* हर एक पौधे में कोई ना कोई महत्वपूर्ण औषधीय गुण जरूर होते हैं, यहां तक कि तथाकथित रूप से जहरीले कहलाने वाले पौधे भी किसी ना किसी खास औषधीय गुण को समाहित किए होते हैं।
* पौधों को मनुष्य ने अपनी सहुलियत के अनुसार बांट रखा है, कुछ पौधे खरपतवार की श्रेणी में रखे गए हैं तो कुछ बेवजह उखाड़ फेंक दिए जाते हैं।
* जलजमनी भी कुछ इस तरह की एक बेल है जिसे आमतौर पर उखाड़कर फेंक दिया जाता है। इस बेल की खासियत यह हैं कि ये पानी को जैली या थक्का जैसा बना देती है।
* जंगलों, खेत खलिहानों, खेतों की बाड़, छायादार स्थानों और घरों के इर्द-गिर्द अक्सर देखे जाने वाली इस बेल का सबसे बड़ा गुण यह होता है कि यह जल को जमा देती है, और इसी वजह से इसे जलजमनी के नाम से जाना जाता है, कई जगहों पर इसे पातालगरुड़ी के नाम से भी जाना जाता है। प्रचुरता से पाई जाने वाली इस वनस्पति का वैज्ञानिक नाम कोक्युलस हिरसुटस (Cocculus hirsutus) है।
* इसके पत्ते चिकने और शीतल होते हैं . इन्हें पीसकर रात को पानी में डालें तो सवेरे पानी को जमा हुआ पाएंगे .
* श्वेत प्रदर(white discharge) हो या रक्त (bleeding) प्रदर हो तो इसकी 5-7 gram पत्तियों को पीसकर रस निकालें और एक कप पानी में मिश्री और काली मिर्च के साथ सुबह शाम लें . दो तीन दिन में ही असर दिखाई देगा
* Periods जल्दी आते हों , overbleeding हो पेशाब में जलन हो , गर्मीजन्य बीमारी हो , स्वप्नदोष हो या फिर धातुक्षीणता हो तो इस रस को 10-15 दिन तक भी लिया जा सकता है . इसके अतिरिक्त टहनियों समेत इसे सुखाकर , कूटकर 2-2 ग्राम पावडर मिश्री मिलाकर दूध के साथ लिया जा सकता है .
* कमजोरी हो तो , शतावर , मूसली , अश्वगंधा और जलजमनी बराबर मिलाकर एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें . नकसीर आती हो तो , दाह या जलन हो तो, इसकी पत्तियों के रस का शर्बत या सूखा पावडर एक एक ग्राम पानी के साथ लें . शीत प्रकृति के व्यक्तियों को इसका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए
* सर्पदंश होने पर दंशित व्यक्ति को जल-जमनी की जड़ें (10 ग्राम) और काली मिर्च (8 ग्राम) को पानी में पीसकर रोगी को प्रत्येक 15 मिनट के अंतराल से पिलाते है। आदिवासियों का मानना है कि इस मिश्रण को देने से उल्टियां होती है और जहर का असर कम होने लगता है।
* पत्तियों और जड़ को कुचलकार पुराने फोड़ों फुंसियों पर लगाया जाए तो आराम मिल जाता है।
* दाद- खाज और खुजली होने पर भी इसकी पत्तियों को कुचलकर रोग ग्रस्त अंगों पर सीधे लगा दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिल जाता है। आधुनिक शोध भी इस पौधे की पत्तियों के एंटीमाईक्रोबियल गुणों को सत्यापित कर चुकी हैं।
* जल-जमनी की पत्तियों और जड़ों को अच्छी तरह पीसकर जोड़ों के दर्द में आराम के लिये उपयोग में लाते है। माना जाता है कि जोड़ दर्द, आर्थराईटिस और अन्य तरह के दर्द निवारण के लिए यह नुस्खा काफी कारगर साबित होता है।
* शुक्राणुओं की कमी की शिकायत वाले रोगियों को पत्तियों के काढे का सेवन की सलाह देते हैं, वैसे इस पौधे की पत्तियों के स्पर्मेटोसिस (शुक्राणुओं के बनने की प्रक्रिया) में सफल परिणामों के दावों को अनेक आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने भी साबित किया है।
* मधुमेह (डायबिटिस) के रोगियों को प्रतिदिन इसकी कम से कम चार पत्तियों को सुबह शाम चबाना चाहिए, माना जाता है कि टाईप २ डायबिटिस के रोगियों के लिए ये एक कारगर हर्बल उपाय है।
* इसकी कुछ पत्तियों को लेकर कुचल लिया जाए और इसे पानी में मिला दिया जाए तो कुछ ही देर में पानी जम जाता है अर्थात पानी एक जैली की तरह हो जाता है। आदिवासियों का मानना है कि इस मिश्रण को यदि मिश्री के दानों साथ प्रतिदिन लिया जाए तो पौरुषत्व प्राप्त होता है। आदिवासी हर्बल जानकार इसके स्वरस को सेक्स टोनिक की तरह कमजोरी से ग्रस्त पुरुषों को देते हैं। य़ही फ़ार्मुला गोनोरिया के रोगी के लिए भी बड़ा कारगर है।
* यह कहीं भी आसानी से उगाई जा सकती है .
