कचनार(MOUNTAIN EBONY) से आपका एक परिचय :-
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* अगर पूरा देश जान जाए की ये किस रोग की दवा है तो बस ये समझ लीजिये की बेचारा दुर्लभ फूल की श्रेणी में आ जाएगा . हो सकता है की तब सरकार को इसे प्रतिबंधित फूल घोषित करना पड़े.
* रोगी के लिए कचनार का सेवन अमृत के समान गुणकारी सिद्ध होता है।
* कचनार का फूल कितना खूबसूरत होता है ,देखते ही बस जी मचल जाता है .अरे ये है भी बहुत उपयोगी .
* कचनार का पेड़ ८ फीट तक उंचा हो जाता है.कही कहीं १५ से २० फीट की भी ऊँचाई देखी गयी है .कचनार का पेड़ सभी देशों में पाया जाता है। बागों की सुन्दरता बढ़ाने के लिए यह पेड़ विशेष रूप से लगाया जाता है। कचनार का पेड़ 15 से 20 फुट ऊंचा होता है। यह पेड़ झुका हुआ और कमजोर शाखाओं वाला होता है। इसकी छाल लगभग 1 इंच मोटी, भूरे रंग की होती है जो लम्बाई में जगह-जगह फटी होती है। इसके पत्ते 3 से 6 इंच लंबे व 2 से 5 इंच चौडे़ होते हैं। इसके पत्ते शुरू में जुड़े व किनारों पर खुले होते हैं जो हृदय के आकार का होता है और पत्ते में 9 से 11 शिराएं होती हैं। इस पेड़ की फूल की कलियां हरी होती है और फूल बनने पर सफेद, लाल या पीले रंग के हो जाती हैं। कचनार का पेड़ रंगों के आधार पर तीन प्रकार के होते हैं। पतझड़ के समय अर्थात फरवरी-मार्च में पेड़ पर फूल लगते हैं और मई में फल लगते हैं। इसके फली 6 से 12 इंच लंबी, 1 इंच चौड़ी, चपटी व चिकनी होती है, जिसमें 10-15 बीज होते हैं। फल स्वाद में कड़वे होते हैं।
* कचनार के रासायनिक तत्त्वों का विश्लेषण करने पर पता चला है कि इसकी छाल में टैनिन (कषाय द्रव्य), शर्करा और एक भूरे रंग का गोंद होता है। इसके बीजों से 16.5 प्रतिशत की मात्रा में पीले रंग का तेल निकलता है। कचनार का बीज पौष्टित और उत्तेजक (कामोद्दीक) होता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम:-
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संस्कृत- काश्चनार।
हिन्दी- कचनार।
मराठी- कोरल, कांचन।
गुजराती- चम्पाकांटी।
बंगला- कांचन।
तेलुगू- देवकांचनमु।
तमिल- मन्दारे।
कन्नड़- केंयुमन्दार।
मलयालम- चुवन्नमन्दारम्।
पंजाबी- कुलाड़।
कोल- जुरजु, बुज, बुरंग।
सन्थाली- झिंजिर।
इंग्लिश- माउंटेन एबोनी।
लैटिन- बोहिनिआ वेरिएगेटा।
* ये कचनार सफेद रंग की होती है। तथा इसका स्वाद कषैला होता है। कचनार एक पेड़ है जो बागों और फूल की क्यारियों में उगाई जाती हैं। कचनार के पत्ते, छिवलके पत्ते या लसोहड़ा के पत्ते के समान होते हैं परन्तु इसके पत्ते 1 या 2 जोड़ों में होते हैं। इसके फूल सफेद व लाल रंग के होते हैं और फली 6 से 12 इंच लंबी होती है।
मात्रा :-
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* इसके छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जाता है, इसके फूलों का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में प्रयोग किया जाता है और छाल का काढ़ा 40 से 80 मिलीलीटर की मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
* कचनार की छाल का महीन पिसा-छना चूर्ण 3 से 6 ग्राम (आधा से एक चम्मच) ठंडे पानी के साथ सुबह-शाम लें। इसका काढ़ा बनाकर भी सुबह-शाम 4-4 चम्मच मात्रा में (ठंडा करके) एक चम्मच शहद मिलाकर ले सकते हैं।
* फरवरी-मार्च में पतझड़ के समय इस वृक्ष में फूल आते हैं और अप्रैल-मई में फल आते हैं। इसकी छाल पंसारी की दुकान पर मिलती है और मौसम के समय इसके फूल सब्जी बेचने वालों के यहां मिलते हें।
विभिन्न रोगों में उपयोगी :-
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बवासीर:-
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* कचनार की एक चम्मच छाल को एक कप मट्ठा (छांछ) के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से बवासीर में खून गिरना बंद होता है।
सूजन:-
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* कचनार की जड़ को पानी में घिसकर लेप बना लें और इसे गर्म कर लें। इसके गर्म-गर्म लेप को सूजन पर लगाने से आराम मिलता है।
मुंह में छाले होना:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा-सा कत्था मिलाकर छालों पर लगाने से आराम मिलता है।
