने नियंत्रण में हैं, वह जिससे प्यार करती है, उसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है लेकिन वह अपनी निजी स्वतंत्रता को बरकरार रखना चाहती है।

इसलिए उसे प्रेम या दांपत्य संबंध के मामले में भी थोडे-से पर्सनल स्पेस की जरूरत महसूस होती है। वह जिससे प्यार करती है, उसका केयरिंग होना तो उसे अच्छा लगता है, लेकिन उसे यह बात जरा भी पसंद नहीं आती कि उसका साथी उसे छोटी-छोटी बातों पर उसे रोके-टोके या उसकी पसंद-नापसंद पर अपनी मर्जी थोपने की कोशिश करें। शायद यह पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित व्यक्तिवादी सोच की ही देन है, जिसके अंतर्गत इंसान अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी की भी दखलंदाजी पसंद नहीं करता, चाहे वह उसका प्रेमी या जीवन साथी ही क्यों न हो। भारतीय स्त्री भी इस विदेशी संस्कृति के इस प्रभाव से अछूती नहीं है। वह जिससे प्रेम करती है, उससे इस बात की उम्मीद रखती है कि वह उसकी व्यक्तिगत आजादी की भावना का सम्मान करे।

हर लडकी का व्यक्तिगत जीवन भी होता है और अपने दिन के चौबीस घंटों में से कम से कम दो घंटे वह अपने तरीके से जरूर बिताना चाहती है, जिसमें वह अपनी रुचि और पसंद से जुडे काम कर सके।

लड़की जब एक लड़के से प्रेम करती है उसने ये सोचा होगा कि पढाई पूरी होने के बाद हम शादी कर लेंगे। फिर वो समय आता है कि शादी भी हो गई लेकिन धीरे-धीरे लड़की को जब यह महसूस होने लगता है कि वह मेरी निजी जिंदगी़ में जरूरत से ज्यादा दखलंदाजी करते  है। लड़का चाहता है  कि मेरी बीबी हर काम उससे पूछ कर करे , उसकी पसंद के कपडे पहने , उसकी मर्जी से  कहीं आना-जाना करे , दूसरे लडकों से मिलना-जुलना बिल्कुल न करे । ऐसी स्थिति में लड़की को  इस बात का एहसास होता है कि वो एक ऐसे इंसान के साथ जीवन बिताना बहुत मुश्किल है, जो मेरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान न करे। इस वजह से लडके-लड़की के आपसी संबंधो में बिखराव आता है और कभी -कभी तो तलाक भी हो जाना स्वभाविक सा बन गया है  लड़की जो लड़के को प्यार करती है  उससे संबंध टूटने पर बहुत दुख होता है पर लड़की के पास इसके सिवा कोई चारा नहीं होता है ।और एक बार सम्बन्ध खत्म होने के बाद जिंदगी को सामान्य रूप से पटरी पे लाने में कठिनाई का सामना भी करना होता है जब जीवन सामान्य होता है और लड़की खुद व्यस्त करने में और पिछली बातो को भूलने से निकल कर बाहर आती है तब हमेशा यही कहती पायी जाती है  " कोई भी रिश्ता जिंदगी़ से बडा नहीं होता, जिंदगी़ के हर दौर में रिश्ते बनते-बिगडते रहते हैं।

भारतीय स्त्री शिक्षित, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही है और उसके व्यक्तित्व में यह बदलाव उसके संबंधों में भी देखने को मिलता है। साठ के दशक की प्रेम में समर्पित नायिका के मन में अपने साथी के प्रति ये उदगार रखती थी  "तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा, तुम्हीं देवता हो"

वह अपने प्रेमी या पति के सामने अपनी निरीह स्थिति को खुशी-खुशी स्वीकार लेती थी। लेकिन पिछले तीस वर्षो से शिक्षित और जागरूक होने की वजह से उसमें आत्मविश्वास आया और वह घर-बाहर दोनों जगहों पर पुरुषों के साथ बराबरी के स्तर पर कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। इस वजह से अब वह अपने की पुरुषों की तुलना में किसी भी दृष्टि से कमतर नहीं समझती और आज के पुरुषों का नजरिया भी स्त्रियों के प्रति काफी बदला है। अब उन्हें भी कमजोर और लाचार के बजाय साहसी, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी स्त्री ज्यादा प्रभावित करती है। इस वजह से आज का प्रेम संबंध भी बराबरी की भावना पर आधारित होता है। आज की स्त्री अपने प्रेमी या पति को भगवान मानने के बजाय अपनी ही तरह एक इंसान के रूप में देखती है। वह चाहती है कि उसका प्रेमी या पति भी उसकी भावनाओं को समझते हुए, उसके साथ दोस्ताना व्यवहार करे।

