सांस लेते ही हवा में उपस्थित अनगिनत बारीक कण हमारे श्वसन संस्थान के सम्पर्क में आते है और कुछ फेफड़ों में भी पहुंच जाते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में यह बारीक कण छनकर बाहर हो जाते हैं और इस तरह वो बीमारी से बच जाते हैं-
प्रतिरोधक शक्ति श्वसन संस्था की सतह पर हमेशा सक्रिय रहती है, जिससे जीवाणु संक्रमण नहीं हो पाता परन्तु विषाणु संक्रमण से बीमारी हो सकती है, जिनमें इन्फ्लूएंजा बायरस खतरनाक हो सकता है। हवा में मौजूद एलरजेन या रासायनिक तत्व श्वसन संस्था के रोग पैदा कर सकते हैं। नाक, गले में या फिर फेफड़ों में सूजन पैदा होना, फेफड़ों का दाह, दमा या ब्रोन्काइटिस जैसे रोग प्रकट होते हैं। वायु प्रदर्शन से भी श्वसन रोग पैदा हो जाते है, जिससे दमा रोग भयंकर रूप में भी एलर्जी तथा फेफड़ों का दाह लम्बे समय में फेफड़ों को नष्ट कर देता है।
एलरजेन’ यानी क्या?
* कोई भी ऐसे पदार्थ, जिनके कणों से एलर्जी शुरू होने लगे। एलरजेन्स हजारों प्रकार के हो सकते हैं। परागकण से अंडों के प्रोटीन तक सभी एलरजेन का काम करते हैं। कोई भी रसायन एलर्जी की क्रिया पैदा कर सकता है। इनें घर की धूल, पौधे या धास के परागकण, आहार के प्रोटीन, अंडे, फल्लीदाना भी आते हैं। बिल्ली या कुत्ते के बाल, धूल, डैड्रफ, लार भी उनके बालों में लगी रहती है। यह सब एलर्जी पैदा करने में सक्षम है। सामान्य एलर्जी इम्युनोग्लोब्यूलिन ‘इ’ से संबंधित है। हे-फीवर इसी टाइप की एलर्जी है। सांस में आए एलरजेन, परागकण नाक के सम्पर्क में आते ही छींक आने लगती है। नाक में सूजन भी आ जाती है।
* एलर्जी के लक्षणों में बुखार, सर्दी, नाम में सूजन आ जाती है। बुखार, दमा, एग्जिमा (चर्म रोग) इन तीनों का कहर एक साथ भी हो सकता है, जिसे ‘एटोपी’ कहते हैं। इनके पीछे भी इम्युनो ग्लोब्यूलिन ई के एंटीबॉडी रहते हैं। ग्रामीण वायु प्रदूषण में कीटनाशक तक रंग पैदा कर सकते हैं। अनाज की धूल तथा लकड़ी की धूल से खांसी, छाती में जकड़न, दमा मुख्य रूप से नजर आते हैं। कान, नाक और गला वायु प्रदूषण के एलरजेन के शिकार होते हैं। गला दुखना, सर्दी-खांसी वायु में उपस्थित एलरजेन्स से ही होते हैं।
* एलर्जी से सर्दी एक सामान्य वातावरण की बीमारी है। सांस में आए एलरजेन्स से हिस्टान नामक तत्व उत्पन्न होने से सर्दी व नाक तेजी से बहना शुरू हो सकती है। धूल के प्रभाव से भी अनेक लक्षण प्रकट हो सकते हैं। धूल श्वसन संस्था में प्रवेश करके फेफड़ों को नष्ट कर देती है। नाक बहने से हथेली से नाक रगड़ने से उसे एलर्जीक सेल्यूट कहते हैं। हे फीवर (पराग कण से एलर्जी) में नाक से पानी बहना भी कुछ मौसम में सामान्य होते हैं। खांसी, छाती में दर्द, सांस लेते वक्त आवाज आना, दम फूलना, गला दुखना भी सामान्य लक्षण हो सकते हैं। गले में ग्लैंड भी बढ़ सकते हैं।