प्रमेह:-
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* कचनार की हरी व सूखी कलियों का चूर्ण और मिश्री मिलाकर प्रयोग किया जाता है। इसके चूर्ण और मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर 1-1चम्मच दिन में तीन बार कुछ हफ्ते तक खाने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।
गण्डमाला:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें सोंठ का चूर्ण मिलाकर आधे कप की मात्रा में दिन में तीन बार पीने से गण्डमाला रोग ठीक होता है।
भूख न लगना:-
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* कचनार की फूल की कलियां घी में भूनकर सुबह-शाम खाने से भूख बढ़ती है।
गैस की तकलीफ:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 मिलीलीटर काढ़ा में आधा चम्मच पिसी हुई अजवायन मिलाकर प्रयोग करने से लाभ मिलता है। सुबह-शाम भोजन करने बाद इसका सेवन करने से अफरा (पेट फूलना) व गैस की तकलीफ दूर होती है।
खांसी और दमा:-
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* शहद के साथ कचनार की छाल का काढ़ा 2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी और दमा में आराम मिलता है।
दांतों का दर्द:-
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* कचनार के पेड़ की छाल को आग में जलाकर उसकी राख को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इस मंजन से सुबह एवं रात को खाना खाने के बाद मंजन करने से दांतों का दर्द तथा मसूढ़ों से खून का निकलना बंद होता है।
दांतों के रोग:-
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* कचनार की छाल को पानी में उबाल लें और उस उबले पानी को छानकर एक शीशी में बंद करके रख लें। यह पानी 50-50 मिलीलीटर की मात्रा में गर्म करके रोजाना 3 बार कुल्ला करें। इससे दांतों का हिलना, दर्द, खून निकलना, मसूढों की सूजन और पायरिया खत्म हो जाता है।
अफारा (पेट में गैस बनना):-
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* कचनार की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से अफारा दूर होता है।
जीभ व त्वचा का सुन्न होना:-
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* कचनार की छाल का चूर्ण बनाकर 2 से 4 ग्राम की मात्रा में खाने से रोग में लाभ होता है। इसका प्रयोग रोजाना सुबह-शाम करने से त्वचा एवं रस ग्रंथियों की क्रिया ठीक हो जाती है। त्वचा की सुन्नता दूर होती है।
कब्ज:-
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* कचनार के फूलों को चीनी के साथ घोटकर शर्बत की तरह बनाकर सुबह-शाम पीने से कब्ज दूर होती है और मल साफ होता है।
* कचनार के फूलों का गुलकन्द रात में सोने से पहले 2 चम्मच की मात्रा में कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
कैंसर (कर्कट):-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पेट का कैंसर ठीक होता है।
दस्त का बार-बार आना:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में 2 बार पीने से दस्त रोग में ठीक होता है।
पेशाब के साथ खून आना:-
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* कचनार के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद होता है। इसके सेवन से रक्त प्रदर एवं रक्तस्राव आदि भी ठीक होता है।
बवासीर (अर्श):-
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* कचनार की छाल का चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में एक गिलास छाछ के साथ लें। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह-शाम करने से बवासीर एवं खूनी बवासीर में बेहद लाभ मिलता है।
* कचनार का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह पानी के साथ खाने से बवासीर ठीक होता है।
खूनी दस्त:-
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* दस्त के साथ खून आने पर कचनार के फूल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से खूनी दस्त (रक्तातिसर) में जल्दी लाभ मिलता है।
रक्तपित्त:-
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* कचनार के फूलों का चूर्ण बनाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम चटाने से रक्त पित्त का रोग ठीक होता है। कचनार का साग खाने से भी रक्त पित्त में आराम मिलता है।
