
* यह भारत वर्ष में प्रायः सर्वत्रा १०० फुट की उफँचाई तक पाई जाती है।
* अमृत तुल्य गुणों के कारण इसे अमृता भी कहते है। यह बारह मास हरी भरी रहती है। यह वृक्ष, पहाड, भवन व खेतों की मेड आदि का सहारा लेकर अपने पर्वो का पत्राकोणों से जड देती हुई कुण्डलाकार चढती जाती है। यह दक्षिणा वाहिनी अरोहिकी लता है। पतली रज्जू से लेकर अंगूठे की भांति मोटाई युक्त इसका मूल पाया जाता है। काटने पर इसका रंग श्वेत से भूरे रंग का लालिमा युक्त हो जाता है व इसकी गंध उग्र होती है। इसके पत्ते पान के आकार के होते है।
* निघण्टुकारों के अनुसार त्रोतायुग में जब भगवान श्रीराम ने राक्षसराज रावण को मार दिया तो इन्द्र ने भगवान राम की स्तुति की व इन्द्र ने अमृत वर्षा की। अमृतसिक्त वानरों के शरीर से जहाँ-जहाँ अमृत की बूँदे गिरी वहाँ-वहाँ गुडूची उत्पन्न हो गयी। इसलिए इसे अमृता भी कहा है।गिलोय को अमृता भी कहा जाता है। यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करे। कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी, वहां वहां गिलोय उग गई। यह सभी तरह के व्यक्ति बड़े आराम से ले सकते हैं। ये हर तरह के दोष का नाश करती है।
* सर्प विष में इसकी जड का रस या क्वाथ काटे हुए स्थान पर लगाया जाता है व आंखों में डाला जाता है व आधे-आधे घंटे की अवध् में पिलाया जाता है।
* गुडूची स्वरस बारह मिलीलीटर , मधु दो ग्राम व नमक सेंधा एक ग्राम मिलाकर रखे व नियमित आंखों में अंजन से तिमिर, नेत्रासाव, नेत्राशोध् आदि नेत्र विकार दूर होती है।
* गीली गुडूची के टुकडों की माला बनाकर गले में पहनना कामला रोगी के लिए हितकारी है।
* इसके स्वरस में मधु मिलाकर सेवन से बल बढता है।
* इसका क्वाथ नियमित सेवन से गठिया दूर होती है।
* प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद या मिश्री के साथ सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
* गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है ।
* गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है।
* गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।
* गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर इस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करने से #रक्त कैंसर में फायदा होगा।
* गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5-7 पत्ते पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है।
* कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें।
* टी .बी .रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
* गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
* गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी #पीलिया में लाभ होता है। गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है। गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
* सौठ चूर्ण के साथ लेने पर मंदाग्नि दूर होती है।
* सौठ चूर्ण के साथ लेने पर मंदाग्नि दूर होती है।
* इसके क्वाथ लेने से मूत्रा दाह दूर होकर मूत्रा सापफ आता है।
* ब्राह्मी के साथ इसका क्वाथ लेने से उन्माद दूर होता है।
* खूबकला, कासनी, गिलोय, अजवायन एवं काला नमक का क्वाथ लेने से समस्त प्रकार के ज्वर दूर होकर भूख खुलती है।
* गिलोय, अतीस, इन्द्र जौ, नागरमोथा, सौंठा एवं चिरायता के क्वाथ लेने से ज्वरतिसार मिटता है।
* इसकी जड का क्वाथ पिलाने से बारी से आने वाला ज्वर मिटता है।
* शतावर के साथ इसका क्वाथ पिलाने से श्वेतप्रदर मिटता है।
* गिलोय को पानी में घिस गुनगुना करके कान में डालने से कान का मैल निकल जाता है।
* इसके क्वाथ को ठण्डा कर चतुर्थांश भाग मधु मिलाकर पिलाने से जीर्ण ज्वर मिटता है एवं वमन बंद होती है।
* गिलोय, गोखरु, आंवला, मिश्री समान भाग मिलाकर १-१ चम्मच २ बार दूध् के साथ सेवन करने से शरीर में बहुत बल बढता है व बहुत उत्तम #बाजीकरण रसायन है।