* कुछ आहार से सर्दी की बीमारी 20 मिनट में, 4-6 घंटों में या 24-48 घंटों में भी आ सकती है। इसमें ठंड लगना, सिरदर्द, कान दुःखना भी हो सकती है। एलर्जी से चर्मरोग में एग्जिमा होता है, जिसमें चमड़ी खुजलाती है और लाल रंग की हो जाती है। चमड़ी की परतें निकलती हैं। इसमें अत्यधिक खुजलाहट होती है।
* चेहरे पर, कान के पीछे, कोहनी पर, घुटने के पीछे एग्जिमा एलर्जी से होता है। एग्जिमा शरीर की प्रतिकार शक्ति से भी संबंधित हो सकता है। वायु प्रदूषण से उपजे एलरजेन या रासायनिक तत्व से श्वसन रोग, फेफड़ों का दाह, नाक में सूजन, फेफड़ों की सूजन से दमा की शिकायत हो जाती है।
* वायु प्रदूषण में कण अस्थमा के कारण बन सकते हैं। अस्थमा (दमा) एलर्जी से होता है। एलर्जी हवा से या आहार में बदलाव से कम कर सकते हैं। वसंत ऋतु या गर्मी में परागकण दमा की शिकायत लाते हैं। घर के भीतर हवा में उपस्थित एलरजेन सालभर दमा के लक्षण पैदा करते हैं। धूल के जंतु ठंड के दिनों में एलर्जी से दमा पैदा करने में सक्षम होते हैं। धूम्रपान सदैव दमा वाले रोगी की समस्या बना रहता है। बाहरी वायु प्रदूषण बढ़ती हुई समस्या है।
* बाहर या घर में भी रासायनिक प्रदूषण से बचाव जरूरी है। पालतू जानवरों से भी एलर्जी रोकना जरूरी है। कागज, कपड़े, खिलौने भी वायु प्रदूषण से एलरजेन और रसायन कमरे मेें लाते हैं। अतः इन्हें अपने शयन कक्ष से दूर रखने के प्रयत्न जरूरी है। गर्म पानी और साबुन से बेहतर सफाई होती है, अतः इनका अक्सर उपयोग करें। फल, अनाज, लकड़ी की धूल भी एलरजेन या विषैले पदार्थ पैदा करती है, जिससे श्वसन रोग संभव है। सांस के द्वारा धूल के कण में फंगस या उनके बीज फेफड़ों में पहुंच जाते हैं, जिनमें एस्परजिलस, पेनीसिलम म्युकर प्रमुख हैं। ये सब दमा, निमोनिया तथा फेफड़ों में फंगल रोग पैदा करने में सक्षम है।
* डस्टमाईट धूल के बारीक जंतु बिस्तर, कारपेट, टेबल, कुर्सी, पुराने कपड़ों में या खिलौना में रहते हैं। ये मानव चमड़ी पर आ सकते हैं। जब ये सांस में आते हैं, तब दमा या एग्जिमा पैदा कर सकते हैं। वायु प्रदूषण में ओजोन एलरजेन के साथ में दमा बढ़ा देते हैं। घर के भीतर की हवा को स्वच्छ रखना अनिवार्य है। कपड़े से धूल साफ नहीं होती। धूल को वैक्यूम क्लीनर से ही साफ कर सकते हैं। बिस्तर के नीच की जगह में धूल जमा हो जाती है। कपड़े से तो धूल फैलती है। वैक्यूम क्लीनर के नोजल पर कपड़ा बांधकर छोटी चीजों की धूल साफ करें। तकिया या बिस्तर को एलरजेन से बचाव करने वाले कवर से ढकें और हर दिन उन्हें वैक्यूम क्लीनर से साफ करें। बिस्तर की चादर को नियमित धोना, वह भी गर्म पानी से, बहुत जरूरी है। हर मौसम में अपने कारपेट और फर्श की सफाई अवश्य करें। भीतरी हवा की सफाई और प्रदूषित तत्व कम करने के लिए एयर प्यूरीफायर का उपयोग कर सकते हैं। धूल से बचाव के लिए बिस्तर व तकिये को ढककर रखें। पॉलिस्टर फिल पिलो का उपयोग करें तो ही होगा। कारपेट का उपयोग न करें। यदि कारपेट हाें तो हफ्ते में 1-2 बार उसे वैक्यूम क्लीनर से साफ करें। यदि बड़े परदे लगाते हों तो उन्हें समय-समय पर धुलवा दें। ब्लेंकेट गर्म पानी में धुलवाएं।
