स्फटिक एक रंगहीन, पारदर्शी, निर्मल और शीत प्रभाव वाला उपरत्न है। इसको कई नामों से जाना जाता है जैसे- 'सफ़ेद बिल्लौर', अंग्रेज़ी में 'रॉक क्रिस्टल', संस्कृत में 'सितोपल', शिवप्रिय, कांचमणि और फिटक आदि। इसे फिटकरी भी कहा जाता है। सामान्यत: यह काँच जैसा प्रतीत होता है, परंतु यह काँच की अपेक्षा अधिक दीर्घजीवी होता है। कटाई में काँच के मुकाबले इसमें कोण अधिक उभरे होते हैं-
इसकी प्रवृत्ति ठंडी होती है। अत: ज्वर, पित्त-विकार, निर्बलता तथा रक्त विकार जैसी व्याधियों में वैद्यजन इसकी भस्मी का प्रयोग करते हैं। स्फटिक को नग के बजाय माला के रूप में पहना जाता है। स्फटिक माला को भगवती लक्ष्मी का रूप माना जाता है। जी हाँ विभिन्न क्षेत्रों में सफलता दिलाने वाला और विघ्रो को मिटाने वाला होता है।
स्फटिक की रासायनिक संरचना सिलिकॉन डाइऑक्साइड है। तमाम क्रिस्टलों में यह सबसे अधिक साफ, पवित्र और ताकतवर है। स्फटिक शुद्ध क्रिस्टल है, या फिर यह भी कहा जा सकता है कि अंग्रेज़ी में शुद्ध क्वार्टज क्रिस्टल का देसी नाम स्फटिक है। 'प्योर स्नो' या 'व्हाइट क्रिस्टल' भी इसी के नाम हैं। यह सफ़ेदी लिए हुए रंगहीन, पारदर्शी और चमकदार होता है। यह सफ़ेद बिल्लौर अर्थात रॉक क्रिस्टल से हू-ब-हू मिलता है।
इसकी ख़ास विशेषताएँ:-
स्फटिक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह पहनने वाले किसी भी पुरुष या स्त्री को एकदम स्वस्थ रखता है। इसके बारे में यह भी माना जाता है कि इसे धारण करने से भूत-प्रेत आदि की बाधा से मुक्त रहा जा सकता है। कई प्रकार के आकार और प्रकारों में स्फटिक मिलता है। इसके मणकों की माला फैशन और हीलिंग पावर्स दोनों के लिहाज से लोकप्रिय है। यह इंद्रधनुष की छटा-सी खिल उठती है। इसे पहनने मात्र से ही शरीर में इलैक्ट्रोकैमिकल संतुलन उभरता है और तनाव-दबाव से मुक्त होकर शांति मिलने लगती है। स्फटिक की माला के मणकों से रोजाना सुबह लक्ष्मी देवी का मंत्र जप करना आर्थिक तंगी का नाश करता है। स्फटिक के शिवलिंग की पूजा-अर्चना से धन-दौलत, खुशहाली और बीमारी आदि से राहत मिलती है तथा सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती हैं।
रुद्राक्ष और मूंगा के साथ पिरोया गया स्फटिक का ब्रेसलेट खूब पहना जाता है। इससे व्यक्ति को डर और भय नहीं लगता। उसकी सोच-समझ में तेजी और विकास होने लगता है। मन इधर-उधर भटकने की स्थिति में, सुख-शांति के लिए स्फटिक पहनने की सलाह दी जती है। कहते हैं कि स्फटिक के शंख से ईश्वर को जल तर्पण करने वाला पुरुष या स्त्री जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त हो जता है।
ज्वर, पित्त-विकार, निर्बलता तथा रक्त विकार जैसी व्याधियों में वैद्यजन इसकी भस्मी का प्रयोग करते हैं। स्फटिक कंप्यूटर से निकलने वाले ‘बुरे’ रेडिएशन (यानी हानिकारक विकिरण) को अपनी ओर खींचकर सोख लेती है । स्फटिक को नग के बजाय माला के रूप में पहना जाता है।
इसके उपयोग इस प्रकार हैं:-
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इसे पूजा स्थल में रखें-
इसे स्फटिक मणि भी कहा जाता है। स्फटिक बर्फ के पहाड़ों पर बर्फ के नीचे टुकड़े के रूप में पाया जाता है। यह बर्फ के समान पारदर्शी और सफेद होता है। यह मणि के समान है। इसलिए स्फटिक के श्रीयंत्र को बहुत पवित्र माना जाता है। यह यंत्र ब्रम्हा, विष्णु, महेश यानि त्रिमूर्ति का स्वरुप माना जाता है।
