Tuesday, January 13, 2015

त्राटक साधना और चमत्कारिक शक्तियाँ - Trāṭaka Wondrous powers

त्राटक शब्द 'त्रि' के साथ 'टकी बंधने' की संधि से बना है। वस्तुत: शुद्ध शब्द त्र्याटक है, जिसकी व्युत्पत्ति है-

                  'त्रिवारं आसमन्तात् टंकयति इति त्राटकम्'। 

अर्थात् जब साधक किसी वस्तु पर अपनी दृष्टि और मन को बांधता है, तो वह क्रिया त्र्याटक कहलाती है। त्र्याटक शब्द ही आगे चलकर त्राटक हो गया-




किसी वस्तु को जब हम एक बार देखते हैं, तो यह देखने की क्रिया एकटक कहलाती है। उसी वस्तु को जब हम कुछ देर तक देखते हैं, तो द्वाटक कहलाती है। किन्तु जब हम किसी वस्तु को निनिर्मेष दृष्टि से निरंतर दीर्घकाल तक देखते रहते हैं, तो यह क्रिया त्र्याटक या त्राटक कहलाती है। दृष्टि की शक्ति को जाग्रत करने के लिए हठयोग में इस क्रिया का वर्णन किया गया है।


त्राटक एकटक देखने की विधि है ...!



यदि आप लंबे समय तक, कुछ महीनों के लिए, प्रतिदिन एक घंटा ज्योति की लौ को अपलक देखते रहें तो आपकी तीसरी आंख पूरी तरह सक्रिय हो जाती है। आप अधिक प्रकाशपूर्ण, अधिक सजग अनुभव करते हैं। 


त्राटक शब्द जिस मूल से आता है उसका अर्थ है: आंसू। तो आपको ज्योति की लौ को तब तक अपलक देखते रहना है जब तक आंखों से आंसू न बहने लगें। एकटक देखते रहें, बिना पलक झपकाए, और आपकी तीसरी आंख सक्रिय होने लगेगी।




एकटक देखने की विधि असल में किसी विषय से संबंधित नहीं है, इसका संबंध देखने मात्र से है। क्योंकि जब आप बिना पलक झपकाए एकटक देखते हैं, तो आप" एकाग्र"  हो जाते हैं। 




चूँकि मन का स्वभाव है भटकना। यदि आप बिलकुल एकटक देख रहे हैं, जरा भी हिले-डुले बिना, तो मन अवश्य ही मुश्किल में पड़ जाएगा। मन का स्वभाव है एक विषय से दूसरे विषय पर भटकने का, निरंतर भटकते रहने का। यदि आप अंधेरे को, प्रकाश को या किसी भी चीज को एकटक देख रहे हैं, यदि आप बिलकुल "एकाग्र"  हैं, तो मन का भटकाव रुक जाता है। क्योंकि यदि मन भटकेगा तो आपकी दृष्टि "एकाग्र"  नहीं रह पाएगी और आप विषय को चूकते रहेंगे। जब मन कहीं और चला जाएगा तो आप भूल जाएंगे, आप स्मरण नहीं रख पाएंगे कि आप क्या देख रहे थे। भौतिक रूप से विषय वहीं होगा, लेकिन आपके लिए वह विलीन हो चुका होगा, क्योंकि आप वहां नहीं हैं--आप विचारों में भटक गए हैं। 





वास्तविक रूप से त्राटक का अर्थ है--अपनी चेतना को भटकने न देना। और जब आप मन को भटकने नहीं देते तो शुरू में वह संघर्ष करता है, कड़ा संघर्ष करता है, लेकिन यदि आप एकटक देखने का अभ्यास करते ही रहे तो धीरे-धीरे मन संघर्ष करना छोड़ देता है। कुछ क्षणों के लिए वह ठहर जाता है। और जब मन ठहर जाता है तो वहां अ-मन है, क्योंकि मन का अस्तित्व केवल गति में ही बना रह सकता है, विचार-प्रक्रिया केवल गति में ही बनी रह सकती है। जब कोई गति नहीं होती, तो विचार-प्रक्रिया खो जाती है, आप सोच-विचार नहीं कर सकते। क्योंकि विचार का मतलब है गति--एक विचार से दूसरे विचार की ओर गति। यह एक प्रक्रिया है। 