* जिस व्यक्ति को एलर्जी हो, उसे घर की सफाई नहीं करनी चाहिए, खासकर वसंत ऋतु में। यदि एलर्जी वाला व्यक्ति ही साफ-सफाई करे तो मुंह पर मास्क पहने। फिर आधे घंटे के लिए बाहर ही रहें, जब तक की कमरे की धूल न हो जाए। गीले कपड़ों से धूल साफ करना सही होगा। एलरजेन का वायु में स्तर दिसम्बर महीने में कुछ ज्यादा हो सकता है। एलर्जी प्रतिकार शक्ति के द्वारा संचालित होती है। इनमें से फीवव, एग्जिमा, अस्थमा, एनाफाइलेक्सीस, भीतरी कान का बहना, जोड़ों का दर्द, सोरायसिस, लम्बी अवधि की थकान, विभाग की एलर्जी, हर समय बीमार होना सामान्य है।
* बच्चों में नाक बहना, कान बहना, सर्दी-खांसी, दमा, सिरदर्द, पैरों का दर्द, टांसिल्स, एग्जिमा, डिप्रेशन तथा आहार से एलर्जी सामान्य है। इनसे बचाव करना आवश्यक है। याद रखें, साधारण धुल भी खतरनाक हो सकती है। एलर्जी शॉट्स थैरेपी में इम्यूनोथैरेपी मुख्य है, जिससे एलर्जी कम होने लगती है, लक्षण घट सकते हैं। बच्चों में दमा या नाक का बहना ठीक हो सकता है। सही डाक्टर से ही एलर्जी शॉट्स सुरक्षित होता है और वहां पर इमर्जेंसी केयर यूनिट भी हो। यह इलाज 3-5 साल तक लेना पड़ सकता है। हृदय रोग में यह इलाज वर्जित है। एड्स की बीमारी में भी यह इलाज न करवाएं। धूल से बचाव ही धूल की एलर्जी से बचाता है।
स्थानानुसार एलर्जी के लक्षण :-
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नाक की एलर्जी:-
============
* नाक में खुजली होना ,छीकें आना ,नाक बहना ,नाक बंद होना या बार बार जुकाम होना आदि l
आँख की एलर्जी :-
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* आखों में लालिमा ,पानी आना ,जलन होना ,खुजली आदि l
श्वसन संस्थान की एलर्जी :-
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* इसमें खांसी ,साँस लेने में तकलीफ एवं अस्थमा जैसी गंभीर समस्या हो सकती है l
त्वचा की एलर्जी :-
==========
* त्वचा की एलर्जी काफी कॉमन है और बारिश का मौसम त्वचा की एलर्जी के लिए बहुत ज्यादा मुफीद है त्वचा की एलर्जी में त्वचा पर खुजली होना ,दाने निकलना ,एक्जिमा ,पित्ती उछलना आदि होता है l
खान पान से एलर्जी :-
=============
* बहुत से लोगों को खाने पीने की चीजों जैसे दूध ,अंडे ,मछली ,चॉकलेट आदि से एलर्जी होती है l
सम्पूर्ण शरीर की एलर्जी :-
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* कभी कभी कुछ लोगों में एलर्जी से गंभीर स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और सारे शरीर में एक साथ गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी स्तिथि में तुरंत हॉस्पिटल लेकर जाना चाहिए l
अंग्रेजी दवाओं से एलर्जी:-