स्फटिक श्रीयंत्र का स्फटिक का बना होने के कारण इस पर जब सफेद प्रकाश पड़ता है तो ये उस प्रकाश को परावर्तित कर इन्द्र धनुष के रंगों के रूप में परावर्तित कर देती है।
यदि आप चाहते है कि आपकी जिन्दगी भी खुशी और सकारात्मक ऊर्जा के रंगों से भर जाए तो घर में स्फटिक श्रीयंत्र स्थापित करें। यह यंत्र घर से हर तरह की नेगेटिव एनर्जी को दूर करता है। घर में पॉजिटिव माहौल को बनाता है। जिस घर में यह यंत्र स्थापित कर दिया जाता है वहां पैसा बरसने लगता है साथ ही जो भी व्यक्ति इसे स्थापित करता है उसके जीवन में नाम पैसा दौलत शोहरत सब कुछ होता है। बस इसे विधान से स्थापित करवाए .
स्फटिक में दिव्य शक्तियां या ईश्वरीय पावर्स मौजूद होती हैं। इस कदर कि स्फटिक में बंद एनर्जी के जरिए आपकी तमन्नाओं को ईश्वर तक खुद-ब-खुद पहुंचाता जता है। फिर यह धारण करने वाले के मनमर्जी मुताबिक काम करता जता है और आपके दिमाग या मन में किसी किस्म के नकारात्मक विचार हरगिज नहीं पनप पाते।
स्फटिक की माला के मणकों से रोजना सुबह लक्ष्मी देवी का मंत्र जप करना आर्थिक तंगी का नाश करता है। स्फटिक के शिवलिंग की पूज-अर्चना से धन-दौलत, खुशहाली, बीमारी से राहत और पॉजिटिव पावर्स प्राप्त होती हैं।
रुद्राक्ष और मूंगा संग पिरोई स्फटिक का ब्रेसलेट हीलिंग यंत्र के तौर पर खूब पहना जाता है। इससे डर-भय छूमंतर होते देर नहीं लगती। सोच-समझ में तेजी और विकास होने लगता है। मन इधर-उधर भटकने की स्थिति में, सुख-शांति के लिए स्फटिक के पेंडेंट पहनने की सलाह दी जती है और बताते हैं कि स्फटिक के शंख से ईश्वर को जल तर्पण करने वाला या वाली जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त हो जता है। साथ-साथ खुशकिस्मती आपके घर-आंगन में वास करने लगती है।
एक खास बात और है-अगर आपके बेटे या बेटी का पढ़ाई-लिखाई में मन न लगे और एकाग्रता के अभाव के चलते वह पढ़ाई में कमजोर हो तो फौरन स्फटिक का पिरामिड उसके स्टडी टेबल या स्टडी रूम में रखने से उत्तम नतीजे आने लगते हैं। यही नहीं, स्फटिक यंत्र के सहारे तमाम रुकावटें हटती जती हैं। आपको सही समझ-बूझ से नवाजता है स्फटिक।
यह विविध वास्तु दोषों के निराकरण के लिए श्रेष्ठतम उपाय है.। श्री यंत्र पर ध्यान लगाने से मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है.। उच्च यौगिक दशा में यह सहस्रार चक्र के भेदन में सहायक माना गया है.। कार्यस्थल पर इसका नित्य पूजन व्यापार में विकास देता है.। घर पर इसका नित्य पूजन करने से संपूर्ण दांपत्य सुख प्राप्त होता है.। पूरे विधि विधान से इसका पूजन यदि प्रत्येक दीपावली की रात्रि को संपन्न कर लिया जाय तो उस घर में साल भर किसी प्रकार की कमी नही होती है.।
अपने आसपास के वातावरण में इनका प्रयोग किया जा सकता है जैसे ऑफिस में मेज पर रखकर या रोगी के बिस्तर के आसपास या तकिए के नीचे रखकर ऊर्जा शक्ति के क्षेत्र को बढाया जा सकता है।
शक्तिवर्घक प्रकृति का यह अनमोल सुरक्षा कवच मन, रोग एवं भावनाओं के उद्वेग को शांत कर शरीर व मन की शिथिलता को दूर कर स्वास्थ्य लाभ देता है, आत्मविश्वास और निर्भयता प्रदान कर व्यक्तित्व को निखारता है तथा आघ्यात्मिक विकास में सहयोग करता है।
स्फटिक श्रीयंत्र:-
