Tuesday, June 30, 2015

लवण भास्कर चूर्ण घर पे बनाए..!


* यह खाना पीना पचाने का एक जायके दार योग है। ये आचार्य भास्कर का योग है ..

* आयुर्वेद जैसा कि हम जानते है कि जीवन का वेद है और जब यह जीवन का वेद है तो जीवन दायक या कहें कि निरोग रखने के वहुत से योगों का भण्डार भी है।आयुर्वेद हमें यह सिखाता भी है कैसे निरोग रहा जाए तथा यह भी कि अगर रोग हो ही जाए तो दोवारा से निरोग कैसे हुआ जाए वो भी विना किसी साइड इफैक्ट के सो आज हम ऐसे ही एक योग का वर्णन कर रहै है जिसका नाम है --लवण भास्कर चूर्ण

* यह एक निरापद योग है जो 1 से 3 ग्राम की मात्रा में लेने पर उदर संबंधी रोगों को अपने से दूर रखा जा सकता है।यह योग वैसे मढ्ढे के साथ सर्वोत्तम लाभ प्रदान करता है किन्तु काँजी,दही का पानी या सामान्य गर्म जल के साथ भी लिया जा सकता है व इसके लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।

* रात को सोने से पहले गर्म पानी से लिया हुआ चूर्ण सुबह को साफ व खुलकर शौच लाता है और कब्ज से राहत प्रदान करता है।यदि इस चूर्ण को बराबर मात्रा में पंचसकार चूर्ण के साथ लिया जाए तो सुबह को खुलकर 2-3 दस्त हो जाते है और पेट विल्कुल साफ हो जाता है।
* वैसे तो यह चूर्ण विभिन्न कम्पनियाँ बनाती हैं।लैकिन उत्तमता की गारंण्टी रहै इस लिए आप चाहैं तो स्वयं भी बनाकर लाभ ले सकते हैं।
* इस चूर्ण के लिए जरुरी उपयोगी द्रव्य आप किसी पंसारी या ग्रोसर से ले सकते हैं।

सामग्री :-
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सेंधानमक- 24 ग्राम

विडनमक- 24  ग्राम

पीपल- 24  ग्राम

पिपलामूल-24  ग्राम

तेजपात - 24  ग्राम

काला जीरा- 24  ग्राम

तालीस पत्र- 24  ग्राम

नागकेशर-24  ग्राम

अम्लवेत- 24  ग्राम

सौचल नमक- 60ग्राम

जीरा- 12 ग्राम

काली मिर्च- 12 ग्राम

सोंठ- 12 ग्राम

समुद्री नमक- 96 ग्राम

अनार दाना -48 ग्राम

बड़ी इलायची- 6 ग्राम

दाल चीनी- 6 ग्राम

* सभी वस्तुऔं का कपड़ छन चूर्ण तैयार करके फिर नीबू का रस लेकर उसमें सारे चूर्ण को मिला कर सीरक या छाया मे सुखा लें इसे आयुर्वेदिक भाषा में भावना देना कहते हैं।

* ये तैयार हो गया लवण भास्कर चूर्ण

* वैसे तो उपयोग पहले भी लिख दिये हैं लैकिन इस योग के प्रयोग से पेट की वायु,डकार आना तथा भूख न लगना आदि रोगों का शमन बड़ी ही आसानी से हो जाता है।

* त्वचा सम्बन्धी बीमारियों और आम वात की बीमारियाँ जैसे अर्थराइटिस में लाभकारी। इस योग के प्रयोग से पेट की वायु,डकार आना तथा भूख न लगना आदि रोगों का शमन
बड़ी ही आसानी से हो जाता है।यह पित्त को बढाए बिना अग्नि जठराग्नि यानी भूख
को बढ़ाता है।

सावधानी -
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सामान्य नमक की तरह ही गुर्दे की बीमारियों और उच्च रक्तचाप पर इसे नहीं लेना चाहिए।

गर्भवती स्त्रियों को भी इसे नहीं लेना चाहिए।

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

शिलाजीत क्या है .?

* आयुर्वेद ने शिलाजीत को बहुत लाभकारी औषधि है।अच्छा स्वास्थ्य हमारी मूल आवश्यकता है और शिलाजीत एक ऐसी ही औषधि जो स्वस्थ रहने में हमारी मदद करती है।

* यह पत्थर की शिलाओं में ही पैदा होता है इसलिए इसे शिलाजीत कहा जाता है। गर्मी के दिनों में सूर्य की तेज किरणों से पर्वत की शिलाओं से लाख की तरह पिघल कर यह बाहर निकल आता है। यह चार प्रकार का होता है।





रजत, स्वर्ण, लौह तथा ताम्र शिलाजीत।

* प्रत्येक प्रकार की शिलाजीत के गुण अथवा लाभ अलग-अलग हैं। रजत शिलाजीत का स्वाद चरपरा होता है। यह पित्त तथा कफ के विकारों को दूर करता है। स्वर्ण शिलाजीत मधुर, कसैला और कड़वा होता है जो बात और पित्तजनित व्याधियों का शमन करता है। लौह शिलाजीत कड़वा तथा सौम्य होता है। ताम्र शिलाजीत का स्वाद तीखा होता है। कफ जन्य रोगों के इलाज के लिए यह आदर्श है क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है।

* भारतीय जड़ी-बूटियों में शिलाजीत का एक विशिष्ट स्थान है। आयुर्वेद ने शिलाजीत की बहुत प्रशंसा की है और इसकी गुणवत्ता को प्रतिष्ठित किया है। आयुर्वेद के बलपुष्टिकारक, ओजवर्द्धक, दौर्बल्यनाशक एवं धातु पौष्टिक अधिकांश नुस्खों में शिलाजीत का प्रयोग किया जाता है।

* इसकी एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि यह सिर्फ रोग ग्रस्त का रोग दूर करने के लिए ही उपयोगी नहीं है, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी उपयोगी है। इसे यौन दौर्बल्य यानी नपुंसकता से पीड़ित विवाहित व्यक्ति ही नहीं, अविवाहित युवक भी सेवन कर सकता है।
विशेषकर मधुमेह, धातु क्षीणता, बहुमूत्र, स्वप्नदोष, सब प्रकार के प्रमेह, यौन दौर्बल्य यानी नपुंसकता, शरीर की निर्बलता, वृद्धावस्था की निर्बलता आदि व्याधियों को दूर करने के लिए शिलाजीत उत्तम गुणकारी सिद्ध होती है।

* ऐसा कोई साध्य रोग नहीं है, जिसे उचित समय पर, उचित योगों के साथ विधिपूर्वक किया गया शिलाजीत का प्रयोग नष्ट न कर सके। शिलाजीत सब प्रकार की व्याधियों को नष्ट करने के लिए प्रसिद्ध है।

* स्वप्नदोष से ज्यादातर तो अविवाहित युवक ही पीड़ित पाए जाते हैं पर विवाहित पुरुष भी इससे अछूते नहीं हैं-

* शुद्ध शिलाजीत 25 ग्राम, लौहभस्म 10 ग्राम, केशर 2 ग्राम, अम्बर 2 ग्राम, सबको मिलाकर खरल में खूब घुटाई करके महीन कर लें और 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें। एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से स्वप्नदोष होना तो बंद होता ही है, साथ ही पाचनशक्ति, स्मरण शक्ति और शारीरिक शक्ति में भी वृद्धि होती है, इसलिए यह प्रयोग छात्र-छात्राओं के लिए भी उपयोगी है।

* शिलाजीत और बंगभस्म 20-20 ग्राम, लौहभस्म 10 ग्राम और अभ्रक भस्म 5 ग्राम, सबको मिलाकर खरल में घुटाई करके मिला लें और 2-2 रत्ती की गोलियां बना लें। सुबह-शाम एक-एक गोली दूध के साथ सेवन करने से स्वप्नदोष होना बंद होता है और शरीर में बलपुष्टि आती है। यदि शीघ्रपतन के रोगी विवाहित पुरुष इसे सेवन करें तो उनकी यह व्याधि नष्ट होती है। खटाई और खट्टे पदार्थों का सेवन बंद करके इन दोनों में से कोई एक नुस्खा कम से कम 60 दिन तक सेवन करना चाहिए।

लाभ-:-
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* शिलाजीत कफ, चर्बी, मधुमेह, श्वास, मिर्गी, बवासीर उन्माद, सूजन, कोढ़, पथरी, पेट के कीड़े तथा कई अन्य रोगों को नष्ट करने में सहायक होता है। यह जरूरी नहीं है कि शिलाजीत का सेवन तभी किया जाए जब कोई बीमारी हो स्वस्थ मनुष्य भी इसका सेवन कर सकता है। इससे शरीर पुष्ट होता है और बल मिलता है।

* आपको शिलाजीत अगर प्राप्त न हो तब आप पतंजलि चिकित्सालय का उपयोग करे..!

उपचार स्वास्थ्य और  प्रयोग-










राम बाण दवा-असगंध या अश्वगंधा ....!

* आयुर्वेद में जड़ी बूटियों का बड़ा महत्व है। इनके प्रयोग से मानव जाति को जीवनदान मिला है। इनमें से एक प्रसिध्द जड़ी बूटी है ‘असगंध’।

* अश्वगंधा एक बलवर्धक जड़ी है इसका पौधा झाड़ीदार होता है। जिसकी ऊंचाई आमतौर पर 3−4 फुट होती है। औषधि के रूप में मुख्यतः इसकी जड़ों का प्रयोग किया जाता है। कहीं−कहीं इसकी पत्तियों का प्रयोग भी किया जाता है। इसके बीज जहरीले होते हैं। असगंध बहमनेवर्री तथा बाराहरकर्णी इसी के नाम हैं।

* अश्वगंधा या वाजिगंधा का अर्थ है अश्व या घोड़े की गंध। इसकी जड़ 4−5 इंच लंबी, मटमैली तथा अंदर से शंकु के आकार की होती है, इसका स्वाद तीखा होता है। चूंकि अश्वगंधा की गीली ताजी जड़ से घोड़े के मूत्र के समान तीव्र गंध आती है इसलिए इसे अश्वगंधा या वाजिगंधा कहते हैं। इस जड़ी को अश्वगंधा कहने का दूसरा कारण यह है कि इसका सेवन करते रहने से शरीर में अश्व जैसा उत्साह उत्पन्न होता है।

 * ये सस्ती होने के कारण यह मध्यम व निर्धन परिवारों के लिये रसायन का काम करती है। असगंध पंसारियों की दुकानों से सरलता से मिल जाती है। असगंध की जड़ भूरे रंग की होती है और स्वाद में कसैली होती है। इसकी जड़ कूटने से इसमें घोड़े के मूत्र की बू आती है।

* नागपुर में उत्पन्न होने वाली असगंध उत्तम होती है, इसलिये इसे असगंध नागौरी कहते हैं। यह निम्नलिखित रोगों में प्रयोग की जाती है:-

* असंगध से सूखा रोग से ग्रस्त, हड्डियों के पिंजर बच्चे मोटे ताजे हो जाते हैं। इसके प्रयोग से कमजोर बच्चों का वजन बढ़ जाता है। दूध पिलाने वाली स्त्रियों का दूध बढ़ जाता है।

* इसके निरंतर प्रयोग से बुढ़ापा पास नहीं फटकता। सायु की कमजोरी, वात व सर्दी से उत्पन्न होने वाले रोगों में जैसे पट्ठों में दर्द होना। अंग सुन्न होना, कमर दर्द, पक्षाघात, शरीर पर च्युटियां चलना प्रतीत होना आदि पर असगंध सोने पर सोहागे का काम करता है।

* पक्षाघात की दवाओं में जैसे महानारायण तेल, नारायण तेल अश्वगंधारिष्ट में इसका प्रयोग होता है।

* असगंध एक वर्ष तक यथाविधि सेवन करने से शरीर रोग रहित हो जाता है। केवल सर्दीयों में ही इसके सेवन से दुर्बल व्यक्ति भी बलवान होता है। वृद्धावस्था दूर होकर नवयौवन प्राप्त होता है।

* अश्वगंधा के चूर्ण की एक−एक ग्राम मात्रा दिन में तीन बार लेने पर शरीर में हीमोग्लोबिन लाल रक्त कणों की संख्या तथा बालों का काला पन बढ़ता है। रक्त में घुलनशील वसा का स्तर कम होता है तथा रक्त कणों के बैठने की गति भी कम होती है। अश्वगंधा के प्रत्येक 100 ग्राम में 789.4 मिलीग्राम लोहा पाया जाता है। लोहे के साथ ही इसमें पाए जाने वाले मुक्त अमीनो अम्ल इसे एक अच्छा हिमोटिनिक (रक्त में लोहा बढ़ाने वाला) टॉनिक बनाते हैं।

