Wednesday, December 31, 2014

तंदुरुस्ती के लिए प्रयोग करे ......!

* हर व्यक्ति तन्दुरस्त और स्मार्ट दिखना चाहता है तो आइये हम कुछ नुस्खे बता रहे है जिनको प्रयोग करके आप स्वस्थ और तन्दुरुस्ती पा सकते है :--









* वजन बढ़ाना हो तो रात को भैंस के दूध में चने भिगोकर सुबह चबा चबा कर खाएं l खजूर व किशमिश खाएं . इससे वज़न बढेगा l

* 1 से 3 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को दूध के साथ लेने से तथा भोजन से पूर्व तथा बाद में दो-दो चम्मच घी खाने से वजन बढ़ता है।

* 1 से 2 ग्राम सोंठ एवं उतनी ही शिलाजीत खाने से अथवा 2 से 5 ग्राम शहद के साथ उतना ही अदरक लेने से शरीर पुष्ट होता है।

* 3 से 5 अंजीर को दूध में उबालकर या अंजीर खाकर दूध पीने से शक्ति बढ़ती है।

* 1 से 2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को आँवले के 10 से 40 मि.ली. रस के साथ 15 दिन लेने से शरीर में दिव्य शक्ति आती है।

* एक गिलास पानी में एक नींबू का रस निचोड़कर उसमें दो किसमिस रात्रि में भिगो दें। सुबह छानकर पानी पी जायें एवं किसमिस चबा जायें। यह एक अदभुत शक्तिदायक प्रयोग है।

* शाम को गर्म पानी में दो चुटकी हल्दी पीने से शरीर सदा नीरोगी और बलवान रहता है।

* त्रिफला एवं मुलहठी के चूर्ण को समभाग मिश्रण में से 1 तोला चूर्ण दिन में दो बार खाने से असमय आनेवाला वृद्धत्व रुक जाता है।

* आँवले एवं काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर उसका 1 से 2 ग्राम बारीकर चूर्ण घी या शहद के साथ लेने से असमय आने वाला बुढ़ापा दूर होता है एवं शक्ति आती है।

* मोटापा दूर करने के लिए 25-30 तुलसी के पत्तो का रस , 1 गिलास गुनगुना पानी , 1 बड़ा निम्बू का रस निचोड़ के ले ।

* जौ को पानी में भिगोकर, कूट के, छिलकारहित कर उसे दूध में खीर की भांति पकाकर सेवन करने से शरीर हृष्ट-पुष्ट और मोटापा कम होता है l
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

Monday, December 29, 2014

स्त्री एवं पुरुषों में नपुंसकता के ये उपाय करे ....!

* निसंतान होना हमारे समाज में आज भी अभिशाप माना जाता रहा है। नपुंसकता के कारण निःसंतान होना भी एक सामान्य कारण होता है। कुछ एलोपैथिक दवाएं भी नपुंसकता उत्पन्न कर संतान उत्पन्न करने में व्याधा उत्पन्न कर सकती हैं।

* इनमें उच्चरक्तचाप की औषधियां एवं मधुमेह जैसे रोग शामिल हैं। कई बार नपुंसकता का कारण शारीरिक न होकर मानसिक होता है, ऐसे में केवल चिकित्सकीय काऊंसीलिंग ही काफी होती है।





* कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे स्त्री एवं पुरुषों में नपुंसकताजन्य निःसंतानता के साथ ही शुक्राणुजन्य समस्याओं को दूर करने में कारगर सिद्ध होती हैं, जो निम्न हैं :-

* श्वेत कंटकारी के पंचांग को सुखाकर पाउडर बना लें तथा स्त्री में मासिक धर्म के ५ वें दिन से लगातार तीन दिन प्रातः एक बार दूध से दें एवं पुरुष को : अश्वगंधा 10 ग्राम, शतावरी 10 ग्राम, विधारा 10 ग्राम, तालमखाना 5 ग्राम, तालमिश्री 5 ग्राम सब मिलकर 2 चम्मच दूध के साथ प्रातः सायं लेने पर निश्चित लाभ होता है।

* स्त्री में "फलघृत" नामक आयुर्वेदिक औषधि भी इनफरटीलीटी को दूर करता है।
पलाश के पेड़ की एक लम्बी जड़ में लगभग 250 एम.एल. की एक शीशी लगाकर, इसे जमीन में दबा दें, एक सप्ताह बाद इसे निकाल लें, अब इसमें इकठ्ठा होने वाला निर्यास द्रव प्रातः पुरुष को एक चम्मच शहद से दें। यह शुक्रानुजनित कमजोरी (ओलिगोस्पर्मीया) को दूर करने में मददगार होता है।

* अश्वगंधा 1.5 ग्राम. शतावरी 1.5 ग्राम, सफ़ेद मुसली 1.5 ग्राम एवं कौंच बीज चूर्ण को 75 मिलीग्राम की मात्रा में गाय के दूध से सेवन करने से भी नपुंसकता दूर होकर कामशक्ति बढ़ जाती है।

* शिलाजीत का 250 मिलीग्राम से 500 मिलीग्राम की मात्रा में दूध के साथ नियमित सेवन भी मधुमेह आदि के कारण आयी नपुंसकता को दूर करता है।

* नपुंसकता को दूर करने के लिए उचित चिकित्सकीय परामर्श एवं समय पर कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग कर इस बीमारी से निजात पाया जा सकता है।

रात को बिस्तर में बीबी की डांट सुननी पड़ती है -

हर पुरूष की यही चाहता है कि उसका जीवन साथी उसके दैहिक व यौन-शक्ति से संतुष्ट रहे। मगर आपने कभी सोचा है कि यौन-संबध बनाने के लिए जितना ध्यान मानसिक तैयारी और कामात्तेजना पर देना चाहिए उतना ही ध्यान अपनी यौन-शाक्ति पर भी देना जरूरी होता है-





पुरूष यौन-शक्ति के अभाव में एक बेहतरीन रोमांटिक माहौल में भरपूर तैयारी के साथ बनाया गया संबंध कारगर साबित नहीं होता है और जोड़े यौन-सुख से वंचित रह जाते हैं। फलत: आपस में दूरी बढ़ने लगती है। जिन व्यक्तियों में यौन-शक्ति का अभाव होता है वह सेक्स के दौरान थोड़ी देर में ही खुद को कमजोर महसूस करने लगता है। इस यौन कमी से पीड़ित अधिकतर लोगो में सेक्स से दूर भागने की प्रवृति बढ़ने लगती है। धीरे-धीरे ऐसा पुरूष अपने साथी के साथ यौन-संबंध बनाने में झिझकने लगता है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है, जिसमें पाया गया कि शारीरिक रूप से कमजोर और अस्वस्थ लोगों में यौन-शक्ति की कमी होने की संभावना अधिक होती है।


ऐसे ही यौन कमजोरियों को जानने का प्रयास करते हैं और साथ ही इनके निवारणों को भी जानेंगे।


पुरूष यौन-शक्ति में कमी आने के कारण : -




बहुत अधिक तनाव से होने वाले हार्मोनल परिवर्तन, पौष्टिक विकार, यौन-शाक्ति कम करने के मुख्य कारणों मे से एक है।


आवश्यकता से अधिक भारी-भरकम व्यायामो का प्रशिक्षण शरीर मे उपस्थित आवश्यक वसा को कम कर देता है, जिसका असर शरीर मे जरूरी मेटाबोलिजम तथा अन्य हार्मोनो पर प़डता है और यौन-शक्ति मे कमी आने लगती है आहार: गर्म तथा अधिक मसालेदार आहर का प्रयोग भी इसका एक कारण है