* यदि मुंह से खून आता हो तो कचनार के पत्तों का रस 6 ग्राम की मात्रा में पीएं। इसके सेवन से मुंह से खून का आना बंद हो जाता है।
* कचनार के सूखे फूलों का चूर्ण बनाकर लें और यह चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इसके सेवन से रक्तपित्त में लाभ होता है। इसके फूलों की सब्जी बनाकर खाने से भी खून का विकार (खून की खराबी) दूर होता है।
कुबड़ापन:-
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* अगर कुबड़ापन का रोग बच्चों में हो तो उसके पीठ के नीचे कचनार का फूल बिछाकर सुलाने से कुबड़ापन दूर होता है।
* लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग कचनार और गुग्गुल को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से कुबड़ापन दूर होता है।
* कुबड़ापन के दूर करने के लिए कचनार का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए।
घाव:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से घाव ठीक होता है। इसके काढ़े से घाव को धोना भी चाहिए।
स्तनों की गांठ (रसूली):-
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* कचनार की छाल को पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग आधे ग्राम की मात्रा में सौंठ और चावल के पानी (धोवन) के साथ मिलाकर पीने और स्तनों पर लेप करने से गांठ ठीक होती है।
उपंदश (गर्मी का रोग या सिफिलिस):-
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* कचनार की छाल, इन्द्रायण की जड़, बबूल की फली, छोटी कटेरी के जड़ व पत्ते और पुराना गुड़ 125 ग्राम। इन सभी को 2.80 किलोग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में पकाएं और यह पकते-पकते जब थोड़ा सा बचे तो इसे उतारकर छान लें। अब इसे एक बोतल में बंद करके रख लें और सुबह-शाम सेवन करें।
सिर का फोड़ा:-
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* कचनार की छाल, वरना की जड़ और सौंठ को मिलाकर काढ़ा बना लें। यह काढ़ा लगभग 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीना चाहिए। इसके सेवन से फोड़ा पक जाता है और ठीक हो जाता है। इसके काढ़े को फोड़े पर लगाने से भी लाभ होता है।
चेचक (मसूरिका):-
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* कचनार की छाल के काढ़ा बनाकर उसमें सोने की राख डालकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
गले की गांठ:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 ग्राम काढ़े में सोंठ मिलाकर सुबह-शाम पीने से गले की गांठ ठीक होती है।
कंठमाला:-
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* कचनार की छाल को पीसकर, चावलों के पानी में डालकर उसमे मिश्री मिलाकर पीने से कण्ठामाला (गले की गांठे) ठीक हो जाती हैं।
गलकोष प्रदाह (गलकोष की सूजन):-
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* खैर (कत्था) के फल, दाड़िम पुष्प और कचनार की छाल। इन तीनों को मिलाकर काढ़ा बना लें और इससे सुबह-शाम गरारा करने से गले की सूजन मिटती है। सिनुआर के सूखे पत्ते को धूम्रपान की तरह प्रयोग करने से भी रोग में आराम मिलता है।
गला बैठना:-
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* कचनार मुंह में रखकर चबाने या चूसने से गला साफ होता है। इसको चबाने से आवाज मधुर (मीठी) होती है और यह गाना गाने वाले व्यक्ति के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
* थाईरायड और कुबड़ेपन का इलाज इस कचनार से किया जा सकता है.
* इसके तने की छाल भी दवा के काम आती है ,इसमें शर्करा और टैनिन्स की बहुत मात्रा पायी जाती है.साथ ही मिर्सीताल और ग्लाइकोसाइड भी मौजूद है.
* इसकी छाल के काढ़े में बावची के तेल की २०-२५ बूंदे मिलाकर रोज पीने से बहुत पुराना कोढ़ भी ख़त्म हो जाता है.
* अगर कुबडापन हो तो बच्चे को इसकी छाल के काढ़े में प्रवाल भस्म मिला कर पिलानी चाहिए.
* पीले कचनार के पेड़ की छाल का काढा आंतो के कीड़े को मार देता है.
* मुंह के छाले किसी दवा से ठीक न हो रहे हों तो कचनार की छाल के काढ़े से गरारे और कुल्ला कीजिए ,फिर देखिये चमत्कार.