* असंगध चूर्ण, तिल व घी 10-10 ग्राम लेकर और तीन ग्राम शहद मिलाकर नित्य सर्दी में सेवन करने से कमजोर शरीर वाला बालक मोटा हो जाता है।

* अश्वगंधा का चूर्ण 6 ग्राम, इसमें बराबर की मिश्री और बराबर शहद मिलाकर इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलायें, इस मिश्रण को सुबह शाम शीतकाल में चार महीने तक सेवन करने से बूढ़ा व्यक्ति भी युवक की तरह प्रसन्न रहता है।

* अश्वगंधा की जड़ के महीन चूर्ण को तीन ग्राम की मात्रा में गर्म प्रकृति वाली गाय के ताजे दूध से वात प्रकृति वाला शुद्ध तिल से और कफ प्रकृति का व्यक्ति गर्म पानी के साथ एक वर्ष तक सेवन करे तो निर्बलता दूर होकर सब व्याधियों का नाश होता है और निर्बल व्यक्ति बल प्राप्त करता है।

* अश्वगंधा चूर्ण 20 ग्राम, तिल इससे दुगने, और उड़द आठ गुने अर्थात 140 ग्राम, इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक ग्राम तक खायें।

* अश्वगंधा चूर्ण और चिरायता बराबर-बराबर लेकर खरल (कूटकर) कर रखें। इस चूर्ण को 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह ग्राम शाम दूध के साथ खायें।

* एक ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिश्री डालकर उबालें हुए दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है, बल बढ़ता है।

* शतावर, असगंधा, कूठ, जटामांसी और कटेहली के फल को 4 गुने दूध में मिलाकर या तेल में पकाकर लेप करने से लिंग मोटा होता है और लिंग की लम्बाई भी बढ़ जाती है।

* कूटकटेरी, असगंध, वच और शतावरी को तिल के तेल में जला कर लिंग पर लेप करने से लिंग में वृद्धि होती है-असगंध चूर्ण को चमेली के तेल के साथ खूब मिलाकर लिंग पर लगाने से लिंग मज़बूत हो जाता है

* स्त्रियों को यह दवा खिलाते रहने से गर्भाशय के रोग दूर हो जाते हैं। बच्चा होने के पश्चात प्रसूता को असगंध का प्रयोग निरंतर कराते रहने से उसकी कमजोरी व दूसरे रोग दूर हो जाते हैं।

* यदि प्रदर अधिक आता हो तो उसमें भी असगंध रामबाण का काम करती है।

* जिन स्त्रियों के असमय ही स्तन ढीले हो जाते है असगंध का लेप करने से स्तन कड़े हो जाते हैं।

* बांझ स्त्रियां यदि निरंतर प्रयोग करें तो भगवान की कृपा से संतान प्राप्ति होती है।

* असगंध मर्दाना शक्ति उत्पन्न करती है। नपुंसकता को दूर करती है। वीर्य उत्पन्न करती है, शुक्रकीटों को बढ़ाती है।

* शारीरिक, मानसिक और स्ायुविक कमजोरी, याद न रहना, आंखों में गढ़े पड़ जाना आदि रोगों में लाभदायक है।

* स्वप्नदोष व प्रमेह को दूर करती है।

* वात रोग जैसे गठिया, आमवात, जोड़ों का दर्द, शोच और जोड़ पत्थरा जाने पर असगंध खाने व लगाने पर कमाल का असर दिखाती है।

* असगंध को गोमूत्र में घिस कर कंठमाला पर कुछ दिन लगाने से आराम होता है।

* इसे बकरी के दूध के साथ प्रयोग करने से तपेदिक रोग ठीक हो जाता है।

* असगंध पाचनांगों को शक्तिशाली बनाती है, भूख बढ़ाती है और भोजन की शरीरांश बनाती है।

* असगंध मानसिक कमजोरी, पुराना सिर दर्द, नींद न आना, वहम व पागलपन जैसे रोगों की चोटी की दवा है।

* हजारों वर्षों से असगंध का प्रयोग हमारे देश में होता आ रहा है।

* बड़ों के लिये इसकी खुराक दो से चार ग्राम व बच्चों के लिये एक ग्राम प्रात: सायं दूध के साथ प्रयोग में लायें।

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-http://upchaaraurpryog120.blogspot.in/

किसी भी प्रकार के बदन दर्द का घरेलू उपचार....!

सामग्री :-
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शुद्ध घानी का सरसों का तेल -100 ग्राम

लहसुन की कलियाँ -30 ग्राम

अजवाइन - 10 ग्राम

लौंग - 5ग्राम

* सरसों के तेल में सभी चीजो को डालकर धीमी-धीमी आंच पे पकाए सभी चीजे काली पड़ने पे उतार के ठंडा करे और छान कर एक शीशी  में भर के रख ले .

* जब भी लगाना हो एक कटोरी में थोडा निकाल कर गर्म कर ले और जितना सह सके मालिस करे इससे हर प्रकार का बदन दर्द दूर होता है इसे लगाने के बाद  एक घंटे तक स्नान न करे .

उपचार और प्रयोग-

केला खाए और छिलका उपयोग में -

केले का सेवन हमारे स्वास्थय के लिए बहुत फ़ायदेमंद होता हैं। रोज़ एक केला खाने से शरीर स्वस्थ रहता हैं-



हर मौसम में केले को खाया जा सकता हैं और हर मौसम में यह मार्किट में आसानी के साथ के मिल भी जाता हैं ।केले में बहुत अधिक मात्रा में कैलोरी होती हैं ।

केले में थाइमिन,नियासिन और फोलिक एसिड के रूप में विटामिन ए और  बी अधिक मात्रा में होती हैं । वैसे केला सबको लाभ देता हैं लेकिन महिलाओं के लिए केले  का सेवन बहुत फ़ायदा पहुंचाता हैं |

केले का सेवन महिलाओं में पोटाशियम की कमी नहीं होने  देता जिसके कारण स्ट्रोक की समस्या नहीं होने की संभावना न के बराबर हो जाती हैं। केले में विटामिन ए, बी, सी और ई, मिनिरल्स, पोटैशियम, जिंक, आयरन आदि कई पोषक तत्व हैं जो हमारे शरीर को ऊर्जा देते हैं। केले में प्राकृतिक तौर पर शुगर होता हैं। शारीरिक श्रम या व्यायाम  करने के बाद केले के सेवन से शरीर में इसका स्तर सामान्य होता हैं और थकान महसूस करने पर केले के  सेवन से आपको ताकत मिलती हैं । केले खाने के और भी बहुत से स्वास्थय लाभ होते हैं जो हमें स्वस्थ रखने में मदद करते हैं ।

भले ही रोज एक सेब खाने से आप डॉक्टर के पास जाने से बच सकते हैं, लेकिन केला खाने से आप अपनी पूरी जिन्दगी स्वस्थ्य रह सकते हैं। रिसर्च के मुताबिक केला आपको कई बीमारियों से बचा सकता है।

तो आइए जानते हैं केला खाने का स्वास्थ्यलाभ -

वज़न बढ़ाने के लिए :-
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केला वज़न बढ़ाने में मदद करता हैं । जो लोग पतले हैं या अपना वज़न बढ़ाना चाहते हैं उन्हें रोज़ केला खाना चाहिए या फिर उसका शेक पीना चाहिए ।

गर्भवती महिलाओं के लिए :-
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Pregnancy के समय महिलाओं को काफी मात्रा में विटामिन और मिनरल्स की ज़रूरत होती हैं ।जो की केले में अधिक होते हैं इसलिए गर्भवती महिलाओं को अपने आहार में  केले को शामिल करना चाहिए ।

ऊर्जा के लिए :-
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ब्रेकफास्‍ट में केला खाने से ऊर्जा बढ़ती है और सूकरोज़, फ्रक्‍टोज़ और ग्‍लूकोज जैसे पोषक तत्‍व भी मिलते हैं। वे लोग जो दिन भर भूखे और प्‍यासे रहते हैं,अगर वो  केला ही खा लें तो उन्‍हें अन्‍य फल के मुकाबले केले से तुरंत एनर्जी मिलती हैं ।

दिल के मरीज़ों के लिए :-
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दिल के मरीज़ों के लिए  केला बहुत फ़ायदा पहुँचाता हैं रोज़ दो  केले को शहद में  मिक्स करके खाने से दिल मज़बूत बनता हैं और दिल की बीमारियां भी नहीं होती हैं ।

एनीमिया:-
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केला एनीमिया को दूर करता हैं। जो लोग एनीमिया से प्रभावित हैं, उन्‍हें अपनी डाइट में केला शामिल करना चाहिये। यह शरीर के खून में हीमोग्‍लोबिन को बढ़ाता  हैं । जिससे एनीमिया की समस्या दूर हो जाती हैं। केला शरीर के खून में हीमोग्लोबिन को बढाता है। जिससे एनीमिया की शिकायत दूर हो जाती है।वे लोग जो एनीमिया से प्रभावित हैं, उन्हें अपने भोजन में केला शामिल करना चाहिये।

ब्‍लड प्रेशर:-
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केले में  पोटाशियम होता हैं,जो की ब्लड  प्रेशर के रिस्‍क को कम कर के हार्ट अटैक और हाईपरटेंशन की बीमारी को कंट्रोल करता हैं। उच्चरक्तचाप के रोगियों के लिए विशेष लाभकारी होता है| केला खाने से उच्चरक्तचाप सामान्य बना रहता है |

अनिद्रा :-
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दूध में  केला और शहद मिला कर पीने से अनिद्रा की समस्‍या दूर हो जाती है। साथ ही यह शरीर के शुगर लेवल को भी रेगुलेट करता हैं, जो कि हैंगओवर  के लिए लाभदायक होता हैं । दूध के साथ केला और शहद मिला कर पीने से अनिद्रा की समस्या दूर हो जाती है।

विकास के लिए :-
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बच्चों के विकास के लिए केला लाभदायक होता हैं इसमें विटामिन और मिनरल्स होते हैं, जो की बच्चों का विकास करने में मदद करते  हैं ।

पाचन शक्ति के लिए :-
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केला खाने से पाचन क्रिया मजबूत होती हैं। जो लोग ट्रैवेलिंग करते हैं उन्‍हें अक्‍सर कब्‍ज की शिकायत हो जाती हैं। इसको दूर करने के लिये वो  केले का सेवन कर सकते हैं। अगर आपको पेचिश की समस्या है तो आप दही में केला मिक्स करके खाएं आपको आराम मिलेगा.केले में रेशा पाया जाता है, जिससे पाचन क्रिया मजबूत बनती है। गैस्ट्रिक व कब्ज़ की बीमारी वाले लोंगो के लिये केला बहुत प्रभावशाली उपचार है। अक्सर यात्रा के दौरान कब्ज की शिकायत हो जाती है। इसको दूर करने के लिये केला एक अच्छा विकल्प है |

तनाव :-
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तनाव को कम करने में केला मददगार सिद्ध होता हैं और क्योंकि केले में प्रोटीन, ट्रायफोटोपन पाया जाता है, जो कि माइंड को रिलैक्‍स कर देता है। केले में प्रोटीन पाया जाता है, जो कि दिमाग को आराम देता है इसलिए डिप्रेशन दूर करने में सहायक है |

अल्सर के लिए :-
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केले का सेवन अल्सर के मरीज़ों के लिए बहुत फ़ायदेमंद होता हैं । इसलिए अल्सर के मरीज़ों को केले को अपने खाने में शामिल करना चाहिए ।

मांस पेशियों  के  लिए:-
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रोज़ाना केले के सेवन से मांस पेशियों को मज़बूती मिलती हैं । रोज़ खाना खाने के बाद एक केला खाना चाहिए ।

अन्य लाभ :-
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केला खिलाड़ियों का प्रिय फल है क्योंकि यह तुरंत एनर्जी प्रदान करता है। सुबह नाश्ते में केला खाने से ऊर्जा बढती है और सूकरोज़, फ्रक्टोज़ और ग्लूकोज जैसे पोषक तत्व भी मिलते हैं। यदि आप दिन भर भूखे प्यासे रहते हैं, तो केवल केला ही खा लें देखिये अन्य फल के मुकाबले केले से तुरंत एनर्जी मिलेगी।

दो केले लगभग १०० ग्राम दही के साथ सेवन करने से दस्त व पेचिश में लाभ होता है |

केले पर चीनी और इलायची डालकर खाने से खट्टी डकारें आनी बंद हो जाती हैं |

पके हुए  केले में आंवले के रस  चीनी मिलाकर पीने से बार- बार पेशाब आने की समस्या भी ख़त्म हो जाती हैं।

स्वास्थ के साथ -साथ केला हमारे बालों  और त्वचा के लिए भी फ़ायदा पहुंचाता हैं ।

कच्चे केले को दूध में मिलाकर लगाने से त्वचा में निखार आ जाता हैं ।

केला  के बहुत से फ़ायदे  होते हैं जो हमें इसके सेवन से मिलते हैं।केला तो वैसे 12 महीने ही बाज़ार में  मिल जाता हैं लेकिन बरसात के मौसम में खाने से अधिक लाभ मिलता हैं ।

महिलाओं को रक्त प्रवाह अधिक होता हैं तो केले को दूध में मिक्स करके खाने से लाभ मिलता हैं । केला कच्चा हो या पका हुआ दोनों तरीकों से खाने से लाभ मिलता हैं ।  

लेकिन जिन्हें कफ़ की समस्या रहती हैं उन्हें केले का सेवन नहीं करना चाहिए, अगर आप इसका सेवन करते हैं तो हमेशा केला पका हुआ ही खाएं । इस तरह केला खाने से बहुत से लाभ मिलते हैं ,इसलिए केले को अपने आहार में  ज़रूर ,शामिल करें । अच्छा  होगा कि यदि  आप केले का प्रयोग सीधे करे तो केले को धीरे-धीरे मुंह में खूब चबा के घोल बना के निगले .

