जो लोग जो अन्जाने में ही किन्हीं व्यसनों से ग्रस्त हो गए हैं उनके लिए एक रामबाण तरीका बता रहा हूं । इसका उपयोग किसी एक विशेष नशे की आदत से छुटकारा पाने के लिए नहीं बल्कि कई तरह के नशों की आदत से छुटकारे के लिए करेगे इससे आप यदि इन नशीले पदार्थों के आदी हैं तो फिर देर किस बात की है-
बस अपने गुरू या इष्ट का स्मरण करके एक बार मन में यह विचार तो लाइए कि आपको उक्त नशा छोड़ना है फिर शेष काम तो यह चमत्कारी औषधि करेगी और कुछ ही दिनों में आप पाएंगे कि जादू हो रहा है कि जिस पदार्थ की आपको जानलेवा तलब होती थी वह पता नहीं कहां विलीन हो गई है । मैंने जिन पदार्थों पर इस श्रेष्ठ औषधि का प्रयोग किया है वे हैं : -
बीड़ी
सिगरेट
चिलम
चबाने वाली तम्बाकू
चाय
काफ़ी
अफ़ीम
पारस पीपल (यह एक बड़ा पेड़ होता है इसके पत्ते अचानक देखने में प्रसिद्ध पेड़ पीपल के पत्तों की तरह होते है तथा भिंडी के फूलों की तरह पीले फूल आते हैं तथा कुछ दिनों में ये फूल गाढ़े गुलाबी होकर मुर्झा जाते हैं ,इस पेड़ को मराठी में "भेंडी " ही कहा जाता है ) के पुराने पेड़ की छाल जो स्वतः ही पेड़ से अलग हो जाती है .
उसको लेकर खूब बारीक पीस कर मैदे की तरह बना लें व शीशी में भर लें । यह बारीक चूर्ण बारह ग्राम लेकर २५० मि.ली. पानी में हलकी आंच पर जैसे चाय बनाते हैं वैसे ही पकाएं और १०० मि.ली. पक कर रह जाने पर छान कर चाय की तरह ही हलका गर्म सा पी लीजिए । सुबह शाम नियमित रूप से पंद्रह दिनों तक सेवन कराने से मादक द्रव्यों की आदत छूट जाती है तथा नफ़रत सी होने लगती है । एकबार व्यसन छूट जाए तो पुनः इन दुर्व्यसनों को प्रयोग नहीं करना चाहिए फिर व्यसन से मुक्त होने के बाद मैं आदी व्यक्ति को दो माह तक बैद्यनाथ कंपनी का "दिमाग दोष हरी" नामक दवा का सेवन कराये अगर आपके क्षेत्र में पारस पीपल नहीं पाया जाता है तो किसी महाराष्ट्र में रहने वाले मित्र से मंगवाने में देर न करिए और लाभान्वित होइए । ईश्वर को धन्यवाद दीजिये कि उसने साधारण सी दिखने वाली चीज़ों में कैसे दिव्य गुण भर रखे हैं. इसके और गुण से परिचित कराते है -
पारस पीपल के 2 या 3 बीजों को शक्कर के साथ देने से संग्रहणी, बवासीर, सुजाक और पेशाब की गर्मी में लाभ होता है।
इसके पक्के फलों की राख में मिलाकर लगाने से और इसका काढा बनाकर पिलाने से दाद और खुजली में आराम मिलता है।
इसके पत्तों को पीसकर गरम करके लेप करने से जोडों की सोजन और पित्तज शोध (सोजिश) में आराम मिलता है।
इसके फूलों के रस का लेप करने से दाद मिटता है।
इसके पत्तों पर तेल चुपड़ कर गरम करके बांधने से नारू रोग द्वारा पैदा हुए छाले ओर घाव पर शीघ्र आराम मिलता है।
उपचार और प्रयोग -
बस अपने गुरू या इष्ट का स्मरण करके एक बार मन में यह विचार तो लाइए कि आपको उक्त नशा छोड़ना है फिर शेष काम तो यह चमत्कारी औषधि करेगी और कुछ ही दिनों में आप पाएंगे कि जादू हो रहा है कि जिस पदार्थ की आपको जानलेवा तलब होती थी वह पता नहीं कहां विलीन हो गई है । मैंने जिन पदार्थों पर इस श्रेष्ठ औषधि का प्रयोग किया है वे हैं : -
बीड़ी
सिगरेट
चिलम
चबाने वाली तम्बाकू
चाय
काफ़ी
अफ़ीम
पारस पीपल (यह एक बड़ा पेड़ होता है इसके पत्ते अचानक देखने में प्रसिद्ध पेड़ पीपल के पत्तों की तरह होते है तथा भिंडी के फूलों की तरह पीले फूल आते हैं तथा कुछ दिनों में ये फूल गाढ़े गुलाबी होकर मुर्झा जाते हैं ,इस पेड़ को मराठी में "भेंडी " ही कहा जाता है ) के पुराने पेड़ की छाल जो स्वतः ही पेड़ से अलग हो जाती है .
उसको लेकर खूब बारीक पीस कर मैदे की तरह बना लें व शीशी में भर लें । यह बारीक चूर्ण बारह ग्राम लेकर २५० मि.ली. पानी में हलकी आंच पर जैसे चाय बनाते हैं वैसे ही पकाएं और १०० मि.ली. पक कर रह जाने पर छान कर चाय की तरह ही हलका गर्म सा पी लीजिए । सुबह शाम नियमित रूप से पंद्रह दिनों तक सेवन कराने से मादक द्रव्यों की आदत छूट जाती है तथा नफ़रत सी होने लगती है । एकबार व्यसन छूट जाए तो पुनः इन दुर्व्यसनों को प्रयोग नहीं करना चाहिए फिर व्यसन से मुक्त होने के बाद मैं आदी व्यक्ति को दो माह तक बैद्यनाथ कंपनी का "दिमाग दोष हरी" नामक दवा का सेवन कराये अगर आपके क्षेत्र में पारस पीपल नहीं पाया जाता है तो किसी महाराष्ट्र में रहने वाले मित्र से मंगवाने में देर न करिए और लाभान्वित होइए । ईश्वर को धन्यवाद दीजिये कि उसने साधारण सी दिखने वाली चीज़ों में कैसे दिव्य गुण भर रखे हैं. इसके और गुण से परिचित कराते है -
पारस पीपल के 2 या 3 बीजों को शक्कर के साथ देने से संग्रहणी, बवासीर, सुजाक और पेशाब की गर्मी में लाभ होता है।
इसके पक्के फलों की राख में मिलाकर लगाने से और इसका काढा बनाकर पिलाने से दाद और खुजली में आराम मिलता है।
इसके पत्तों को पीसकर गरम करके लेप करने से जोडों की सोजन और पित्तज शोध (सोजिश) में आराम मिलता है।
इसके फूलों के रस का लेप करने से दाद मिटता है।
इसके पत्तों पर तेल चुपड़ कर गरम करके बांधने से नारू रोग द्वारा पैदा हुए छाले ओर घाव पर शीघ्र आराम मिलता है।
उपचार और प्रयोग -
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