* इसके एवं सौंठ के चूर्ण की नस्य देने से हिचकी बंद होती है।
* घृत के साथ सेवन करने से वात रोग मिटता है।
* गुड के साथ सेवन करने से कब्ज मिटती है।
* गिलोय, हरड, नागर मोथा चूर्ण को मधु के साथ सेवन करने से मेदो रोग ;मोटापा चर्बीद्ध मिटता है।
* गिलोय सत्व, आमलकी रसायन को गुडूची स्वरस में पीने से सभी प्रकार के प्रदर नष्ट होकर शरीर कांतिवान बनता है।
* गिलोय, ब्राह्मी, शंखपुष्पी चूर्ण को आंवले के मुरब्बे के साथ सेवन करने से रक्त चाप नियन्त्रिात होता है।
* गुडूची एवं ब्राह्मी क्वाथ पीने से हय्द्रव (दिल का अधिक धडकना) ठीक होता है।
* गिलोय, उश्वा, उत्रातमूल क्वाथ पीने से उपदंश ठीक होता है।
* गिलोय सत्व को आँवला स्वरस में सेवन करने से नेत्रा रोग ठीक होते है व नेत्रा ज्योति बढती है।
* गुडूची अश्वगन्ध को दूध् में पकाकर सेवन करने से बन्ध्यत्व (बांझपन) दूर होता है।
* गुडूची, सौंठ, पिप्पलामूल, मुनक्का क्वाथ सेवन करने से भ्रम रोग दूर होता है।
* उत्तम बाजीकरण योग- गुडूची सत्व ६ ग्राम, बड का दूध् ३ ग्राम, मिश्री १२ ग्राम तीनों को मिलाकर प्रातः- सांय दोनों समय सेवन करें। वीर्य के समस्त विकार दूर होकर वीर्य शु( एवं गाढा बनेगा।
* इसका क्वाथ पीने से सब प्रकार के प्रमेह एवं मधुमेह में लाभ होता है।
* इसका सेवन खाली पेट करने से aplastic anaemia भी ठीक होता है। इसकी डंडी का ही प्रयोग करते हैं पत्तों का नहीं, उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है। डंडी को ऐसे भी चूस सकते है . चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें, हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी।
* इसे लेते रहने से रक्त संबंधी विकार नहीं होते . toxins खत्म हो जाते हैं , और बुखार तो बिलकुल नहीं आता। पुराने से पुराना बुखार खत्म हो जाता है।
* इससे पेट की बीमारी, दस्त,पेचिश, आंव, त्वचा की बीमारी, liver की बीमारी, tumor, diabetes, बढ़ा हुआ E S R, टी बी, white discharge, हिचकी की बीमारी आदि ढेरों बीमारियाँ ठीक होती हैं ।
* अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ- पुनर्नवा (साठी, जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं) की जड़ भी कूटकर काढ़ा बनायें और पीयें। kidney के लिए भी यह बहुत बढ़िया है।
गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति रहती है और असमय ही झुर्रियां नहीं पड़ती।
शरीर में गर्मी अधिक है तो इसे कूटकर रात को भिगो दें और सवेरे मसलकर शहद या मिश्री मिलाकर पी लें।
* अगर platelets बहुत कम हो गए हैं, तो चिंता की बात नहीं , aloevera और गिलोय मिलाकर सेवन करने से एकदम platelets बढ़ते हैं।
* इसका काढ़ा यूं भी स्वादिष्ट लगता है नहीं तो थोड़ी चीनी या शहद भी मिलाकर ले सकते हैं. इसकी डंडी गन्ने की तरह खडी करके बोई जाती है इसकी लता अगर नीम के पेड़ पर फैली हो तो सोने में सुहागा है।
* इसे अपने गमले में उगाकर रस्सी पर चढ़ा दीजिए। देखिए कितनी अधिक फैलती है यह और जब थोड़ी मोटी हो जाए तो पत्ते तोडकर डंडी का काढ़ा बनाइये या शरबत। दोनों ही लाभकारी हैं। यह त्रिदोशघ्न है अर्थात किसी भी प्रकृति के लोग इसे ले सकते हैं।
* गिलोय का लिसलिसा पदार्थ सूखा हुआ भी मिलता है। इसे गिलोय सत कहते हैं . इसका आरिष्ट भी मिलता है जिसे अमृतारिष्ट कहते हैं। अगर ताज़ी गिलोय न मिले तो इन्हें भी ले सकते हैं। ताजी गिलोय के छोटे-छोटे टुकड़े कर पानी में गला दिया जाता हे, गली हुई टहनियों को हाथ से मसलकर पानी चलनी या कपडे से छान कर अलग किया जाता हे और स्थिर छोड़ दिया जाता हे अगले दिन तलछट (सेडीमेंट) को निथार कर सुखा लिया जाता हे
* इसे गुर्च भी कहते हैं । संस्कृत में इसे गुडूची या अमृता कहते हैं । कई जगह इसे छिन्नरूहा भी कहा जाता है क्योंकि यह आत्मा तक को कंपकंपा देने वाले मलेरिया बुखार को छिन्न -भिन्न कर देती है।
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-
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