एक लड़की अपनी मां के दांपत्य जीवन की तुलना अपने जीवन से करती है  तो ऐसा महसूस होता है कि समय के साथ स्त्री-पुरुष के आपसी रिश्ते में काफी बदलाव आया है। पुराने समय में चाहे पति-पत्नी के बीच आपस में कितना ही प्यार क्यों न हो, लेकिन अपनी कमतर स्थिति को स्त्री सहजता से स्वीकारती थी। उसके मन में यह धारणा बनी हुई थी कि पुरुष हर हाल में स्त्री से श्रेष्ठ होता है। इस वजह से स्त्री को हर हाल में पुरुष का सम्मान करना चाहिए।  चाहे कितनी ही देर क्यों न हो जाए  मां हमेशा पापा को खिलाने के बाद ही खुद खाती थीं और जीवन भर उन्होंने इस नियम को खुशी-खुशी निभाया। जीवन में उन्होंने छोटे-से-छोटा निर्णय भी पिता की सहमति के बिना नहीं लिया।आज का परिवर्तन ये है कि कोई भी लड़की नहीं चाहती है उसे अपने पति से छोटी -छोटी बातो की परमीशन ले उसे अपनी मां की तरह खाने के लिए पति का बहुत देर तक इंतजार नहीं करना पड़े , अगर शाम को उन्हें घर आने में देर हो तो मैं बच्चों के साथ डिनर कर ले और पति को भी इस बात के लिए जरा भी बुरा न लगे ।

भारतीय समाज में अब तक पुरुषों की ऐसी पारंपरिक छवि बसी हुई थी, जिसमें पुरुषों के रौबदार, रफ-टफ, दबंग और गंभीर व्यक्तित्व की सराहना की जाती थी। पुराने समय की स्त्रियां ऐसे पुरुषोचित्त गुणों से परिपूर्ण पुरुषों के व्यक्तित्व के प्रति आकर्षित होती थीं। लेकिन आज महानगरों का मध्यवर्गीय समाज बहुत तेजी से बदल रहा है। युवा पीढी की लडकियां पुरुषों की इस पारंपरिक छवि से अलग हटकर मेट्रोसेक्सुअल पुरुषों को ज्यादा पसंद करती हैं, जिसका अर्थ महानगरों में रहने वाले ऐसे पुरुषों से है, जिनके पास खर्च करने के लिए बहुत सारा धन होता है और जो अपने व्यक्तित्व को निखारने और संवारने के प्रति अतिशय जागरूक होते हैं। इसके लिए वे जिम, हेल्थ क्लब, पार्लर जाना, स्टाइलिश ब्रैंडेड आउटिफट्स पहनना जरूरी समझते हैं और अपने बाहरी और आंतरिक व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने में विश्वास रखते हैं। इतना ही नहीं, ऐसे पुरुष भारतीय पुरुष की पारंपरिक छवि को सिरे से खारिज करते हुए यूरोपीय देशों की पुरुषों की तरह कुकिंग, घर की सफाई और बच्चों की नैपी बदलने जैसे काम करने का भी भरपूर लुत्फ उठाते हैं। स्पोर्टस, म्यूिजक और डांस में रुचि में रखने वाले युवा पीढी के ऐसे पुरुषों का सेंस ऑफ हृयूमर लडकियों को बहुत आकर्षित करता है।

इंसान जिस समाज में रहता है, वहां की स्थितियों से उसके संबंध निश्चित रूप से प्रभावित होते हैं।समाज के हर वर्ग की स्त्री की उम्मीदें अलग होती हैं।

निम्नवर्गीय समाज में रहने वाली स्त्री अपने प्यार में भी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा को भावनात्मक सुरक्षा की तुलना में ज्यादा अहमियत देती है, क्योंकि उसके लिए रोटी, कपडा और मकान जैसी जिंदगी़ की बुनियादी जरूरतें पूरी कर पाना ही इतनी बडी बात होती है कि अपनी दूसरी जरूरतों की ओर उसका ध्यान जाता ही नहीं। अगर उसका साथी उसकी इन जरूरतों को भी अच्छी तरह पूरा करता है तो इसी से वह संतुष्ट और खुश रहती है।

मध्यम वर्ग की स्त्री चाहती है कि उसका साथी उसकी भौतिक जरूरतों के साथ उसकी भावनात्मक मांगों को भी अच्छी तरह पूरा करे और उसके साथ बेहतर संवाद बनाए रखे। उच्चवर्ग के पास जीवन के लिए सभी जरूरी सुख-सुविधाएं मौजूद होती हैं लेकिन समाज के इस तबके पास सबसे बडी समस्या है-समय का अभाव। इस वजह से स्त्री-पुरुष के रिश्ते में अकसर संवादहीनता की स्थिति आ जाती है। इस वजह से यहां स्त्री की सबसे बडी चाहत यह होती है कि जिस किसी पुरुष से वह प्रेम करती है, वह उसे पूरा समय दे, उससे बातचीत करे, उसकी भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों को अच्छी तरह समझे। आज की शिक्षित मध्यवर्गीय भारतीय स्त्री आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई है, वह जागरूक है और जिंदगी़ के प्रति उसका नजरिया बदल गया है। अब उसमें इतना आत्मविश्वास आ गया है कि वह अपनी शारीरिक जरूरतों को भी स्वीकारने लगी है, पहले की तरह वह अपना पूरा जीवन इस इंतजार में नहीं बिता सकती कि शायद उसका जीवनसाथी कभी तो उसकी इस जरूरत को समझेगा।