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* कई अंग्रेजी दवाएं भी एलर्जी का सबब बन जाती हैं जैसे पेनिसिलिन का इंजेक्शन जिसका रिएक्शन बहुत खतरनाक होता है और मौके पर ही मोत हो जाती है इसके अलावा दर्द की गोलियां,सल्फा ड्रग्स एवं कुछ एंटीबायोटिक दवाएं भी सामान्य से गंभीर एलर्जी के लक्षण उत्पन्न कर सकती हैं l
मधु मक्खी ततैया आदि का काटना :-
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* इनसे भी कुछ लोगों में सिर्फ त्वचा की सूजन और दर्द की परेशानी होती है जबकि कुछ लोगों को इमर्जेन्सी में जाना पड़ जाता है l
एलर्जी से बचाव :-
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एलर्जी से बचाव ही एलर्जी का सर्वोत्तम इलाज है इसलिए एलर्जी से बचने के लिए इन उपायों का पालन करना चाहिए:-
* य़दि आपको एलर्जी है तो सर्वप्रथम ये पता करें की आपको किन किन चीजों से एलर्जी है इसके लिए आप ध्यान से अपने खान पान और रहन सहन को वाच करें l
* घर के आस पास गंदगी ना होने दें l
* घर में अधिक से अधिक खुली और ताजा हवा आने का मार्ग प्रशस्त करें l
* जिन खाद्य पदार्थों से एलर्जी है उन्हें न खाएं l
* एकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं l
* बाइक चलाते समय मुंह और नाक पर रुमाल बांधे,आँखों पर धूप का अच्छी क़्वालिटी का चश्मा लगायें l
* गद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि समय समय पर गरम पानी से धोते रहे l
रजाई ,गद्दे ,कम्बल आदि को समय समय पर धूप दिखाते रहे l
* पालतू जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें l
* ज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे l
* घर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे l
* धूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो फेस मास्क पहन कर काम करेंl
नाक की एलर्जी :-
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* जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है ,सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश खाना भी नासिका एवं साँस की एलर्जी से बचने में सहायता करता है आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता है
* जिन्हे बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी है इसे किसी आयुर्वेद चिकित्सक की राय से सेवन कर सकते हैं l
* सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं l
उपचार और प्रयोग -
प्रतिरोधक शक्ति श्वसन संस्था की सतह पर हमेशा सक्रिय रहती है, जिससे जीवाणु संक्रमण नहीं हो पाता परन्तु विषाणु संक्रमण से बीमारी हो सकती है, जिनमें इन्फ्लूएंजा बायरस खतरनाक हो सकता है। हवा में मौजूद एलरजेन या रासायनिक तत्व श्वसन संस्था के रोग पैदा कर सकते हैं। नाक, गले में या फिर फेफड़ों में सूजन पैदा होना, फेफड़ों का दाह, दमा या ब्रोन्काइटिस जैसे रोग प्रकट होते हैं। वायु प्रदर्शन से भी श्वसन रोग पैदा हो जाते है, जिससे दमा रोग भयंकर रूप में भी एलर्जी तथा फेफड़ों का दाह लम्बे समय में फेफड़ों को नष्ट कर देता है।
एलरजेन’ यानी क्या?