यदि आप निरंतर एक ही चीज को एकटक देखते रहें, पूर्ण सजगता और होश से...क्योंकि आप मृतवत आंखों से भी एकटक देख सकते हैं, तब आप विचार करते रह सकते हैं--केवल आंखें, मृत आंखें, देखती हुई नहीं। मुर्दे जैसी आंखों से भी आप देख सकते हैं, लेकिन तब आपका मन चलता रहेगा। इस तरह से देखने से कुछ भी नहीं होगा। 




त्राटक का अर्थ है--केवल आपकी आंखें ही नहीं बल्कि आपका पूरा अस्तित्व आंखों के द्वारा एकाग्र हो। तो कुछ भी विषय हो--यह आपकी पसंद पर निर्भर करता है। यदि आपको प्रकाश अच्छा लगता है, ठीक है; यदि आपको अंधेरा अच्छा लगता है, ठीक है। विषय कुछ भी हो, गहरे में यह बात गौण है, असली बात है मन को एक जगह रोकने का, उसे "एकाग्र"  करने का, जिससे कि भीतरी गतियां, भीतरी कुलबुलाहट रुक सके, भीतरी कंपन रुक सके। 



आप बस देख रहे हैं--निष्कंप। इतनी गहराई से देखना आपको पूरी तरह से बदल जाएगा। वह एक ध्यान बन जाएगा। आगे जो लोग ध्यान-साधना करते है उनके लिए किसी भी साधना की सफलता प्राप्त कर लेना आसान सा हो जाता है -






इसी मन के अन्दर छुपी होती है अलौकिक दिव्य और चमत्कारिक शक्तियाँ। बाह्यमन जब सुप्तावस्था में होता है तब अंर्तमन सक्रिय होने लगता है और इसी अवस्था को ध्यान कहा जाता है। मन को बेलगाम घोड़े की संज्ञा दी गई है क्योंकि मन कभी एक जगह स्थीर नही रहता तथा शरीर की समस्त इद्रियों को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिस करता है। मन हर समय नई -नई इच्छओं को उत्पन्न करता है।




अंर्तमन का स्वभाव है शांत निर्मल और पवित्र जो मनुष्य को हमेशा अच्छे कार्यो के लिए प्रेरित करता है एक इच्छा पूरी नही हुई कि दुसरी इच्छा जागृत हो जाती है। और मनुष्य उन्ही इच्छाओं की पुर्ति की चेष्टा करता रहता है। जिसके लिए मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, पीड़ा इत्यादि से गुजरना पड़ता है। इसके बावजुद भी जब मनुष्य की इच्छाओं की पूर्ति नही हो पाती तब मन में क्लेश तथा दुख होने लगता है। 




यदि मन को किसी तरह अपने वश में कर एकाग्रचित कर लिया जाय तब मनुष्य की आत्मोन्नति  होने लगती है तथा समस्त प्रकार के विषय विकारों से उपर उठने लगता है और अंर्तमन में छुपे हुये उर्जा के भंडार को जागृत कर अलौकिक सिद्धियों का स्वामी बन सकता है।





मन को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन है परंतु कुछ प्रयासो के बाद मन पर पूर्ण रूप से नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। मन को साधने के लिए शास्त्रों में अनेकों प्रकार के उपाय हैं जिसमे से सबसे आसान तरीका है ध्यान साधना ध्यान के माध्यम से कुछ ही दिनों या महिनो के प्रयास से साधक अपने मन पर पूरी तरह नियंत्रण रखने में समर्थ हो सकता है.





