Wednesday, August 19, 2015

स्लिप्ड डिस्क क्या है-



स्लिप्ड  डिस्क कोई बीमारी नहीं, शरीर की मशीनरी में तकनीकी खराबी है। वास्तव में डिस्क स्लिप नहीं होती, बल्कि स्पाइनल कॉर्ड  से कुछ बाहर को आ जाती है। डिस्क का बाहरी हिस्सा एक मजबूत  झिल्ली से बना होता है और बीच में तरल जैलीनुमा पदार्थ होता है। डिस्क में मौजूद जैली या कुशन जैसा हिस्सा कनेक्टिव  टिश्यूज  के सर्कल से बाहर की ओर निकल आता है और आगे बढा हुआ हिस्सा स्पाइन  कॉर्ड  पर दबाव बनाता है। कई बार उम्र के साथ-साथ यह तरल पदार्थ सूखने लगता है या फिर अचानक झटके या दबाव से झिल्ली फट जाती है या कमजोर  हो जाती है तो जैलीनुमा  पदार्थ निकल कर नसों पर दबाव बनाने लगता है, जिसकी वजह से पैरों में दर्द या सुन्न होने की समस्या होती है। भारत में 20 प्रतिशत से ज्यादा लोग स्लिप्ड डिस्क से जूझ रहे हैं।


गलत पोजीशन इसका आम कारण है। लेट कर या झुक कर पढना या काम करना, कंप्यूटर के आगे बैठे रहना इसका कारण है।


अनियमित दिनचर्या, अचानक झुकने, वजन  उठाने, झटका लगने, गलत  तरीके से उठने-बैठने की वजह से दर्द हो सकता है।


सुस्त जीवनशैली, शारीरिक गतिविधियां कम होने, व्यायाम या पैदल न चलने से भी मसल्स  कमजोर  हो जाती हैं। अत्यधिक थकान से भी स्पाइन पर जोर  पडता है और एक सीमा के बाद समस्या शुरू हो जाती है।
* अत्यधिक शारीरिक श्रम, गिरने, फिसलने, दुर्घटना में चोट लगने, देर तक ड्राइविंग करने से भी डिस्क पर प्रभाव पड सकता है।


उम्र बढने के साथ-साथ हड्डियां कमजोर  होने लगती हैं और इससे डिस्क पर जोर पडने लगता है।


खास कारण:-
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जॉइंट्स  के डिजेनरेशन  के कारण

कमर की हड्डियों या रीढ की हड्डी में जन्मजात विकृति या संक्रमण

पैरों में कोई जन्मजात खराबी  या बाद में कोई विकार पैदा होना।


किस उम्र में है खतरा:-
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आमतौर पर 30  से 50  वर्ष की आयु में कमर के निचले हिस्से में स्लिप्ड  डिस्क की समस्या हो सकती है।

40 से 60 वर्ष की आयु तक गर्दन के पास सर्वाइकल वर्टिब्रा में समस्या होती है।

अब 20-25 वर्ष के युवाओं में भी स्लिप डिस्क के लक्षण तेजी से देखे जा रहे हैं। देर तक बैठ कर कार्य करने के अलावा स्पीड में बाइक चलाने या सीट बेल्ट बांधे बिना ड्राइविंग करने से भी यह समस्या बढ रही है। अचानक ब्रेक लगाने से शरीर को झटका लगता है और डिस्क को चोट लग सकती है।


सामान्य लक्षण:-
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1.  नसों पर दबाव के कारण कमर दर्द, पैरों में दर्द या पैरों, एडी या पैर की अंगुलियों का सुन्न होना

2.  पैर के अंगूठे  या पंजे में कमजोरी

3.  स्पाइनल  कॉर्ड  के बीच में दबाव पडने से कई बार हिप या थाईज के आसपास सुन्न महसूस करना

4.  समस्या बढने पर यूरिन-स्टूल  पास करने में परेशानी

5.  रीढ के निचले हिस्से में असहनीय दर्द

6. चलने-फिरने, झुकने या सामान्य काम करने में भी दर्द का अनुभव। झुकने या खांसने पर शरीर में करंट सा अनुभव होना।


उपचार:-
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दर्द की निरंतरता, एक्स-रे या एमआरआइ,  लक्षणों और शारीरिक जांच के माध्यम से डॉक्टर को पता चलता है कि कमर या पीठ दर्द का सही कारण क्या है और क्या यह स्लिप्ड डिस्क है।