* कचनार के फूल थाईरायड की सबसे अच्छी दवा हैं. इसके फूल में हेन्त्रीआक्टें, बीटा सितोस्टीराल, ओक्ताकोसनाल, स्तिग्मास्तीराल ,फ्लेवोनाइड आदि पाए जाते हैं.
* आपको हाइपो हो या हाइपर थाईराइड कचनार के तीन फूलों की सब्जी या पकौड़ी बनाकर सुबह शाम खाएं. 2 माह बाद टेस्ट कराएँ.
* गले में गांठे हो गयी हों तो कचनार की छाल को चावल के धोवन में पीसिये उसमे आधा चम्मच सौंफ का पावडर मिलाकर खा लीजिये ,एक महीने तक खाएं.
* खूनी बवासीर में कचनार की कलियों के पावडर को मक्खन और शक्कर मिलकर खाएं ,११ दिन लगातार.
* आँतों में कीड़े होंतो कचनार की छाल का काढा पियें.१०-११ दिनों तक.
* खूनी आंव हो रहे हों तो कचनार का एक एक फूल सुबह दोपहर शाम चबाएं,३ दिनों तक
* आपका पेट निकल रहा हो तो आधा चम्मच अजवाइन को कचनार की जड़ के काढ़े से निगल लीजिये.१०-११ दिनों तक.आपका पेट अन्दर हो जाएगा .
* लीवर में कोई तकलीफ हो तो कचनार की जड़ का काढ़ा पीयें ये लीवर की सुजन को ख़तम कर देता है .
* गले की कोई भी ग्रंथि बढ़ जाने पर कचनार के फूल या छाल का चूर्ण चावलों के धोवन में पीस कर उसमे सोंठ मिलकर लेप भी किया जा सकता है और पिया भी जा सकता है.
* कचनार की टहनियों की राख से मंजन करेंगे तो दांतों में दर्द कभी नहीं होगा ,अगर हो रहा होगा तो ख़त्म हो जायेगा.
* शरीर में कहीं शोथ हो, गांठ हो या लसिका ग्रंथि में कोई विकृति हो तो इसे दूर करने में जिस जड़ी-बूटी का नाम सर्वोपरि है वह है कचनार। इसके अद्भुत गुणों के कारण संस्कृत भाषा में इसे गुणवाचक नामों से सम्बोधित किया गया है यथा- गण्डारि यानी चमर के समान फूल वाली, कोविदार यानी विचित्र फूल और फटे पत्ते वाली आदि। आज किसी को शरीर में कहीं गांठ हो जाती है तो वह चिंतित व दुःखी हो जाता है, क्योंकि उसे कचनार के गुणधर्म और उपयोग की जानकारी नहीं है.
हमने इसके गुण बताये है अच्छा होगा कि आप इसके पेड़ की पहचान करके उपरोक्त किसी भी बिमारी में प्रयोग करे और लाभ पाए -
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग -
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* अगर पूरा देश जान जाए की ये किस रोग की दवा है तो बस ये समझ लीजिये की बेचारा दुर्लभ फूल की श्रेणी में आ जाएगा . हो सकता है की तब सरकार को इसे प्रतिबंधित फूल घोषित करना पड़े.
* रोगी के लिए कचनार का सेवन अमृत के समान गुणकारी सिद्ध होता है।
* कचनार का फूल कितना खूबसूरत होता है ,देखते ही बस जी मचल जाता है .अरे ये है भी बहुत उपयोगी .