त्राटक साधना से मन की एकाग्रता धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। मनुष्य के शरीर की सुप्त शक्तियाँ जागृत होने से शरीर पूर्णतः पवित्र निर्मल तथा निरोग हो जाता है।





त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, सम्मोहन, आकर्षण, अदृश्य वस्तु को देखना, दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है।





प्रबल इच्छाशक्ति से साधना करने पर सिद्धियाँ स्वयमेव आ जाती हैं। तप में मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की अनेकानेक पद्धतियाँ योग शास्त्र में निहित हैं। इनमें 'त्राटक' उपासना सर्वोपरि है। हठयोग में इसको दिव्य साधना से संबोधित करते हैं। त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है।





इससे विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, सम्मोहन, आकर्षण, अदृश्य वस्तु को देखना, दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। यह साधना लगातार तीन महीने तक करने के बाद उसके प्रभावों का अनुभव साधक को मिलने लगता है। इस साधना में उपासक की असीम श्रद्धा, धैर्य के अतिरिक्त उसकी पवित्रता भी आवश्यक है।





इसे दिव्य साधना कहते हैं। त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता,वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से संकल्प को पूर्ण कर लेता है।





त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता और वाणी के प्रभाव एवं द्रष्टि मात्र से मनुष्य अपने संकल्प को पा लेता है इससे विचारों का संप्रेषण एवं एक दूसरे के मनोभावो को आप ज्ञात कर सकते है इसके द्वारा सम्मोहन आकर्षण एवं अद्रश्य वास्तु को देखना ,दूर बेठे द्र्श्यो को भी जाना जा सकता है अगर जो व्यक्ति प्रबल इच्छा शक्ति से साधना करे तो सिद्धियाँ स्वयमेव आ जाती है .तन में मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की ये विध्या सर्वोपरि है इसे हठयोग भी कह सकते है यह साधना तीन माह तक नियमित करने से साधक को उसके प्रभाव का अनुभव प्राप्त होने लगता है इसमें श्रद्धा धर्य और पवित्रता की भी आवश्यकता है .


विधि : -




यह सिद्धि रात्रि में अथवा किसी अँधेरे वाले स्थान पर करना चाहिए। प्रतिदिन लगभग एक निश्चित समय पर बीस मिनट तक करना चाहिए। स्थान शांत एकांत ही रहना चाहिए। साधना करते समय किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आए, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शारीरिक शुद्धि व स्वच्छ ढीले कपड़े पहनकर किसी आसन पर बैठ जाइए।





अपने आसन से लगभग तीन फुट की दूरी पर मोमबत्ती अथवा दीपक को आप अपनी आँखों अथवा चेहरे की ऊँचाई पर रखिए। अर्थात एक समान दूरी पर दीपक या मोमबत्ती, जो जलती रहे, जिस पर उपासना के समय हवा नहीं लगे व वह बुझे भी नहीं, इस प्रकार रखिए। इसके आगे एकाग्र मन से व स्थिर आँखों से उस ज्योति को देखते रहें। जब तक आँखों में कोई अधिक कठिनाई नहीं हो तब तक पलक नहीं गिराएँ। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखें। धीरे-धीरे आपको ज्योति का तेज बढ़ता हुआ दिखाई देगा। कुछ दिनों उपरांत आपको ज्योति के प्रकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देगा।





इस स्थिति के पश्चात उस ज्योति में संकल्पित व्यक्ति व कार्य भी प्रकाशवान होने लगेगा। इस आकृति के अनुरूप ही घटनाएँ जीवन में घटित होने लगेंगी। इस अवस्था के साथ ही आपकी आँखों में एक विशिष्ट तरह का तेज आ जाएगा। जब आप किसी पर नजरें डालेंगे, तो वह आपके मनोनुकूल कार्य करने लगेगा।





इस सिद्धि का उपयोग सकारात्मक तथा निरापद कार्यों में करने से त्राटक शक्ति की वृद्धि होने लगती है। दृष्टिमात्र से अग्नि उत्पन्न करने वाले योगियों में भी त्राटक सिद्धि रहती है। इस सिद्धि से मन में एकाग्रता, संकल्प शक्ति व कार्य सिद्धि के योग बनते हैं। कमजोर नेत्र ज्योति वालों को इस साधना को शनैः-शनैः वृद्धिक्रम में करना चाहिए।