शराब-सिगरेट तथा तंबाकु के अत्याधिक सेवन से जननांग की कोशिकाए शीथल प़ड जाती है। जो यौन-शक्ति कमजोर होने का मुख्य कारण है।


मधुमेह तथा उक्त रक्तचाप भी यौन-शक्ति कम करता है।


यौन-शक्ति बढ़ाने के प्रभावी घरेलु उपाय:-



बादाम, पिस्ता खजूर तथा श्रीफल के बीजो को बराबर मात्रा मे लेकर मिश्रण बनाए। प्रतिदिन 100 ग्राम सेवन करें।


लहसुन के बाद प्याज एक और कारगर उपाय है। सफेद कच्चे प्याज का प्रयोग अपने नित्य आहार मे करें।


15 ग्राम सहजन के फूलो को 250 मिली दूध मे उबालकर सूप बनाए। यौन-टौनिक के रूप मे इसका सेवन करें।


काले-चने से बने खाद्य-पदार्थ जैसे डोसा आदि का हफ्ते मे 2-3 बार प्रयोग काफी लाभकारी होता है।


150 ग्राम बारीक कटी गाजर को एक उबले हुए अंडे के आधे हिस्से मे एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में एक बार सेवन करे। इसका प्रयोग लगातार 1-2 महीने तक करें।


प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार 5-10 ग्राम भिंडी की ज़ड के पाउडर को एक गिलास दूध तथा दो चम्मच मिश्री मे मिलाकर नित्य सेवन करने से आपकी यौन-शक्ति कभी कम नहीं पड़ेगी।


कच्चे लहसुन की 2-3 कलियो का प्रतिदिन सेवन करना यौन-शाक्ति बढ़ाने का बेहतरीन घरेलु उपचार है।


30 ग्राम किशमिश को गुनगुने पानी मे धोए, 200 मिली दूध मे उबाले तथा दिन मे तीन बार सेवन करे। ध्यान रखिए की प्रत्येक बार ताजा मिश्रण तैयार करे। धीरे धीरे 30 ग्राम किशमिश की मात्रा को 50 ग्राम तक करें।


यूनानी चिकित्सा के अनुसार सफेद मूसली का प्रयोग भी बेहद लाभदायक होता है। 15 ग्राम सफेद मूसली को एक कप दूध मे उबालकर दिन मे दो बार पीने से यौन-शक्ति बढ़ती है।


आधा चम्मच अदरक का रस, एक चम्मच शहद तथा एक उबले हुए अंडे का आधा हिस्सा, सभी को मिलकार मिश्रण बनाए प्रतिदिन रात को सोने से पहले एक महीने तक सेवन करें।


यौन-शक्ति दुर्बलता से पीड़ित रोगियों को प्रारंभ में 5-5 घंटे के अंतराल पर खासकर ताजे फलों का आहार लेना चाहिए। इसके बाद ही अपनी नियमित खुराक की प्रक्रिया को धीरे-धीरे अपनाना चाहिए। यौन-शक्ति दुर्बलता वाले रोगी को धूम्रपान, शराब, चाय और कॉफी के सेवन से बचना चाहिए। इसके अलावा सफेद चीनी और मैदे व इनसे बने उत्पादो के सेवन से हरसंभव परहेज करना चाहिए।

सेक्स लाइफ को बेहतर करे इन सुपर-फ़ूड से -


उपचार और प्रयोग -

गन्ने और गुड से होने वाले उपचार ....!

* 2 से 4 ग्राम हरड़ का चूर्ण खाकर ऊपर से गन्ने का रस पीने से गलगण्ड के रोग में लाभ प्राप्त होता है।

* गन्ने को गर्म राख में सेंककर चूसने से स्वरभंग (गला बैठने) के रोग में लाभ होता है।

* 3 से 6 ग्राम गुड़ को बराबर मात्रा में सरसों के तेल के साथ मिलाकर सेवन करने से श्वास में लाभ प्राप्त होता है।

* ईख की 5-10 ग्राम जड़ को पीसकर कांजी के साथ सेवन करने से स्त्री का दूध बढ़ता है।

* गन्ने का रस और अनार का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) में लाभ होता है।




* गुड़ के साथ थोड़ा सा जीरा मिलाकर सेवन करने से अग्निमान्द्य, शीत और वात रोगों में लाभ मिलता है।

* अश्मरी (पथरी) को निकलने के बाद रोगी को गर्म पानी में बैठा दें और मूत्रवृद्धि के लिए गुड़ को दूध में मिलाकर कुछ गर्म पिला दें। गन्ने को चूसते रहने से पथरी चूर-चूर होकर निकल जाती है। गन्ने का रस भी लाभदायक है।

* गुर्दे का दर्द में 11 ग्राम गुड़ और बुझा हुआ चूना 500 मिलीग्राम दोनों को एकसाथ पीसकर 2 गोलियां बना लें, पहले एक गोली गर्म पानी से दें। अगर गुर्दे का दर्द शांत न हो तो दूसरी गोली दें।

* गुड़ की खाली बोरी जिसमें 2-3 साल तक गुड़ भरा रहा हो, उसे लेकर जला डाले और उसकी राख को छानकर रख लें। इस राख को रोजाना 3 ग्राम सेवन करने से श्वेत प्रदर और रक्तप्रदर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। गन्ने का रस पीने से पित्तज प्रदर मिट जाता है।

* गुड़ को आंवलों के 2-4 ग्राम चूर्ण के साथ सेवन करने से वीर्यवृद्धि होती है तथा थकान, रक्तपित्त (खूनी पित्त), जलन, दर्द और मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना) आदि रोग नष्ट होते हैं।

* कनखजूरा आदि जन्तुओं के काटने या चिपक जाने पर गुड़ को जलाकर लगाने से लाभ होता है।

* 5 ग्राम गुड़ के साथ, 5 ग्राम अदरक या सोंठ या पीपल अथवा हरड़ इनमें से किसी भी एक चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से सूजन, प्रतिश्याय (जुकाम), गले के रोग, मुंह के रोग, खांसी, श्वास, अरुचि, पीनस (नजला), जीर्ण ज्वर (पुराने बुखार में), बवासीर, संग्रहणी आदि रोग तथा कफवात जैसे दूसरे रोग भी दूर हो जाते हैं।

* गुड़ को पानी में मिलाकर 25 बार कपड़े में छानकर पीने से दाह (जलन) शांत होती है। बुखार की गर्मी की शान्ति के लिए इसे पिलाया जाता है।

नुकीली चीजों के पैरों में गड़ जाने पर जेसे - कांटा, पत्थर कांच आदि के पैरों में गड़ जाने पर गुड़ को आग पर रखकर गर्म-गर्म चिपका देने पर लाभ प्राप्त होता है।

* नलवात होने पर गुड़ को ताजे गाय के दूध में इतना मिलायें कि वह मीठा हो जाए और फिर खडे़-खड़े ही इसको पी लें। इसके बाद 3 घंटे बाद तक बैठना नहीं चाहिए। उसी समय लाभ मिलता है।

* मिश्री के टुकड़े के साथ एक छोटा सा कत्थे का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह के छाले आदि में लाभ प्राप्त होता है। मिश्री को पानी में घिसकर आंखों में लगाने से आंखों की सफाई होती है तथा दृष्टिमान्द्य (आंखों की रोशनी कम होने का रोग) दूर होता है। मिश्री और घी मिले हुए दूध को पीने से ज्वर का वेग (बुखार) कम हो जाता है।

* गन्ने के रस की नस्य (नाक में डालने) देने से नकसीर में लाभ होता है।

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Sunday, December 28, 2014

मुगल शहंशाह ने उसके पति को ही मार डाला और फिर किया उससे निकाह, जानिए कौन है यह शहंशाह-



मुगल शहंशाह जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर के पुत्र, मुहम्मद सलीम जिन्हें इतिहास ने शहंशाह जहांगीर के नाम से नवाजा है वे मुगल साम्राज्य के चौथे सम्राट थे. इनका जन्म 30 अगस्त, 1569 को हुआ था व इन्होंने 22 वर्षों तक अपनी प्रजा पर राज करने के बाद 8 नवंबर, 1627 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. यह तो सारी दुनिया जानती है कि वे अकबर के पुत्र थे जिन्हें अनेकों मन्नतों के बाद शहंशाह ने प्राप्त किया था. इस सबके अलावा कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जो आज इतिहास के पन्नों में दफन हो गए.