अब केले खाकर इधर-उधर छिलके फेंकने की आपकी भी आदत है तो उसे बदल लीजिए क्योकि इसके छिलकों में कमाल के गुण हैं:-

केला खाकर अगर आप इधर उधर फेंकते है तो जान लीजिये आप निहायती बेवकूफ है क्योंकि एक तो अगर आप केले के छिलके को इधर उधर फेंकते है तो कोई न कोई इसकी चपेट में आकर फिसल सकता है और दूसरा इसमें इतने औषधीय गुण भरे है कि जान लेने के बाद आपको केले (Banana) के छिलके पर भी प्यार आयेगा |

यह आपके सिर के दिर्द को छूमंतर कर सकता है क्योंकि आपको सिर दर्द तब होता है जब आपकी धमनियो में तनाव आता है और तनाव जब आता है जब आप बिना मतलब की बातों पर अपना वक़्त जाया करते है इसलिए experts कहते है कि केले (Banana) के छिलके को पीस कर उसका पेस्ट दर्द के स्थान पर अगर आप लगाते है तो कुछ ही मिनटों में आपका सिर दिर्द ऐसे गायब हो जाता है जैसे वो कभी था ही नहीं |

केले (Banana) का छिलका आपको दर्द से भी रहत दे सकता है अगर आप इसका इस्तेमाल चोट लगने वाली जगह पर लगाते है या मधुमखी के काटने वाली जगह पर भी इसे लगाने से बड़ा आराम मिलता है आप चाहे तो एक मधुमक्खी के छते को छेड़कर ये प्रयोग कर सकते है |

इन छिलकों में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और कार्बोहाइड्रेट होते हैं। इसमें विटामिन बी-6, बी-12, मैगनीशियम, कार्बोहाइड्रेट, एंटीऑक्सीडेंट, पोटेशियम, मैगनीशियम और मैंगनीज जैसे पोषक तत्व होते हैं जो मेटाबॉलिज्म के लिए बेहद उपयोगी होते हैं।

खुश रहने के लिए सेरोटोनिन हार्मोन जिम्मेदार होता है। चीन में हुए शोध के मुताबिक केले के छिलके में इस हार्मोन को सामान्य बनाए रखने के गुण मौजूद होते हैं।

केले के छिलके को पीसकर उसका पेस्ट सिर दर्द के स्थान पर 15 मिनट तक लगाए रखने से सिरदर्द दूर होता है। सिर का दर्द खून की धमनियों में पैदा होने वाले तनाव के कारण होता है और केले के छिलके में मौजूद मैगनीशियम धमनियों में जाकर सिर के दर्द को रोकने में सहायक सिद्ध होता है।

 केले के छिलके को रोजाना दांतों पर रगड़ने से उनमें चमक आती है क्योंकि इसमें उपस्थित पोटेशियम, मैगनीशियम और मैंगनीज दांतों पर जमे पीलेपन को हटाने में मदद करता है। ऎसा नियमित कुछ दिन करने से दांतों में कुदरती चमक आ जाती है। दिन में दो बार केले के छिलके दांतों पर रगड़ने से लाभ होता है। यह आपके दांतों को भी किसी टूथपेस्ट से अधिक चमकीला और आकर्षक बना सकता है  इसमें मैग्नीशियम और पोटेशियम होता है जो आपके दांतों में जमा केविटी और पीलेपन को हटाने में मदद करता है और उनमे कुदरती चमक लेके आता है जैसी आप टीवी ads में colgate वाली लड़की के दांत देखते है ठीक उसी तरह से | इसके लिए आपको केले (Banana) के छिलके को दांतों से रगड़ना होता है और वो भी हर दिन |

पैरों या हाथों में निकले वाट्र्स या मस्सों पर केले के छिलके को रगड़ने और रातभर ऎसे ही छोड़ देने से दोबारा उस जगह पर वाट्र्स नहीं निकलते हैं।

मुंहासों पर छिलके को मसलकर पांच मिनट तक लगाने से फायदा होता है। मस्से और मुहांसों के लिए भी यह बहुत कारगर होता है अगर आप केले (Banana) के छिलके को मस्सो पर नियमित रगड़ते है और रात भर पेस्ट बनाकर उसे छोड़ते है तो उस जगह पर एक बार ठीक हो जाने पर मुहांसे नहीं होते है और अगर आपके चेहरे पर मुहांसे होते है तो इसका पेस्ट रोज पांच से दस मिनट तक लगाने से अच्छा वाला फायदा होता है |

केले के छिलके त्वचा में पानी की कमी को पूरा कर देते हैं।आप इसे अंडे की जर्दी में केले केछिलके(पीसकर) को मिलाकर चेहरे पर लगाएं, इससे झुर्रियां भी दूर होती हैं।

जलन और दर्द से राहत पाने के लिए आप दर्द वाली जगह पर छिलके को पीसकर लगाने से आराम मिलता है। कीड़े के काटने पर जलन वाली जगह पर केले के छिलके को घिसने से जलन दूर होती है।

केले के छिलके में मौजूद ल्यूटेन नामक एंटीऑक्सीडेंट हमारी आंखों की अल्ट्रा वायलेट किरणों से रक्षा करता है। थकान महसूस होेने पर पांच मिनट के लिए छिलकों को आंखों पर रखें, आराम मिलेगा।

उपचार और प्रयोग -http://www.upcharaurprayog.com

Monday, June 29, 2015

कचनार का फूल एक उपयोगी ओषिधि है....!

कचनार(MOUNTAIN EBONY)  से आपका एक परिचय :-
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* अगर पूरा देश जान जाए की ये किस रोग की दवा है तो बस ये समझ लीजिये की बेचारा दुर्लभ फूल की श्रेणी में आ जाएगा . हो सकता है की तब सरकार को इसे प्रतिबंधित फूल घोषित करना पड़े.

* रोगी के लिए कचनार का सेवन अमृत के समान गुणकारी सिद्ध होता है।

* कचनार का फूल कितना खूबसूरत होता है ,देखते ही बस जी मचल जाता है .अरे ये है भी बहुत उपयोगी .


* कचनार का पेड़ ८ फीट तक उंचा हो जाता है.कही कहीं १५ से २० फीट की भी ऊँचाई देखी गयी है .कचनार का पेड़ सभी देशों में पाया जाता है। बागों की सुन्दरता बढ़ाने के लिए यह पेड़ विशेष रूप से लगाया जाता है। कचनार का पेड़ 15 से 20 फुट ऊंचा होता है। यह पेड़ झुका हुआ और कमजोर शाखाओं वाला होता है। इसकी छाल लगभग 1 इंच मोटी, भूरे रंग की होती है जो लम्बाई में जगह-जगह फटी होती है। इसके पत्ते 3 से 6 इंच लंबे व 2 से 5 इंच चौडे़ होते हैं। इसके पत्ते शुरू में जुड़े व किनारों पर खुले होते हैं जो हृदय के आकार का होता है और पत्ते में 9 से 11 शिराएं होती हैं। इस पेड़ की फूल की कलियां हरी होती है और फूल बनने पर सफेद, लाल या पीले रंग के हो जाती हैं। कचनार का पेड़ रंगों के आधार पर तीन प्रकार के होते हैं। पतझड़ के समय अर्थात फरवरी-मार्च में पेड़ पर फूल लगते हैं और मई में फल लगते हैं। इसके फली 6 से 12 इंच लंबी, 1 इंच चौड़ी, चपटी व चिकनी होती है, जिसमें 10-15 बीज होते हैं। फल स्वाद में कड़वे होते हैं।

* कचनार के रासायनिक तत्त्वों का विश्लेषण करने पर पता चला है कि इसकी छाल में टैनिन (कषाय द्रव्य), शर्करा और एक भूरे रंग का गोंद होता है। इसके बीजों से 16.5 प्रतिशत की मात्रा में पीले रंग का तेल निकलता है। कचनार का बीज पौष्टित और उत्तेजक (कामोद्दीक) होता है।

विभिन्न भाषाओं में नाम:-
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संस्कृत- काश्चनार।
हिन्दी- कचनार।
मराठी- कोरल, कांचन।
गुजराती- चम्पाकांटी।
बंगला- कांचन।
तेलुगू- देवकांचनमु।
तमिल- मन्दारे।
कन्नड़- केंयुमन्दार।
मलयालम- चुवन्नमन्दारम्‌।
पंजाबी- कुलाड़।
कोल- जुरजु, बुज, बुरंग।
सन्थाली- झिंजिर।
इंग्लिश- माउंटेन एबोनी।
लैटिन- बोहिनिआ वेरिएगेटा।


* ये कचनार सफेद रंग की होती है। तथा इसका स्वाद कषैला होता है। कचनार एक पेड़ है जो बागों और फूल की क्यारियों में उगाई जाती हैं। कचनार के पत्ते, छिवलके पत्ते या लसोहड़ा के पत्ते के समान होते हैं परन्तु इसके पत्ते 1 या 2 जोड़ों में होते हैं। इसके फूल सफेद व लाल रंग के होते हैं और फली 6 से 12 इंच लंबी होती है।






मात्रा :-
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* इसके छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जाता है, इसके फूलों का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में प्रयोग किया जाता है और छाल का काढ़ा 40 से 80 मिलीलीटर की मात्रा में प्रयोग किया जाता है।

* कचनार की छाल का महीन पिसा-छना चूर्ण 3 से 6 ग्राम (आधा से एक चम्मच) ठंडे पानी के साथ सुबह-शाम लें। इसका काढ़ा बनाकर भी सुबह-शाम 4-4 चम्मच मात्रा में (ठंडा करके) एक चम्मच शहद मिलाकर ले सकते हैं।

* फरवरी-मार्च में पतझड़ के समय इस वृक्ष में फूल आते हैं और अप्रैल-मई में फल आते हैं। इसकी छाल पंसारी की दुकान पर मिलती है और मौसम के समय इसके फूल सब्जी बेचने वालों के यहां मिलते हें।

विभिन्न रोगों में उपयोगी :-
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बवासीर:-
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* कचनार की एक चम्मच छाल को एक कप मट्ठा (छांछ) के साथ दिन में तीन  बार सेवन करने से बवासीर में खून गिरना बंद होता है।

सूजन:-
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* कचनार की जड़ को पानी में घिसकर लेप बना लें और इसे गर्म कर लें। इसके गर्म-गर्म लेप को सूजन पर लगाने से आराम मिलता है।

मुंह में छाले होना:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा-सा कत्था मिलाकर छालों पर लगाने से आराम मिलता है।

प्रमेह:-
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* कचनार की हरी व सूखी कलियों का चूर्ण और मिश्री मिलाकर प्रयोग किया जाता है। इसके चूर्ण और मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर 1-1चम्मच दिन में तीन बार कुछ हफ्ते तक खाने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।