त्राटक ध्यान विधि :-



अपने कमरे के दरवाजे बंद कर लें, और एक बड़ा दर्पण अपने सामने रख लें। कमरे में अंधेरा होना चाहिए। और फिर दर्पण के बगल में एक छोटी सी लौ--दीपक, मोमबत्ती या लैंप की--इस प्रकार रखें कि वह सीधे दर्पण में प्रतिबिंबित न हो। सिर्फ आपका चेहरा ही दर्पण में प्रतिबिंबित हो, न कि दीपक की लौ। फिर लगातार दर्पण में अपनी स्वयं की आंखों में देखें। पलक न झपकाएं। यह चालीस मिनट का प्रयोग है, और दो या तीन दिन में ही आप अपनी आंखों को बिना पलक झपकाए देखने में समर्थ हो जाएंगे। यदि आंसू आएं तो उन्हें आने दें, लेकिन दृढ़ रहें कि पलक न झपके और लगातार अपनी आंखों में देखते रहें। दृष्टि का कोण न बदलें।





आंखों में देखते रहें, अपनी ही आंखों में। और दो या तीन दिन में ही आप एक बहुत ही विचित्र घटना से अवगत होंगे। आपका चेहरा नये रूप लेने लगेगा। आप घबरा भी सकते हैं। दर्पण में आपका चेहरा बदलने लगेगा। कभी- कभी बिलकुल ही भिन्न चेहरा वहां होगा, जिसे आपने कभी नहीं जाना है कि वह आपका है। पर असल में ये सभी चेहरे आपके हैं। अब अचेतन मन का विस्फोट होना प्रारंभ हो रहा है। ये चेहरे, ये मुखौटे आपके हैं। कभी-कभी कोई ऐसा चेहरा भी आ सकता है जो कि पिछले जन्म से संबंधित हो। एक सप्ताह लगातार चालीस मिनट तक देखते रहने के बाद आपका चेहरा एक प्रवाह, एक फिल्म की भांति हो जाएगा। बहुत से चेहरे जल्दी- जल्दी आते-जाते रहेंगे। तीन सप्ताह के बाद, आपको स्मरण भी नहीं रह पाएगा कि आपका चेहरा कौन सा है। आप अपना ही चेहरा स्मरण नहीं रख पाएंगे, क्योंकि आपने इतने चेहरों को आते-जाते देखा है। यदि आपने इसे जारी रखा, तो तीन सप्ताह के बाद, किसी भी दिन, सबसे विचित्र घटना घटेगी: अचानक दर्पण में कोई भी चेहरा नहीं है। दर्पण खाली है, आप शून्य में झांक रहे हैं। वहां कोई भी चेहरा नहीं है। बस ...





यही क्षण है: अपनी आंखें बंद कर लें, और अचेतन का सामना करें। जब दर्पण में कोई चेहरा न हो, बस आंखें बंद कर लें--यही सबसे महत्वपूर्ण क्षण है--आंखें बंद कर लें, भीतर देखें, और आप अचेतन का साक्षात करेंगे। आप नग्न होंगे--बिलकुल नग्न, जैसे आप हैं। सारे धोखे तिरोहित हो जाएंगे।





यही सच्चाई है, पर समाज ने बहुत सी पर्तें निर्मित कर दी हैं ताकि आप उससे अवगत न हो पाएं। एक बार आप अपने को अपनी नग्नता में, अपनी संपूर्ण नग्नता में जान लेते हैं, तो आप दूसरे ही व्यक्ति होने शुरू हो जाते हैं। तब आप अपने को धोखा नहीं दे सकते। तब आप जानते हैं कि आप क्या हैं। और जब तक आप यह नहीं जानते कि आप क्या हैं, आप कभी रूपांतरित नहीं हो सकते, क्योंकि कोई भी रूपांतरण केवल इसी नग्न वास्तविकता में ही संभव है; यह नग्न वास्तविकता किसी भी रूपांतरण के लिए बीज-रूप है। कोई प्रवंचना रूपांतरित नहीं हो सकती। आपका मूल चेहरा अब आपके सामने है और आप इसे रूपांतरित कर सकते हैं। और असल में, ऐसे क्षण में रूपांतरण की इच्छा मात्र से रूपांतरण घटित हो जाएगा।


