आज से पचास साल पहले आपके बुजुर्ग बताते होगे कि पत्तल और दोने में खाने का प्रचलन था आज उसकी जगह प्लेट और चम्मच ने ले लिया -
आपको पता है कि आज जो लोग पत्तल में खाने पे हमारे बुजुर्गो को मुर्ख समझते है जबकि इसका विपरीत है -पत्तल और दोने में खाना कितना शुद्ध होता था आप जान कर आश्चर्य करेगे - वनस्पति की विभिन्न जातियों से पत्तल और दोनों का निर्माण होता था - पलास के पत्ते से ये अधिकतर निर्माण होता था -
प्राचीन ग्रंथों मे केले की पत्तियो पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है। आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियो का यह प्रयोग होने लगा है।केरला में ये प्रथा आज भी है -
सबसे महत्वपूर्ण बात हम जब खड़े -खड़े खाते है तो ये खाने का विधान नहीं है इससे हमारे हाथ की नस पे विपरीत प्रभाव पड़ता है- दुसरे पेट भी नहीं भरता है -तीसरे किस व्यक्ति को क्या रोग है इसका कोई पता आपको नहीं है -एक ही डोंगे से बार-बार भोजन को निकाल कर अपनी झूठी प्लेट में डालना -आप समझ गए होगे कि ये अग्रेजी फेसन हमें कहाँ ले आया है और हम रोग ग्रस्त हो रहे है-
कभी जाके आपको देखना चाहिए जहाँ ये खाने की प्लेट साफ़ की जाती है एक टब में झूठे बर्तन या प्लेटे डाल दूसरे टब में सादे पानी में डुबो कर वापस सजा दिया जाता है -बस हो गया साफ़- आप समझ सकते है -कि अगर किसी को अस्थमा या टी बी जेसा घातक रोग है तो उसके जीवाणु आप तक -फिर क्यों नहीं पहुँच सकते है - आखिर ये अंग्रेजी प्रथा हमें कहाँ ले के जा रही है -रोग क्यों बढ़ रहे है फिर भी हम आज की आधुनिकता की चकाचौंध में खोये हुए खुद को स्मार्ट समझ रहे है -और अपने दादा-दादी ,नाना-नानी के बताये ज्ञान को बेकफुट पे रख रहे है - उनकी उम्र तो कुछ दिन बची है -लेकिन आप क्यों असमय बुढ़ापे की ओर अग्रसर हो रहे है-
इसका पूर्ण रूप से सामजिक बहिस्कार किया जाना चाहिए -सुविधाओ का उपयोग करना ठीक है लेकिन जहाँ आपकी सेहत से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वाला है -वहां हमें इस प्रकार की पार्टी का बहिस्कार करना चाहिए- आप शुरू तो करिए -धीरे-धीरे ये अग्रेजी प्रथा अपने आप समाप्त हो जायेगी -
दूसरा फायदा ये है कि पत्तल और दोने से निर्मित सभी चीजे भूमि में दबा देने से -किसी के रोग को पनपने का कोई मौका नहीं मिलता है -और लोगो को हमारे देश में घर-घर एक रोजगार भी मिलता है - मतलब सिर्फ हम बदले -तो देश बदलेगा - केवल राजनीति वश दोसारोपण न करे-
चलिए आपको पत्तल -दोने में खाने के क्या गुण है हम आपको बता देते है -
पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है ।
केले के पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है ।
रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है। पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी इसका उपयोग होता है। आम तौर पर लाल फूलो वाले पलाश को हम जानते हैं पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है। इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासिर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है।
जोडो के दर्द के लिये करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है। पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है।
लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलो को उपयोगी माना जाता है।
अब आप समझ ही गए होगे -कि दावत खाने के चक्कर में हम रोगों के वाइरस खुद ही ला रहे है -
उपचार और प्रयोग-http://www.upcharaurprayog.com
आपको पता है कि आज जो लोग पत्तल में खाने पे हमारे बुजुर्गो को मुर्ख समझते है जबकि इसका विपरीत है -पत्तल और दोने में खाना कितना शुद्ध होता था आप जान कर आश्चर्य करेगे - वनस्पति की विभिन्न जातियों से पत्तल और दोनों का निर्माण होता था - पलास के पत्ते से ये अधिकतर निर्माण होता था -
प्राचीन ग्रंथों मे केले की पत्तियो पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है। आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियो का यह प्रयोग होने लगा है।केरला में ये प्रथा आज भी है -
सबसे महत्वपूर्ण बात हम जब खड़े -खड़े खाते है तो ये खाने का विधान नहीं है इससे हमारे हाथ की नस पे विपरीत प्रभाव पड़ता है- दुसरे पेट भी नहीं भरता है -तीसरे किस व्यक्ति को क्या रोग है इसका कोई पता आपको नहीं है -एक ही डोंगे से बार-बार भोजन को निकाल कर अपनी झूठी प्लेट में डालना -आप समझ गए होगे कि ये अग्रेजी फेसन हमें कहाँ ले आया है और हम रोग ग्रस्त हो रहे है-
कभी जाके आपको देखना चाहिए जहाँ ये खाने की प्लेट साफ़ की जाती है एक टब में झूठे बर्तन या प्लेटे डाल दूसरे टब में सादे पानी में डुबो कर वापस सजा दिया जाता है -बस हो गया साफ़- आप समझ सकते है -कि अगर किसी को अस्थमा या टी बी जेसा घातक रोग है तो उसके जीवाणु आप तक -फिर क्यों नहीं पहुँच सकते है - आखिर ये अंग्रेजी प्रथा हमें कहाँ ले के जा रही है -रोग क्यों बढ़ रहे है फिर भी हम आज की आधुनिकता की चकाचौंध में खोये हुए खुद को स्मार्ट समझ रहे है -और अपने दादा-दादी ,नाना-नानी के बताये ज्ञान को बेकफुट पे रख रहे है - उनकी उम्र तो कुछ दिन बची है -लेकिन आप क्यों असमय बुढ़ापे की ओर अग्रसर हो रहे है-
इसका पूर्ण रूप से सामजिक बहिस्कार किया जाना चाहिए -सुविधाओ का उपयोग करना ठीक है लेकिन जहाँ आपकी सेहत से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वाला है -वहां हमें इस प्रकार की पार्टी का बहिस्कार करना चाहिए- आप शुरू तो करिए -धीरे-धीरे ये अग्रेजी प्रथा अपने आप समाप्त हो जायेगी -
दूसरा फायदा ये है कि पत्तल और दोने से निर्मित सभी चीजे भूमि में दबा देने से -किसी के रोग को पनपने का कोई मौका नहीं मिलता है -और लोगो को हमारे देश में घर-घर एक रोजगार भी मिलता है - मतलब सिर्फ हम बदले -तो देश बदलेगा - केवल राजनीति वश दोसारोपण न करे-
चलिए आपको पत्तल -दोने में खाने के क्या गुण है हम आपको बता देते है -
पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है ।
केले के पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है ।
रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है। पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी इसका उपयोग होता है। आम तौर पर लाल फूलो वाले पलाश को हम जानते हैं पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है। इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासिर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है।
जोडो के दर्द के लिये करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है। पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है।
लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलो को उपयोगी माना जाता है।
अब आप समझ ही गए होगे -कि दावत खाने के चक्कर में हम रोगों के वाइरस खुद ही ला रहे है -
उपचार और प्रयोग-http://www.upcharaurprayog.com
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