गण्डमाला:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें सोंठ का चूर्ण मिलाकर आधे कप की मात्रा में दिन में तीन  बार पीने से गण्डमाला रोग ठीक होता है।

भूख न लगना:-
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* कचनार की फूल की कलियां घी में भूनकर सुबह-शाम खाने से भूख बढ़ती है।

गैस की तकलीफ:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 मिलीलीटर काढ़ा में आधा चम्मच पिसी हुई अजवायन मिलाकर प्रयोग करने से लाभ मिलता है। सुबह-शाम भोजन करने बाद इसका सेवन करने से अफरा (पेट फूलना) व गैस की तकलीफ दूर होती है।

खांसी और दमा:-
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* शहद के साथ कचनार की छाल का काढ़ा 2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी और दमा में आराम मिलता है।

दांतों का दर्द:-
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* कचनार के पेड़ की छाल को आग में जलाकर उसकी राख को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इस मंजन से सुबह एवं रात को खाना खाने के बाद मंजन करने से दांतों का दर्द तथा मसूढ़ों से खून का निकलना बंद होता है।

दांतों के रोग:-
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* कचनार की छाल को पानी में उबाल लें और उस उबले पानी को छानकर एक शीशी में बंद करके रख लें। यह पानी 50-50 मिलीलीटर की मात्रा में गर्म करके रोजाना 3 बार कुल्ला करें। इससे दांतों का हिलना, दर्द, खून निकलना, मसूढों की सूजन और पायरिया खत्म हो जाता है।

अफारा (पेट में गैस बनना):-
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* कचनार की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से अफारा दूर होता है।

जीभ व त्वचा का सुन्न होना:-
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* कचनार की छाल का चूर्ण बनाकर 2 से 4 ग्राम की मात्रा में खाने से रोग में लाभ होता है। इसका प्रयोग रोजाना सुबह-शाम करने से त्वचा एवं रस ग्रंथियों की क्रिया ठीक हो जाती है। त्वचा की सुन्नता दूर होती है।

कब्ज:-
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* कचनार के फूलों को चीनी के साथ घोटकर शर्बत की तरह बनाकर सुबह-शाम पीने से कब्ज दूर होती है और मल साफ होता है।

* कचनार के फूलों का गुलकन्द रात में सोने से पहले 2 चम्मच की मात्रा में कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज दूर होती है।

कैंसर (कर्कट):-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पेट का कैंसर ठीक होता है।

दस्त का बार-बार आना:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में 2 बार पीने से दस्त रोग में ठीक होता है।

पेशाब के साथ खून आना:-
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* कचनार के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद होता है। इसके सेवन से रक्त प्रदर एवं रक्तस्राव आदि भी ठीक होता है।

बवासीर (अर्श):-
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* कचनार की छाल का चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में एक गिलास छाछ के साथ लें। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह-शाम करने से बवासीर एवं खूनी बवासीर में बेहद लाभ मिलता है।

* कचनार का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह पानी के साथ खाने से बवासीर ठीक होता है।

खूनी दस्त:-
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* दस्त के साथ खून आने पर कचनार के फूल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से खूनी दस्त (रक्तातिसर) में जल्दी लाभ मिलता है।

रक्तपित्त:-
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* कचनार के फूलों का चूर्ण बनाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम चटाने से रक्त पित्त का रोग ठीक होता है। कचनार का साग खाने से भी रक्त पित्त में आराम मिलता है।

* यदि मुंह से खून आता हो तो कचनार के पत्तों का रस 6 ग्राम की मात्रा में पीएं। इसके सेवन से मुंह से खून का आना बंद हो जाता है।

* कचनार के सूखे फूलों का चूर्ण बनाकर लें और यह चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इसके सेवन से रक्तपित्त में लाभ होता है। इसके फूलों की सब्जी बनाकर खाने से भी खून का विकार (खून की खराबी) दूर होता है।

कुबड़ापन:-
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* अगर कुबड़ापन का रोग बच्चों में हो तो उसके पीठ के नीचे कचनार का फूल बिछाकर सुलाने से कुबड़ापन दूर होता है।

* लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग कचनार और गुग्गुल को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से कुबड़ापन दूर होता है।

* कुबड़ापन के दूर करने के लिए कचनार का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए।

घाव:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से घाव ठीक होता है। इसके काढ़े से घाव को धोना भी चाहिए।

स्तनों की गांठ (रसूली):-
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* कचनार की छाल को पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग आधे ग्राम की मात्रा में सौंठ और चावल के पानी (धोवन) के साथ मिलाकर पीने और स्तनों पर लेप करने से गांठ ठीक होती है।

उपंदश (गर्मी का रोग या सिफिलिस):-
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* कचनार की छाल, इन्द्रायण की जड़, बबूल की फली, छोटी कटेरी के जड़ व पत्ते और पुराना गुड़ 125 ग्राम। इन सभी को 2.80 किलोग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में पकाएं और यह पकते-पकते जब थोड़ा सा बचे तो इसे उतारकर छान लें। अब इसे एक बोतल में बंद करके रख लें और सुबह-शाम सेवन करें।

सिर का फोड़ा:-
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* कचनार की छाल, वरना की जड़ और सौंठ को मिलाकर काढ़ा बना लें। यह काढ़ा लगभग 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीना चाहिए। इसके सेवन से फोड़ा पक जाता है और ठीक हो जाता है। इसके काढ़े को फोड़े पर लगाने से भी लाभ होता है।

चेचक (मसूरिका):-
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* कचनार की छाल के काढ़ा बनाकर उसमें सोने की राख डालकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से लाभ होता है।

गले की गांठ:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 ग्राम काढ़े में सोंठ मिलाकर सुबह-शाम पीने से गले की गांठ ठीक होती है।

कंठमाला:-
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* कचनार की छाल को पीसकर, चावलों के पानी में डालकर उसमे मिश्री मिलाकर पीने से कण्ठामाला (गले की गांठे) ठीक हो जाती हैं।

गलकोष प्रदाह (गलकोष की सूजन):-
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* खैर (कत्था) के फल, दाड़िम पुष्प और कचनार की छाल। इन तीनों को मिलाकर काढ़ा बना लें और इससे सुबह-शाम गरारा करने से गले की सूजन मिटती है। सिनुआर के सूखे पत्ते को धूम्रपान की तरह प्रयोग करने से भी रोग में आराम मिलता है।

गला बैठना:-
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* कचनार मुंह में रखकर चबाने या चूसने से गला साफ होता है। इसको चबाने से आवाज मधुर (मीठी) होती है और यह गाना गाने वाले व्यक्ति के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।

* थाईरायड और कुबड़ेपन का इलाज इस कचनार से किया जा सकता है.

* इसके तने की छाल भी दवा के काम आती है ,इसमें शर्करा और टैनिन्स की बहुत मात्रा पायी जाती है.साथ ही मिर्सीताल और ग्लाइकोसाइड भी मौजूद है.

* इसकी छाल के काढ़े में बावची के तेल की २०-२५ बूंदे मिलाकर रोज पीने से बहुत पुराना कोढ़ भी ख़त्म हो जाता है.

* अगर कुबडापन हो तो बच्चे को इसकी छाल के काढ़े में प्रवाल भस्म मिला कर पिलानी चाहिए.

* पीले कचनार के पेड़ की छाल का काढा आंतो के कीड़े को मार देता है.

* मुंह के छाले किसी दवा से ठीक न हो रहे हों तो कचनार की छाल के काढ़े से गरारे और कुल्ला कीजिए ,फिर देखिये चमत्कार.

* कचनार के फूल थाईरायड की सबसे अच्छी दवा हैं. इसके फूल में हेन्त्रीआक्टें, बीटा सितोस्टीराल, ओक्ताकोसनाल, स्तिग्मास्तीराल ,फ्लेवोनाइड आदि पाए जाते हैं.

* आपको हाइपो हो या हाइपर थाईराइड कचनार के तीन फूलों की सब्जी या पकौड़ी बनाकर सुबह शाम खाएं. 2 माह बाद टेस्ट कराएँ.

* गले में गांठे हो गयी हों तो कचनार की छाल को चावल के धोवन में पीसिये उसमे आधा चम्मच सौंफ का पावडर मिलाकर खा लीजिये ,एक महीने तक खाएं.

* खूनी बवासीर में कचनार की कलियों के पावडर को मक्खन और शक्कर मिलकर खाएं ,११ दिन लगातार.

* आँतों में कीड़े होंतो कचनार की छाल का काढा पियें.१०-११ दिनों तक.

* खूनी आंव हो रहे हों तो कचनार का एक एक फूल सुबह दोपहर शाम चबाएं,३ दिनों तक

* आपका पेट निकल रहा हो तो आधा चम्मच अजवाइन को कचनार की जड़ के काढ़े से निगल लीजिये.१०-११ दिनों तक.आपका पेट अन्दर हो जाएगा .

* लीवर में कोई तकलीफ हो तो कचनार की जड़ का काढ़ा पीयें ये लीवर की सुजन को ख़तम कर देता है .

* गले की कोई भी ग्रंथि बढ़ जाने पर कचनार के फूल या छाल का चूर्ण चावलों के धोवन में पीस कर उसमे सोंठ मिलकर लेप भी किया जा सकता है और पिया भी जा सकता है.

* कचनार की टहनियों की राख से मंजन करेंगे तो दांतों में दर्द कभी नहीं होगा ,अगर हो रहा होगा तो ख़त्म हो जायेगा.

* शरीर में कहीं शोथ हो, गांठ हो या लसिका ग्रंथि में कोई विकृति हो तो इसे दूर करने में जिस जड़ी-बूटी का नाम सर्वोपरि है वह है कचनार। इसके अद्भुत गुणों के कारण संस्कृत भाषा में इसे गुणवाचक नामों से सम्बोधित किया गया है यथा- गण्डारि यानी चमर के समान फूल वाली, कोविदार यानी विचित्र फूल और फटे पत्ते वाली आदि। आज किसी को शरीर में कहीं गांठ हो जाती है तो वह चिंतित व दुःखी हो जाता है, क्योंकि उसे कचनार के गुणधर्म और उपयोग की जानकारी नहीं है.

हमने इसके गुण बताये है अच्छा होगा कि आप इसके पेड़ की पहचान करके उपरोक्त किसी भी बिमारी में प्रयोग करे और लाभ  पाए -

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग -

Sunday, June 28, 2015

हम हाथो से खाना क्यों खाये ....!

* अधिकतर भारतीय अपने हाथों से खाना खाते हैं। लेकिन आजकल हमने पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हुए चम्मच और कांटे से खाना शुरू कर दिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपने हाथों से खाना खाने के स्वास्थ्य से संबंधित कई फायदे हैं।





यह आपके प्राणाधार की एनर्जी को संतुलित रखता है:-

*आयुर्वेद में कहा गया है की हम सब पांच तत्वों से बने हैं जिन्हें जीवन ऊर्जा भी कहते हैं, और ये पाँचों तत्व हमारे हाथ में मौजूद हैं ( आपका अंगूठा अग्नि का प्रतीक है, तर्जनी अंगुली हवा की प्रतीक है, मध्यमा अंगुली आकाश की प्रतीक है, अनामिका अंगुली पृथ्वी की प्रतीक है और सबसे छोटी अंगुली जल की प्रतीक है)। इनमे से किसी भी एक तत्व का असंतुलन बीमारी का कारण बन सकता है।

* जब हम हाथ से खाना खाते हैं तो हम अँगुलियों और अंगूठे को मिलाकर खाना खाते हैं और यह जो मुद्रा है यह मुद्रा विज्ञान है, यह मुद्रा का ज्ञान है और इसमें शरीर को निरोग रखने की क्षमता निहित है। इसलिए जब हम खाना खाते हैं तो इन सारे तत्वों को एक जुट करते हैं जिससे भोजन ज्यादा ऊर्जादायक बन जाता है और यह स्वास्थ्यप्रद बनकर हमारे प्राणाधार की एनर्जी को संतुलित रखता है।

* भोजन में हरी मिर्च खाने से होते हैं अचूक स्वास्थ लाभ इससे पाचन में सुधार होता है:

* टच हमारे शरीर का सबसे मजबूत अक्सर इस्तेमाल होने वाला अनुभव है। जब हम हाथों से खाना खाते हैं तो हमारा मस्तिष्क हमारे पेट को यह संकेत देता है कि हम खाना खाने वाले हैं। इससे हमारा पेट इस भोजन को पचाने के लिए तैयार हो जाता है जिससे पाचन क्रिया सुधरती है। इससे खाने पे दिमाग लगता है: हाथ से खाना खाने में आपको खाने पर ध्यान देना पड़ता है। इसमें आपको खाने को देखना पड़ता है और जो आपके मुह में जा रहा है उस पर ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। इसे माइंडफुल ईटिंग भी कहते है और यह मशीन कि भांति चम्मच और कांटे से खाना खाने से ज्यादा स्वास्थयप्रद है।

* माइंडफुल ईटिंग के कई फायदे हैं इनमे से सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह है कि इससे खाने के पोषक तत्व बढ़ जाते हैं जिससे पाचन क्रिया सुधरती है और यह आपको स्वस्थ रखता है।

* यह आपके मुह को जलने से बचाता है-आपके हाथ एक अच्छे तापमान संवेदक का काम भी करते हैं। जब आप भोजन को छूते हैं तो आपको अंदाजा लग जाता है कि यह कितना गर्म है और यदि यह ज्यादा गर्म होता है तो आप इसे मुह में नहीं लेते हैं। इस प्रकार यह आपकी जीभ को जलने से बचाता है।

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

एक छोटे से नीबू में बडे औषधीय गुण होते है ....!