इस बात से सभी परिचित हैं कि सलीम उर्फ़ जहांगीर मुहम्मद, अकबर के सबसे बड़े व दुश्मन की नजरों से बचे रहे इकलौते पुत्र थे. जहांगीर को काफी कम आयु में अकबर के बाद मुगल शासन की गद्दी पर बैठने वाला शहंशाह घोषित कर दिया गया था जिसे मुगल भाषा में ‘वालिहाद’ कहा जाता है, लेकिन असल में उन्हें सत्ता में आने के लिए काफी समय लगा था जिसका कारण काफी कम लोग जानते हैं. कहा जाता है कि कम आयु में ही सलीम को नशे में रहने की बुरी लत लग गई थी. वो शराब का अत्यधिक सेवन करते थे व साथ ही उन्हें अफ़ीम की भी बुरी लत थी. कुछ लोगों का कहना है कि उनकी इस हालत का जिम्मेदार शहंशाह अकबर के हरम की ऐसी शख्सियत थी जो उन्हें गलत दिशा में लेकर जाने की योजना बनाए बैठी थी लेकिन वक्त आने पर अकबर ने यह अन्याय होने से रोक दिया.

कला, चित्रकारी में रुचि रखने वाले शहंशाह जहांगीर की नजर एक बार एक स्त्री पर आकर रुक गई जो उनकी आंखों से हट ही नहीं रही थी. वो एक पारसी एवं विवाहित स्त्री थी जिससे इस मुगल शहंशाह को बेइंतहा आकर्षण हो गया था और जहांगीर उसे पाने के लिए कुछ भी कर जाने को इच्छुक थे. कुछ लोगों का कहना है कि उस पारसी स्त्री से विवाह करने के लिए जहांगीर ने उसके पति को मरवा दिया जिसके पश्चात उन्होंने उस विधवा से सहानुभूति जताते हुए विवाह किया. यह स्त्री और कोई नहीं बल्कि जहांगीर के हरम की सबसे बड़े ओहदे वाली बेगम थी जिसे शहंशाह ने ‘नूरजहां’ के नाम से नवाजा था. इतिहास कहता है कि नूरजहां राजनीतिक पैंतरों में काफी कुशल समझी जाती थी जिसके फलस्वरूप उन्होंने हरम में अपने मन मुताबिक अनगिनत मनमानियां की थी. हरम में भविष्य में भी अपना ओहदा बनाए रखने के लिए नूरजहां ने अपने एक पुत्र का निकाह खुद की एक पुत्री से करा दिया और अपने एक और पुत्र ‘शाहजहां’ का निकाह अपनी भतीजी ‘मुमताज महल’ से कर दिया. इससे उसकी ताकत और भी बढ़ गई थी लेकिन अंत कुछ ठीक ना रहा...

कमर और पेट का ये बढ़ता साइज कई बीमारियों का कारण बन सकता है....!

आपका लगातार वजन बढ़ रहा है तो सावधान हो जाइए।

आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तो हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे छोटे-छोटे नुस्खे, जिन्हें अपनाकर आप बिना ज्यादा मेहनत किए वजन को नियंत्रित कर सकते हैं:--

* पुदीने की ताजी हरी पत्तियों की चटनी बनाकर चपाती के साथ खाएं। पुदीने वाली चाय पीने से भी वजन नियंत्रण में रहता है।

* आधा चम्मच सौंफ को एक कप खौलते पानी में डाल दें। 10 मिनट तक इसे ढककर रखें। ठंडा होने पर इस पानी को पिएं। ऐसा तीन माह तक लगातार करने से वजन कम होने लगता है।

पपीता नियमित रूप से खाएं। यह हर सीजन में मिल जाता है। लंबे समय तक पपीता के सेवन से कमर की अतिरिक्त चर्बी कम होती है।

* दही का खाने से शरीर की फालतू चर्बी घट जाती है। छाछ का भी सेवन दिन में दो-तीन बार करें।

* छोटी पीपल का बारीक चूर्ण पीसकर उसे कपड़े से छान लें। यह चूर्ण तीन ग्राम रोजाना सुबह के समय छाछ के साथ लेने से बाहर निकला हुआ पेट अंदर हो जाता है।

* ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाली वस्तुओं से परहेज करें। शक्कर, आलू और चावल में अधिक कार्बोहाइड्रेट होता है। ये चर्बी बढ़ाते हैं।

* केवल गेहूं के आटे की रोटी की बजाय गेहूं, सोयाबीन और चने के मिश्रित आटे की रोटी ज्यादा फायदेमंद है।

* सब्जियों और फलों में कैलोरी कम होती है, इसलिए इनका सेवन अधिक मात्रा में करें। केला और चीकू न खाएं। इनसे मोटापा बढ़ता है।

* आंवले व हल्दी को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छाछ के साथ लेंं। #कमर एकदम पतली हो जाएगी।

* मोटापा कम नहीं हो रहा हो तो खाने में कटी हुई हरी मिर्च या काली मिर्च को शामिल करके बढ़ते वजन पर काबू पाया जा सकता है। एक रिसर्च में पाया गया कि वजन कम करने का सबसे बेहतरीन तरीका मिर्च खाना है। मिर्च में पाए जाने वाले तत्व कैप्साइसिन से भूख कम होती है। इससे ऊर्जा की खपत भी बढ़ जाती है, जिससे वजन कंट्रोल में रहता है।

* लटजीरा या चिरचिटा के बीजों को एकत्र कर लें। किसी मिट्टी के बर्तन में हल्की आंच पर भूनकर पीस लें। एक-एक चम्मच दिन में दो बार फांकी लें, बहुत फायदा होगा।

* दो बड़े चम्मच मूली के रस में शहद मिलाकर बराबर मात्रा में पानी के साथ पिएं। ऐसा करने से 1 माह के बाद #मोटापा कम होने लगेगा।

* मालती की जड़ को पीसकर शहद मिलाकर खाएं और छाछ पिएं। प्रसव के बाद होने वाले मोटापे में यह रामबाण की तरह काम करता हैै।

* खाने के साथ टमाटर और प्याज का सलाद काली मिर्च व नमक डालकर खाएं। इनसे शरीर को विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन के, आयरन, पोटैशियम, लाइकोपीन और ल्यूटिन मिलेेगा। इन्हें खाने के बाद खाने से पेट जल्दी भर जाएगा और वजन नियंत्रित हो जाएगा।

* रोज सुबह-सुबह एक गिलास ठंडे पानी में दो चम्मच शहद मिलाकर पिएं। इस घोल को पीने से शरीर से वसा की मात्रा कम होती है।

* गुग्गुल गोंद को दिन मे दो बार पानी में घोलकर या हल्का गुनगुना कर सेवन करने से #वजन कम करने में मदद मिलती है।

* हरड़ और बहेड़ा का चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण 50 ग्राम परवल के जूस (1 गिलास) के साथ मिलाकर रोज लें, वजन तेजी से कम होने लगेगा।

* करेले की सब्जी खाने से भी वजन कम करने में मदद मिलती है। सहजन के नियमित सेवन से भी वजन नियंत्रित रहता है।

* सौंठ, दालचीनी की छाल और काली मिर्च (3 -3 ग्राम) पीसकर चूर्ण बना लें। सुबह खाली पेट और रात सोने से पहले पानी से इस चूर्ण को लें, #मोटापा कम होने लगेगा।

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Saturday, December 27, 2014

ये है एक नायाब नुस्खा त्रियोग....!



