विवाह एक जीवन -भर का पवित्र बंधन है इसमें आप जितनी वफादारी करेगे उतना ही आपका जीवन सार्थक होगा जिस तरह जीवन में सांस लेना कोई व्यापारिक समझौता नहीं होता है उसी तरह ये बंधन एक -दुसरे के प्रति वफादार रहना अत्यधिक आवश्यक है -
वफादारी पारस्परिक भरोसे के योग्य बनने का दूसरा नाम है .
विवाहित जीवन की स्थिरता के लिए पारस्परिक-विश्वास बड़ा महत्वपूर्ण है जहाँ पारस्परिक-विश्वास घर में स्वर्गीय-सुख का कारण बनता है वहां अविश्वास से अत्यंत दुःख और नरक पैदा होता है -
कृतज्ञता से पारस्परिक विश्वास, वफादारी और प्रेम की उत्पत्ति होती है, जबकि कृतघ्नता दुखमय घर और नारकीय परिवार का कारण बनती है -
यदि पति-पत्नी माता-पिता के रूप में एक शांतिमय और गौरवपूर्ण घर बनाना चाहते हैं तो प्रत्येक पति को अपनी पत्नी को और प्रत्येक पत्नी को अपने पति को अपने दैनिक व्यवहारिक जीवन में सन्मान देना चाहिए -
विवाह का सम्बन्ध एक बहुत घनिष्ट सम्बन्ध है, और क्योंकि विवाहित जोड़े को सदा एक-दूसरे के साथ रहना तथा एक- दूसरे के लिए जीना होता है, इसलिए इस घनिष्ट मेल-जोल में एक-दूसरे को घृणा करने का डर बना रहता है . विवाह के कुछ समय बाद प्राय: वह एक-दूसरे को कटु-वचन भी कहने लगते हैं और धैर्यहीन पति क्रोध में आकर अपनी पत्नियों को मार भी बैठते हैं पति-पत्नी में इस प्रकार कटु-वचनों का प्रयोग तथा मार-पीट से बढ़कर जीवन में और कोई भूल नहीं हो सकती -
विवाहित जीवन का कार्य संतान की उत्पत्ति और विकास है . माता-पिता को यह नहीं भूलना चाहिए कि बच्चों की विरासत में उनका बड़ा हाथ है; और उनका परस्पर व्यवहार बच्चों के लिए एक वातावरण उत्पन्न करता है .
आखिर विवाहित जीवन का उद्देश्य क्या है....?
विवाह-बंधन में बंधने से पूर्व लड़की या लड़का बस साधारण व्यक्ति से अधिक कुछ नहीं होते . अनुष्ठान द्वारा उन्हें एक-दूसरे के निकट लाया जाता है . अब देखा जाए कि सामान्यत: इस मिलन का आधार क्या है-तो साधारणत: विषय वासना की तृप्ति इस सम्बन्ध की पृष्ठभूमि है . दूल्हा और दुल्हन के विचार और क्रियाएं अधिकतर इसी इच्छा के इर्द-गिर्द घूमते हैं . उनके विवाहित जीवन का कोई उच्च-उदेश्य नहीं होता . वे प्राय: अपने आत्मिक-जीवन की उन्नति और विकास के सम्बन्ध में एस-दूसरे से बात भी नहीं करते . जीवन की बुराइयों, पापाचार या अशुद्ध भावों से छुटकारा पाने के लिए कभी विचार नहीं करते . साधारणत: अपने पारिवारिक-जीवन को श्रेष्ठ और उच्च बनाने या पारस्परिक संबंधों को धार्मिक पुट देने के लिए कभी गंभीरता से चर्चा भी नहीं करते .
जब विवाहित जोड़े एक- दूसरे को केवल वासना की दृष्टि से ही देखते हैं, तो उनके परस्पर के सम्बन्ध पवित्र और उच्च क्योंकर हो सकते हैं... ? पति-पत्नी जब केवल काम-वासना सम्बन्धी चर्चा और मखौल ही करते हैं तो उनका सम्बन्ध श्रेष्ठ हो ही कैसे सकता है ...?
काम वासना स्वयं कोई बुराई नहीं है . इस वासना की अनुपस्थिति में मानव संतान की उत्पत्ति और मानवजाति की स्थिरता ही सम्भव नहीं . परन्तु इसी इच्छा के साथ बंध जाने से ‘मनुष्य’ यौवन की अनेक निधियां खो बैठता है और जीवन के मानसिक तथा नैतिक पहलुओं से दिवालिया हो जाता है . यही कारण है कि अधिकतर लोग बहुत सीमित समय तक ही यौवन का आनंद ले पाते हैं . हमारे स्त्री-पुरुषों, युवक-युवतियों की यह स्थिति कितनी दु:खदायी है.. ! क्या ऐसे निर्बल लोगों के बच्चों के दुनिया में आने से कभी हमारी जाती या राष्ट्र सशक्त और सतेज बन सकता है...?
केवल विवाहित अवस्था में ही नहीं, विवाह होने और जीवन-साथी को पा जाने के बाद भी . इसके लिए मनुष्य को काम-वासना की ग़ुलामी से बचना अनिवार्य है . उक्त ग़ुलामी से बचकर ही विवाहित जीवन में पवित्रता की कल्पना की जा सकती है . काम-अनुराग से मुक्त न होकर कोई पुरुष स्त्री जाती के प्रति शुद्ध आदर-भाव रख ही नहीं सकता, न ही स्त्री जाती के प्रति कभी उसकी अभिवृतियाँ उन्नत और प्रतिष्ठित हो सकती हैं .
विवाह के पश्चात पति-पत्नी यदि अपने घरों को स्वर्गीय बनाना और रखना चाहते हैं तो उन्हें पारस्परिक प्रेम, विश्वास, वफादारी, सेवा और बलिदान को मुख्य स्थान देना चाहिए ..!
उपचार और प्रयोग -
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