* कोई भी मौसम हो, नींबू ऎसा फल है जो हर घर में हर समय मिलता है। यह केवल खाने का स्वाद ही नहीं बढाता बल्कि इसमें कई औषधीय व सौंदर्यवर्धक गुण भी मौजूद हैं। इसमें विटामिन-सी पर्याप्त मात्रा में होता है।





सौंदर्य निखार के लिए :-
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* नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर रात में सिर में हल्के हाथ से, एक हफ्ते तक रोजाना मालिश कर, सुबह सिर धोने से बालों की खुश्की दूर हो जाती है।

* यदि मालिश न भी करें तो सिर धोने के पानी में दो नींबू निचोडकर एक हफ्ता लगातार प्रयोग करने से बाल मुलायम होते हैं, उनका झडना कम होता है और खुश्की या रूसी भी कम होती है।

* नारियल के तेल में नींबू का रस और कपूर लगाकर सिर की मालिश करने से बालों के रोग खत्म हो जाते हैं।

* सुबह स्नान करने से पहले नींबू के छिलकों को चेहरे पर धीरे-धीरे मलकर 2-3 मिनट बाद चेहरे को पानी से धो लें। इसे 10-15 दिन लगातार करने से चेहरे का रंग साफ हो जाता है। यह बाजार में मिलने वाले किसी भी ब्लीचिंग क्रीम या ब्यूटी पार्लर में कराए जाने वाले ब्लीच का काम करेगा।

* नींबू का रस और गुलाबजल समान मात्रा में मिलाकर चेहरे पर लगाएं, कुछ दिनों के लगातार प्रयोग से चेहरा बेदाग,त्वचा कोमल व स्वच्छ हो जाती है।

* नींबू और तुलसी की पत्तियों का रस समान मात्रा में मिलाकर किसी कांच के बर्तन में रख लें और दिन में कम से कम दो बार हल्के हाथ से चेहरे पर लगाएं। कुछ दिन के लगातार इस्तेमाल से चेहरे पर झाइयां व किसी भी प्रकार के निशान मिट जाते हैं।

* चेहरा जल जाने पर यदि चेहरे पर काले दाग पड गए हों तो एक टमाटर के गूदे में नींबू के रस की कुछ बूंदें मिलाकर सुबह-शाम लगाएं और थोडी देर बाद धो लें।

औषधि के रूप में:-
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* बदहजमी होने पर नींबू काटकर उसकी फांक या छोटे टुकडे में काला नमक लगाकर चूसने से आराम आता है।

* जिनको भूख कम लगती है और पेट दर्द की शिकायत रहती है उनको नींबू की फांक में काला या सेंधा नमक लगाकर उसको तवे पर गर्म करके चूसने से न केवल दर्द में आराम मिलता है बल्कि भूख भी खुलकर लगती है।

* यदि चक्कर आ रहे हों या उल्टी आ रही हों तो नींबू के टुकडे पर काला नमक, काली मिर्च लगाकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं और उल्टी भी बंद हो जाती है।

* एक गिलास पानी में एक नींबू का रस निचोडकर एक चम्मच चीनी पीसकर मिलाकर पीने से हैजे जैसा रोग भी ठीक हो जाता है।

* शहद, नींबू और पानी के साथ गुड मॉर्निंग करना सेहत के लिहाज से अच्छा माना गया है। कोई अपनी त्वचा में ग्लो पाने के लिए नींबू-शहद पानी के साथ्‍ा पीता है, तो कोई वजन कम करने के लिए। और भी कई वजहें हैं नींबू-शहद का पानी पीने की। आधा नींबू का रस, एक छोटा चम्मच शहद और हल्का गर्म पानी मिक्स करें और इसे तुरंत पी जाएं। इसको पीने के एक घंटे बाद ही चाय या कॉफी लें।

* नींबू, शहद और गर्म पानी, ये तीनों मिलकर आपकी पाचनशक्ति को बढ़ाते हैं। नींबू में मौजूद कुछ तत्व से लिवर में जूस बनाने में आसानी होती है, जिससे भोजन का पाचन भी ठीक होता है।

* यदि आपको एसिडिटी की समस्या है, तो नींबू और शहद पीजिए। इसमें शहद एंटी-बैक्टीरियल होता है, जो बैक्‍टीरिया और जर्म्‍स को साफ करता है।साथ ही गरम पानी भी गले से कफ को एकदम साफ कर देता है। इसके अलावा यह शरीर से टॉक्सिन को भी निकालने का काम करता है।

* इसके सेवन से पथरी होने की आशंका कम हो जाती है। दरअसल, किडनी स्‍टोन कुछ नहीं, बल्कि जमा हुआ कैल्‍शियम होता है, जिसे यह नींबू और शहद पानी जमने से रोकता है।

* सुबह-सुबह गुनगुने पानी में शहद और नींबू मिक्स कर पीने से आप पूरे दिन फिट भी रहती हैं। क्‍योंकि यह मेटाबॉलिज्म सही करता है, जिससे थकान दूर होती है और आप पूरे दिन भर ऊर्जावान महसूस करती हैं।

* शहद जहां एनर्जी बूस्टर का काम करता है, वहीं पानी मस्तिष्क को फ्रेश ब्लड उपलब्‍ध करवाने में मदद करता है। नींबू की खुशबू आपके मूड को रिलैक्स करने का भी काम करती है।

* नींबू में पेक्टिन नाम का फाइबर होता है, जो पेट भरे होने का एहसास कराता है। गर्म पानी, शहद और नींबू मिलकर क्षार का निर्माण करते हैं, जिससे वजन कम करने की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है।

*  खट्टे फलों में विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में होता है, जो सर्दी-जुकाम से लड़ने और इम्यून सिस्टम को सही रखने का काम करता है। नींबू में पोटेशियम भी होता है, जोकि दिमाग को भी संतुलित करने का काम करता है और ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित करता है।

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

रिफाइंड तेल से ह्नदय रोग, मधुमेह व कैंसर हो सकता है...!


* क्या आप जानते है कि रिफाइंनिंग हेतु तिलहन को 200-500 डिग्री सेल्सेयस के बीच कई बार गरम किया जाता है। और घातक पैट्रोलियम उत्पाद हेग्जेन का प्रयोग बीजों से 100% तेल निकालने के लिए किया जाता है।

* कई घातक रसायन कास्टिक सोड़ा, फोसफेरिक एसीड, ब्लीचिंग क्लेंज आदि मिलाए जाते है ताकि निर्माता हानिकारक व खराब बीजों से भी तेल निकाले तो उपभोक्ता को उसको पता न चले। इसलिए इन तेलों को गन्ध-रहित, स्वाद-रहित व पारदर्शी बनाया जाता है।

* रिफाइंड, ब्लीच्ड एवं डिओडोराइन्ड की प्रक्रिया में तेल के अच्छे तत्व समाप्त हो जाते है व घातक जहर घुल जाते है। तभी तो ऐसे तेल को तकनीकी भाषा में चीप कर्मशीयल आर बी डी ऑॅयल कहते हैं।

* शोध के अनुसार तेल को 200 डिग्री से 225 डिग्री पर आधे घंटे तक गर्म करने से उसमें एचएनई नामक बहुत ही टोक्सिक पदार्थ बनता है। यह लिनोलिक एसिड के ऑक्सीकरण से बनता है और उत्तकों में प्रोटीन और अन्य आवश्यक तत्वों को क्षति पहुँचाता है। यह ऐथेरास्क्लिरोसिस, स्ट्रोक, पार्किसन, एल्जाइमर रोग, यकृत रोग आदि का जनक माना जाता है।

* संतृप्त वसा को गर्म करने पर ऑक्सीकृत नहीं होते हैं और इसलिए गर्म करने पर उनमें एचएनई भी नहीं बनते हैं। इसलिए घी, मक्खन और नारियल का तेल कई दशकों से मानव स्वास्थ्य को रोगग्रस्त करने की बदनामी झेलने के बाद आज कल पुनः आहार शास्त्रियों के चेहते बने हुए हैं।

* अब तो मुख्य धारा के बड़े-बड़े चिकित्सक भी स्वीकार कर चुकें हैं कि शरीर में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 का अनुपात सामान्य (1:1 या 1:2) रखना आवश्यक है।

* गृहणियों को खाना बनाने के लिए रिफाइंड तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कच्ची घाणी से निकला तेल ही अच्छा माना जाता है। हमें कच्ची घाणी से निकला नारियल तेल, सरसों या तिल का तेल काम में लेना चाहिए। ये तेल हानिकारक नहीं होते है।

* जैतून का तेल भी बढि़या होता है जो हमारे यहाँ बहुत मंहगा मिलता है। मूंगफली का तेल अच्छा माना जाता है। मित्रों, इस सम्बन्ध में आपको विशेष जानकारी हो तो आप इसमें जोड़ कर स्वास्थ्य संरक्षण के यज्ञ में आहुति दें।

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

महिलाओं के लिए अजीब सी बात है ये....!

यह अजीब सी बात है कि दिन भर खटने के बाद जब महिलाए रात  में बिस्तर पर पहुंचती हैं तो आधे घंटे तक दर्द से कराहती रहती हैं-




इसके कई कारण हैं:-


* युवावस्था में दो फुल्के खाकर काम चला लेना

* जंक फ़ूड ज्यादा खाना

* पानी कम पीना

* अपनी छोटी छोटी बीमारियों को नज़र अंदाज करना.

* अनुचित मात्रा में कास्मेटिक्स प्रयोग करना.

चलिए दर्द खत्म करने का एक सामान्य तरीका बता रहा हूँ:-


एक किलो मेथी दाने घी में भून लीजिए फिर पीस लीजिए ,अब इसमें 250 ग्राम बबूल का गोंद घी में भून कर और पीस कर मिला दीजिए .अब सुबह शाम एक-एक चम्मच यानी कि पांच-पांच  ग्राम पानी से निगल लीजिए जब तक यह पूरी दवा खत्म होगी आप अपने आपको अधिक सुन्दर ,ताकतवर महसूस करेंगी.और दर्द का कहीं नामोनिशान नहीं रहेगा.

