आज से पचास वर्ष पहले कोई व्यक्ति रिफाइंड आयल का नाम नहीं जानता था -तो क्या लोग स्वस्थ नहीं रहते थे.?
पास्ता,मैक्रोनी,पिज्जा,बर्गर,नुडोल्स,नहीं थे तो क्या ताकत नहीं थी.?
आधुनिक संसाधन किचन में उपलब्ध नहीं थे तो क्या महिलाए बीमार थी.?
व्हीकल उपलब्ध नहीं था तो क्या कोई कालेज या आफिस नहीं जाता था ?
जवाब हमें न बताये खुद से ही पूछे .?
लेकिन ये भी सच है कि लोग आज से जादा स्वास्थ थे -डॉक्टर की संख्या कम थी जहाँ तक मुझे याद है लोगो को सिर्फ जादातर साधारण बीमारियाँ ही हुआ करती थी हम जब ओषधालय में हुआ करते थे -
सिर्फ साधारण बीमारियों के पेसेंट ही जादा आते थे - दो सौ मरीजो में एक आधा ही आया करता था जिसे घातक बिमारी -टी बी , हाई बी पी ,अस्थमा आदि हुआ करते थे हार्ट ब्लोकेज के केस तो न के बराबर थे -
डिलेवरी भी काम-काजी महिलाओं की नार्मल ही हो जाती थी- टेस्ट के नाम पे टिटनेस का एक इंजेक्सन बस यही लगवा लिया और आखिरी के नौवे माह तक घर का पूरा काम -काज करने के लिए काम वाली बाई नहीं आती थी -
आज बिना माइनर आपरेशन के डिलेवरी की हास्पिटल में कोई चांस नहीं- ये आरोप नहीं सच है -एक बार महिला का प्रवेश लेबर रूम में होने की देर है - आपकी जेब पे भार तो पड़ना ही है-
आखिर आपको पता भी नहीं कि माइनर आप्रेसन की आवश्यकता थी भी या नहीं - नार्मल डिलेवरी में बिल केसे जादा बनेगा-दवाये बाहर से केसे प्रस्क्राईब की जायेगी- जिनकी आवश्यकता भी नहीं है आखिर उसी मेडिकल शाप पे बाद में वापस जो जानी है -
एक सच लिख रहा हूँ जो कडवा है - जो डॉक्टर आपको घातक और साइड इफेक्ट वाली दवाये लिख रहा है वो खुद अपनी लिखी दवा का उपयोग अपने लिए नहीं करता है क्युकि उसे उसके साइड इफेक्ट का पता है - अगर उसको नार्मल बिमारी हो भी तो हमने हास्पिटल में देखा है वो अपना काम देसी दवा से चलाते है -
ये सब इस लिए नहीं लिख रहा हूँ -कि सिर्फ निंदा करना ही मेरा उद्देश्य है -बल्कि इसलिए लिख रहा हूँ कि आप अपने आप को जितना हो सके इन बीमारियों से खुद को सुरक्षित करे -कम से कम डॉक्टर की आवश्यकता हो -पेसे की बचत भी हो -और आप उन दवाओं के साइड इफेक्ट से भी बचे -
कुछ उपाय आपको भी अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है -
बहार की खाने-पीने की वस्तुओ का जितना परहेज आप कर सके उतना अवस्य ही करे अगर मज़बूरी आती है किसी येसी जगह है जहाँ आपको खाना ही पड़ेगा तो ताजा फल लेके उसे अच्छी तरह धो ले आप और काम चला ले -
मौसमी फल और सब्जियां खाएं, क्योंकि इनमें पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं, जबकि कोल्ड स्टोरेज में रखी सब्जियों और फलों के 10 से 70 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। खाद्य पदार्थों को देर तक न पकाएं, इससे उनके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और उनका रंग और टेक्सचर भी बदल जाता है। हरी पत्तेदार सब्जियों को काटने से पहले धो लें, क्योंकि इनमें मौजूद विटामिन और मिनरल पानी में घुलनशील होते हैं। सलाद को खाने के तुरंत पहले ही काटें। सलाद को ज्यादा देर तक काटकर रखने से विटामिन बी और सी नष्ट हो जाते हैं। सब्जियों को ढककर पकाएं, इससे पोषक तत्व सुरक्षित रहेंगे। ताजे और मौसमी फल स्वादिष्ट होते हैं और फाइबर, विटामिन और एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। फलों का जूस पीने की बजाय उन्हें साबुत खाएं।
