Wednesday, August 19, 2015

आज वोद्धिक स्तर क्या है-

पहले शिक्षा का रुप ही अलग था विद्यार्थी को समाज पढ़ाने के लिए साधन देता था उसका परिवार से संबंध नही रहता था पढ़ते समय वह समाज का रहता था वह घर- घर जाकर माता भिक्षाम देहि का उच्चारण करता था और उससे उसका तथा गुरु जी के घर का पालन पोषण होता था फलस्वरुप उसे समाज का ज्ञान होता था वह समाज का कष्ट समझता था तथा जब वह सेवा में आता था तब उसे उसके कष्ट जो उसने देखे थे महसूस होते थे उसमें तब वास्तविक ज्ञान या कहें कि सदवुद्धि का उदय होता था।


लेकिन आज का परिवेश बदल गया है -आजकल विल्कुल भी सदवुद्धि वाले लोग नही हैं तो यह गलत बात ही होगी किन्तु आज के समय में उनकीसंख्या बहुत ही कम है या कहे क्षेत्र में भी वड़े ही कम मिल सकेंगें। आज अधिकांशतः शिक्षित ऐसे हैं जो विनम्र,सरल और विद्यावान होने की अपेक्षा इसके उल्टे विचारों पर ही चल रहैं  हैं।ये लोग विना पड़े लिखे लोगो की अपेक्षा अधिक चालाक,अहंकारी,पाखण्डी, बेईमान व दूसरों को शोषित करने की व मूर्ख बनाने की  कला में निपुण होते जा रहे हैं।


आज के प्राणियों की वोद्धिक स्तर पर  तुलना करने पर हम उसे दो भागों में बाँट सकते है- इन प्रकारों में एक प्रकार के  प्राणीं वुद्धिमान और दूसरे प्रकार के  मूर्ख कहलाते हैं।किन्तु बुद्धिमान  भी  दो प्रकार के होते हैं। एक वु्द्धिमान व दूसरे सदवु्द्धि मान और वुद्धि जव केवल स्वार्थपरक हो तो यह चालाकी कहलाती है किन्तु जव यही समझदारी के साथ प्रयोग हो तो यही सदवुद्धि कहलाती है।


आजकल जमाना चालाकी वाला होने के कारण ही दुनिया में पाप व अनाचार वढ़ रहा है।क्योंकि जो जो शिक्षित होता जा रहा है वह चालाकी में दम भर रहा है।शिक्षा का रुप अब वदल रहा है।इसी कारण जैसी शिक्षा मिल रही है वह वुद्धिवाद बढ़ा रही है फलस्वरुप मानव अपने ही हाथों प्रकृति का दोहन न करके उसे समाप्त करने पर तुला है -


इसी के चलते नागरिकता का लोप होता जा रहा है प्रत्येक व्यक्ति किसी भी प्रकार अपना लाभ करने के लिए देश का समाज का कितना भी नुकसान करने पर उताऱु है। मेरा एक रुपये का काम बन रहा है चाहें दुसरे का 10000 या अधिक का ही नुकसान क्यों न हो- में अपना फायदा लेने के लिए कर दूँगा एसी भावनाए जव लोगों में उदित होने लगे तो समझों समाज के विनाश का समय आ गया है औऱ ऐसा ही आजकल हो रहा है।


भोजन की सात्विकता की महिमा का वर्णन किया है।और खादय पदार्थो व कार्यों का सत्, रज् व तम में बँटवारा करके मानव को कुछ भी खाने व करने से पहले सचेत किया है ।और हर बार आप यह पाऐंगे कि यह विचार विल्कुल सही ही कह रहें हैं।आज कल का खान पान व्यक्ति न चाहते हुये भी कई चीजों का देखने दिखाने के चक्कर में गलत का सेवन कर लेता है जिसका प्रभाव या तो रोगों के रुप में खुद को छेलना पड़ता है या फिर समाज को उसका प्रभाव दिखाई देता है ।


वुद्धि यदि सतोगुणी नही है तो आपको सफलता व सांसारिक व्यवहार कुशलता तो मिल सकती है किन्तु साथ में उलझन ,दिखावा ,तिकड़म-वाजी ,तनाव व छल-कपट भी प्रसाद रुप में प्राप्त होगें ही जवकि सदवुद्धि समझदारी,दायित्व-वोध,सुकर्म,ईमानदारी,तत्व-ज्ञान,आध्यात्मिक शक्ति,मन की शक्ति ,शान्ति और परमात्मा के प्रति प्रेम पाने की प्रेरणा भी देती है।

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