* कोई भी ऐसे पदार्थ, जिनके कणों से एलर्जी शुरू होने लगे। एलरजेन्स हजारों प्रकार के हो सकते हैं। परागकण से अंडों के प्रोटीन तक सभी एलरजेन का काम करते हैं। कोई भी रसायन एलर्जी की क्रिया पैदा कर सकता है। इनें घर की धूल, पौधे या धास के परागकण, आहार के प्रोटीन, अंडे, फल्लीदाना भी आते हैं। बिल्ली या कुत्ते के बाल, धूल, डैड्रफ, लार भी उनके बालों में लगी रहती है। यह सब एलर्जी पैदा करने में सक्षम है। सामान्य एलर्जी इम्युनोग्लोब्यूलिन ‘इ’ से संबंधित है। हे-फीवर इसी टाइप की एलर्जी है। सांस में आए एलरजेन, परागकण नाक के सम्पर्क में आते ही छींक आने लगती है। नाक में सूजन भी आ जाती है।
* एलर्जी के लक्षणों में बुखार, सर्दी, नाम में सूजन आ जाती है। बुखार, दमा, एग्जिमा (चर्म रोग) इन तीनों का कहर एक साथ भी हो सकता है, जिसे ‘एटोपी’ कहते हैं। इनके पीछे भी इम्युनो ग्लोब्यूलिन ई के एंटीबॉडी रहते हैं। ग्रामीण वायु प्रदूषण में कीटनाशक तक रंग पैदा कर सकते हैं। अनाज की धूल तथा लकड़ी की धूल से खांसी, छाती में जकड़न, दमा मुख्य रूप से नजर आते हैं। कान, नाक और गला वायु प्रदूषण के एलरजेन के शिकार होते हैं। गला दुखना, सर्दी-खांसी वायु में उपस्थित एलरजेन्स से ही होते हैं।
* एलर्जी से सर्दी एक सामान्य वातावरण की बीमारी है। सांस में आए एलरजेन्स से हिस्टान नामक तत्व उत्पन्न होने से सर्दी व नाक तेजी से बहना शुरू हो सकती है। धूल के प्रभाव से भी अनेक लक्षण प्रकट हो सकते हैं। धूल श्वसन संस्था में प्रवेश करके फेफड़ों को नष्ट कर देती है। नाक बहने से हथेली से नाक रगड़ने से उसे एलर्जीक सेल्यूट कहते हैं। हे फीवर (पराग कण से एलर्जी) में नाक से पानी बहना भी कुछ मौसम में सामान्य होते हैं। खांसी, छाती में दर्द, सांस लेते वक्त आवाज आना, दम फूलना, गला दुखना भी सामान्य लक्षण हो सकते हैं। गले में ग्लैंड भी बढ़ सकते हैं।
* कुछ आहार से सर्दी की बीमारी 20 मिनट में, 4-6 घंटों में या 24-48 घंटों में भी आ सकती है। इसमें ठंड लगना, सिरदर्द, कान दुःखना भी हो सकती है। एलर्जी से चर्मरोग में एग्जिमा होता है, जिसमें चमड़ी खुजलाती है और लाल रंग की हो जाती है। चमड़ी की परतें निकलती हैं। इसमें अत्यधिक खुजलाहट होती है।
* चेहरे पर, कान के पीछे, कोहनी पर, घुटने के पीछे एग्जिमा एलर्जी से होता है। एग्जिमा शरीर की प्रतिकार शक्ति से भी संबंधित हो सकता है। वायु प्रदूषण से उपजे एलरजेन या रासायनिक तत्व से श्वसन रोग, फेफड़ों का दाह, नाक में सूजन, फेफड़ों की सूजन से दमा की शिकायत हो जाती है।
* वायु प्रदूषण में कण अस्थमा के कारण बन सकते हैं। अस्थमा (दमा) एलर्जी से होता है। एलर्जी हवा से या आहार में बदलाव से कम कर सकते हैं। वसंत ऋतु या गर्मी में परागकण दमा की शिकायत लाते हैं। घर के भीतर हवा में उपस्थित एलरजेन सालभर दमा के लक्षण पैदा करते हैं। धूल के जंतु ठंड के दिनों में एलर्जी से दमा पैदा करने में सक्षम होते हैं। धूम्रपान सदैव दमा वाले रोगी की समस्या बना रहता है। बाहरी वायु प्रदूषण बढ़ती हुई समस्या है।
* बाहर या घर में भी रासायनिक प्रदूषण से बचाव जरूरी है। पालतू जानवरों से भी एलर्जी रोकना जरूरी है। कागज, कपड़े, खिलौने भी वायु प्रदूषण से एलरजेन और रसायन कमरे मेें लाते हैं। अतः इन्हें अपने शयन कक्ष से दूर रखने के प्रयत्न जरूरी है। गर्म पानी और साबुन से बेहतर सफाई होती है, अतः इनका अक्सर उपयोग करें। फल, अनाज, लकड़ी की धूल भी एलरजेन या विषैले पदार्थ पैदा करती है, जिससे श्वसन रोग संभव है। सांस के द्वारा धूल के कण में फंगस या उनके बीज फेफड़ों में पहुंच जाते हैं, जिनमें एस्परजिलस, पेनीसिलम म्युकर प्रमुख हैं। ये सब दमा, निमोनिया तथा फेफड़ों में फंगल रोग पैदा करने में सक्षम है।