फ्रोजन और डिब्बाबंद में से अगर चुनाव करना हो तो फ्रोजन खाने का चुनाव करें। डिब्बाबंद खाना खरीदने से पहले लेबल्स और सामग्री जांच लें। ऐसे खाद्य पदार्थों का चयन करें जिसमें प्रिजर्वेटिव्स और रंगों का उपयोग कम से कम हो। ऐसे भोजन का चयन करें, जिसमें सोडियम की मात्रा कम से कम हो। ट्रांस फैट वाले उत्पाद ना खरीदें, क्योंकि ये प्राकृतिक नहीं होते और दिल के लिए भी अच्छे नहीं होते। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में स्वाद और रंग बरकरार रखने के लिए कई बार विषैले रसायन का इस्तेमाल किया जाता है। इससे एलर्जी और कैंसर का खतरा होता है। इनमें सोडियम की मात्रा भी अधिक होती है, जिससे रक्तचाप बढ़ सकता है। हृदय रोग, स्ट्रोक और गुर्दे की बीमारियों की आशंका भी बढ़ जाती है।
साबुन, शैंपू, हेयर कंडीशनर और फेशियल क्लींजर में सोडियम लॉरियाल सल्फेट नाम का एक रसायन पाया जाता है। इसका उपयोग झाग बनाने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है। बच्चों के शैंपू में भी यह घातक रसायन पाया जाता है। कई क्रीम, शैंपू आदि में एल्युमीनियम भी होता है। इससे अल्जाइमर्स का खतरा बढ़ जाता है। बाजार में कई ऐसे शैंपू और कंडीशनर उपलब्ध हैं जो प्राकृतिक तत्वों से बने होते हैं। शैंपू खरीदने से पहले सामग्री ध्यान से पढ़ें। ऐसे साबुन-शैंपू का उपयोग ना करें, जिसमें झाग बहुत बनते हों-
ऐसे टूथपेस्ट का उपयोग ना करें जिसमें सोडियम लॉरेल सल्फेट और फ्लोरइड हो। आपको ऐसा टूथपेस्ट चुनने में एक बार मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन आप हमेशा के लिये हानिकारक रसायनों से बच जाएंगी।
डिओडरेंट चुनते वक्त भी इस बात का ध्यान रखें कि उसमें एल्यूमीनियम न हो। ऐसे डिओडरेंट के इस्तेमाल से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है-
आस-पास की जगह पे जाना हो -कम से कम व्हीकल का इस्तेमाल करे पैदल जाए- शारीरिक व्यायाम भी होगा और पेसे की भी बचत -
रिफाइंड एक धीमा जहर है -इसकी जानकारी आपको गूगल महाराज की शरण में जाए तो असीम ज्ञान मिल जाएगा कि आप आखिर क्या खा रहे है- इससे दूर होने में ही भलाई है -शुद्ध मुमफली ,सरसों का तेल,नारियल तेल,अपनाए-
रिफाइंड तेल की जगह सरसों या जैतून के तेल में भोजन बनाएं, इनमें पोषक तत्व संतुलित मात्रा में होते हैं। डीप फ्राय करने के बाद बचे हुए तेल को दोबारा उपयोग में न लाएं, क्योंकि उच्च ताप पर तेल को गर्म करने से वह टॉक्सिन का रूप ले लेता है जिसे एक्रेलेमाइट कहते हैं। अच्छी वसा आपके मस्तिष्क, हृदय और कोशिकाओं की सेहत के साथ ही आपके बाल, त्वचा और नाखूनों के लिये भी आवश्यक है। इससे दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है, मूड ठीक रहता है और डिमेंशिया का खतरा भी कम होता है। खाने में वसा की मात्रा कम करने से हर दिन ली जाने वाली कैलोरी कम हो जाती है, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि आप अच्छी मात्रा में मोनोसैचुरैटेड फैट और फैटी एसिड लें, जिसमें ओमेगा-3 और ओमेगा-6 शामिल हों। जैतून का तेल, सूखे मेवे, मछलियां, विभिन्न प्रकार के बीज और फलियां अच्छी वसा के स्त्रोत हैं।