* कचनार के रासायनिक तत्त्वों का विश्लेषण करने पर पता चला है कि इसकी छाल में टैनिन (कषाय द्रव्य), शर्करा और एक भूरे रंग का गोंद होता है। इसके बीजों से 16.5 प्रतिशत की मात्रा में पीले रंग का तेल निकलता है। कचनार का बीज पौष्टित और उत्तेजक (कामोद्दीक) होता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम:-
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संस्कृत- काश्चनार।
हिन्दी- कचनार।
मराठी- कोरल, कांचन।
गुजराती- चम्पाकांटी।
बंगला- कांचन।
तेलुगू- देवकांचनमु।
तमिल- मन्दारे।
कन्नड़- केंयुमन्दार।
मलयालम- चुवन्नमन्दारम्।
पंजाबी- कुलाड़।
कोल- जुरजु, बुज, बुरंग।
सन्थाली- झिंजिर।
इंग्लिश- माउंटेन एबोनी।
लैटिन- बोहिनिआ वेरिएगेटा।
* ये कचनार सफेद रंग की होती है। तथा इसका स्वाद कषैला होता है। कचनार एक पेड़ है जो बागों और फूल की क्यारियों में उगाई जाती हैं। कचनार के पत्ते, छिवलके पत्ते या लसोहड़ा के पत्ते के समान होते हैं परन्तु इसके पत्ते 1 या 2 जोड़ों में होते हैं। इसके फूल सफेद व लाल रंग के होते हैं और फली 6 से 12 इंच लंबी होती है।
मात्रा :-
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* इसके छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जाता है, इसके फूलों का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में प्रयोग किया जाता है और छाल का काढ़ा 40 से 80 मिलीलीटर की मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
* कचनार की छाल का महीन पिसा-छना चूर्ण 3 से 6 ग्राम (आधा से एक चम्मच) ठंडे पानी के साथ सुबह-शाम लें। इसका काढ़ा बनाकर भी सुबह-शाम 4-4 चम्मच मात्रा में (ठंडा करके) एक चम्मच शहद मिलाकर ले सकते हैं।
* फरवरी-मार्च में पतझड़ के समय इस वृक्ष में फूल आते हैं और अप्रैल-मई में फल आते हैं। इसकी छाल पंसारी की दुकान पर मिलती है और मौसम के समय इसके फूल सब्जी बेचने वालों के यहां मिलते हें।
विभिन्न रोगों में उपयोगी :-
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बवासीर:-
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* कचनार की एक चम्मच छाल को एक कप मट्ठा (छांछ) के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से बवासीर में खून गिरना बंद होता है।
सूजन:-
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* कचनार की जड़ को पानी में घिसकर लेप बना लें और इसे गर्म कर लें। इसके गर्म-गर्म लेप को सूजन पर लगाने से आराम मिलता है।
मुंह में छाले होना:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा-सा कत्था मिलाकर छालों पर लगाने से आराम मिलता है।
प्रमेह:-
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* कचनार की हरी व सूखी कलियों का चूर्ण और मिश्री मिलाकर प्रयोग किया जाता है। इसके चूर्ण और मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर 1-1चम्मच दिन में तीन बार कुछ हफ्ते तक खाने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।
गण्डमाला:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें सोंठ का चूर्ण मिलाकर आधे कप की मात्रा में दिन में तीन बार पीने से गण्डमाला रोग ठीक होता है।
भूख न लगना:-
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* कचनार की फूल की कलियां घी में भूनकर सुबह-शाम खाने से भूख बढ़ती है।
गैस की तकलीफ:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 मिलीलीटर काढ़ा में आधा चम्मच पिसी हुई अजवायन मिलाकर प्रयोग करने से लाभ मिलता है। सुबह-शाम भोजन करने बाद इसका सेवन करने से अफरा (पेट फूलना) व गैस की तकलीफ दूर होती है।
खांसी और दमा:-
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* शहद के साथ कचनार की छाल का काढ़ा 2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी और दमा में आराम मिलता है।
दांतों का दर्द:-
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* कचनार के पेड़ की छाल को आग में जलाकर उसकी राख को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इस मंजन से सुबह एवं रात को खाना खाने के बाद मंजन करने से दांतों का दर्द तथा मसूढ़ों से खून का निकलना बंद होता है।
दांतों के रोग:-
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* कचनार की छाल को पानी में उबाल लें और उस उबले पानी को छानकर एक शीशी में बंद करके रख लें। यह पानी 50-50 मिलीलीटर की मात्रा में गर्म करके रोजाना 3 बार कुल्ला करें। इससे दांतों का हिलना, दर्द, खून निकलना, मसूढों की सूजन और पायरिया खत्म हो जाता है।
अफारा (पेट में गैस बनना):-
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* कचनार की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से अफारा दूर होता है।
जीभ व त्वचा का सुन्न होना:-
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* कचनार की छाल का चूर्ण बनाकर 2 से 4 ग्राम की मात्रा में खाने से रोग में लाभ होता है। इसका प्रयोग रोजाना सुबह-शाम करने से त्वचा एवं रस ग्रंथियों की क्रिया ठीक हो जाती है। त्वचा की सुन्नता दूर होती है।
कब्ज:-
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* कचनार के फूलों को चीनी के साथ घोटकर शर्बत की तरह बनाकर सुबह-शाम पीने से कब्ज दूर होती है और मल साफ होता है।