* ये योग तीन चीजों का योग है जिसे मैथीदाना, अजवाइन और कलौंजी को मिला कर बनाया जाता है....

* तीनों चीजें सहजता से उपलब्ध हैं और औषधि गुणों से भरपूर हैं।
मैथीदाना 250 ग्राम
                                       

जवाइन 100 ग्राम 

कलौंजी(Vernonia Anthelmintica) 50 ग्राम लें...

* तीनों को बारीक पीस कर चूर्ण बना लें।

* यह चूर्ण रोज आधा चम्मच मात्रा में रात को सोते समय गर्म पानी के साथ लिया जाए तो पेट के तमाम रोगों में फायदा करता है। कब्ज तो कोसों दूर हो जाता है। इसके साथ पथ्य भी करें तो परिणाम बेहतर मिलते हैं। पथ्य अर्थात तली गुली चीजें, बेसन और मैदे से बनी चीजों से यथा संभव परहेज करें। भोजन में सलाद व रेशे वाले पदार्थ अधिक लें। यह नुस्खा गैस, अपच, भूख न लगना, भोजन के प्रति अरुचि आदि रोगों में बेहद लाभ करता है।

* अन्य फायदे:-
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गठिया दूर होता है ..

हड्डियां मजबूत होती हैं .

आँखों की रोशनी बढ़ती है .

बालों का विकास होता है .

शरीर में रक्तसंचार तीव्र होता है .

कफ से मुक्ति मिलती है .

हृदय की कार्य क्षमता बढ़ती है .

थकान नहीं रहेगी, अश्व के समान बल आएगा .

स्मरण शक्ति बढ़ती है .

शरीर की रक्तवाहिनियां शुद्ध होंगी .

मधुमेह काबू में रहेगा .

स्त्रियों में शादी के बाद होने वाली तकलीफें दूर होंगी .

नपुंसकता दूर होगी, बच्चा होगा वह भी तेजस्वी होगा.

त्वचा के रंग में निखार आएगा .

जीवन निरोग, चिंता रहित और स्फूर्तिदायक बनेगा .

* तो फिर इंतज़ार क्यों है आप भी एक बार आजमा कर देखिए। में स्वयं नियमित  प्रयोग करता हूँ कई लोगों ने आजमाया और लाभ पाया है। कम से कम दो माह में अपेक्षित परिणाम मिलने लगेंगे।

Friday, December 26, 2014

सोते समय दांत पीसना-

आमतौर पर लोगो को इसका पता ही नहीं होता -दांत पीसना या ब्रूसिज्‍म खर्राटों की ही तरह है। आमतौर पर यह सोते हुए होती है- और ज्‍यादातर मौकों पर आप इससे अनजान रहते हैं। लेकिन, आपकी यह आदत आपके साथी की नींद खराब कर सकती है। और शायद वही आपको सबसे पहले आपकी इस आदत के बारे में बताये-अगर आप सोचते हैं कि ब्रूकिज्‍म एक दौर है, जो कुछ समय बाद अपने आप रुक जाएगा, तो आप गलत हैं-





खर्राटों की ही तरह आपको इससे बाहर आने के लिए मदद की जरूरत होगी। दांत पीसना दांतों की समस्‍या का उत्‍प्रेरक ही है। दांत पीसने से लेकर पिसाई करने तक हम जानेंगे कि आखिर कौन सी आदतें आपके दांतों को खराब कर सकती हैं।


बच्‍चे दो बार अपने दांत पीसते हैं- पहली बार वे छोटे होते हैं और दूसरी बार जब उनके दांत निकलने लगते हैं। लेकिन, बच्‍चों में इस आदत के स्‍थायी प्रभाव नहीं होते, केवल सिरदर्द, जबड़ों में दर्द और दांत बाहर निकलने के...जैसे-जैसे बच्‍चे बड़े होते हैं उनके स्‍थायी दांत निकल आते हैं। कुछ बच्‍चों में दांत पीसने की यह आदत लगातार चलती रहती है। हालांकि इसके कारणों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन माना जाता है कि ऊपर और नीचे के दांतों में असामान्‍य दांतों के साथ यह समस्‍या होती है।
इसके लिए एलर्जी, एंडोक्रिन डिस्‍ऑर्डर और तनाव को भी कारण माना जा सकता है।


दांतों से पिसाई, झंझरी, पीसना इस बीमारी के स्‍थायी लक्षण हैं। ये सब तेज आवाज करते हैं। अगर आप अपने दांतों को पीसते हैं, तो
सुबह उठते समय आपको तेज सिरदर्द और जबड़ों में सूजन की शिकायत हो सकती है


दांतों को पीसने को चिकित्‍सीय भाषा में ब्रूकिज्‍म कहा जाता है। और इसके कारणों को लेकर बहस होती रहती है। तनाव इसका अहम कारण है। लेकिन, भंग दांत या दांत न होना भी इसके पीछे की वजह माना जा सकता है। इलाज दंत चिकित्‍सक आपको टी‍थ-गार्ड दे सकता है। कुछ दुर्लभ मामलों में आपको रूट कैनाल कराने की जरूरत भी पड़ सकती है। इसके साथ ही क्राउन, ब्रिज, और दांत इम्‍प्‍लांट करना या पूरी तरह से नया भी लगवाना पड़ सकता है।



इसलिए, अगर आपका साथी आपसे कहे कि आप नियमित रूप से दांतों खटखटाते हैं या दांत पीसते हैं, तो उसकी बातों को अनसुना न करें। इस बीमारी के इलाज के लिए फौरन अपने दंत चिकित्‍सक से संपर्क करें। क्‍या न करें सबसे पहले तनाव से दूर रहें। इसके साथ ही ध्‍यान और व्‍यायाम करें। इसके बाद अपना लाइफस्‍टाइल बदलें, जिसमें कॉफी, कैफीन और अल्‍कोहल का सेवन न करना। च्‍युइंगम अथवा भोजन के अलावा अन्‍य चीज चबाने से बचें। इसके साथ ही अपने खानपान संबंधी आदतों में भी सकारात्‍मक बदलाव करें।


उपचार और प्रयोग -http://www.upcharaurprayog.com

आप तुलसी के पौधे के बीज को संभाल कर रक्खे ये बड़े काम की है ....!

जब भी तुलसी में खूब फुल यानी मंजिरी लग जाए तो उन्हें पकने पर तोड़ लेना चाहिए वरना तुलसी के झाड में चीटियाँ और कीड़ें लग जाते है और उसे समाप्त कर देते है . इन पकी हुई मंजिरियों को रख ले . इनमे से काले काले बीज अलग होंगे उसे एकत्र कर ले . यही सब्जा है . अगर आपके घर में नही है तो बाजार में पंसारी या आयुर्वैदिक दवाईयो की दुकान पर मिल जाएंगे ..