जांच के दौरान स्पॉन्डलाइटिस,  डिजेनरेशन,  ट्यूमर,  मेटास्टेज जैसे लक्षण भी पता लग सकते हैं। कई बार एक्स-रे से सही कारणों का पता नहीं चल पाता। सीटी स्कैन,  एमआरआइ  या माइलोग्राफी (स्पाइनल कॉर्ड कैनाल  में एक इंजेक्शन के जरिये) से सही-सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है। इससे पता लग सकता है कि यह किस तरह का दर्द है। यह डॉक्टर ही बता सकता है कि मरीज  को किस जांच की आवश्यकता है।


जरूरी है कि जांच 100  फीसदी सही हो। आमतौर पर डॉक्टर्स एमआरआइ दो बार कराते हैं ताकि जांच रिपोर्ट सही आ सके। कई बार स्लिप्ड  डिस्क के लक्षण साफ-साफ नहीं उभरते और कुछ अन्य बीमारियों के लक्षण भी ऐसे ही हो सकते हैं, इसलिए बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी इलाज शुरू न कराएं।


स्लिप्ड  डिस्क के ज्यादातर  मरीजों  को आराम करने और फिजियोथेरेपी से राहत मिल जाती है। इसमें दो से तीन हफ्ते तक पूरा आराम करना चाहिए। दर्द कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दर्द-निवारक दवाएं, मांसपेशियों को आराम पहुंचाने वाली दवाएं या कभी-कभी स्टेरॉयड्स  भी दिए जाते हैं।


फिजियोथेरेपी  भी दर्द कम होने के बाद ही कराई जाती है। अधिकतर मामलों में सर्जरी के बिना भी समस्या हल हो जाती है। संक्षेप में इलाज की प्रक्रिया इस तरह है-


1.  दर्द-निवारक दवाओं के माध्यम से रोगी को आराम पहुंचाना
2.  कम से कम दो से तीन हफ्ते का बेड रेस्ट
3.  दर्द कम होने के बाद फिजियोथेरेपी  या कीरोप्रैक्टिक  ट्रीटमेंट
4.  कुछ मामलों में स्टेरॉयड्स  के जरिये  आराम पहुंचाने की कोशिश
5.  परंपरागत तरीकों से आराम न पहुंचे तो सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है।

लेकिन सर्जरी होगी या नहीं, यह निर्णय पूरी तरह विशेषज्ञ का होता है। ऑर्थोपेडिक्स  और न्यूरो  विभाग के विशेषज्ञ जांच के बाद सर्जरी का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय तब लिया जाता है, जब स्पाइनल  कॉर्ड  पर दबाव बढने लगे और मरीज का दर्द इतना बढ जाए कि उसे चलने, खडे होने, बैठने या अन्य सामान्य कार्य करने में असह्य परेशानी का सामना करने पडे। ऐसी स्थिति को इमरजेंसी माना जाता है और ऐसे में पेशेंट को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत होती है, क्योंकि इसके बाद जरा सी भी देरी पक्षाघात का कारण बन सकती है।

रोगी को सलाह:-
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जांच और एमआरआइ रिपोर्ट सही हो तो स्लिप्ड डिस्क की सर्जरी आमतौर पर सफल रहती है। हालांकि कभी-कभी अपवाद भी संभव है। अगर समस्या एल 4 (स्पाइनल कॉर्ड  के निचले हिस्से में मौजूद) में हो और सर्जन एल 5 खोल दे तो डिस्क मिलेगी ही नहीं, लिहाजा सर्जरी विफल होगी। हालांकि ऐसा आमतौर पर नहीं होता, लेकिन कुछ गलतियां कभी-कभार हो सकती हैं।


सर्जरी के बाद रोगी को कम से कम 15-20  दिन तक बेड रेस्ट करना पडता है। इसके बाद कमर की कुछ एक्सरसाइजेज कराई जाती हैं। ध्यान रहे कि इसे किसी कुशल फिजियोथेरेपिस्ट  द्वारा ही कराएं। शुरुआत में हलकी एक्सरसाइज होती हैं, धीरे-धीरे इनकी संख्या बढाई जाती है। मरीज को हार्ड बेड पर सोना चाहिए, मांसपेशियों को पूरा आराम मिलने तक आगे झुक कर कोई काम करने से बचना चाहिए। सर्जरी के बाद भी जीवनशैली सही रहे, यह जरूरी है। वजन नियंत्रित रहे, आगे झुक कर काम न करें, भारी वजन न उठाएं, लंबे समय तक एक ही पोश्चर  में बैठने से बचें और कमर पर आघात या झटके से बचें।