अपना ही नहीं आने वाली पीढ़ी को भी इस जहर से मुक्ति दिलाये-
उपचार और प्रयोग-http://www.upcharaurprayog.com
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लेकिन ये भी सच है कि लोग आज से जादा स्वास्थ थे -डॉक्टर की संख्या कम थी जहाँ तक मुझे याद है लोगो को सिर्फ जादातर साधारण बीमारियाँ ही हुआ करती थी हम जब ओषधालय में हुआ करते थे -
सिर्फ साधारण बीमारियों के पेसेंट ही जादा आते थे - दो सौ मरीजो में एक आधा ही आया करता था जिसे घातक बिमारी -टी बी , हाई बी पी ,अस्थमा आदि हुआ करते थे हार्ट ब्लोकेज के केस तो न के बराबर थे -
डिलेवरी भी काम-काजी महिलाओं की नार्मल ही हो जाती थी- टेस्ट के नाम पे टिटनेस का एक इंजेक्सन बस यही लगवा लिया और आखिरी के नौवे माह तक घर का पूरा काम -काज करने के लिए काम वाली बाई नहीं आती थी -
आज बिना माइनर आपरेशन के डिलेवरी की हास्पिटल में कोई चांस नहीं- ये आरोप नहीं सच है -एक बार महिला का प्रवेश लेबर रूम में होने की देर है - आपकी जेब पे भार तो पड़ना ही है-
आखिर आपको पता भी नहीं कि माइनर आप्रेसन की आवश्यकता थी भी या नहीं - नार्मल डिलेवरी में बिल केसे जादा बनेगा-दवाये बाहर से केसे प्रस्क्राईब की जायेगी- जिनकी आवश्यकता भी नहीं है आखिर उसी मेडिकल शाप पे बाद में वापस जो जानी है -
एक सच लिख रहा हूँ जो कडवा है - जो डॉक्टर आपको घातक और साइड इफेक्ट वाली दवाये लिख रहा है वो खुद अपनी लिखी दवा का उपयोग अपने लिए नहीं करता है क्युकि उसे उसके साइड इफेक्ट का पता है - अगर उसको नार्मल बिमारी हो भी तो हमने हास्पिटल में देखा है वो अपना काम देसी दवा से चलाते है -
ये सब इस लिए नहीं लिख रहा हूँ -कि सिर्फ निंदा करना ही मेरा उद्देश्य है -बल्कि इसलिए लिख रहा हूँ कि आप अपने आप को जितना हो सके इन बीमारियों से खुद को सुरक्षित करे -कम से कम डॉक्टर की आवश्यकता हो -पेसे की बचत भी हो -और आप उन दवाओं के साइड इफेक्ट से भी बचे -
कुछ उपाय आपको भी अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है -
बहार की खाने-पीने की वस्तुओ का जितना परहेज आप कर सके उतना अवस्य ही करे अगर मज़बूरी आती है किसी येसी जगह है जहाँ आपको खाना ही पड़ेगा तो ताजा फल लेके उसे अच्छी तरह धो ले आप और काम चला ले -
मौसमी फल और सब्जियां खाएं, क्योंकि इनमें पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं, जबकि कोल्ड स्टोरेज में रखी सब्जियों और फलों के 10 से 70 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। खाद्य पदार्थों को देर तक न पकाएं, इससे उनके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और उनका रंग और टेक्सचर भी बदल जाता है। हरी पत्तेदार सब्जियों को काटने से पहले धो लें, क्योंकि इनमें मौजूद विटामिन और मिनरल पानी में घुलनशील होते हैं। सलाद को खाने के तुरंत पहले ही काटें। सलाद को ज्यादा देर तक काटकर रखने से विटामिन बी और सी नष्ट हो जाते हैं। सब्जियों को ढककर पकाएं, इससे पोषक तत्व सुरक्षित रहेंगे। ताजे और मौसमी फल स्वादिष्ट होते हैं और फाइबर, विटामिन और एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। फलों का जूस पीने की बजाय उन्हें साबुत खाएं।