* तुलसी चटपटी, कड़वी अग्निदीपक, हृदय को हितकारी गरम, दाह, पित्त, वृद्धिकर, मूत्रकृच्छ, कोढ़, रक्तविकार, पसली-पीड़ा तथा कफ वातनाशक है। पाश्चात्य मतानुसार श्वेत तुलसी उष्ण, पाचक एवं बालकों के प्रतिश्याय व कफ रोग में कार्यान्वित होता है। काली तुलसी शीत, स्निग्ध, कफ एवं ज्वरनाशक है। फुसफुस के अन्दर से कफ निकालने के लिए काली मिर्च के साथ तुलसी के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। तुलसी रोगाणुनाशक पौधा है। प्राय: सभी हिन्दू घरों में यह मिलता है और इसकी पूजा होती है।

* केवल क्षय और मलेरिया के कीटाणु ही तुलसी की गंध से समाप्त नहीं हो जाते, अन्य रोगों के कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मलाया में मलेरिया की अधिकता को देखकर वहां की सरकार ने पार्कों में वनों में खाली जमीन जहां भी थी वहां तुलसी के पौधे रोपने का एक जोरदार अभियान चलाया था। उसके परिणामस्वरूप महामारी के रूप में कुख्यात मलेरिया धीरे-धीरे कम होते हुए अब बिलकुल समाप्त हो गया है। वहां के निवासी तुलसी के गुणों से भली-भांति परिचित हो चुके हैं। आज उनके घरों में तुलसी के एक-दो नहीं कई-कई पौधे लहलहाते दिखाई देते हैं।

* अनेक होमियोपैथिक दवाइयां तुलसी के रस से तैयार की जाती हैं। मेटेरिया मेडिका में तुलसी के अनेक गुणों का उल्लेख किया गया है।

* हमारे दैनिक जीवन में तुलसी का बहुत ही व्यापक उपयोग है। घर में हम अन्य फूलदार पौधे गमलों में लगाते हैं क्योंकि हर घर में कच्ची जमीन नहीं होती। हमें गमलों में तुलसी के भी दो-चार पौधे लगाने चाहिए। हालांकि जमीन में तुलसी का पौधा जिस तेजी से पनपता और विकसित होता है गमले में नहीं हो पाता। लेकिन इससे उसके गुणों में कोई अन्तर नहीं आता।

* तुलसी का सेवन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। तुलसी का उपयोग करने के तत्काल बाद दूध नहीं पीना चाहिए। उससे कई रोग पैदा हो जाते हैं। अनेक आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन दूध के साथ बताया गया है लेकिन तुलसी का सेवन गंगाजल, शहद या फिर सामान्य पानी के साथ बताया गया है।
आयुर्वेद के मतानुसार, यदि कार्तिक मास में प्रातःकाल निराहार तुलसी के कुछ पत्तों का सेवन किया जाए तो मनुष्य वर्ष भर रोगों से सुरक्षित रहता है।

* तुलसी के सेवन का मनुष्य के चरित्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है। तुलसी के सेवन से विचार शुद्ध और पवित्र रहते हैं। आध्यात्मिक विचार उत्पन्न होते हैं। वासना की ओर मन आकृष्ट नहीं हो पाता। मन में न तो वासनात्मक विचार उत्पन्न होते हैं न क्रोध आता है। तुलसी के नियमित सेवन से शरीर में चुस्ती-फुर्ती पैदा होती है। चेहरा कान्तिपूर्ण बन जाता है।
तुलसी रक्त विकार का सबसे बड़ा शत्रु है। रक्त में किसी भी कारण से विकार उत्पन्न हो गए हों, धोखे या जानबूझकर खा लेने पर विष रक्त में घुलमिल गया हो, तुलसी के नियमित प्रयोग से वह विष रक्त से निकल जाता है।
तुलसी के पौधे आंखों की ज्योति और मन को शान्ति प्रदान करते हैं। वातावरण में सात्विकता की सृष्टि करते हैं। तुलसी हृदय को सात्विक बनाती है। मन, वचन और कर्म से पवित्र रहने की प्रेरणा के लिए तुलसी प्रयोग की जाती है।
जीवन की सफलता मन की एकाग्रता पर बहुत कुछ निर्भर करती है। यदि मन एकाग्र न हो तो मनुष्य न तो भजन, पूजन, आराधना और चिन्तन-मनन कर सकता है न ही अध्ययन कर सकता है।

भारतीय चिकित्सा विज्ञान (आयुर्वेद) का सबसे प्राचीन और मान्य ग्रंथ चरक संहिता में तुलसी के गुणों का वर्णन करते हुए कहा गया है-

                       हिक्काल विषश्वास पार्श्व शूल विनाशिनः।
                       पितकृतात्कफवातघ्र सुरसः पूर्ति गंधहा।।

अर्थात् तुलसी हिचकी, खांसी, विष विकार, पसली के दाह को मिटाने वाली होती है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित कफ तथा वायु का शमन होता है। भाव प्रकाश में तुलसी को रोगनाशक, हृदयोष्णा, दाहिपितकृत शक्तियों के सम्बन्ध में लिखा है।

                       तुलसी कटुका तिक्ता हृदयोष्णा दाहिपितकृत।
                       दीपना कष्टकृच्छ् स्त्रार्श्व रुककफवातेजित।।

अर्थात् तुलसी कटु, तिक्त, हृदय के लिए हितकर, त्वचा के रोगों में लाभदायक, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली मूत्रकृच्छ के कष्ट को मिटाने वाली होती है। यह कफ और वात सम्बन्धी विकारों को ठीक करती है।

धन्वंतरि निघुंट में कहा गया है-

                       तुलसी लघु उष्णाच्य रूक्ष कफ विनाशिनी।
                       क्रिमिमदोषं निहंत्यैषा रुचि वृद्वंहिदीपनी।।

तुलसी, हल्की, उष्ण रूक्ष, कफ दोषों और कृमि दोषों को मिटाने वाली अग्नि दीपक होती है।
सामान्यतः तुलसी के दो ही भेद जाने जाते हैं जिन्हें रामा और श्यामा कहते हैं। रामा के पत्तों का रंग हलका होता है जिससे उसका नाम गौरी पड़ गया है। श्यामा अथवा कृष्णा तुलसी के पत्तों का रंग गहरा होता है और उसमें कफनाशक गुण अधिक होता है। इसलिए औषधि के रूप में प्रायः कृष्णा तुलसी का ही प्रयोग किया जाता है। इसकी गंध व रस में तीक्ष्णता होती है। तुलसी की अन्य कई प्रजातियाँ होती हैं। एक प्रजाति ‘वन तुलसी’ है जिसे ‘कठेरक’ भी कहते हैं। इसकी गंध घरेलू तुलसी की अपेक्षा कम होती है और इसमें विष का प्रभाव नष्ट करने की क्षमता होती है। रक्त दोष, नेत्रविकार, प्रसवकालीन रोगों की चिकित्सा में यह विशेष उपयोगी होती है। दूसरी जाति को ‘मरुवक’ कहते हैं। राजा मार्तण्ड ग्रन्थ में इसके लाभों की जानकारी देते हुए लिखा गया है कि हथियार से कट जाने या रगड़ लगकर घाव हो जाने पर इसका रस लाभकारी होता है। किसी विषैले जीव के डंक मार देने पर भी इसका रस लाभकारी होता है। तीसरी जाति बर्बरी या बुबई तुलसी की होती है, इसकी मंजरी की गंध अधिक तेज होती है। इसके बीज अत्यधिक वाजीकरण माने गए हैं। 

* अनेक हकीमी नुस्खों में इनका प्रयोग होता है। वीर्य की वृद्धि करने व पतलापन दूर करने के लिए बर्बरी जाति की तुलसी के बीजों का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा तुलसी की एक कृमिनाशक जाति भी होती है।