उपचार और प्रयोग-

हार्ट रोग से मुक्ति आपको सूर्य दर्शन से -

दिल की सेहत के लिए आयुर्वेद में अनेक उपाय बताए गए हैं। इनमें कुछ उपाय तो ऐसे हैं जिन्हें बड़ी आसानी अपनाकर आप अपने दिल को मजबूत बना सकते हैं। आइए जानें उन खास बातों के बारे में जिन्हें अपनाकर आप भी अपने दिल को तंदुरुस्त रख सकते हैं और खुशहाल जीवन जी सकते हैं:-





सूर्योदय से पहले उठें ;-
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आयुर्वेद में कहा गया है कि सूर्योदय से पहले उठने वाले को हृदय रोग नहीं होता। अगर आप सुबह में 10-15 मिनट सन बाथ करते हैं तो शरीर के अंदर मौजूद कोलेस्ट्रॉल विटामिन डी में बदल जाता है। सुबह में जब तक लालिमा होती है तब तक सूर्य की किरणें तीखी नहीं होती और ये हृदय के लिए बेहद लाभकारी होती हैं। इन किरणों से हमारी हड्डियां भी मजबूत होती हैं।

हल्दी का सेवन :-
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खासकर दिल की सेहत के लिए नियमित रूप से हल्दी का सेवन बहुत जरूरी है। आयुर्वेद में कहा गया है कि लगभग 500 मिलीग्राम हल्दी रोज खाना चाहिए। हल्दी हमारे शरीर में खून का थक्का नहीं बनने देती क्योंकि यह खून को पतला करने का काम करती है। हल्दी में हल और दी है यानी समाधान देने वाली। जो हर समस्या का समाधान दे उसे हल्दी कहा गया है। इससे हमें अनेक लाभ हैं। एलोपैथिक में हृदय रोगी को डिस्प्रिन देते हैं क्योंकि यह खून को पतला करती है।


गाय का दूध है अमृत:-
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गाय का दूध पीने वाले को हृदय रोग नहीं होता। गाय के दूध में कैलशियम, मैगनिशियम और गोल्ड जैसे बहुत सारे सूक्ष्म पोषक पदार्थ होते हैं। इसी कारण गाय का दूध हल्का पीला होता है। गोल्ड हृदय को ताकत देने वाला होता है। आयुर्वेद में गाय के दूध को हल्का, सुपाच्य, हृदय को बल देने वाला और बुद्धिवर्धक माना गया है। गाय के दूध और मां के दूध में काफी समानताएं हैं।

हरड़ का प्रयोग: -
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हरड़ को आयुर्वेद में पत्थ्य कहा जाता है। इसे मां के समान बताया गया है जो हमारे शरीर की तमाम गड़बड़ियों को ठीक करती है। मां की तरह ही यह शरीर की सारी गंदगी साफ कर देती है। हार्ट अटैक की जांच के साधन नहीं हैं तो यह पहचानना मुश्किल होता है कि हार्ट अटैक है या गैसाइटिस क्योंकि दोनों में समान परेशानी दिखती है। लेकिन हरड़ के नियमित सेवन से शरीर के अंदर की गंदगी साफ होती रहती है और हम बीमारियों से दूर रहते हैं।

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Saturday, June 27, 2015

माइक्रोवेव ओवन भोजन को जहरीला बना देता है...!


* मानव शरीर कि प्रकृति विद्युत रासायनिक है । कोई भी शक्ति जो मनुष्य के विद्युत रासायनिक व्यवस्था को बाधित करता है वो शरीर के शरीरक्रिया व्यवस्था को भी प्रभावित करेगा ।

* सूक्ष्मतरंग चूल्हा, या माइक्रोवेव ओवन (60 to 90 GHz) एक रसोईघर उपकरण है जो कि खाना पकाने और खाने को गर्म करने के काम आता है। इस कार्य के लिये यह चूल्हा द्विविद्युतीय (dielectric) उष्मा का प्रयोग करता है। यह खाने के भीतर उपस्थित पानी और अन्य ध्रुवीय अणुओं को सूक्ष्मतरंग विकिरण का उपयोग करके गर्म करता है। मैग्नेट्रॉन इसका मुख्य अवयव है जो सूक्ष्मतरंगे पैदा करता है।

माइक्रोवेव ओवन का इतिहास :_
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* माइक्रोवेव ओवन मूलतः नाजियों द्वारा अपने mobile support operations में उपयोग के लिए विकसित किया गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद माइक्रोवेव ओवन पर जर्मनों द्वारा किया गया चिकित्सा अनुसंधान मित्र शक्ति के हाथ  लगा। सोवियत संघ ने भी कुछ माइक्रोवेव ओवन निकाल लिया और उनके जैविक प्रभाव पर सबसे अधिक गहन शोध किया। और सोवियत संघ ने माइक्रोवेव ओवन की स्वास्थ्य के खतरों पर एक अंतरराष्ट्रीय (जैविक और पर्यावरण) चेतावनी जारी किया ।

* अन्य पूर्वी यूरोपीय वैज्ञानिकों ने भी माइक्रोवेव विकिरण के हानिकारक प्रभावों की सूचना दी और इसके सख्त पर्यावरण सीमा निर्धारित किया। पर किसी अज्ञात कारणों से अमेरिका ने इसके हानिकारक प्रभावों के यूरोपीय रिपोर्टों को स्वीकार नहीं किया।

माइक्रोवेव ओवन के सूक्ष्मतरंग विकिरण भोजन को जेहरिला बना देता है उसमे कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों का गठन होता है :-

* मांस माइक्रोवेव ओवन में पकाने से उसमे d-Nitrosodiethanolamines नामक एक कैंसर पैदा करने वाली तत्व का गठन होता है ।

* दूध और अनाज माइक्रोवेव ओवन में गरम करने या पकाने से उनके कुछ अमीनो एसिड परिवर्तित होक कैंसर पैदा करने वाली तत्व बन जाता है ।

* बेबी फ़ूड को माइक्रोवेव ओवन में गरम करने से उसमे एक ऐसा तत्व उतपन्न होता है जो बच्चे की तंत्रिका तंत्र और गुर्दे के लिए ज़हर होता है ।

* भोजन की पोषक तत्वों के विनाश होता है :

* रूसि शोधकर्ताओं ने अपने माइक्रोवेव ओवन परीक्षण में सभी खाद्य पदार्थों में 60 से 90% Food Value की कमी पायी ।

* माइक्रोवेव ओवन में पके सभी खाद्य पदार्थों में विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन सी, विटामिन ई, आवश्यक खनिज और lipotropic कारकों की कमी पायी गयी ।

* पैकेजिंग से खाद्य पदार्थों में विषैले रसायनों की रिसाव होता है :

* माइक्रोवेव खाद्य पदार्थों जैसे पिज्जा, फ्रेंच फ्राइज़, पॉपकॉर्न के ऊष्मा-शोशक पैकेजिंग से कई जहरीले रसायनों के रिसाव उसमे होता है ।

माइक्रोवेव ओवेन में पका खाना खानेवालों के शारीर में क्या होता है .?

* माइक्रोवेव में पके खाद्य पदार्थों के उपभोगताओं में पैथोजेनिक परिवर्तन पाया गया है, जैसे :-

* लसीका संबंधी विकार पाया गया जो कुछ प्रकार के कैंसर रोकने कि क्षमता को कम किया ।

* रक्त में कैंसर सेल के गठन दर की वृद्धि हुई ।

* पेट और आंतों के कैंसर होने की दर में बृद्धि आई ।

* पाचन विकार की उच्च दर और उन्मूलन प्रणालियों के टूटने का क्रम देखा गया ।

माइक्रोवेव ओवेन में गरम किया हुआ रक्त से मौत :-

* 1991 में अमेरिका में एक मुकदमा नोर्मा लेविट नामक व्यक्ति के मौत से संबंधित था जो एक साधारण से कूल्हे की सर्जरी के बाद खून चढ़ाने से निधन हो गया । नर्स ने गलती से खून चढ़ाने से पहले उसको माइक्रोवेव ओवन में गरम किया था । महिला की मृत्यु हो गई थी जब उसने रक्त प्राप्त किया । रक्त चढ़ाने से पहले नियमित तौर पर गर्म किया जाता है लेकिन नहीं माइक्रोवेव ओवन में नही । इस घटना से पता चलता है कि माइक्रोवेव ओवन में गरम करने के दौरान रक्त एक घातक पदार्थ में बदल गया था ।

माइक्रोवेव बीमारी :-
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* 1950 में रडार के विकास के दौरान रुसीओं ने हजारो श्रमिको के ऊपर माइक्रोवेव के संपर्क में आने पर शोध किया था ।

उस शोध रिपोर्ट में बताया है .. इसका पहला लक्षण कम रक्तचाप और धीमी नाड़ी हैं , बाद में संवेदनिक तंत्रिका प्रणाली में उत्तेजना और उच्च रक्तचाप है । इस चरण में अक्सर सिरदर्द, चक्कर आना, आंख में दर्द, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, चिंता, पेट दर्द, तंत्रिका तनाव, ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता, बालों के झड़न, पथरी, मोतियाबिंद, प्रजनन समस्याओं, और कैंसर की वृद्धि की घटना भी शामिल है । बाद में अधिवृक्क थकावट और हृदय रोग जैसे कोरोनरी धमनियों कि रुकावट और दिल का दौरा पड़ना भी शामिल है ।

उपचार स्वास्थ्य और  प्रयोग-

टिनिटस क्या है जाने लक्षण एवं उपचार....!

* ये एक अजीब सी बीमारी है जिसके अंतर्गत कानों के अंदर बिना किसी वजह के एक आवाज़ गूंजती रहती है। यह कोई आम समस्या नहीं है। यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि किसी बीमारी का लक्षण है। यह रक्तवाहिनियों की समस्या या उम्र के साथ सुनने की शक्ति क्षीण पड़ने से जोड़ी जा सकती है। लोग टिनिटस से काफी परेशान रहते हैं क्योंकि इससे सुनने की क्षमता पर असर पड़ता है जो कि हमारे जीवन का काफी महत्वपूर्ण भाग है। इसके बावजूद टिनिटस कोई बड़ी समस्या नहीं है। उम्र के साथ लोगों के सुनने की क्षमता कम होती जाती है। कुछ उपचारों की मदद से आप इसे ठीक कर सकते हैं।

टिनिटस के लक्षण:-
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* आसपास किसी भी तरह की आवाज़ ना होते हुए भी आपके कानों में किसी आवाज़ का गूंजना ही टिनिटस कहलाता है।

इसके कुछ लक्षण हैं:-
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सिसकारी

दहाड़

कानबजना

आवाज़गूंजना

* स्थिति के गंभीर होने के मुताबिक़ कान में आवाज़ का गूंजना कम या ज़्यादा हो सकता है। कुछ लोगों को ये आवाज़ें एक कान में ही सुनाई देती है तो कुछ को दोनों कानों में। कुछ लोगों को ये आवाज़ें इतनी तेज़ सुनाई देती है कि वो असली आवाज़ ही नहीं सुन पाते। कुछ लोगों के लिए यह समस्या अस्थायी रूप से परेशान करने वाली होती है और अन्य लोगों को काफी दिनों तक ये समस्या सताती है।

टिनिटस के प्रकार:-
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व्यक्तिपरक टिनिटस:-
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* यह एक ख़ास प्रकार का टिनिटस होता है जिसमें आप सुन सकते हैं। ज़्यादातर लोग इस प्रकार के टिनिटस से जूझते हैं। इस प्रकार के टिनिटस का मुख्य कारण कान के अंदरूनी, बाहरी तथा मध्य भाग में समस्या होना है। अगर आप सुनने की नसों में आई समस्याओं से परेशान हैं तो आपको व्यक्तिपरक टिनिटस की समस्या है।

वस्तुगत टिनिटस:-
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* यह टिनिटस काफी कम लोगों में पाया जाता है तथा सिर्फ डॉक्टर ही जांच के दौरान इसे सुन सकते हैं। इस प्रकार के टिनिटस का मुख्य कारण खून की धमनियों में किसी प्रकार की कोई समस्या है। यह अंदरूनी हड्डियों की कोई समस्या मांसपेशियों में मरोड़ की परेशानी हो सकती है।

टिनिटस के कारण:-
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* तेज़ आवाज़ों के संपर्क में रहना

* आमतौर पर फैक्ट्री में भारी उपकरणों की आवाज़ से काफी शोर पैदा होता है। इसके अलावा गाने बजाने के तमाम उपकरण काफी शोर पैदा करते हैं। अगर आप इनमें से किसी चीज़ के संपर्क में हैं तो आपको टिनिटस होने की संभावना काफी ज़्यादा है।

कान की हड्डियों में परिवर्तन:-
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* अगर आपके कान की हड्डी कान के बीच में कड़ी हो रही है तो इससे आपके सुनने की क्षमता पर असर पड़ता है। यह हड्डियों के अतिरिक्त रूप से बढ़ने की वजह से भी होती है जिसका कारण आनुवांशिक हो सकता है।

उम्र आधारित समस्या:-
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* उम्र बढ़ने के साथ शरीर में कई समस्याएं आती हैं। सुनने की क्षमता क्षीण होने का उम्र के साथ भी सम्बन्ध हो सकता है। इससे टिनिटस की समस्या भी हो सकती है। ६० साल की उम्र से यह समस्या शुरू हो सकती है।

इसका एक चिकित्सकीय नाम भी है – प्रेस्बाईक्यूसिस।

कान में वैक्स जमा होना:-
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* कानों का मोम कानों में गन्दगी एवं बैक्टीरिया जाने से रोकता है। पर कभी कभी अतिरिक्त मात्रा में मोम हमारे कानों में एकत्रित हो जाता है। ऐसे में भी टिनिटस की समस्या हो सकती है।