जीवनशैली बदलें:-
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1.  नियमित तीन से छह किलोमीटर प्रतिदिन पैदल चलें। यह सर्वोत्तम व्यायाम है हर व्यक्ति के लिए।

2.  देर तक स्टूल या कुर्सी पर झुक कर न बैठें। अगर डेस्क जॉब करते हैं तो ध्यान रखें कि कुर्सी आरामदेह हो और इसमें कमर को पूरा सपोर्ट मिले।

3.  शारीरिक श्रम मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। लेकिन इतना भी परिश्रम न करें कि शरीर को आघात पहुंचे।

4.  देर तक न तो एक ही पोजीशन में खडे रहें और न एक स्थिति में बैठे रहें।


5.  किसी भी सामान को उठाने या रखने में जल्दबाजी  न करें। पानी से भरी बाल्टी उठाने, आलमारियां-मेज  खिसकाने, भारी सूटकेस उठाते समय सावधानी बरतें। ये सारे कार्य इत्मीनान से करें और हडबडी न बरतें।

6.  अगर भारी सामान उठाना पडे तो उसे उठाने के बजाय धकेल कर दूसरे स्थान पर ले जाने की कोशिश करें।

7.  हाई हील्स और फ्लैट चप्पलों से बचें। अध्ययन बताते हैं कि हाई हील्स से कमर पर दबाव पडता है। साथ ही पूरी तरह फ्लैट चप्पलें भी पैरों के आर्च को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे शरीर का संतुलन बिगड सकता है।

8.  सीढियां चढते-उतरते समय विशेष सावधानी रखें।

9.  कुर्सी पर सही पोजीशन में बैठें। कभी एक पैर पर दूसरा पैर चढा कर न बैठें।

10.  जमीन  से कोई सामान उठाना हो तो झुकें नहीं, बल्कि किसी छोटे स्टूल पर बैठें या घुटनों के बल नीचे बैठें और सामान उठाएं।

11. वजन  नियंत्रित रखें। वजन  बढने और खासतौर  पर पेट के आसपास चर्बी बढने से रीढ की हड्डी पर सीधा प्रभाव पडता है।

12.  अत्यधिक मुलायम और सख्त  गद्दे पर न सोएं। स्प्रिंगदार गद्दों या ढीले निवाड  वाले पलंग पर सोने से भी बचें।

13.  पीठ के बल सोते हैं तो कमर के नीचे एक टॉवल  फोल्ड  करके रखें, इससे रीढ को सपोर्ट मिलेगा।

14.  कभी भी अधिक मोटा तकिया सिर के नीचे न रखें। साधारण और सिर को हलकी सी ऊंचाई देता तकिया ही बेहतर होता है।

15.  मॉल्स  में शॉपिंग  के दौरान या किसी इवेंट  या आयोजन में अधिक देर तक एक ही स्थिति में न खडे रहें। बीच-बीच में स्थिति बदलें। अगर देर तक खडे होकर काम करना पडे तो एक पैर को दूसरे पैर से छह इंच ऊपर किसी छोटे स्टूल पर रखना चाहिए।

16.  अचानक झटके के साथ न उठें-बैठें।

17.  देर तक ड्राइविंग करनी हो तो गर्दन और पीठ के लिए कुशन रखें। ड्राइविंग सीट को कुछ आगे की ओर रखें, ताकि पीठ सीधी रहे।


18.  दायें-बायें या पीछे देखने के लिए गर्दन को ज्यादा घुमाने के बजाय शरीर को घुमाएं।

19.  पेट के बल या उलटे होकर न सोएं।

20.  कमर झुका कर काम न करें। अपनी पीठ को हमेशा सीधा रखें।

बैठे रहने से बढती है समस्या:-
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बैठने का तरीका पीठ के निचले हिस्से में दर्द के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होता है।


ब्रिटिश कायरोप्रैक्टिस एसोसिएशन के आंकडों के अनुसार 32 प्रतिशत लोग औसतन 10 घंटे लगातार ऑफिस में बैठ कर काम करते हैं। इनमें से आधे लोग ऐसे भी हैं जो लंच ब्रेक में भी सीट नहीं छोड पाते। ऐसे लोगों को कमर दर्द अधिक घेरता है। दो तिहाई लोग घर में भी इतने लंबे समय तक बैठ कर काम करते हैं।

उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

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