ये प्रयोग इस प्रकार भी कर सकते है :-


साधना प्रयोग :-



सर्व प्रथम साधक ब्रह्ममुहूर्त मे उठकर स्नान आदि क्रियाओं से निवृत होकर अपने पूजा स्थान अथवा किसी निर्जन स्थान में पùासन, सिध्दासन या सुखासन में बैठ कर ध्यान लगाने का प्रयास करे, ध्यान लगाते समय अपने सबसे पहले अपने आज्ञा चक्र पर ध्यान केद्रित करे तथा शरीर को अपने वश मे रखने का प्रयास करें बिल्कुल शांत निश्चल और स्थीर रहें, श्रीर को हिलाना डूलना खुजलाना इत्यादि न करें। तथा नियम पुर्वक ध्यान लगाने का प्रयास करें।





साधक जब ध्यान लगाने की चेष्टा करता है तब मन अत्यधिक चंचल हो जाता है तथा मन में अनेकों प्रकार के ख्याल उभरने लगते हैं। साधक विचार को जितना ही एकाग्र करना चाहता है उतनी ही तिव्रता से मन विचलित होने लगता है तथा मन में दबे हुए अनेकों विचार उभर कर सामने आने लगते हैं इस लिए ध्यान साधना को तीन आयामों में विभक्त किया गया है।





विचार दर्शन:- साधक को चाहिए कि जब ध्यान लगाने बैठे तब मन में जो विचार उत्पन्न हो उसे होने दें विचारो को आने से न रोकें न ही विचारो को दबाने की चेष्टा करे। मन में विचार लाना नही है और न ही विचारों को आने से रोकना है, केवल दृष्टा बन कर विचारों को देखते रहना है। मन एक विचार से दुसरा विचार दुसरे से तीसरा इस तरह से अनेको प्रकार के विचार घटना, दुर्घटना, वास्तविक तथा काल्पनीक अनेकों विचार मन में उत्पन्न होते रहेंगे परंतु आपको उन विचारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने की जरूरत नही केवल दृष्टा बनकर आप देखते जाइये कि मन किस प्रकार कल्पना लोक में उड़ान भर रहा है। ऐसा करने से धीरे-धीरे आपके विचारों में कमी आने लगेगी और विचार स्थीर होने लगेंगे।





विचार सर्जन:- साधक को अपनी आँखे बंद कर मन को आज्ञाचक्र पर कुछ देर तक केद्रित करने का प्रयास करना चाहिए तत्पश्चात मन मे कोई विचार लाए और कुछ देर तक उस पर ध्यान को केद्रित करें और उस विचार को मन से हटा दें तथा पुनः दुसरा विचार लाएं और उस पर भी कुछ देर तक ध्यान केंद्रित कर उसे भी मन सें हटा दें। इस तरह मन में अलग-अलग विचारों को लाते रहें तथा कुछ देर तक उसपर अपना ध्यान केंद्रित कर उसें हटाते जायें। इस तरह करते रहने से धीरे-धीरे मन थकान अनुभव करने लगेगा और कुछ देर के लिए कुछ सोंचना बंद कर देगा, आपको ऐसा लगेगा कि मन आराम करना चाह रहा है।धीरे-धीरे आप देखेगे कि मन आपके काबु मे हो ने लगेगा तथा विचार शुन्य होने लगेगा।