* डस्टमाईट धूल के बारीक जंतु बिस्तर, कारपेट, टेबल, कुर्सी, पुराने कपड़ों में या खिलौना में रहते हैं। ये मानव चमड़ी पर आ सकते हैं। जब ये सांस में आते हैं, तब दमा या एग्जिमा पैदा कर सकते हैं। वायु प्रदूषण में ओजोन एलरजेन के साथ में दमा बढ़ा देते हैं। घर के भीतर की हवा को स्वच्छ रखना अनिवार्य है। कपड़े से धूल साफ नहीं होती। धूल को वैक्यूम क्लीनर से ही साफ कर सकते हैं। बिस्तर के नीच की जगह में धूल जमा हो जाती है। कपड़े से तो धूल फैलती है। वैक्यूम क्लीनर के नोजल पर कपड़ा बांधकर छोटी चीजों की धूल साफ करें। तकिया या बिस्तर को एलरजेन से बचाव करने वाले कवर से ढकें और हर दिन उन्हें वैक्यूम क्लीनर से साफ करें। बिस्तर की चादर को नियमित धोना, वह भी गर्म पानी से, बहुत जरूरी है। हर मौसम में अपने कारपेट और फर्श की सफाई अवश्य करें। भीतरी हवा की सफाई और प्रदूषित तत्व कम करने के लिए एयर प्यूरीफायर का उपयोग कर सकते हैं। धूल से बचाव के लिए बिस्तर व तकिये को ढककर रखें। पॉलिस्टर फिल पिलो का उपयोग करें तो ही होगा। कारपेट का उपयोग न करें। यदि कारपेट हाें तो हफ्ते में 1-2 बार उसे वैक्यूम क्लीनर से साफ करें। यदि बड़े परदे लगाते हों तो उन्हें समय-समय पर धुलवा दें। ब्लेंकेट गर्म पानी में धुलवाएं।
* जिस व्यक्ति को एलर्जी हो, उसे घर की सफाई नहीं करनी चाहिए, खासकर वसंत ऋतु में। यदि एलर्जी वाला व्यक्ति ही साफ-सफाई करे तो मुंह पर मास्क पहने। फिर आधे घंटे के लिए बाहर ही रहें, जब तक की कमरे की धूल न हो जाए। गीले कपड़ों से धूल साफ करना सही होगा। एलरजेन का वायु में स्तर दिसम्बर महीने में कुछ ज्यादा हो सकता है। एलर्जी प्रतिकार शक्ति के द्वारा संचालित होती है। इनमें से फीवव, एग्जिमा, अस्थमा, एनाफाइलेक्सीस, भीतरी कान का बहना, जोड़ों का दर्द, सोरायसिस, लम्बी अवधि की थकान, विभाग की एलर्जी, हर समय बीमार होना सामान्य है।
* बच्चों में नाक बहना, कान बहना, सर्दी-खांसी, दमा, सिरदर्द, पैरों का दर्द, टांसिल्स, एग्जिमा, डिप्रेशन तथा आहार से एलर्जी सामान्य है। इनसे बचाव करना आवश्यक है। याद रखें, साधारण धुल भी खतरनाक हो सकती है। एलर्जी शॉट्स थैरेपी में इम्यूनोथैरेपी मुख्य है, जिससे एलर्जी कम होने लगती है, लक्षण घट सकते हैं। बच्चों में दमा या नाक का बहना ठीक हो सकता है। सही डाक्टर से ही एलर्जी शॉट्स सुरक्षित होता है और वहां पर इमर्जेंसी केयर यूनिट भी हो। यह इलाज 3-5 साल तक लेना पड़ सकता है। हृदय रोग में यह इलाज वर्जित है। एड्स की बीमारी में भी यह इलाज न करवाएं। धूल से बचाव ही धूल की एलर्जी से बचाता है।
स्थानानुसार एलर्जी के लक्षण :-
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नाक की एलर्जी:-
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* नाक में खुजली होना ,छीकें आना ,नाक बहना ,नाक बंद होना या बार बार जुकाम होना आदि l
आँख की एलर्जी :-
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* आखों में लालिमा ,पानी आना ,जलन होना ,खुजली आदि l
श्वसन संस्थान की एलर्जी :-
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* इसमें खांसी ,साँस लेने में तकलीफ एवं अस्थमा जैसी गंभीर समस्या हो सकती है l