* कचनार के फूलों का गुलकन्द रात में सोने से पहले 2 चम्मच की मात्रा में कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
कैंसर (कर्कट):-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पेट का कैंसर ठीक होता है।
दस्त का बार-बार आना:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में 2 बार पीने से दस्त रोग में ठीक होता है।
पेशाब के साथ खून आना:-
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* कचनार के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद होता है। इसके सेवन से रक्त प्रदर एवं रक्तस्राव आदि भी ठीक होता है।
बवासीर (अर्श):-
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* कचनार की छाल का चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में एक गिलास छाछ के साथ लें। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह-शाम करने से बवासीर एवं खूनी बवासीर में बेहद लाभ मिलता है।
* कचनार का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह पानी के साथ खाने से बवासीर ठीक होता है।
खूनी दस्त:-
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* दस्त के साथ खून आने पर कचनार के फूल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से खूनी दस्त (रक्तातिसर) में जल्दी लाभ मिलता है।
रक्तपित्त:-
=======
* कचनार के फूलों का चूर्ण बनाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम चटाने से रक्त पित्त का रोग ठीक होता है। कचनार का साग खाने से भी रक्त पित्त में आराम मिलता है।
* यदि मुंह से खून आता हो तो कचनार के पत्तों का रस 6 ग्राम की मात्रा में पीएं। इसके सेवन से मुंह से खून का आना बंद हो जाता है।
* कचनार के सूखे फूलों का चूर्ण बनाकर लें और यह चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इसके सेवन से रक्तपित्त में लाभ होता है। इसके फूलों की सब्जी बनाकर खाने से भी खून का विकार (खून की खराबी) दूर होता है।
कुबड़ापन:-
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* अगर कुबड़ापन का रोग बच्चों में हो तो उसके पीठ के नीचे कचनार का फूल बिछाकर सुलाने से कुबड़ापन दूर होता है।
* लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग कचनार और गुग्गुल को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से कुबड़ापन दूर होता है।
* कुबड़ापन के दूर करने के लिए कचनार का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए।
घाव:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से घाव ठीक होता है। इसके काढ़े से घाव को धोना भी चाहिए।
स्तनों की गांठ (रसूली):-
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* कचनार की छाल को पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग आधे ग्राम की मात्रा में सौंठ और चावल के पानी (धोवन) के साथ मिलाकर पीने और स्तनों पर लेप करने से गांठ ठीक होती है।
उपंदश (गर्मी का रोग या सिफिलिस):-
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* कचनार की छाल, इन्द्रायण की जड़, बबूल की फली, छोटी कटेरी के जड़ व पत्ते और पुराना गुड़ 125 ग्राम। इन सभी को 2.80 किलोग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में पकाएं और यह पकते-पकते जब थोड़ा सा बचे तो इसे उतारकर छान लें। अब इसे एक बोतल में बंद करके रख लें और सुबह-शाम सेवन करें।
सिर का फोड़ा:-
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* कचनार की छाल, वरना की जड़ और सौंठ को मिलाकर काढ़ा बना लें। यह काढ़ा लगभग 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीना चाहिए। इसके सेवन से फोड़ा पक जाता है और ठीक हो जाता है। इसके काढ़े को फोड़े पर लगाने से भी लाभ होता है।
चेचक (मसूरिका):-
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* कचनार की छाल के काढ़ा बनाकर उसमें सोने की राख डालकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
गले की गांठ:-
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* कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 ग्राम काढ़े में सोंठ मिलाकर सुबह-शाम पीने से गले की गांठ ठीक होती है।
कंठमाला:-
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* कचनार की छाल को पीसकर, चावलों के पानी में डालकर उसमे मिश्री मिलाकर पीने से कण्ठामाला (गले की गांठे) ठीक हो जाती हैं।
गलकोष प्रदाह (गलकोष की सूजन):-
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* खैर (कत्था) के फल, दाड़िम पुष्प और कचनार की छाल। इन तीनों को मिलाकर काढ़ा बना लें और इससे सुबह-शाम गरारा करने से गले की सूजन मिटती है। सिनुआर के सूखे पत्ते को धूम्रपान की तरह प्रयोग करने से भी रोग में आराम मिलता है।
गला बैठना:-
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* कचनार मुंह में रखकर चबाने या चूसने से गला साफ होता है। इसको चबाने से आवाज मधुर (मीठी) होती है और यह गाना गाने वाले व्यक्ति के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
* थाईरायड और कुबड़ेपन का इलाज इस कचनार से किया जा सकता है.