जैसा नाम वैसा गुण:--
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तुलसी के कई नाम हैं जो इसके गुणों का इतिहास बताते हैं। वेदों, औषधि-विज्ञान के ग्रंथों और पुराणों में इसके कुछ प्रमुख नाम-गुण इस प्रकार हैं-

* कायस्था--क्योंकि यह काया को स्थिर रखती है।
* तीव्रा--क्योंकि यह तीव्रता से असर करती है।
* देव-दुन्दुभि--इसमें देव-गुणों का निवास होता है।
* दैत्यघि- -रोग-रूपी दैत्यों का संहार करती है।
* पावनी- -मन, वाणी और कर्म से पवित्र करती है।
* पूतपत्री- -इसके पत्र (पत्ते) पूत (पवित्र) कर देते हैं।
* सरला-- हर कोई आसानी से प्राप्त कर सकता है।
* सुभगा- -महिलाओं के यौनांग निर्मल-पुष्ट बनाती है।
* सुरसा-- यह अपने रस (लालारस) से ग्रन्थियों को सचेतन करती है।

शोभा, सुगन्धि और पवित्रता की प्रतीक है ये ---

तुलसी का पौधा जिस आंगन में लहलहाता है, उसकी शोभा और सुगन्धि में पवित्रता होती है। महिलाएं अपना चरित्र तुलसी-जैसा बनाने में ही अपना जीवन सार्थक मानती हैं। 

इसीलिए विनम्र भाव से वे कहती हैं- ‘‘मैं तुलसी तेरे आंगन की।’’

तुलसी का माहात्म्य:--
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1 यह मन में बुरे विचार नहीं आने देती।
2 रक्त-विकार शान्त करती है।
3 त्वचा और छूत के रोग नहीं होने देती।
4 तुलसी की कंठी माला कंठ रोगों से बचाती है।
5 कामोत्तेजना नहीं होने देती, नपुंसक भी नहीं बनाती।
6 तुलसी-दल चबाने वाले के दांतों को कीड़ा नहीं लगता।
7 तुलसी के सेवक को क्रोध कम आता है।
8 तुलसी की माला, कंठी, गजरा और करधनी पहनना शरीर को निर्मल, रोगमुक्त और सात्विक बनाता है।
9 कार्तिक महीने में जो तुलसी का सेवन करता है, उसे साल भर तक डॉक्टर-वैद्य, हकीम के पास जाने की जरूरत नहीं पड़तीं।
10 तुलसी को अंधेरे में तोड़ने से शरीर में विकार आ सकते हैं क्योंकि अंधकार में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती हैं।
11 तुलसी का सेवन करने के बाद दूध न पीएं। इससे चर्म-रोग हो सकते हैं।
12 कार्तिक महीने में यदि तुलसी-दल या तुलसी-रस ले चुकें हों तो उसके बाद पान न खाएं। ये दोनों गर्म हैं और कार्तिक में रक्त-संचार भी प्रबलता से होता है, इसलिए तुलसी के बाद पान खाने से परेशानी में पड़ सकते हैं।
13 तुलसी-दल के जल से स्नान करके कोढ़ नहीं होता।
14 सूर्य-चन्द्र ग्रहण के दौरान अन्न-सब्जी में तुलसी-दल इसलिए रखा जाता है कि सौरमण्डल की विनाशक गैसों से खाद्यान्न दूषित न हो।
15 जीरे के स्थान पर पुलाव आदि में तुलसी रस के छींटे देने से पौष्टिकता और महक में दस गुना वृद्धि हो जाती है।
16 तेजपात की जगह शाक-सब्जी आदि में तुलसी-दल डालने से मुखड़े पर आभा, आंखों में रोशनी और वाणी में तेजस्विता आती है।
17 तेल, साबुन, क्रीम और उबटन में तुलसी, दल और तुलसी रस का उपयोग, तन-बदन को निरोग, सुवासित, चैतन्य और कांतिमय बनाता है।
18 स्वभाव में सात्विकता लाने वाला केवल यही पौधा है।
19 तुलसी केवल शाखा-पत्तों का ढेर नहीं, आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है।
20 तुलसी के आगे खड़े होकर पढ़ने, विचारने दीप जलाने और पौधे की परिक्रमा करने से दसों इन्द्रियों के विकार दूर होकर मानसिक चेतना मिलती है।

* बुखार का हमला मनुष्य पर कभी भी हो सकता है। मौसम बदलना शुरू हुआ नहीं कि बुखार ने आ घेरा। मच्छरों का आक्रमण भी मलेरिया जैसे जानलेवा बुखार को आमिन्त्रत कर देता है। ऐसे में आवश्यकता होती है उचित इलाज और सटीक जानकारी की, जो इस अध्याय में दी जा रही है।
सामान्य ज्वर:-
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* इसमें शरीर का तापमान 102-103 डिग्री हो जाता है। बेचैनी, शरीर में दर्द, प्यास का अधिक लगना, सिर-हाथ-पैरों में पीड़ा।
गर्मी या धूप में अधिक घूमना, थकावट, पेट में दर्द, सर्दी-गर्मी के प्रभाव से यह रोग हो सकता है।

उपचार:-

* दस तुलसी के पत्ते, बीस काली मिर्च, पांच लौंग, थोड़ी-सी सोंठ पीसकर ढाई सौ मिलीलीटर पानी में उबाल लें और शक्कर मिलाकर रोगी को पिला दें। अगर रोगी को ज्वर के कारण घबराहट महसूस होती हो तो तुलसी के रस में शक्कर डालकर शरबत बना लें और रोगी को पिला दें। शीघ्र आराम मिलता है।

मौसमी बुखार:-
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* बरसात या मौसम बदलने से रक्त संचार पर भला-बुरा असर पड़ता ही है और ज्वर के रूप में हमारे अंदर घंटी बजा देता है।

उपचार:-

* तुलसी की दस ग्राम जड़ लेकर पानी में उबालिए और पी जाइए दो-तीन दिन सुबह-शाम इस उपचार से रक्त-साफ स्वच्छ हो जाएगा।

पुराना बुखार:-
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* पुराना बुखार हो तो फेफड़े कमजोर होने लगते हैं, खांसी उठती रहती है, छाती में दर्द भी होता है।

उपचार:-

तुलसी रस में मिश्री घोलकर तीन-तीन घंटे बाद तीन दिन तक पिलाए। ज्वर भी उतर जाएगा और खांसी व दर्द भी जाते रहेंगे।

सर्दी बुखार:-
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उपचार:-

* पांच तुलसी-दल और पांच काली मिर्च पानी में पीसकर पिलाएं। तुलसी-मिर्च का वह चूर्ण ढाई सौ ग्राम पानी में उबालकर पिलाने से तुरन्त असर होता है। आधे-आधे घंटे बाद दो बडे़ चम्मच पिलाते रहने से निश्चित लाभ होता है।

खांसी बुखार:-
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उपचार:-

* दस ग्राम तुलसी-रस, बीस ग्राम शहद और पांच ग्राम अदरक का रस मिलाकर एक बड़ा चम्मच भर कर पिला दें। अद्भुत योग है, आजमाकर देख लें।

* ग्यारह पत्ते तुलसी और ग्यारह दाने काली मिर्च, दोनों को पानी में पीसकर छान लें। इधर आग पर मिट्टी का खाली सकोरा पकाकर लाल कर दें और उसमें तुलसी काली मिर्च का घोल छौंक दें। यह घोल गुनगुना रह जाने पर काला नमक मिलाकर पिला दें। खांसी बुखार समूल निकल भागेंगे।
* दो ग्राम तुलसी पत्ते, दो ग्राम अजवायन पीसकर पचास ग्राम पानी में घोलकर पिला दें। सुबह-शाम पिलाएं।