त्वचा की एलर्जी :-
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* त्वचा की एलर्जी काफी कॉमन है और बारिश का मौसम त्वचा की एलर्जी के लिए बहुत ज्यादा मुफीद है त्वचा की एलर्जी में त्वचा पर खुजली होना ,दाने निकलना ,एक्जिमा ,पित्ती उछलना आदि होता है l
खान पान से एलर्जी :-
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* बहुत से लोगों को खाने पीने की चीजों जैसे दूध ,अंडे ,मछली ,चॉकलेट आदि से एलर्जी होती है l
सम्पूर्ण शरीर की एलर्जी :-
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* कभी कभी कुछ लोगों में एलर्जी से गंभीर स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और सारे शरीर में एक साथ गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी स्तिथि में तुरंत हॉस्पिटल लेकर जाना चाहिए l
अंग्रेजी दवाओं से एलर्जी:-
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* कई अंग्रेजी दवाएं भी एलर्जी का सबब बन जाती हैं जैसे पेनिसिलिन का इंजेक्शन जिसका रिएक्शन बहुत खतरनाक होता है और मौके पर ही मोत हो जाती है इसके अलावा दर्द की गोलियां,सल्फा ड्रग्स एवं कुछ एंटीबायोटिक दवाएं भी सामान्य से गंभीर एलर्जी के लक्षण उत्पन्न कर सकती हैं l
मधु मक्खी ततैया आदि का काटना :-
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* इनसे भी कुछ लोगों में सिर्फ त्वचा की सूजन और दर्द की परेशानी होती है जबकि कुछ लोगों को इमर्जेन्सी में जाना पड़ जाता है l
एलर्जी से बचाव :-
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एलर्जी से बचाव ही एलर्जी का सर्वोत्तम इलाज है इसलिए एलर्जी से बचने के लिए इन उपायों का पालन करना चाहिए:-
* य़दि आपको एलर्जी है तो सर्वप्रथम ये पता करें की आपको किन किन चीजों से एलर्जी है इसके लिए आप ध्यान से अपने खान पान और रहन सहन को वाच करें l
* घर के आस पास गंदगी ना होने दें l
* घर में अधिक से अधिक खुली और ताजा हवा आने का मार्ग प्रशस्त करें l
* जिन खाद्य पदार्थों से एलर्जी है उन्हें न खाएं l
* एकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं l
* बाइक चलाते समय मुंह और नाक पर रुमाल बांधे,आँखों पर धूप का अच्छी क़्वालिटी का चश्मा लगायें l
* गद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि समय समय पर गरम पानी से धोते रहे l
रजाई ,गद्दे ,कम्बल आदि को समय समय पर धूप दिखाते रहे l
* पालतू जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें l
* ज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे l
* घर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे l
* धूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो फेस मास्क पहन कर काम करेंl
नाक की एलर्जी :-
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* जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है ,सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश खाना भी नासिका एवं साँस की एलर्जी से बचने में सहायता करता है आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता है
* जिन्हे बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी है इसे किसी आयुर्वेद चिकित्सक की राय से सेवन कर सकते हैं l
* सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं l
उपचार और प्रयोग -
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