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-
* पौधों को मनुष्य ने अपनी सहुलियत के अनुसार बांट रखा है, कुछ पौधे खरपतवार की श्रेणी में रखे गए हैं तो कुछ बेवजह उखाड़ फेंक दिए जाते हैं।
* जलजमनी भी कुछ इस तरह की एक बेल है जिसे आमतौर पर उखाड़कर फेंक दिया जाता है। इस बेल की खासियत यह हैं कि ये पानी को जैली या थक्का जैसा बना देती है।
* जंगलों, खेत खलिहानों, खेतों की बाड़, छायादार स्थानों और घरों के इर्द-गिर्द अक्सर देखे जाने वाली इस बेल का सबसे बड़ा गुण यह होता है कि यह जल को जमा देती है, और इसी वजह से इसे जलजमनी के नाम से जाना जाता है, कई जगहों पर इसे पातालगरुड़ी के नाम से भी जाना जाता है। प्रचुरता से पाई जाने वाली इस वनस्पति का वैज्ञानिक नाम कोक्युलस हिरसुटस (Cocculus hirsutus) है।
* इसके पत्ते चिकने और शीतल होते हैं . इन्हें पीसकर रात को पानी में डालें तो सवेरे पानी को जमा हुआ पाएंगे .
* श्वेत प्रदर(white discharge) हो या रक्त (bleeding) प्रदर हो तो इसकी 5-7 gram पत्तियों को पीसकर रस निकालें और एक कप पानी में मिश्री और काली मिर्च के साथ सुबह शाम लें . दो तीन दिन में ही असर दिखाई देगा
* Periods जल्दी आते हों , overbleeding हो पेशाब में जलन हो , गर्मीजन्य बीमारी हो , स्वप्नदोष हो या फिर धातुक्षीणता हो तो इस रस को 10-15 दिन तक भी लिया जा सकता है . इसके अतिरिक्त टहनियों समेत इसे सुखाकर , कूटकर 2-2 ग्राम पावडर मिश्री मिलाकर दूध के साथ लिया जा सकता है .
* कमजोरी हो तो , शतावर , मूसली , अश्वगंधा और जलजमनी बराबर मिलाकर एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें . नकसीर आती हो तो , दाह या जलन हो तो, इसकी पत्तियों के रस का शर्बत या सूखा पावडर एक एक ग्राम पानी के साथ लें . शीत प्रकृति के व्यक्तियों को इसका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए
* सर्पदंश होने पर दंशित व्यक्ति को जल-जमनी की जड़ें (10 ग्राम) और काली मिर्च (8 ग्राम) को पानी में पीसकर रोगी को प्रत्येक 15 मिनट के अंतराल से पिलाते है। आदिवासियों का मानना है कि इस मिश्रण को देने से उल्टियां होती है और जहर का असर कम होने लगता है।
* पत्तियों और जड़ को कुचलकार पुराने फोड़ों फुंसियों पर लगाया जाए तो आराम मिल जाता है।
* दाद- खाज और खुजली होने पर भी इसकी पत्तियों को कुचलकर रोग ग्रस्त अंगों पर सीधे लगा दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिल जाता है। आधुनिक शोध भी इस पौधे की पत्तियों के एंटीमाईक्रोबियल गुणों को सत्यापित कर चुकी हैं।
* जल-जमनी की पत्तियों और जड़ों को अच्छी तरह पीसकर जोड़ों के दर्द में आराम के लिये उपयोग में लाते है। माना जाता है कि जोड़ दर्द, आर्थराईटिस और अन्य तरह के दर्द निवारण के लिए यह नुस्खा काफी कारगर साबित होता है।
* शुक्राणुओं की कमी की शिकायत वाले रोगियों को पत्तियों के काढे का सेवन की सलाह देते हैं, वैसे इस पौधे की पत्तियों के स्पर्मेटोसिस (शुक्राणुओं के बनने की प्रक्रिया) में सफल परिणामों के दावों को अनेक आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने भी साबित किया है।
* मधुमेह (डायबिटिस) के रोगियों को प्रतिदिन इसकी कम से कम चार पत्तियों को सुबह शाम चबाना चाहिए, माना जाता है कि टाईप २ डायबिटिस के रोगियों के लिए ये एक कारगर हर्बल उपाय है।
* इसकी कुछ पत्तियों को लेकर कुचल लिया जाए और इसे पानी में मिला दिया जाए तो कुछ ही देर में पानी जम जाता है अर्थात पानी एक जैली की तरह हो जाता है। आदिवासियों का मानना है कि इस मिश्रण को यदि मिश्री के दानों साथ प्रतिदिन लिया जाए तो पौरुषत्व प्राप्त होता है। आदिवासी हर्बल जानकार इसके स्वरस को सेक्स टोनिक की तरह कमजोरी से ग्रस्त पुरुषों को देते हैं। य़ही फ़ार्मुला गोनोरिया के रोगी के लिए भी बड़ा कारगर है।
* यह कहीं भी आसानी से उगाई जा सकती है .
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-
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