मलेरिया:-
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* इसके लक्षण हैं-ठंड लगकर बुखार आना, कंपकपी लगना, शरीर में दर्द, घबराहट, भोजन में अरुचि, आंखों में लाली, मुंह सूख जाना। 
मौसमी बुखार, बदहजमी, पेट के विकार, कब्ज लू लगने आदि विकारों से ग्रस्त रोगियों का खून जब मच्छरों द्वारा फैलता है तो अच्छे-अच्छों को चारपाई पर पटक देता है। इसी को मलेरिया कहते हैं।

उपचार:-

* तुलसी का रस, मंजरी, तुलसी-माला, तुलसी के पौधे और तुलसी-बीज मलेरिया को काटकर फेंक देते हैं। तुलसी-रस दस ग्राम और पिसी काली मिर्च एक ग्राम मिलाकर रोगी को दिन में पांच-छह बार दो-दो घंटे बाद पिलाते रहें। परेशानी से बचना चाहें तो तुलसी के दो सौ ग्राम रस में सौ ग्राम काली मिर्च मिलाकर रख दें। सुबह-दोपहर-शाम एक-एक चम्मच पिलाएं।

पुराना मलेरिया:-
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उपचार:-

* सात तुलसी-दल और सात काली मिर्च दोनों दाढ़ के नीचे रखकर चूसते रहें दिन में तीन-चार बार यही प्रक्रिया दोहराने से महीनों पुराना मलेरिया भी भाग जाएगा।

लगातार बुखार रहना:-
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उपचार:-

* जलकुम्भी के फूल, काली मिर्च और तुलसी-दल, तीनों समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें और प्रातः-सायं पिलाएं।

* तुलसी-दल दस ग्राम लेकर पांच दाने काली मिर्च के साथ घोट लें और दिन में तीन बार सेवन कराएं। आन्तरिक सफाई होते ही बुखार का नामोनिशान भी नहीं रहेगा।

सन्निपात:-
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उपचार:-

* ज्वर इतने जोर का बढ़ जाए कि आदमी बड़बड़ाने लगे, ऐसी स्थिति में तुलसी, बेल (बिल्व) और पीपल के पत्तों का काढ़ा उबालें। जब पानी ढाई-तीन सौ ग्राम बच जाए तो शीशी में भर लें। दस-दस ग्राम दो-दो घंटे बाद रोगी का पिलाते रहें। निश्चित ही लाभ होगा।

लू लगना:-
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उपचार:-

* एक चम्मच तुलसी-रस में देशी शक्कर मिलाकर एक-एक घंटे बाद देते रहें। यह न समझें कि तुलसी-रस गर्म होने से हानि पहुंचाएगा। संजीवनी शक्ति जिस कन्दमूल में भी होगी, वह गर्म ही होगा। आराम आने के बाद भी धूप में निकलना हो तो तुलसी रस में नमक मिलाकर पीएं इससे लू लगने की आशंका ही नहीं रहेगी। प्यास भी कम लगेगी और चक्कर भी नहीं आएंगे।

टूटा-टूटा बदन:-
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* उपचार-तुलसी दल की चाय बनाकर पीएं आपके बदन में ताजगी की लहरें दौड़ने लगेंगी। घर में अगर चाय की पत्ती की जगह तुलसी दल सुखाकर रख लें तो कफ, सर्दी, जुकाम, थकान और बुखार या सिर-दर्द पास भी नहीं फटकेंगे।

श्वसन संस्थान के रोग:-
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* प्रदूषण के साथ ही दिनचर्या व खानपान का अव्यवस्थित होना मुख्य रूप से फेफड़ों से संबंधित रोगों के कारण है। बिना किसी पूर्व योजना के बने फ्लैट्स और मकानों में खुली हवा के न होने से भी फेफड़े रोगग्रस्त होते हैं।

जुकाम:-
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* इसके लक्षण हैं: नाक में खुश्की या श्लेष्मा अधिक बहना, खांसी के साथ कफ का निकलना, कान बंद हो जाना, छींक आना, आंखों से पानी आना, सिरदर्द। यह ऋतु के बदलने, अत्यधिक ठण्डे पेय पदार्थों के प्रयोग, पानी में भीगने, अत्यधिक मदिरापान, धूम्रपान तम्बाकू-गुटखे का सेवन करने से हो जाता है।

उपचार:-

* छोटी इलायची के कुल दो दाने और एक ग्राम तुलसी बौर (मंजरी) डालकर काढ़ा बनाएं और चाय की तरह दूध-चीनी डालकर पिला दें। दिन में चार-पांच बार भी पिला देंगे तो खुश्की नहीं करेगी, मगर सर्दी-जुकाम को जड़ से ही गायब कर देगी।

* तुलसी के पत्ते छः ग्राम सोंठ और छोटी इलायची छः-छः ग्राम, दालचीनी एक ग्राम पीसकर चाय की तरह उबाल लें। थोड़ी-सी शक्कर डाल लें। दिन में इस चाय का चार बार बनाकर पीएं। कुछ खाएं नहीं जुकाम कैसा भी हो ठीक हो जाएगा।
यदि जुकाम के साथ बुखार भी हो तो चाय के अलावा तुलसी के पत्तों का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर दिन में चार बार सेवन करें। जुकाम के कारण होने वाला ज्वर शान्त हो जाएगा।

* दालचीनीं, सोंठ और छोटी इलायची, कुल एक ग्राम, तुलसी-दल, छह ग्राम, इन्हें पीसकर चाय बनाएं और पीएं। दिन में ऐसी चाय चार बार भी ले सकते हैं। उस रात पेट भरकर खाना न खाएं। अगली सुबह आराम आ जाएगा।

शीघ्र पतन एवं वीर्य की कमी:-
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* तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से समस्या दूर होती है

नपुंसकता:--
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* तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में बढोतरि होती है।

मासिक धर्म में अनियमियता:-
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* जिस दिन मासिक आए उस दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो भी ठीक होती है

* तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां दाल कर ले तो गर्मी में बहुत ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है .यह पित्त घटाता है ये त्रीदोषनाशक , क्षुधावर्धक है
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

चावल के घरेलू नुस्खे....!


* चावल से तो प्रायः सभी परिचित होंगे, भारत के कई प्रदेशों में चावल मुख्य भोजन के रूप में शामिल है। चावल बहुत गुणकारी होता है, यह हलका व सुपाच्य भोज्य है, इसे बीमार तथा स्वस्थ सभी लोग पसंद करते हैं। पुराना चावल ज्यादा सुस्वादु लगता है।

* यदि रात्रि के भोजन में रोटी कम खाएं और चावल प्रतिदिन खाएं तो यह हलका भोजन आपका स्वास्थ्य ठीक रखेगा। 


* तीन साल पुराना चावल काफी स्वादिष्ट व ओजवर्धक होता है। #चावल को मांड सहित खाना चाहिए। मांड अलग कर देने से चावल के प्रोटीन, खनिज, विटामिन्स निकल जाते हैं और यह बेकार भोजन कहलाता है।

* मांड यानी चावल पकाते समय बचा हुआ गाढ़ा सफेद पानी होता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन्स व खनिज होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। जिनका पेट कमजोर हो यानी जो आसानी से भोजन न पचा पाते हों, उन्हें चावल में दूध मिलाकर 20 मिनट तक ढंककर रख दें, फिर खिलाएं तो आराम होगा।

* चावल के औषधीय उपयोग भी हैं, कई रोगों में यह लाभ करता है। सीने में या पेट में जलन, सूजाक, चेचक, मसूरिका, मूत्रविकार में नीबू के रस व नमक रहित चावल का मांड या कांजी सेवन करने से लाभ होता है।