* इसके तने की छाल भी दवा के काम आती है ,इसमें शर्करा और टैनिन्स की बहुत मात्रा पायी जाती है.साथ ही मिर्सीताल और ग्लाइकोसाइड भी मौजूद है.
* इसकी छाल के काढ़े में बावची के तेल की २०-२५ बूंदे मिलाकर रोज पीने से बहुत पुराना कोढ़ भी ख़त्म हो जाता है.
* अगर कुबडापन हो तो बच्चे को इसकी छाल के काढ़े में प्रवाल भस्म मिला कर पिलानी चाहिए.
* पीले कचनार के पेड़ की छाल का काढा आंतो के कीड़े को मार देता है.
* मुंह के छाले किसी दवा से ठीक न हो रहे हों तो कचनार की छाल के काढ़े से गरारे और कुल्ला कीजिए ,फिर देखिये चमत्कार.
* कचनार के फूल थाईरायड की सबसे अच्छी दवा हैं. इसके फूल में हेन्त्रीआक्टें, बीटा सितोस्टीराल, ओक्ताकोसनाल, स्तिग्मास्तीराल ,फ्लेवोनाइड आदि पाए जाते हैं.
* आपको हाइपो हो या हाइपर थाईराइड कचनार के तीन फूलों की सब्जी या पकौड़ी बनाकर सुबह शाम खाएं. 2 माह बाद टेस्ट कराएँ.
* गले में गांठे हो गयी हों तो कचनार की छाल को चावल के धोवन में पीसिये उसमे आधा चम्मच सौंफ का पावडर मिलाकर खा लीजिये ,एक महीने तक खाएं.
* खूनी बवासीर में कचनार की कलियों के पावडर को मक्खन और शक्कर मिलकर खाएं ,११ दिन लगातार.
* आँतों में कीड़े होंतो कचनार की छाल का काढा पियें.१०-११ दिनों तक.
* खूनी आंव हो रहे हों तो कचनार का एक एक फूल सुबह दोपहर शाम चबाएं,३ दिनों तक
* आपका पेट निकल रहा हो तो आधा चम्मच अजवाइन को कचनार की जड़ के काढ़े से निगल लीजिये.१०-११ दिनों तक.आपका पेट अन्दर हो जाएगा .
* लीवर में कोई तकलीफ हो तो कचनार की जड़ का काढ़ा पीयें ये लीवर की सुजन को ख़तम कर देता है .
* गले की कोई भी ग्रंथि बढ़ जाने पर कचनार के फूल या छाल का चूर्ण चावलों के धोवन में पीस कर उसमे सोंठ मिलकर लेप भी किया जा सकता है और पिया भी जा सकता है.
* कचनार की टहनियों की राख से मंजन करेंगे तो दांतों में दर्द कभी नहीं होगा ,अगर हो रहा होगा तो ख़त्म हो जायेगा.
* शरीर में कहीं शोथ हो, गांठ हो या लसिका ग्रंथि में कोई विकृति हो तो इसे दूर करने में जिस जड़ी-बूटी का नाम सर्वोपरि है वह है कचनार। इसके अद्भुत गुणों के कारण संस्कृत भाषा में इसे गुणवाचक नामों से सम्बोधित किया गया है यथा- गण्डारि यानी चमर के समान फूल वाली, कोविदार यानी विचित्र फूल और फटे पत्ते वाली आदि। आज किसी को शरीर में कहीं गांठ हो जाती है तो वह चिंतित व दुःखी हो जाता है, क्योंकि उसे कचनार के गुणधर्म और उपयोग की जानकारी नहीं है.
हमने इसके गुण बताये है अच्छा होगा कि आप इसके पेड़ की पहचान करके उपरोक्त किसी भी बिमारी में प्रयोग करे और लाभ पाए -
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग -
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