विचार विर्सजन:- साधक अपनी आँखे बंद कर धीरे-धीरे गहरी श्वांस ले और धीरे-धीरे छोड़े कुछ देर बाद मन में कोइ विचार आने दें। जैसे ही मन में कोइ विचार आता है उसे तुरंत अपने मन से हटा दें, फिर मन में कोइ विचार आये उसे भी हटा दें, इस तरह मन मे उठने वाले सभी विचारो को मन से हटाते जाएं ऐसी क्रिया को हि विचार विर्सजन कहा जाता है।
इस क्रिया मे साधक को चाहिए कि मन मे उठने वाले विचारों को न रोकें बल्कि उन विचारों को मन से हटाने का प्रयास करते रहना चाहिए। इस प्रकार से अभ्यास करते रहने से मन निर्विकार तथा निर्विचार होने लगता है और विचार शुन्य की स्थिती बनने लगती है तथा अर्तमन के जागृत होने से अलौकिक एवं चमत्कारिक दृष्य तथा घटनाएं ध्यान की अवस्था में दिखाई देने लगते हैं।





सर्वप्रथम अपने इष्ट या गुरू की प्रतिमा अथवा चित्र को अपने पूजा स्थान में इस प्रकार रखें ताकि वह आँखों के ठीक सीध में तथा ढाई फीट की दुरी में रहे। फिर उसपर अलपक दृष्टि से देखने का प्रयास करें। इस प्रक्रिया को त्राटक कहा जाता है। त्राटक का अभ्यास किसी बिंदु, शक्ति चक्र, क्रिसटल बाल, दीपक की लौ, चंद्रमा, तारा अथवा सुर्य पर बारी-बारी से अभ्यास किया जाता है। जिसके द्वारा साधक के आँखों में अद्भुत सम्मोहन शक्ति आने लगती है, तथा साधक को सम्मोहन के क्षेत्र में पूर्णं सफलता प्राप्त हो जाती है।





परंतु टेलिपैथी के लिए अपने इष्ट अथवा गुरू के चित्र पर त्राटक का अभ्यास करना चाहिए। प्रारंभ में त्राटक का अभ्यास करने पर ज्यादा देर तक अपलक टकटकी लगाकर देख पाना संभव नही इसलिए धीर-धीरे प्रयास करते हुए समय को बढ़ाते जाएं।





जब आँखों में आंसु आने लगे तब कुछ देर के लिए आंखों को विश्राम दें तथा आंखों पर ठन्डे पानी का छिटा मारें फिर अभ्यास करें इस तरह जब 10-15 मिनट का अभ्यास होने लगे तब उस तस्वीर में आपको अजीब सा नीला प्रकाश निकलता हुआ दिखाई देगा जिसकी रोशनी आखों में समाहित होती हुई नजर आएगी। जब इस तरह के दृष्य नजर आने लगें तब समझ लीजिए कि आप सफलता के काफी करीब हैं। फिर अपनी आँखों को बंद कर लें ऐसा करने के बाद भी आपको वह चित्र दिखाई देती रहेगी।





अब आप उस चित्र के मस्तिष्क में अपना ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें। ऐसा करते ही आपको अहसास होगा कि आप अपने गुरू के मानसिक तरंगों को भलीभांति देख पा रहे हैं, तथा उनसे वार्तालाप करने का प्रयास करने लगे हैं।





जब अपने गुरू या इष्ट से किसी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होने लगे तब किसी भी व्यक्ति के चित्र पर त्राटक करते हुए अपनी आँखों को बंद कर उसका प्रतिबिम्ब अपने आँखों मे उतार लंे फिर ध्यान करते हुए उसके मस्तिष्क में उठने वाली तरंगों को पकड़ने का प्रयास करें इस तरह धीरे-धीरे आप लोगों के मस्तिष्क के तंरंगों को अपने मस्तिष्क के तरंगों से जोड़ने में सक्षम हो पायेंगे। जब आप मन के तरंगों को पकड़ने में अभ्यस्त हो जाएंगे तब आपको किसी भी व्यक्ति का चित्र अथवा मूति की आवस्यकता नही पड़ेगी। आप स्वतंत्र रूप से किसी भी व्यक्ति के मन के तरंगों को पढ़ पाने में सक्षम हो जायेंगे चाहे वह मनुष्य आपके पास हो अथवा कितना भी दुर हो।




कुछ बाते ध्यान रक्खे :-





यह सिद्ध रात्री  में या अँधेरे वाले स्थान या एकांत कमरा चयन करके करे जहाँ शोर न हो और प्रतिदिन एक समय निशिचत होना चाहिए बीस से चालीस  मिनट तक करे कोई व्यवधान न हो .किसी प्रकार का व्यवधान न हो इसका विशेष ख्याल रक्खे .