टिनिटस का उपचार:-
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* बार-बार दवाई बदलना कई बार दवाइयों के साइड इफ़ेक्ट से भी टिनिटस होता है, अतः अपनी दवाइयों को कम बदलें।

* कान का मोम निकालें अगर आपके कान में काफी मोम जम गया है तो इसे निकालना आवश्यक है। परन्तु इसके लिए हेयर पिन का प्रयोग न करें क्योंकि इससे कानों को हानि पहुँच सकती है।

* कान ढकने का यंत्र आप अब कानों को स्वस्थ रखने के लिए कान ढकने के मास्क का प्रयोग कर सकते हैं। इसको पहनने के बाद आपको बाहरी शोर का सामना नहीं करना पडेगा।

* वाइट नॉइज़ मशीन ये ऐसे यंत्र होते हैं जो पर्यावरण सम्बन्धी आवाज़ निकालते हैं जैसे समुद्र की लहरें और बारिश। यह टिनिटस का काफी महत्वपूर्ण उपचार है।

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

माला का संस्कार कैसे करे - Mala Ka Sanskaar Kese Kare

कोई भी जप , साधना या अनुष्ठान में माला की जरुरत होती है लोग बाजार से माला खरीदकर उसी से जप आरम्भ कर देते है -ऐसी माला से जप करना निरर्थक व निषिद्ध है क्योंकि उससे कोई लाभ या सिद्धि सम्भव नहीं है - और फिर दोष ये लगा देते है कि हमने तो इतना जप कर लिया लेकिन कोई फायदा नहीं है ये सब बकवास है तो लोगो को बताना चाहता हूँ अधूरा ज्ञान ही पुस्तको में उल्लेखित है मन्त्र लिख दिया है माला किसकी हो लिख दिया है लेकिन दो चीज अधूरी है माला का संस्कार कैसे करेगे और मन्त्र का उत्कीलन कैसे होगा क्युकि कलयुग के प्रभाव को देखते हुए भगवान् शंकर ने सभी मंत्रो को कीलित कर दिया था -





सर्वप्रथम माला खरीद कर विधि पूर्वक उसका  संस्कार करना चाहिए अन्यथा जप निष्फल है -अगर आपको इसका सही ज्ञान नहीं है तो किसी योग्य विद्धवान से उसका एक बार संस्कार अवश्य करा ले जिस तरह किसी भी मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वह मूर्ति चैतन्य हो जाती है उसी प्रकार माला के संस्कार से माला चैतन्य अवस्था में हो जाती है और उसके द्वारा किया गया जप फलदाई हो जाता है - 


माला संस्कार की विधि जो प्राप्त होती है उसमें कुछ न कुछ कमी अवश्य रहती है जैसे संस्कार दिया है तो प्राणप्रतिष्ठा नहीं होती  आज आप सब के लाभार्थ मैं माला संस्कार की संपूर्ण विधि पर प्रकाश डाल रहा हु आशा करता हु की साधक भाई - बहनो के कुछ काम आ जाये -




संस्कार विधि (Rite method)



साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए अब सर्व प्रथम आचमन - पवित्रीकरण करने के बाद गणेश -गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले-

तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा ले - एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा - इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे -

अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित ( धोये ) करे -

आप सोचेगे कि पंचगव्य क्या है ?

तो जान ले गाय का दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर यह पांच चीज गौ का ही हो उसको पंचगव्य कहते है पंचगव्य से माला को स्नान करना है - स्नान करते हुए अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन का उच्चारण करे -

फिर समस्य़ा हो गयी यहाँ कि यह अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन क्या है ? तो अब नोट कर ले - 

ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !!

यह उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धोले ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक उच्चारण होगा -

माला को पंचगव्य से स्नान कराने के बाद निम्न मंत्र बोलते हुए माला को जल से धो ले -

        ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः
        भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः !!

अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन- कुमकुम आदि का तिलक करे -

ॐ वामदेवाय नमः 
     जयेष्ठाय नमः 
    श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः 
    कल विकरणाय नमो  बलविकरणाय नमः 
    बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः 
    सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!

अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले -

  ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:

अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न ईशान मंत्र का 108 बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे -

  ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम !!

अब साधक माला की प्राण -प्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे -

ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः !!

अब माला को बाय हाथ में लेकर दाय हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है -

ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा !
ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ !!

अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे - इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है -

नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करे -

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि 
सर्व मंत्रार्थ साधिनी साधय-साधय 
सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा !
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !


ये हमेशा ही ध्यान रक्खे


जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए -

गोमुख रूपी थैली ( गोमुखी ) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है -

आशा करता हु अब आप जब भी माला बाजार से ख़रीदेगे तो उपरोक्त विधान अनुसार संस्कार अवश्य करेगे -

संस्कारित माला  से ही किसी भी मन्त्र जप करने से पूर्ण-फल की प्राप्ति होती है-

जप के नियम 



मंत्र तो हम सभी जपते है। लेकिन अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो वे मंत्र हमारे लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकते हैं।

जप तीन प्रकार का होता है- वाचिक, उपांशु और मानसिक

वाचिक जप धीरे-धीरे बोलकर होता है। उपांशु-जप इस प्रकार किया जाता है, जिसे दूसरा न सुन सके। मानसिक जप में जीभ और ओष्ठ नहीं हिलते। तीनों जपों में पहले की अपेक्षा दूसरा और दूसरे की अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रेष्ठ है-

प्रातःकाल दोनों हाथों को उत्तान कर, सायंकाल नीचे की ओर करके तथा मध्यान्ह में सीधा करके जप करना चाहिए। प्रातःकाल हाथ को नाभि के पास, मध्यान्ह में हृदय के समीप और सायंकाल मुँह के समानांतर में रखे। घर में जप करने से एक गुना, गौशाला में सौ गुना, पुण्यमय वन या बगीचे तथा तीर्थ में हजार गुना, पर्वत पर दस हजार गुना, नदी-तट पर लाख गुना, देवालय में करोड़ गुना तथा शिवलिंग के निकट अनंत गुना फल प्राप्त होता है। जप की गणना के लिए लाख, कुश, सिंदूर और सूखे गोबर को मिलाकर गोलियाँ बना लें।

जप करते समय दाहिने हाथ को जप माली में डाल लें अथवा कपड़े से ढँक लेना आवश्यक होता है। जप के लिए माला को अनामिका अँगुली पर रखकर अँगूठे से स्पर्श करते हुए मध्यमा अँगुली से फेरना चाहिए। सुमेरु का उल्लंघन न करें। तर्जनी न लगाएँ। सुमेरु के पास से माला को घुमाकर दूसरी बार जपें-

ये भी आप ध्यान रक्खे 



जप करते समय हिलना, डोलना, बोलना, क्रोध न करें, मन में कोई गलत विचार या भावना न बनाएँ अन्यथा जप करने का कोई भी फल प्राप्त न होगा-

शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही, एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है-

यहां मंत्र जप से संबंधित 12 जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं-

जरुरी 12 नियम 


1-मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।

2-मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।

3-अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।

4-मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।

5-एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें।

6-मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।

7-किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।

8-मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें।

9-मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।

10-मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय।

11-मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए।

12-माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।

विशेष



कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीवक के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें-

इस प्रकार की संस्कारित माला और नियम आपको अवस्य ही फल प्रदान करते है -

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Friday, June 26, 2015

जाने आप चीकू खाने के फायदे...!

* चीकू हमारे ह्रदय और रक्त वाहिकाओं के लिए बहुत लाभदायक होता है।

* चीकू कब्ज और दस्त की बिमारी को ठीक करने बहुत सहायक होता है।

* चीकू खाने से gastrointestinal CANCER के होने का खतरा कम होता है।

* चीकू में Beta-Cryptoxanthin होता है जो की फेफड़ो के कैंसर के होने के खतरे को कम करता है।

* चीकू एनिमिया होने से भी रोकता है।

* यह हृदय रोगों और गुर्दे के रोगों को भी होने से रोकता है।

* चीकू खाने से आंतों की शक्ति बढती है और आंतें अधिक मजबूत होती हैं।

* चीकू की छाल बुखार नाशक होती है। इस छाल में टैनिन होता है।

* चीकू के फल में थोड़ी सी मात्रा में संपोटिन नामक तत्व रहता है। चीकू के बीज मृदुरेचक और मूत्रकारक माने जाते हैं। चीकू के बीज में सापोनीन एवं संपोटिनीन नामक कड़वा पदार्थ होता है।

* चीकू शीतल, पित्तनाशक, पौष्टिक, मीठे और रूचिकारक हैं।

* चीकू के पे़ड की छाल से चिकना दूधिया- `रस-चिकल` नामक गोंद निकाला जाता है। उससे चबाने का गोंद च्युंइगम बनता है। यह छोटी-छोटी वस्तुओं को जो़डने के काम आता है। दंत विज्ञान से संबन्धित शल्य çRया में `ट्रांसमीशन बेल्ट्स` बनाने में इसका उपयोग होता है। `

* चीकू ज्वर के रोगियों के लिए पथ्यकारक है।

* भोजन के एक घंटे बाद यदि चीकू का सेवन किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाभ कारक है।

* चीकू के नित्य सेवन से धातुपुष्ट होती है तथा पेशाब में जलन की परेशानी दूर होती है।

उपचार स्वास्थ और प्रयोग-

दाद(एक्जीमा ) नया हो या पुराना करे ये उपचार ....!

* वेसे भी दाद एक जिद्दी प्रक्रति का होता है यदि समय पे चिकित्सा न की जाए तो ये स्थाई रहने वाला रोग है ये सभी जगह होता है लेकिन खास कर गुप्त अंगो पे होने वाला दाद अधिक कष्टकारी होता है यदि ये पुराना हो जाए तो आप कितनी भी एंटी फंगल क्रीम लगा लो कुछ दिन बाद ये फिर अपने रूप में वापस आ ही जाता है ..




* यदि आपको कोई पुराना दाद या उस जैसा कोई इन्फ़ेक्सन है तो आप निम्न बातों का ध्यान रखें...

* सबसे पहले सामान्य नहाने वाली साबुन, शैम्पु, आदि केमिकल का प्रयोग बन्द कर दे ! नहाने के लिये केवल गिलिसिरिन सोप का प्रयोग कर सकते है .

* यदि आप कोई एटी फ़ंगल क्रीम लगा रहे है तो आप उसे लगातार लगाएं, ऐसा मत करे कि एक या दो दिन लगाई और कुछ ठीक होने पर फ़िर छोड दी ! इससे दाद और भी जिद्दि हो जाता है .

