जहाँ विज्ञान की सीमा समाप्त होती है , वही से श्रद्धा और अंधविश्वास का प्रारम्भ होता है ...उदाहरण के रूप में नजर लगना जैसी किसी बीमारी को हममे से अधिकांश लोंग मजाक में हँस कर उड़ा देते हैं , मगर वही जब अपना कोई परिचित भरपूर इलाज़ के बाद भी ठीक ना हो रहा हो , या बिना किसी कारण सुस्त , उखड़ा या उदास हो तो हम झट नजर उतारने के हथियार इस्तेमाल करते है -
पक्षाघात /लकवा के रोगियों को भी चिकित्सकों के इलाज के बाद श्रद्धा नागौर के बूटाटी ग्राम में खींच लाती है ...
अभी पिछले दिनों एक रिश्तेदार अचानक ब्रेन हैमरेज का शिकार होकर लम्बे समय तक कोमा में रही कोमा की स्थिति से बाहर आने तक उनके पूरे आधे शरीर पर पक्षाघात का असर हो चुका था ...पिछले कई महीनों से वे ना सिर्फ चलने- फिरने में असमर्थ हैं , अपितु करवट बदलने यहाँ तक के लिए भी उन्हें मदद की आवश्यकता होती है ... चिकित्सा के दौरान ही उन्हें किसी ने राजस्थान के नागौर जिले के बूटाटी ग्राम के बारे में बताया ..आखिरी उम्मीद के रूप में किसी प्रकार हिम्मत जुटा कर परिजन उन्हें लम्बी दूरी तय करते हुए आंध्र प्रदेश से राजस्थान लेकर आये ...तीन दिन की परिक्रमा के बाद उनकी दशा में इतना सुधार हुआ कि कई महीनों से से लघु शंका के लिए लगी नलियाँ हटा दी गयी ...चार पांच दिन में वे बिना सहारे 3-4 कदम भी चली (जैसा की उनके परिजनों ने बताया )..हालाँकि अभी पूरी तरह बिना सहारे चलना मुमकिन नहीं है , मगर महीनों से सिर्फ बिस्तर पर लेटे मरीज के लिए एक सप्ताह में इतना परिवर्तन भी कम सकारात्मक नहीं है ... बूटाटी धाम के बारे में सुना तो पहले भी कई बार था , और सुनी सुनायी बातों पर यकीन नहीं किया जा सकता मगर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण पहली बार देखा ...बताते हैं की लकवा के नब्बे प्रतिशत मरीजों की स्थिति में यहाँ सुधार होते देखा गया है ...
यह मंदिर सिद्ध पुरुष चतुरदास जी महाराज की समाधि है ...लकवा के मरीजों को सात दिन का प्रवास करते हुए रोज एक परिक्रमा लगाते हैं ... सुबह की आरती के बाद पहली परिक्रमा मंदिर के बाहर तथा शाम की आरती के बाद दूसरी परिक्रमा मंदिर के अन्दर लगानी होती है , ये दोनों परिक्रमा मिलकर पूरी एक परिक्रमा कहलाती है ...सात दिन तक मरीज को इसी प्रकार परिक्रमा लगानी होती है
मरीज स्वयं चलने फिरने में असमर्थ होते हैं ,उन्हें परिजन परिक्रमा लगवाते हैं ... निवास के लिए यहाँ सुविधा युक्त धर्मशालाएं हैं ... यात्रियों को जरुरत का सभी सामान बिस्तर , राशन , बर्तन, जलावन की लकड़ियाँ आदि निःशुल्क उपलब्ध करवाई जाती हैं ...इसके अतिरिक्त पास में ही बाजार भी हैं जहाँ यात्री अपनी सुविधा से अन्य वस्तुएं खरीद सकते हैं ... हर माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को यहाँ मेला लगता है ,इसके अतिरिक्त वैशाख , भाद्रपद और माघ महीने में भी विशेष मेलों का आयोजन होता है
पक्षाघात /लकवा के रोगियों को भी चिकित्सकों के इलाज के बाद श्रद्धा नागौर के बूटाटी ग्राम में खींच लाती है ...
अभी पिछले दिनों एक रिश्तेदार अचानक ब्रेन हैमरेज का शिकार होकर लम्बे समय तक कोमा में रही कोमा की स्थिति से बाहर आने तक उनके पूरे आधे शरीर पर पक्षाघात का असर हो चुका था ...पिछले कई महीनों से वे ना सिर्फ चलने- फिरने में असमर्थ हैं , अपितु करवट बदलने यहाँ तक के लिए भी उन्हें मदद की आवश्यकता होती है ... चिकित्सा के दौरान ही उन्हें किसी ने राजस्थान के नागौर जिले के बूटाटी ग्राम के बारे में बताया ..आखिरी उम्मीद के रूप में किसी प्रकार हिम्मत जुटा कर परिजन उन्हें लम्बी दूरी तय करते हुए आंध्र प्रदेश से राजस्थान लेकर आये ...तीन दिन की परिक्रमा के बाद उनकी दशा में इतना सुधार हुआ कि कई महीनों से से लघु शंका के लिए लगी नलियाँ हटा दी गयी ...चार पांच दिन में वे बिना सहारे 3-4 कदम भी चली (जैसा की उनके परिजनों ने बताया )..हालाँकि अभी पूरी तरह बिना सहारे चलना मुमकिन नहीं है , मगर महीनों से सिर्फ बिस्तर पर लेटे मरीज के लिए एक सप्ताह में इतना परिवर्तन भी कम सकारात्मक नहीं है ... बूटाटी धाम के बारे में सुना तो पहले भी कई बार था , और सुनी सुनायी बातों पर यकीन नहीं किया जा सकता मगर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण पहली बार देखा ...बताते हैं की लकवा के नब्बे प्रतिशत मरीजों की स्थिति में यहाँ सुधार होते देखा गया है ...
यह मंदिर सिद्ध पुरुष चतुरदास जी महाराज की समाधि है ...लकवा के मरीजों को सात दिन का प्रवास करते हुए रोज एक परिक्रमा लगाते हैं ... सुबह की आरती के बाद पहली परिक्रमा मंदिर के बाहर तथा शाम की आरती के बाद दूसरी परिक्रमा मंदिर के अन्दर लगानी होती है , ये दोनों परिक्रमा मिलकर पूरी एक परिक्रमा कहलाती है ...सात दिन तक मरीज को इसी प्रकार परिक्रमा लगानी होती है
मरीज स्वयं चलने फिरने में असमर्थ होते हैं ,उन्हें परिजन परिक्रमा लगवाते हैं ... निवास के लिए यहाँ सुविधा युक्त धर्मशालाएं हैं ... यात्रियों को जरुरत का सभी सामान बिस्तर , राशन , बर्तन, जलावन की लकड़ियाँ आदि निःशुल्क उपलब्ध करवाई जाती हैं ...इसके अतिरिक्त पास में ही बाजार भी हैं जहाँ यात्री अपनी सुविधा से अन्य वस्तुएं खरीद सकते हैं ... हर माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को यहाँ मेला लगता है ,इसके अतिरिक्त वैशाख , भाद्रपद और माघ महीने में भी विशेष मेलों का आयोजन होता है
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