
* लंगोट पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला एक अन्त:वस्त्र है। यह पुरुष जननांग को ढककर एवं दबाकर रखने में सहायता करता है। भारत में इसका उपयोग पहले बहुत होता था। आजकल भी ब्रह्मचारी, साधु-सन्त, अखाड़ा लड़ने वाले पहलवान आदि इसका उपयोग करते हैं।
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग -http://upchaaraurpryog120.blogspot.in
* ये लंगोट किसी भी रंग का हो सकता है किन्तु लाल लंगोट विशेष रूप से लोकप्रिय है। यह पूरी तरह से खुला हुआ त्रिकोणाकार कपड़े का बना होता है।
* पहले लंगोट, ऋषि मुनि पहनते थे इतना तो आप मानते ही हैं की ऋषि-मुनि बहुत विद्वान् थे। जो करते थे बहुत सोच-समझकर ही करते थे। सो इसमें भी कोई समझदारी थी तथा जो पहले के लोग थे जिनकी जीवन में ब्रम्हचर्य की विशेष महत्ता थी वो सभी धारण किया करते थे आज के युग में युवा पीढ़ी को उसकी महत्ता का ज्ञान नहीं है इसलिए अब हमारी फिल्मों की नायिकाओ ने भी पहनना शुरू कर दिया है जो आज कल के लोगो को भा रहा है

लंगोट =लं+ गोट, अर्थात जो लं…..और गोट, दोनों को संभाल सके, वो लंगोट।
* अभी कुछ सालों से इस परिभाषा पर बट्टा लग गया है..खैर, ऐसा तो बहुत शब्दों के साथ है जिनका मतलब तब कुछ होता था अब और कुछ; जैसे कि बलात्कार। पहले इससे मतलब “जबरदस्ती” का निकला जाता था और अब; आपसे क्या छुपा है....?
लंगोट के कई फायदे थे आइये आपसे परिचय कराये :-
==================================
* लंगोट एक प्रकार से चड्ढी का काम करता था ( आपात काल में जबकि नियंत्रण खोने लगता है, यह नियंत्रण बनाये रखता था वो भी आपकी इच्छानुसार। अभी चड्ढी में ये सुविधा उपलब्ध नहीं है) ।इसलिए बलात्कार की संख्या में बहुत कमी थी और खुद पे भी एक नियंत्रण रहता था लेकिन आज ये नियंत्रण नहीं रह गया है .
* दौड़ लगाने ,भागने और व्यायाम करने में भी लंगोट का कोई सानी नहीं। कोई जानवर दौडाए तो सरपट भागिए। अगर लंगोट पकड़ कर लटक जाये तो उसके पल्ले सिर्फ लंगोट ही आये (भागते भूत की लंगोटी ही सही ) । व्यायाम में तो लंगोट बेजोड़ है। कम से कम ये उस चीज पर पूरा नियंत्रण रखता है जो व्यायाम में आपका नियंत्रण बिगाड़ सकती है।
* ये जरुरत पड़ने पर किसी का गला घोंटने के काम भी आ सकता था ( समाधि भी ली जा सकती थी, पेड़ से लटक कर) ।(एक व्यंग के रूप में )
* कभी-कभी जब जान पे आ पड़े तो सर पर केसरिया कफ़न बांधकर जूझ पड़ने के भी काम आता था( इसीलिए लाल लंगोट, सिलने का चलन था) ।
* यदि कोई आश्रम बने है तो बांस में बांधकर ध्वज की तरह भी लंगोट का इस्तेमाल किया जा सकता था.
* इन सबसे बढ़कर तो ये है कि इसे धुलने में समय और श्रम के साथ संसाधनों की भी न्यूनतम खपत होती थी। वर्ना, आप तो जानते है की कपडे धुलना कितना दुष्कर है।
* जरुरत पड़ने पर युद्ध में लंगोट के दोनों सिरों पर पत्थर बांध कर हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता था।और सामने वाला भाग खड़ा होता था ।
* अगर आपके पास दो लंगोट है तो एक से जरुरत पड़ने पे कुछ सामान को आप बाँध कर भी इसका उपयोग कर सकते है। लंगोट से जरूरत पड़ने पर कोई लकड़ी का गठ्हर या सामान बंधा जा सकता था।
* जरुरत पड़ने पर पेड़ पर चढ़ कर फल तोड़कर उसे आसानी से नीचे पहुँचाया जा सकता था(खोंचा और झोली की तरह) ।
* लंगोट को पेड़ की दो डालों से बांध कर झूला बनाया जा सकता था( आनंद -दायक) ।
* किसी भक्त की भिक्षा भी लंगोट में ली जा सकती थी। या कोई भी चीज छुपाने के लिए भी बहुत कीमती चीजों को ले जाने में उपयोगिता थी .
* यदि जानवर पाले हो तो उन्हे रात के वक्त लंगोट से खूंटे में बंधा भी जा सकता था।
* कही प्यास लगने पर लंगोट से कमंडल या लोटा बंधा कर गहरे से पानी भी खींचा जा सकता था।
* बुरा न माने तो ये उनके सिक्स पैक दिखाने सबसे हॉट और सेक्सी ट्रेंड था।
* अब तो आजकल गाँव में कुछ जगह लंगोट चढाने की परम्परा आज भी है मुझे जितने प्रयोग सूझ सके हैं लंगोट के आप तक प्रस्तुत किया यदि मैं ऋषि होता तो शायद और भी जानता लंगोट के बारे में। यदि आप को जादा जानकारी मिले तो जरुर शेयर करे आभारी रहूगां ।पोस्ट को आवश्यक समझे या व्यंगात्मक रूप में ले ये आपकी सोच है ...!
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग -http://upchaaraurpryog120.blogspot.in
No comments:
Post a Comment