* इसी प्रकार चावल, दाल (खासकर मूंग की), नमक, मिर्च, हींग, अदरक, मसाले मिलाकर बनाई गई खिचड़ी में घी मिलाकर सेवन करने से शरीर को बल मिलता है, बुद्धि विकास होता है व पाचन ठीक रहता है।

* अतिसार में चावल का आटा लेई की भांति पकाकर उसमें गाय का दूध मिलाकर रोगी को सेवन कराएं।

* पेट साफ न हो तो भात में दूध व शकर मिलाकर सेवन करने से दस्त के साथ पेट साफ हो जाता है। इसी के विपरीत भात को दही के साथ मिलाकर खाने से यदि दस्त लगे हों तो बंद हो जाते हैं।

* यदि भांग का नशा ज्यादा हो गया हो तो चावल धोकर निकाले पानी में खाने का सोडा दो चुटकी व शकर मिलाकर पिलाने से नशा उतर जाता है। यही पेय मूत्र विकार में भी काम आता है।

* सूर्योदय से पूर्व चावल की खील 25 ग्राम लेकर शहद मिलाकर खाकर सो जाएं। सप्ताहभर में आधासीसी सिर दर्द दूर हो जाएगा।

* यदि आप गर्भ निरोधक प्रयोग नहीं करना चाहते या गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन नहीं करना चाहते हों तो चावल धुले पानी में चावल के पौधे की जड़ पीसकर छान लें और इसमें शहद मिलाकर पिला दें। यह हानिरहित सुरक्षित गर्भनिरोधक उपाय है।

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Thursday, December 25, 2014

वीर्य की गुणवत्ता में सुधार होता है....!

* सहजन से तो आप भलि-भाति परिचित होगें। यह एक ऐसी हरी सब्‍जी है जो बाजार में चारों ओर बिकती है पर हम में ऐसे बहुत से लोग हैं तो इस सब्‍जी को देख कर भी अनदेखा कर देते हैं। सहजन की सब्‍जी ही नहीं बल्‍कि इसके पेड़ के विभिन्‍न भाग के अनेको प्रयोग पुराने जमाने से ही किये जा रहे हैं।
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* सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं। सहजन कई बीमारियों को दूर करती है और शरीर के हर अंग को मजबूती भी देती है क्‍योंकि इसमें बहुत सारे पोषक तत्‍व भरे हुए हैं।

* सहजन (ड्रमस्टिक्स) या मुनगा #जड़ से लेकर फूल और पत्तियों तक सेहत का खजाना है। सहजन के ताजे फूल और गाय का दूध ऐसा हर्बल टॉनिक है जिससे पुरुषों की मर्दाना कमजोरी और महिलाओं में सेक्स की कमजोरी दूर होती है। 


* सहजन की छाल का पावडर रोज लेने से #वीर्य की गुणवत्ता में सुधार होता है तथा पुरुषों में शीघ्रपतन की समस्या भी दूर होती  है। छाल का पावडर, शहद और पानी से ऐसा मिश्रण तैयार होता है जो शीघ्रपतन की समस्या का अचूक इलाज है।

* मुनगा या सहजन या ड्रम स्टिक्स की करीब 50 ग्राम पत्तियों को लेकर चटनी बनाए जाए तो यह पेट के कृमियों को बाहर निकाल फेंकने में काफी कारगर होती है। चटनी बनाने के लिए पत्तियों को बारीक कुचल लिया जाए, इसमें स्वादानुसार नमक और मिर्च पाउडर भी मिला लिया जाए और इस पूरे मिश्रण को तवे या कढाही पर आधा चम्मच तेल डालकर कुछ देर भून लिया जाए। सप्ताह में एक या दो बार इस चटनी का सेवन बेहद गुणकारी होता है।

* सहजन की पत्तियों का सूप टीबी, ब्रोंकाइटिस तथा अस्थमा पर नियंत्रण के लिए कारगर समझा जाता है। इसका स्वाद बढ़ाने के लिए नींबू का रस, कालीमिर्च और सेंधा नमक मिलाया जा सकता है। 


* सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्‍युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिये अति आवश्‍यक है।

* सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शीर के कई रोगों से लड़ता है, खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तो, आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।

* यह हाजमें के लिए सबसे मुफीद सब्जी मानी जाती है। 

* ताजी पत्तियों को निचो़ड़कर निकाले गए रस को एक चम्मच शहद तथा एक गिलास नारियल के पानी के साथ लेना चाहिए। इससे कॉलरा, डायरिया, डीसेंट्री, पीलिया तथा कोलाइटिस की समस्या में आराम मिलता है। 

* अगर पेशाब में अधिक मात्रा में यूरिया जा रहा हो तो मरीज को सहजन की ताजी पत्तियों के निचोड़े हुए रस के साथ खीरा या गाजर के रस के मिलाकर पिला दें। इससे तत्काल आराम मिलता है।

*सहजन की ताजा पत्तियों के निचोड़े हुए रस के साथ नींबू के रस से मुंहासों का कारगर इलाज किया जाता है। इससे ब्लेक स्पॉट्स हटते हैं साथ ही उम्र के कारण थकी और कांति हीन त्वचा में नई जान फूंकी जा सकती है। इसी के साथ ही सहजन के फूलों के साथ पत्तियां, सहजन के बीज और जड़ से शरीर में हुई गठानों का इलाज किया जा सकता है।

* जड़ रूखी और स्वाद में कड़वी होती है लेकिन फेफड़ों के लिए बढ़िया टॉनिक के रूप में काम करती है। यह कफ को बाहर निकालती है। 


* मूत्रवर्धक होने से मूत्र संबंधी विकारों का निवारण भी करती है। 

* इसमें कैल्‍शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आइरन, मैग्‍नीशियम और सीलियम होता है।

* पुराने समय से ही सजहन का प्रयोग यौन शक्‍ति को बढाने के लिये किया जा रहा है। ऐसा इसलिये क्‍योंकि इसमें जिंक होता है जो स्‍पर्म बढाता है।

* जड़ों से तैयार किए गए रस से त्वचा के कई रोगों में राहत मिलती है।

* सहजन की पत्‍तियों के साथ ही सजहन का फल भी बी कामप्‍लेक्‍स से भरा होता है। इसमें बहुत सारा विटामिन जैसे, विटामिन बी6, नियासिन, राइबोफ्लेविन और फॉलिक एसिड होता है।

* सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। अगर आप इस हरी सब्‍जी को अक्‍सर अपने खाने में शामिल करेंगी तो आप कभी बूढी नहीं होंगी। इससे आंखों की रौशनी भी अच्‍छी होती है।

* आप सहजन को सूप के रूप में पी सकती हैं, इससे शरीर का रक्‍त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्‍याएं तभी सही होंगी जब आपका खून अंदर से साफ होगा।

* सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है, इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है, शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है.

*  सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है। 

*  सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया और  जोड़ों के दर्द व्  वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है। 

* सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है। 

* सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। 

*  सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है। 

* सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है। 

* सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है। 

* सहजन की पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है। 

* सहजन. की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है। 

* सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है। 

* सहजन. की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हींग  के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। 

* सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है। 

* सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है .

* सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है।

* सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तोए आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।

* सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है।

*  सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है। सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं।


* सहजन के बीजों का पेस्ट त्वचा के रंग और टोन को साफ रखने में मदद करता है।मृत त्वचा के पुनर्जीवन के लिए इससे बेहतर कोई रसायन नहीं है। धूम्रपान के धुएँ और भारी धातुओं के विषैले प्रभावों को दूर करने में सहजन के बीजों के सत्व का प्रयोग सफल साबित हुआ है।

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