शारीरिक रूप से शुद्ध ढीले वस्त्र पहन कर किसी आसन पे ही बैठ कर करे वर्ना ली गई उर्जा पृथ्वी में समां जाती है .





अपने आसन के सामने लगभग तीन फुट की दूरी मोमबत्ती या दीपक को आप अपनी आखों अथवा चेहरे की उचाई के बराबर रक्खे .





जिस समय प्रयोग करे हवा न लगे वह बुझनी नहीं चाहिए इसके बाद स्थिर हो कर आँखों से उस ज्योति को देखते रहे जब तक आँखों में कोई कठिनाई न महसूस हो पलके न गिराए जब आप एकटक देखेगे आपकी आँखों से पानी (आंसू ) आएगा आप प्रयोग बंद कर दे .





दूसरे दिन पुन : इस प्रयोग को दोहराए और ये क्रम जारी रक्खे इसी प्रकार धीरे-धीरे आपको ज्योति का तेज बढ़ता हुआ दिखाई देगा .





कुछ दिन बाद आपको ज्योति के प्रकाश के अलावा आपको कुछ भी आस पास नहीं दिखाई देगा और उस समय आपको कुछ अलौकिक दर्शन भी हो सकते है लेकिन ये सभी को अलग-अलग प्रकार से होते है आप किसी को शेयर न करे .



विशेष :-





मेरा स्वयं का किया गया प्रयोग है और आज से चौबीस साल पहले किया था कोई हानि नहीं होगी आपको जीवन में घटित घटनाएं भी दिख सकती है और कभी -कभी भविष्य में होने वाली घटनाएं भी दिख जाती है लेकिन जब वो बाद में सामने आती है तब महसूस होता है .





इसके लाभ ये है कि आप इस प्रयोग से किसी भी विशिस्ट व्यक्ति या अधिकारी से आप उसकी नजरो में देख कर अपना मन चाह कार्य करा सकते है बस मन ही मन उसकी नजरो में देखते हुए उसे आदेश दे कि ये मेरा काम करो ..इससे वशीकरण भी किया जा सकता है मगर अनुपयुक्त कार्य करने से इसकी शक्ति जाती रहती है .





आप नियमित प्रयोग करके जीवन को सफल कर सकते है पढाई में मन लगाना कार्य में मन लगाना रोजगार में रोजी रोटी के संसाधन मिलना किसी रूठे व्यक्ति को मानना जेसे कार्य आप करा सकते है 





जीवन की सफलता के लिए जो लोग परेशान रहते है और असफलता उनके हाथ होती है एक बार इस प्रयोग को करे और लाभ ले अगर लाभ न हो तो लेखक को ढोगी या बेवकूफ जेसे संबोधन प्रयोग कर सकते है मैने आज कल के युवा वर्ग की परेशानी को देखते हुए ये प्रयोग लिखा है जो पढ़ लिख कर भी रोजगार के लिए परेशान रहते है जबकि मेरा कोई निजी स्वार्थ नहीं है न ही किसी को मार्ग से भटकाना है जबकि इसके आगे के चरण इसलिए नहीं लिख रहा हूँ क्युकि आज के युग में लोग अहित की भावना से गलत कार्य कर बैठते है जो मुझे कतई पसंद नहीं है .क्युकि सच्चा साधक होता है तभी उसे तलवार देना उपयुक्त होता है .





आगे के आखिरी चरण सूर्य त्राटक तक की साधना बड़े धर्य का कार्य है ..!



उपचार और प्रयोग-

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