* नहाने के बाद नारियल का तैल लगाएं।

* पहनने वाले कपडे अच्छी तरह धुले हुए और सुखे हुए होने चाहिये .कहने का अभिप्राय यह है कि उनमे डिटर्जण्ट का मामुली सा अंश भी नही रहना चाहिये।

* ये मामुली सी बाते आपको विभिन्न त्वक विकारों से बचा सकती है ।

* चर्म रोग बेहद गंभीर रोग है जिसमें त्वचा में दाद के काले निशान पड़ जाते हैं। इसे एक्जिमा भी कहा जाता है। इस रोग में त्वचा पर खुजली, दर्द और जलन होती रहती है। आखिर क्यों होता है चर्म रोग ये भी जानना जरूरी है। ताकि समय रहते इस रोग से बचा जा सके।

चर्म रोग के कारण:-
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1. रसायनिक चीजों का ज्यादा प्रयोग करना जैसे साबुन, चूना, सोड़ा और डिटर्जेट का अधिक इस्तेमाल करना।

2. पेट में कब्ज का अधिक समय तक होने से भी चर्म रोग होता है।

3. रक्त विकार होने की वजह से भी चर्म रोग होता है।

4. महिलाओं में मासिकधर्म की परेशानी की वजह से भी उन्हें एक्जिमा हो सकता है।

5. किसी एक्जिमा पीड़ित इसान के कपड़े पहनने से भी। यह रोग हो सकता है।

चर्म रोग के लक्षण:-
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* एक्जिमा रोग में त्वचा पर छोटे-छोटे दाने निकलने लगते हैं। और फिर ये लाल रंग में बदलने लगते हैं और इनमें खुजली होती रहती है। और खुजलाने से जलन होती है फिर ये दाग के रूप में त्वचा में फैलने लगता है। यदि सारे शरीर में एक्जिमा होता है उससे रोगी को बुखार भी आने लगता है।

प्रथम चर्म रोग के उपचार:-
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* समुद्र के पानी से प्रतिदिन नहाने से एक्जिमा ठीक हो जाता है।

* नमक का सेवन कम कर दें। हो सके तो कुछ समय तक नमक का सेवन बंद ही कर दें।

* नीम के पत्तों को पानी में उबाल कर उससे रोज स्नान करें।

* साफ सुतरे कपड़े पहना करें।

* खट्टे, चटपटे, और मीठी चीजों का इस्तेमाल न करें। क्योंकि ये रोग को और बढ़ाते हैं।

* यदि चर्म रोग गीले किस्म का है तो इस पर पानी का प्रयोग न करें।

जिद्दी दाद के लिये कुछ आयुर्वेदिक योग:-
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पकने वाले दाद के लिए :-
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* त्रिफ़ला को तवे पर एक जला ले ( त्रिफ़ला को तवे पर रख कर उस पर कटोरी उलटी कर के रख दे ताकि धुवां त्रिफ़ला की भस्म मे ही रम जाए) फ़िर उसमे कुछ फ़िटकरी मिला कर और वनस्पतिक घी, कुछ देसी घी, सरसो का तैल, और कुछ पानी , सबकी समान मात्रा होनी चाहिये , इन सब को मिलाकर इनको खरल मे अच्छी तरह मर्दन करे , और मलहम बना ले । बस आपकी क्रीम तैयार , पकने वाले और स्राव युक्त दादों पर इसे लगाए ।

जिद्दी और रुखे दाद के लिये:-
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पलाश के बीज

मुर्दाशंख

सफ़ेदा

कबीला

मैनशिल

माजु फ़ल ( सभी सामान आयुर्वेदिक जड़ी बूटी बेचने वाले पंसारी से ले )

* उपरोक्त सभी वस्तुए सामान मात्रा में ले फिर करन्ज के पत्तों का रस और निम्बु का रस, इनसे भावना देकर सारा दिन मर्दन करें । अब बस औषधि तैयार है । इन सब की गोली बनाकर सुखा ले और गुलाब जल के साथ घीस कर प्रभावित स्थान पर लगा ले ।

एक और प्रयोग :-
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* बाजार से 50 ग्राम गंधक ले आए। ये आपको जड़ी बूटी बेचने वाले से मिल जाएगी। शुद्ध गंधक लेने की जरूरत नहीं है। इसे बारीक पीस ले। लगभग 6-9 इंच चौड़ा और 12-18 इंच लंबा सूती कपड़े का टुकड़ा ले। यह पुराने बानियान का भी ले सकते है। इस टुकड़े पर गंधक फैला दे। फिर इसका इस तरह रोल/रस्सी बनाए की गंधक बाहर न निकले। फिर इसे सूती धागे से इस तरह बांध दे कि लटकाने पर भी कपड़े कि रस्सी से गंधक बाहर न निकले। अब इसे एक 2 फुट लंबी लकड़ी कि छड़ी से बांध दे। उसके बाद उस गंधक वाले कपड़े की रस्सी पर इतना सरसो के तेल लगाए कि यह और अधिक तेल न सोख सके।
अब उस कपड़े रस्सी के नीचे बड़ी कटोरी रख कर उस कपड़े की रस्सी को आग लगाए। इस प्रकार जलाने से जो तेल नीचे बर्तन मे टपके उसे सफाई से एक काँच की बोतल मे रखे। यदि जले हुए कपड़े का कोई टुकड़ा बर्तन मे गिर जाए तो तेल को छान लें।
खुले घाव पर यह तेल न लगाए। यह केवल बाहरी प्रयोग के लिए हैं। आंखो मे यह तेल न जाने पाए।

जब यह रस्सी जलती है तो धुआँ निकलता है उससे स्वयं को बचाए।

प्रयोग दाद के लिए :-
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* दाद को किसी कठोर कपड़े से या बर्तन साफ करने के स्क्रबर से दाद को खुजाए। उस पर यह तेल लगा कर पीपल या केले के पत्ते का टुकड़ा रख कर पट्टी बांध दे।

खुजली के लिए (सुखी या गीली ):-
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* खुजली पर यह तेल लगाए। उसके बाद उस अंग पर भाप से सेक करे। बिना भाप के यह धीमे लाभ करता है। यदि पूरे शरीर पर खुजली हो तो तेल लगा कर धूप मे बैठे। 1 घंटे बाद गरम पानी से नहाए।

कुछ अन्य आयुर्वेदिक टिप्स:-
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* दाद पर अनार के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।

* दाद को खुजला कर दिन में चार बार नींबू का रस लगाने से दाद ठीक हो जाते हैं।

* केले के गुदे में नींबू का रस लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

* चर्म रोग में रोज बथुआ उबालकर निचोड़कर इसका रस पीएं और सब्जी खाएं।

* गाजर का बुरादा बारीक टुकड़े कर लें। इसमें सेंधा नमक डालकर सेंके और फिर गर्म-गर्म दाद पर डाल दें।

* कच्चे आलू का रस पीएं इससे दाद ठीक हो जाते हैं।

* नींबू के रस में सूखे सिंघाड़े को घिस कर लगाएं। पहले तो कुछ जलन होगी फिर ठंडक मिल जाएगी, कुछ दिन बाद इसे लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

* हल्दी तीन बार दिन में एक बार रात को सोते समय हल्दी का लेप करते रहने से दाद ठीक हो जाता है।

* दाद होने पर गर्म पानी में अजवाइन पीसकर लेप करें। एक सप्ताह में ठीक हो जाएगा।

* अजवाइन को पानी में मिलाकर दाद धोएं।

* दाद में नीम के पत्तों का १२ ग्राम रोज पीना चाहिए।

* दाद होने पर गुलकंद और दूध पीने से फायदा होगा।

* नीम के पत्ती को दही के साथ पीसकर लगाने से दाद जड़ से साफ हो जाते है।

* गेंदे के फूल में एंटी बैक्टीरियल के साथ एंटी वायरल तत्व होते हैं जो चर्म रोग में लाभ देता है। गेंदे की पत्तियों को पानी में अच्छे से उबाल लें और दिन में तीन बार चर्म रोग से प्रभावित जगह पर लगाएं।

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

उच्च रक्तचाप-निम्न रक्तचाप का अचूक इलाज -

उच्च रक्त चाप के लिए एक बहुत अच्छी दवा है दालचीनी जो सभी के घर में मसाले के रूप में इस्तेमाल की जाती है जरुरत है कि असली वाली लाये आप इसे लाये और पत्थर पे पीस कर पावडर बना ले बस एक शीशी में भर कर रख ले अब इसमें  से रोज सुबह आधा चम्मच खाली पेट गर्म पानी से ले यदि और अच्छा प्रभाव चाहते है तो आधा चम्मच दालचीनी पावडर के साथ आधा चम्मच शहद गर्म पानी  से लेना है ये हाई बी पी की बहुत अच्छी दवा है .



एक और दूसरी दवा है मेथी दाना, मेथी दाना आधा चम्मच लीजिये एक ग्लास गरम पानी में और रात को भिगो दीजिये, रात भर पड़ा रहने दीजिये पानी में और सुबह उठ कर पानी को पि लीजिये और मेथी दाने को चबा के खा लीजिये । ये बहुत जल्दी आपकी हाई बी पी कम कर देगा, देड से दो महीने में एकदम स्वाभाविक कर देगा ।


एक तीसरी दवा है हाई बी पी  के लिए वो है अर्जुन की छाल । अर्जुन एक वृक्ष होती है उसकी छाल को धुप में सुखा कर पत्थर में पिस के इसका पावडर बना लीजिये । आधा चम्मच पावडर, आधा ग्लास गरम पानी में मिलाकर उबाल ले, और खूब उबालने के बाद इसको चाय की तरह पी  ले । ये हाई बी पी  को ठीक करेगा, कोलेस्ट्रोल को ठीक करेगा, ट्राईग्लिसाराईड को ठीक करेगा, मोटापा कम करता है , हार्ट में अर्टेरिस में अगर कोई ब्लोकेज है तो वो ब्लोकेज को भी निकाल देता है ये अर्जुन की छाल । डॉक्टर अक्सर ये कहते है न की दिल कमजोर है आपका; अगर दिल कमजोर है तो आप जरुर अर्जुन की छाल लीजिये हरदिन , दिल बहुत मजबूत हो जायेगा आपका; आपका ESR ठीक होगा, ejection fraction भी ठीक हो जायेगा; बहुत अच्छी दवा है ये अर्जुन की छाल ।


एक अच्छी दवा है हमारे घर में वो है लौकी का रस । एक कप लौकी का रस रोज पीना सबेरे खाली पेट नास्ता करने से एक घंटे पहले ; और इस लौकी की रस में पांच धनिया पत्ता, पांच पुदीना पत्ता, पांच तुलसी पत्ता मिलाके, तिन चार कलि मिर्च पिस के ये सब डाल के पीना .. ये बहुत अच्छा आपके BP ठीक करेगा और ये ह्रदय को भी बहुत व्यवस्थित कर देता है , कोलेस्ट्रोल को ठीक रखेगा, डाईबेटिस में भी काम आता है ।


एक मुफ्त की दवा है , बेल पत्र की पत्ते - ये उच्च रक्तचाप में बहुत काम आते है । पांच बेल पत्र ले कर पत्थर में पिस कर उसकी चटनी बनाइये अब इस चटनी को एक ग्लास पानी में डाल कर खूब गरम कर लीजिये , इतना गरम करिए के पानी आधा हो जाये , फिर उसको ठंडा करके पि लीजिये । ये सबसे जल्दी उच्च रक्तचाप को ठीक करता है और ये बेलपत्र आपके सुगर को भी सामान्य कर देगा । जिनको उच्च रक्तचाप और सुगर दोनों है उनके लिए बेल पत्र सबसे अच्छी दवा है ।


एक मुफ्त की दवा है हाई BP के लिए - देशी गाय की मूत्र पीये आधा कप रोज सुबह खाली पेट ये बहुत जल्दी हाई BP को ठीक कर देता है । और ये गोमूत्र बहुत अद्भूत है , ये हाई BP को भी ठीक करता है और लो BP को भी ठीक कर देता है - दोनों में काम आता है और येही गोमूत्र डाईबेटिस को भी ठीक कर देता है , Arthritis , Gout (गठिया) दोनों ठीक होते है । अगर आप गोमूत्र लगातार पि रहे है तो दमा भी ठीक होता है अस्थमा भी ठीक होता है, Tuberculosis भी ठीक हो जाती है । इसमें दो सावधानिया ध्यान रखने की है के गाय सुद्धरूप से देशी हो और वो गर्भावस्था में न हो ।


निम्न रक्तचाप की बीमारी के लिए दवा :-
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निम्न रक्तचाप की बीमारी के लिए सबसे अच्छी दवा है गुड । ये गुड पानी में मिलाके, नमक डालके, नीबू का रस मिलाके पि लो । एक ग्लास पानी में 25 ग्राम गुड, थोडा नमक नीबू का रस मिलाके दिन में दो तिन बार पिने से लो बी पी  सबसे जल्दी ठीक होगा ।


एक अच्छी दवा है ..अगर आपके पास थोड़े पैसे है तो रोज अनार का रस पियो नमक डालकर इससे बहुत जल्दी लो BP ठीक हो जाती है , गन्ने का रस पीये नमक डालकर ये भी लो BP ठीक कर देता है, संतरे का रस नमक डाल के पियो ये भी लो BP ठीक कर देता है , अनन्नास का रस पीये नमक डाल कर ये भी लो BP ठीक कर देता है ।


लो बी पी  के लिए और एक बढ़िया दवा है मिसरी और मखन मिलाके खाओ - ये लो BP की सबसे अच्छी दवा है ।


लो BP के लिए और एक बढ़िया दवा है दूध में घी मिलाके पियो , एक ग्लास देशी गाय का दूध और एक चम्मच देशी गाय की घी मिलाके रातको पिने से लो BP बहुत अछे से ठीक होगा ।


एक अच्छी दवा है लो BP की और सबसे सस्ता भी वो है नमक का पानी पियो दिन में दो तिन बार , जो गरीब लोग है ये उनके लिए सबसे अच्छा है ।


अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पे जाके विडियो देखे :-

https://youtu.be/roiLF4ti9Vw

उपचार और प्रयोग-