फ्रोजन और डिब्बाबंद में से अगर चुनाव करना हो तो फ्रोजन खाने का चुनाव करें। डिब्बाबंद खाना खरीदने से पहले लेबल्स और सामग्री जांच लें। ऐसे खाद्य पदार्थों का चयन करें जिसमें प्रिजर्वेटिव्स और रंगों का उपयोग कम से कम हो। ऐसे भोजन का चयन करें, जिसमें सोडियम की मात्रा कम से कम हो। ट्रांस फैट वाले उत्पाद ना खरीदें, क्योंकि ये प्राकृतिक नहीं होते और दिल के लिए भी अच्छे नहीं होते। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में स्वाद और रंग बरकरार रखने के लिए कई बार विषैले रसायन का इस्तेमाल किया जाता है। इससे एलर्जी और कैंसर का खतरा होता है। इनमें सोडियम की मात्रा भी अधिक होती है, जिससे रक्तचाप बढ़ सकता है। हृदय रोग, स्ट्रोक और गुर्दे की बीमारियों की आशंका भी बढ़ जाती है।
साबुन, शैंपू, हेयर कंडीशनर और फेशियल क्लींजर में सोडियम लॉरियाल सल्फेट नाम का एक रसायन पाया जाता है। इसका उपयोग झाग बनाने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है। बच्चों के शैंपू में भी यह घातक रसायन पाया जाता है। कई क्रीम, शैंपू आदि में एल्युमीनियम भी होता है। इससे अल्जाइमर्स का खतरा बढ़ जाता है। बाजार में कई ऐसे शैंपू और कंडीशनर उपलब्ध हैं जो प्राकृतिक तत्वों से बने होते हैं। शैंपू खरीदने से पहले सामग्री ध्यान से पढ़ें। ऐसे साबुन-शैंपू का उपयोग ना करें, जिसमें झाग बहुत बनते हों-
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डिओडरेंट चुनते वक्त भी इस बात का ध्यान रखें कि उसमें एल्यूमीनियम न हो। ऐसे डिओडरेंट के इस्तेमाल से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है-
आस-पास की जगह पे जाना हो -कम से कम व्हीकल का इस्तेमाल करे पैदल जाए- शारीरिक व्यायाम भी होगा और पेसे की भी बचत -
रिफाइंड एक धीमा जहर है -इसकी जानकारी आपको गूगल महाराज की शरण में जाए तो असीम ज्ञान मिल जाएगा कि आप आखिर क्या खा रहे है- इससे दूर होने में ही भलाई है -शुद्ध मुमफली ,सरसों का तेल,नारियल तेल,अपनाए-
रिफाइंड तेल की जगह सरसों या जैतून के तेल में भोजन बनाएं, इनमें पोषक तत्व संतुलित मात्रा में होते हैं। डीप फ्राय करने के बाद बचे हुए तेल को दोबारा उपयोग में न लाएं, क्योंकि उच्च ताप पर तेल को गर्म करने से वह टॉक्सिन का रूप ले लेता है जिसे एक्रेलेमाइट कहते हैं। अच्छी वसा आपके मस्तिष्क, हृदय और कोशिकाओं की सेहत के साथ ही आपके बाल, त्वचा और नाखूनों के लिये भी आवश्यक है। इससे दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है, मूड ठीक रहता है और डिमेंशिया का खतरा भी कम होता है। खाने में वसा की मात्रा कम करने से हर दिन ली जाने वाली कैलोरी कम हो जाती है, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि आप अच्छी मात्रा में मोनोसैचुरैटेड फैट और फैटी एसिड लें, जिसमें ओमेगा-3 और ओमेगा-6 शामिल हों। जैतून का तेल, सूखे मेवे, मछलियां, विभिन्न प्रकार के बीज और फलियां अच्छी वसा के स्त्रोत हैं।
अपना ही नहीं आने वाली पीढ़ी को भी इस जहर से मुक्ति दिलाये-
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