श्री विद्या से संबंधित तंत्र ब्रह्माण्ड का सर्वश्रेष्ठ तंत्र है जिसकी साधना ऐसे योग्य साधकों और शिष्यों को प्राप्त होती है जो समस्त तंत्र साधनाओं को आत्मसात कर चुके हों-
श्री विद्या की साधना का सबसे प्रमुख साधन है श्री यंत्र - श्री यंत्र प्रमुख रूप से ऐश्वर्य तथा समृद्धि प्रदान करने वाली महाविद्या त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है. यह यंत्र सही अर्थों में यंत्रराज है. इस यंत्र को स्थापित करने का तात्पर्य श्री को अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ आमंत्रित करना होता है | जो साधक श्री यंत्र के माध्यम से त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसके एक हाथ में सभी प्रकार के भोग होते हैं, तथा दूसरे हाथ में पूर्ण मोक्ष होता है. आशय यह कि श्री यंत्र का साधक समस्त प्रकार के भोगों का उपभोग करता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है. इस प्रकार यह एकमात्र ऐसी साधना है जो एक साथ भोग तथा मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है, इसलिए प्रत्येक साधक इस साधना को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है.|
अन्य लाभ-
कंप्यूटर पर कार्य करने वालों को सलाह दी जाती है कि वे स्फटिक धारण करें या अपने निकट रखें । स्फटिक कंप्यूटर से निकलने वाले ‘बुरे’ रेडिएशन (यानी हानिकारक विकिरण) को अपनी ओर खींचकर सोख लेती है ।
इसकी माला धारण करने से विवादों और समस्याओं से मुक्ति मिलती है और शत्रु भय नहीं रहता.
इसकी माला धारण करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है.
पूजा स्थान में इसकी माला मन्त्रों से सिद्ध कर , गंगा जल से धो कर पूजा करने से , इसे तिजोरी में रखने से और इसकी माला से लक्ष्मीजी का मन्त्र जप करने से घर में लक्ष्मी स्थिर होती है. तिजोरी का मुंह उत्तर की तरफ होना चाहिए.
जिन्दगी में खुशी और सकारात्मक ऊर्जा के लिए घर में स्फटिक श्रीयंत्र स्थापित करें। यह यंत्र घर से हर तरह की नेगेटिव एनर्जी को दूर करता है। घर में पॉजिटिव माहौल बनाता है। - श्रीयंत्र को अगर किसी विद्यार्थी के कमरे में स्थापित किया जाए तो एकाग्रता बढ़ाने के साथ ही मानसिक तनाव नहीं होता है।
इस यंत्र से करियर में जबरदस्त सफलता दिलवाने के साथ ही आप जिस भी क्षेत्र मे हैं, उसमें आपके प्रदर्शन में सुधार लाता है।
मन इधर-उधर भटकने की स्थिति में, सुख-शांति के लिए स्फटिक पहनने की सलाह दी जाती है।
स्फटिक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह पहनने वाले किसी भी पुरुष या स्त्री को एकदम स्वस्थ रखता है। इसके बारे में यह भी माना जाता है कि इसे धारण करने से भूत-प्रेत आदि की बाधा से मुक्त रहा जा सकता है।
शुभ मुहूर्त में सिद्ध किया हुआ स्फटिक शिवलिंग के नित्य अर्चन से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, बिगड़े काम बन जाते है, और सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है.
भगवान शिव का सबसे प्रिय रत्न होने के कारण स्फटिक गणेश भी बहुत प्रिय है।
इसके प्रभाव से ग्रहों के अशुभ दूर हो जाता है।
घर का हर कार्य बिना रुकावट के सम्पन्न हो जाए इसके लिए घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर स्फटिक गणेश को स्थापित करने से इच्छा अनुसार लाभ होता है।
उपचार और प्रयोग-
No comments:
Post a Comment