आज की औरत अपनी सेक्सुअलिटी को पहचानने लगी है, यह अपने आप में बहुत बडा सामाजिक बदलाव है। यही वजह है कि आज तलाक की घटनाएं बढ रही हैं। पहले सिर्फ अपने वैवाहिक जीवन से नाखुश पुरुषों के ही विवाहेत्तर संबंध होते थे, लेकिन आज वैसी स्त्रियों के भी विवाहेत्तर संबंध बन रहे हैं, जिनके दांपत्य जीवन में प्यार की कमी है। यह सही है या गलत, यह बहस का एक अलग मुद्दा हो सकता है, लेकिन यह एक सहज सामाजिक बदलाव है और इस सच्चाई से हम ज्यादा समय तक नजरें नहीं चुरा सकते। अपने संबंधों को लेकर आज की स्त्री ज्यादा परिपक्व और भावनात्मक रूप से मजबूत है। अपने दांपत्य जीवन को अच्छी तरह चलाने के लिए आधुनिक स्त्री पहले की तरह आज भी काफी हद तक अपने आत्मसम्मान का त्याग करती है। भारत में विवाह संस्था सिर्फ स्त्री की वजह से ही टिकी हुई है।

आज की स्त्री निर्भीक और आत्मविश्वासी है। इस वजह से पहले की तुलना में आज वह अपने रिश्ते को लेकर ज्यादा ईमानदार है। अपने संबंध को बचाए रखने के लिए वह अपने बलबूते पर समाज से लडती है। पुराने समय में लडकियां दब्बू और डरपोक स्वभाव की होती थीं, साथ ही उन पर परिवार और समाज का प्रतिबंध भी ज्यादा होता था। अगर वे किसी से प्यार भी करती थीं तो उनका यह प्यार बहुत दबा-ढका होता था अकसर उनके मन में प्रेम को लेकर अपराधबोध की भावना होती थी कि माता-पिता की मर्जी के खिलाफ वे जो कुछ भी कर रही हैं, वह गलत है। अगर माता-पिता ज्यादा सख्ती से पेश आते और लडकी की शादी कहीं और तय कर देते तो उसका प्यार परवान चढने से पहले ही दम तोड देता था। जहां तक प्यार के लिए समाज से लडने की बात है तो इसकी जिम्मेदारी लडके की ही मानी जाती थी पर आज की स्त्री अपने प्यार को छिपाती नहीं और उसे हासिल करने के लिए वह खुद तैयार रहती है।

प्रेम एक शाश्वत भावना है, जो सदैव बनी रहती है। फिर भी बदलते वक्त के साथ प्रेम को लेकर स्त्री के विचारों में काफी बदलाव आया है। आधुनिक मध्यवर्गीय स्त्री का जीवन अति व्यस्त और कशमकश से भरा हुआ है। पहले वह घर की चारदीवारी में कैद रहती थी, इस वजह से उसकी इच्छाएं भी बहुत सीमित थीं और अपने बंद दायरे में भी वह खुश और संतुष्ट रहती थी। पहले बाहर की दुनिया से वह बेखबर थी लेकिन आज की शिक्षित और कामकाजी स्त्री के अनुभवों का दायरा पहले की तुलना में काफी विस्तृत है। ऐसी स्थिति में अब उसे समाज को ज्यादा करीब से देखने और समझने का अवसर मिला है।

अब वह अपने जीवन की तुलना दूसरी स्त्रियों से आसानी से कर सकती है। आज पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का जीवन ज्यादा तेजी से बदला है। पहले की तुलना में उसके संबंधों में ज्यादा उथल-पुथल देखने को मिलता है। आज स्त्रियों के प्रेम में समर्पण की भावना खत्म होती जा रही है, इसी वजह से चाहे प्रेम हो या शादी उनके किसी भी रिश्ते के स्थायित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है।

इसका एक सकारात्मक पहलू यह भी है पहले स्त्री के पास जीवन जीने का कोई विकल्प नहीं होता था। अगर उसका दांपत्य जीवन बहुत दुखमय हो तो भी उसके पास शोषण और प्रताडना झेलने के सिवा कोई चारा नहीं होता था। पहले विधवा या परित्यक्ता स्त्रियों की दोबारा शादी नहीं हो पाती थी, पर अब ऐसा नहीं है। अगर प्रेम की कमी की वजह से अगर किसी स्त्री के जीवन में सूनापन है तो वह नए सिरे से अपनी जिंदगी़ की शुरुआत करके आसानी से इस सूनेपन को दूर कर सकती है। यह स्त्री के जीवन में आने वाला सकारात्मक बदलाव है, जिसकी सराहना की जानी चाहिए।
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